punjabfly

Aug 19, 2018

झूमर के बादशाह बाबा पोखर सिंह

झूमर दक्षिण पंजाब का मशहूर लोक नाच है। भारत विभाजन हुआ तो सांदल बार के इलाके में रहने वाले अधिकांश लोग फाजिल्का और जलालाबाद के इलाके में आकर बस गए। जहां उन्होंने लोक नाच झूमर की शान को बरकरार रखा और देश विदेश में इसे प्रसिद्ध किया। दरअसल विभाजन से पूर्व झूमर में पोखर सिंह और जम्मू राम का नाम काबिले तारीफ रहा है। विभाजन के बाद जम्मू राम गांव नूरशाह में आकर बस गए, जबकि पोखर सिंह गांव झोटियां वाली में आकर रहने लगे। यहां उन्होंने चिराग ढ़ाणी बसाई। पोखर सिंह का जन्म 15 अगस्त 1914 को मिन्टगुमरी जिला के गांव तूतवाली जिला मिंटगुमरी (पाकिस्तान) में स. पंजाब सिंह के घर माता केसां बाई की कोख से हुआ। पोखर सिंह के छह भाई थे तो सबसे बड़ा लछमण सिंह पंजाब विधान सभा के सदस्य भी रहे। आप बचपन से कुश्ती और मुदगर उठाने के साथ-साथ आप झूमर के बहुत शौकीन थे। आपकी शादी संतो बाई से हुई और आपके घर चार बेटे व पांच बेटियों ने जन्म लिया। बाबा पोखर ङ्क्षसह की मौत के बाद उनके बेटे कुलवंत सिंह लोक नाच झूमर के जरिए इलाके की शान बनाए हुए हैं। 
Baba g di ik yaad apne ik seh-kalakar lakshmi chahuan and baba g di wife at shimla song and drama division
           फाजिल्का में आने के बाद भी उन्होंने झूमर लोक नाच को प्रसिद्ध किया। बात 1967-68 की है। तब गांव लालो वाली के बेदी परिवार की ओर से भारी मेला लगाया जाता था और इसकी धूम दूरदराज के क्षेत्र में भी थी। स. लाजिन्द्र सिंह बेदी ने मेले में झूमर का मुकाबला करवाया। अन्य टीमें तो मुकाबले के पहले दौर में ही बाहर हो गई। मगर पोखर सिंह और जम्मू राम की टीम में कड़ा मुकाबला हुआ। मगर बाबा पोखर सिंह की टीम ने मुकाबला जीत लिया और उन्हें पुरस्कारों से नवाजा गया। कहते हैं कि जब महारानी विकटोरिया गोल्डन जुबली मनाने के लिए भारत आई तो बाबा पोखर सिंह ने झूमर में बोलियां डालकर उसका विरोध किया। पोखर सिंह ने विकटोरिया को जुगनी कहकर संबोधित किया। 26 जनवरी 1961 में प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने बाबा पोखर सिंह को सोने के तगमें से नवाजा। इसके अलावा आपने देश विदेश में अनेकों पुरस्कार हासिल किए। अब बात करते हैं झूमर की। पुरुषों द्वारा किया जाने वाला पंजाब झूमर नृत्य अविभाजित भारत के दक्षिणी पंजाब के शहर फाजिल्का का एक विशेष लोकनाच है। इसका यह नामकण झूम से लिया गया। घूमर नृत्य हरियाणा की युवतियों का लोकप्रिय नृत्य है, जो होली, गनगौर अथवा तीज जैसे त्यौहारों पर किया जाता है। घूमर नृत्य में जहां युवतियां, गोलाकार में झूमते हुये तालियां बजाकर एवं गीत गाते हुये यह नृत्य करती हैं। वहीं झूमर लोकनाच करने वाले गोलाकार घेरे में ढ़ोल की थाप पर झूमकर ताली बजाकर लगात्मकता के साथ लोकनाच करते हैं। झूमर के अंतिम चरण स्थिति में नर्तक दो-दो के जोड़े में तेजी से घूमते हैं। नृत्य के समय गाये जाने वाले गीतों में समसामयिक विषयों पर हास्य और व्यंग्य शामिल होता है। 
           
