सांडर्स की हत्या के बाद फाजिल्का पहुंचे
शहीदे-आजम स.भगत सिंह
शहीद किसी भी देश तथा राष्टï्र अमूल्य निधि होते हैं। उनका आत्मोत्सर्ग तथा बलिदान ही देशवासियों की सुप्त भावनाओं को नवचेतना प्रदान करके उन्हें जीवन का नया संदेश देते हैं। वे हंसते-हंसते अपना तन, मन और धन देश पर कुर्बान होकर अपने रक्त से स्वाधीनता का वृक्ष सिंचित करते हैं। उनके रक्त के संचार से स्वाधीनता का वृक्ष हरा-भरा रहता तथा फलता-फुलता रहता है। सच्चे देश भक्त ही जनता का पथ प्रदर्शन करके उन्हें देश के लिए जीने तथा मरने की प्रेरणा देते हैं। इस कतार में शहीद-ऐ-आजम स.भगत सिंह का नाम सबसे आगे है। जिनका स्मरण होते ही प्रत्येक भारतीय नत-मस्तक हो जाता है। उनकी देश भक्ति के किस्सों की कड़ी फाजिल्का क्षेत्र से भी जुड़ी हुई है।
3 अक्तूबर 1928 में साईमन कमिशन लाहौर पहुंचा तो वहां पर भारतीयों ने कमिशन की डटकर खिलाफत की। इस पर ब्रिटिश अधिकरियों ने अन्यों देश भक्तों सहित लाला लाजपत राय जैसे सरीखे नेता पर भी लाठियों बरसाई। 17 दिसंबर 1928 के दिन जब लाला जी की मौत हो गई तो भगत सिंह ने इसका बदला लेने की ठान ली। बदला लेने के लिए स. भगत सिंह ने ब्रिटिश अधिकारी सार्जेंट स्कॉट समझकर मोटर साईकल पर आ रहे सार्जेंट सांडर्स को गोली से उड़ा दिया। जिससे ब्रिटिश सम्राज्य में खलबली मच गई और ब्रिटिश अधिकरियों ने स. भगत सिंह को ढूंढने को अभियान तेज कर दिया। स. भगत सिंह अनेक जगहों से होते हुए फाजिल्का तहसील के गांव दानेवाला में पहुंचे। जहां उन्होंने अपने देश भक्त साथी स. जसवंत सिंह दानेवालिया घर में पनाह ली। स. भगत सिंह दिन के समय भेष बदलकर अन्य देश भक्तों के साथ अपने सबंध कायम रखते और रात के समय दानेवालिया के घर लौट आते। जहां वह स. जसवंत सिंह क बाहरले घर की हवेली में ठहरते। स. भगत सिंह वहां कई महीनों तक रहे। वहां से जाते समय स.भगत सिंह ने गांव के लुहार हाजी करीम से अपनी पिस्तौल की मुरम्मत करवाई। 1929 में गिरफ्तारी के बाद स. भगत सिंह ने पुलिस को यह बता भी दिया कि इस दौरान उन्होंने कहां-कहां पनाह ली? इसके बाद ब्रिटिश पुलिस ने गांव में छापामारी करके घर-घर की तलाशी ली और ग्रामीणों से स. भगत सिंह के बारे जानकारी हासिल करने का प्रयास किया। लेकिन किसी भी ग्रामीण ने स. भगत सिंह के गांव में छुपे रहने की बात नही बताई। बेशक ब्रिटिश पुलिस को पता चल चुका था कि स. भगत सिंह ने गांव दानेवाला में पनाह ली थी। मगर ग्रामीणों द्वारा इसकी जानकारी नहीं देने पर पुलिस ने स्वतन्त्रता सेनानी दानेवालिया परिवार के किसी सदस्य को तंग नहीं किया और न ही उन्हें किसी झूठे मुकदमे में फंसाने की जुर्रत की। उधर अदालत में स.भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव पर मुकदमा गया। जिसमें इन देश भक्तों को फांसी का आदेश दिया गया। भारत माता को ब्रिटिश साम्राज्य की जंजीरों से मुक्त कराने वाले इन देश भक्तों को फांसी देने के बाद फिरोजपुर में हुसैनीवाला निकट सतलुज दरिया किनारे अंतिम संस्कार किया गया। उनकी राख दरिया के पानी में बही और दरिया का पानी राख को बहाकर फाजिल्का तक ले आया । जिससे फाजिल्का की धरती ओर भी पवित्र हो गई।
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साभार: पंजाब के पूर्व इंस्पैक्टर जनरल ऑफ पुलिस स.भगवान सिंह दानेवालिया की पुस्तक 20वीं सदी दा पंजाब पृष्ठ नं.78
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After the murder of Sandrass arrived in Fazilka
Shaheed-Azam S. Bhagat Singh
Martyrs are priceless funds in any country and nation. Their self-sacrifice and sacrifice give new message of life to them by giving a new thought to the dormant feelings of the countrymen. They laugh and eat their body, mind and wealth on the country and consume the tree of freedom from their blood. From the communication of their blood, the tree of independence remains green and flourishes. True country devotees show the path of the masses and inspire them to live and die for the country. In this line, the name of Shaheed-e-Azam S. Bhagat Singh is at the forefront. Whenever they are remembered, every Indian becomes a master. His country is also linked to the fajilka region of the stories of devotion.
When the Simon Commission reached Lahore on October 3, 1928, Indians there protested against the commission and made the Khilafat. On this, British officials also lashed the sticks on other leaders like Lala Lajpat Rai, along with other country's devotees. On 17th December, 1928, when Lala Ji died, Bhagat Singh decided to take revenge. To take revenge Bhagat Singh blamed Sgt Sanders, who came to the motor cycle, as British officer Sergeant Scott. This led to a stir in the British Empire and the British officers did. Extending the campaign to find Bhagat Singh S Bhagat Singh, through many places, reached Phajilka Tehsil's village, Danewalia. Where he is a devotee of his country. Jaswant Singh took refuge in Danewalia house. S Bhagat Singh kept changing his identity during the day while other countries kept their relationship with the devotees and returned to the home of Danewaliya at night. Where he is Jaswant Singh lives in the house mansion of Jaswant Singh. S Bhagat Singh stayed there for several months. While going from there, Mr. Bhagat Singh made a pledge of his pistol from Lohar Haji Karim of the village. After the arrest in 1929 Bhagat Singh also told the police that where did he take refuge during this period? After this, the British police conducted raids in the village and searched the house and demanded from the villagers. He tried to get information about Bhagat Singh. But any villager Bhagat Singh did not talk about being hidden in the village Of course, the British police had come to know that Bhagat Singh took refuge in village Danewaliya. But when the villagers did not give this information, the freedom fighter did not disturb any member of the Danawalia family nor did they try to trap him in a false suit. In the court there, S. Bhagat Singh, Rajguru and Sukhdev were sued. In which these countries were ordered to hang the devotees. After hanging the country's devotees, who liberated Bharat Mata from the chains of the British Empire, the last rites were performed at Sutlej River beside Hussainiwala near Ferozepur. In the water of his ash river, water and water of the river brought ash to Fazilka. By which the land of Fazilka became sacred too.
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Credit: 20th sadi Da Punjab, page number 78, written by former Inspector General of Police, Punjab, Bhagwan Singh Denewaliya.
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