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Sep 11, 2018

Chishti used to call Sheikh Farukhi

शेख फरूखी कहलाना पसंद करते थे चिश्ती
Fazilka Clock Tower
फाजिल्का में बसने वाले मुस्लिमों के पूर्वज विदेशी थे। ब्रिटिश साम्राज्य के भटियाणा (जिला सिरसा) के सेटलमेंट अधिकारी जे.विल्सन ने उन्नीसवीं सदी के अंतिम वर्षों में इन जातियों से विस्तृत बातचीत की तो मुस्लिम जाति ने खुद माना कि वे शेख सैय्यद, पठान, मुगल और बलोच की तरह विदेशी हैं। मुसलमानों की कुछ जातियां ऐसी भी थी जो यह दावा करती थी कि उनकी जातियां अरब देश से आई हैं। इनमें चिश्ती जाति के मुस्लमान भी शामिल थे। इस क्षेत्र में उनका पहला आगमन पश्चिम की तरफ से हुआ। उनकी अनेकों पीढिय़ां देश के इस हिस्से में रही हैं। चिश्तियों का कबीला पवित्र माना जाता था। वह धार्मिक स्वभाव के थे और दावा करते थे कि वह पवित्र व्यक्ति हैं। चिश्ती खुद को उमर की पीढ़ी मानते हैं, जो बलख, शाम और काबुल के सुल्तानों के साथ पैगम्बर मुहम्मद के साथी थे। चिश्ती खुद को शेख फरूखी कहलाना पसंद करते थे। इनके नवीनतम बुजुर्ग जनाब खवाजा फरीद-उद-दीन थे। जो बाबा फरीद शकरगंज के नाम से मशहूर थे। बाबा फरीद ने पंजाब के विभिन्न हिस्सों में प्रचार किया। वह मुलतान से सिरसा पहुंचे और वहां उन्होंने 40 दिन का उपवास रखा। सिरसा से बाबा फरीद दिल्ली पहुंचे। जहां वह कुत्तुबदीन (दिल्ली) के अनुयायी बन गए। कुत्तुबद्दीन से धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने स्थाई तौर पर चवाधन में डेरा डाल लिया। यहां उनकी मान्यता के बढऩे का क्रम जोर-शोर से शुरू हुआ। यह इलाका आजकल पाकपटन (पाकिस्तान) के नाम से जाना जाता है। उनकी मजार और परिवार आज भी पाकपटन में है। जहां बाबा फरीद की दरगाह पर भारी मेला लगाया जाता है। चिश्तियों के बुजुर्गों ने पाकपटन से सतलुज दरिया उन्नीसवीं सदी में चार पीढियां पहले पार किया और दरिया के इस ओर के इलाके में आकर बस गए। जो उस समय आबाद नहीं था। यहां से चिश्ती जिला सिरसा में फैल गए। उस समय चिश्ती जाति के मुसलमानों के जिला 9 गांव थे। इसके अलावा बहावलपुर (पाकिस्तान)में चिश्तीयों के 50 गांव और मिन्टगुमरी (पाकिस्तान) में 25 गांव थे। चिश्तियों की करीब 500 जातियों को 6 से 9 अप्रैल 1881 तक मान्यता दी गई। ब्रिटिश साम्राज्य के कानून से मान्यता प्राप्त करते समय उनके 6 प्रतिनिधि मौजूद थे। सतलुज दरिया के किनारे बसने वाले चिश्तियों के आसपास वट्टू और बोदला जाति के मुस्लमानों का कबीला निवास करता था। वट्टू जाति के कबीले के साथ तो वह अपनी नजदीकी मानते थे। मगर वे मानते थे कि बोदला कबीले के साथ उनका किसी भी तरह का रिश्ता नहीं था। फाजिल्का क्षेत्र में चिश्ती कबीले के मुस्लिम चूहड़ी वाला चिश्ती, पक्का चिश्ती से गांव लोकिया (पाकिस्तान) तक फैले हुए थे, लेकिन भारत विभाजन के बाद वे इस क्षेत्र को छोडक़र पाकिस्तान में जाकर बस गए। 
-LACHHMAN DOST FAZILKA-
Chishti used to call Sheikh Farukhi

   The ancestors of the Muslims who settled in Fazilka were foreigners. In the last years of the nineteenth century, the settlement officer J. Wilson of Bhatiya (District Sirsa) of the British Empire, had detailed talks with these castes, the Muslim caste himself admitted that he was foreign like Sheikh Sayyed, Pathan, Mughal and Baloch. There were also some castes of Muslims who claimed that their castes came from Arab countries. Among them, Chishti caste Muslims were also included. His first arrival in this area was from the west side. His many generations have lived in this part of the country. The tribe of Chishti was considered sacred. He was of a religious nature and claimed that he was a holy person. Chishti considers himself a generation of Omar, who was a companion of prophet Muhammad along with the sultans of Balakh, Sham and Kabul. Chishti used to like himself as Sheikh Farukhi. His latest elderly sage Khawaja Fareed-ud-Din was. Who was famous as Baba Farid Shakarganj. Baba Farid preached in various parts of Punjab. He reached Sirhna from Multan and there he kept 40 days fast. Baba Farid from Sirsa reached Delhi. Where he became a follower of Kutubdin (Delhi). After receiving religious education from Kutubuddin, he permanently camped in Chawadhan. Here, the order of the increase of their recognition began with loud noise. This area is now known as Paktan (Pakistan). His mazar and family are still in Pakapatna. Where a huge fair is organized at the dargah of Baba Farid. The elderly of the Chishti crossed the Satluj Darya from Paktan in the nineteenth century before four generations and settled in this area of ​​the river. Which was not populated at the time. From here the Chishti district spread to Sirsa. At that time there were nine villages in the Chishti caste's Muslim district. Apart from this, there were 50 villages of Chistians and 25 villages in Mantunguri (Pakistan) in Bahawalpur (Pakistan). About 500 castes of Chishti were recognized from 6 to 9 April 1881. While attaining recognition from the law of the British Empire, there were 6 representatives present. The tribe of Muslims of the Vatu and Bodla tribes lived near the Chishts settling along the Sutlej Darya. With the tribe of the Vatu caste, he used to be close to him. But he believed that he did not have any kind of relationship with the Bodolal clan. The Chishti of Chishti clan of Chishti clan in the district of Fazilka was spread from chuhri wala Chishti to village Lokiya (Pakistan), but after the partition of India, they settled in Pakistan leaving this region.

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