फाजिल्का प्रसिद्ध झूम नृत्य के गीत लोकपारम्परिक काव्यों पर आधारित श्रृंगार भाव से परिपूर्ण होते हैं। नर्तकों की वेषभूषा साधारणत्या सफेद होती है। यह लोकनाच तीन पड़ावों में होता हैं, एक धीमी ताल, दूसरा तेज ताल और तीसरा बहुत तेज ताल। कई विद्वानों ने इसे झूमर की ताल, चीना झडऩा और धमाल भी कहा हैं। यह लोक नाच खुली जगह, घेरे का आकार, अपने-अपने लोक गीत के बोल द्वारा ढ़ोल पर किया जाता है। इसकी शुरूआत धीमी और अंतिम में तेज व जोशीली होती है। इस दौरान जो भी गीत बोले जाते हैं। उनमें पशुओं, वृक्ष और प्रेमी के मिलने की तड़प का जिक्र ज्यादा होता हैं। (Lachhman Dost Fazilka)
Jhumar Pitama - Baba Pokhar Singh 
Chhundar is a famous folk dance of South Punjab. When India was partitioned, most of the people living in Sandal Bar area settled in the area of ​​Phazilka and Jalalabad. Where he retained the fame of the Folk Dance chandelier and made it famous in the country abroad. In fact, before the partition, the names of Pokhar Singh and Jammu Ram have been praised in the Jhumar. After the partition Jammu Ram Village settled in Noorshah, while Pokhar Singh lived in the village Jotis. Here he built a chirag cabinet. Pokhar Singh was born on August 15, 1914, in Tintwali district, Mintgumari (Pakistan), in village Mintuguri district. The house of Punjab Singh came from the womb of Keshan Bai. Pokhar Singh had six brothers while Lakhman Singh, the eldest was also a member of the Punjab Legislative Assembly. Apart from lifting wrestling and mugger from your childhood, you were very fond of chandelier. You got married to Santo Bai and you have born four sons and five daughters. After the death of Baba Pokhara Singh, his son Kulwant Singh has made the pride of the area through the folk dance chandu.
           After coming to Fazilka, he also popularized the Jhumar Lok Dancing. The point is 1967-68. Then a massive fair was organized by the Bedi family of the village Lallo and its fog was also in remote areas. S Mr.Lajinder Singh Bedi fought the chandelier in the fair. Other teams were out in the first round of the match. But the team of Pokhar Singh and Jammu Ram got a tough fight. But Baba Pokhar Singh's team won the contest and they were awarded the prizes. It is said that when Queen Victoria came to India to celebrate Golden Jubilee, Baba Pokhar Singh opposed it by putting bids in the chandelier. Pokhar Singh addressed Viktoria as Jugni. On January 26, 1961, Prime Minister Pandit Jawaharlal Nehru received Baba Pokhar Singh from the gold medal. Apart from this, you have got many awards abroad. Let's talk now of the chandelier. The Punjab chandar dance by men is a special festival of undivided India, the city of Fazilka, southern Punjab. This name was taken from Jhoom. Ghoomar dance is the popular dance of the women of Haryana, which is done on festivals like Holi, Gangaur or Teej. In the Ghoomar dance, where the girls dance and dance while singing and singing in the sphere, they dance. On the other side of the chandeliers, the chandeliers are roaming on the thunderstorm and chanting them with rhythm. In the last phase of the chandelier, dancers roam fast in couple of pairs. Songs that are played at the dance include humor and satire on contemporary subjects.
           Fazilka's famous Jhoom dance songs are full of popular expressions based on traditional poetry. The dancers' dress is usually white. This locals are in three stages, a slow rhythm, another fast rhythm and the third very fast rhythm. Many scholars have also called it the rhythm of chandeliers, china flashes and dhamal. This folk dance is done on the open space, the shape of the circle, the voice of his folk song, on the wall. Its beginnings are slow and strong in the last and final. Whatever songs are said during this time. They are more concerned about meeting animals, trees and lovers 
All Photoes with Thanks 
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