दक्षिण पूर्व में महाजनी, उत्तर पश्चिम में वट्टू, चिश्ती और बोदला के गांव
सबसे पहले पश्चिम की तरफ से आए वट्टू, चिश्ती व बोदला जाति के लोगों ने दरिया किनारे बसेरा किया। ओढ़ जाति अबोहर रोड के आसपास बस गई। इन गांवों पर ममदोट और बहावलपुर के नवाबों का नियंत्रण था। जो कि लड़ाईयों द्वारा स्थापित किया हुआ हैं। इन पर 13 अगस्त 1809 से 17 अप्रैल 1826 तक सादिक मुहम्मद खां द्वितीय का नियंत्रण था। बाद में 19 अक्तूबर 1843 तक मुहम्मद बहावल खां तृतीय ने अपनी धाक जमाई। धीरे-धीरे दक्षिण की तरफ 129 गांव बने, इनमें मुख्य गांव मलोट था। दक्षिण पूर्व की तरफ 45 महाजनी गांव थे। उत्तर पश्चिम की तरफ वट्टू चिश्ती जाति के 80 गांव और बोदला के 39 गांव थे। अंग्रेजों के आने पर सतलुज दरिया के नीचे का भू-भाग बहावलपुर के नवाब मुहम्मद बहावल खां तृतीय ने त्याग दिया। -LACHHMAN DOST FAZILKA-
Mahajani in the south east, village of Wattu, Chishti and Bodla in north west
First of all, the people of the Wattu, Chishti and Bodala's who came from the west, lived in the riverside. Oudh caste settled around Abohar Road. These villages were under the control of the Nawabs of Mamdot and Bahawalpur. Which are established by the fight. These were the control of Sadiq Muhammad Khan II from 13 August 1809 to 17 April 1826. Later on 19th October 1843, Muhammad Bahawal Khan III took his courage. Slowly, towards the south, 129 villages were built, Malout was the main village. There were 45 Mahajani villages on the southeast side. On the north west, there were 80 villages of Vatu Chishti caste and 39 villages of Bodla. On arrival of the British, the land under the Sutlej River was abandoned by Nawab Muhammad Bahawal Khan III of Bahawalpur.
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