punjabfly

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Jun 22, 2019

Come on this time if you want to see Retreat Ceremony on Sadqi Border - Fazilka

सादकी बॉर्डर पर रिट्रीट सेरेमनी देखनी है तो इस  टाइम पर पहुंचें 

Retreat Ceremony - Sadqi Border Fazilka 

New Time - 6:30 

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भारत पाकिस्तान के बीच एक रेखा -


                         इस के इंडिया की तरफ सादकी पोस्ट तो पाकिस्तान की                            तरफ  सुलेमान की पोस्ट                                        

दोनों देशों के बीच रोज़ाना शाम के समय रिट्रीट सेरेमनी होती है - जिसे देखने के लिए भारी संख्या में दर्शक पहुँचते हैं - 14 और 15 अगस्त को तो एक अलग ही नज़ारा होता है


A line between India-Pakistan - Sadqi Post on India's side - Suleimankee post on Pakistan -


Retreat Ceremonies are held between the two countries in the evening - a large number of visitors reach - 14 and 15 August So have a different view.
(LACHHMAN DOST  FAZILKA)

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Jun 19, 2019

भारत पाक के बीच प्यार की मिठास घोलता है जीरो लाइन का मेला

भारत पाक के बीच प्यार की मिठास घोलता है जीरो लाइन का मेला
लछमण दोस्त

फाजिल्का:
इन दिनों मेले चल रहे हैं, इस बीच फाजिल्का के एक सरहदी गांव की एक मजार पर लगने वाला मेला ऐसा भी है, जो भारत पाक के बीच प्यार की मिठास घोलता है। यह मेला भारत पाक सरहद पर स्थित गांव गुलाबा भैणी के निकट जीरो लाइन पर लगता है। यहां पीर बाबा बुर्जी वाला की मजार है, जहां मेले का आयोजन किया जाता है। मजार पाकिस्तान की सरहद से महज 10 फीट की दूरी पर है। खास बात यह भी है कि मजार तारबंदी के दूसरी ओर है। यहां एक गेट है। जहां पहले हर श्रद्धालु को तलाशी देकर मजार पर जाना पड़ता था और यह गेट सिर्फ मेले के दिन ही खोला जाता था। मगर कुछ साल पहले यह गेट हमेशा के लिए खोल दिया गया है।


यह है मान्यता

बताया जाता है कि बॉर्डर के निकट गांव वल्ले शाह उत्ताड़ था। सतलुज दरिया के निकट होने के कारण बाढ़ से गांव हर बार डूब जाता था। मगर बाढ़ का पानी इस मजार को नहीं डूबो सका। वहां से उठकर ग्रामीणों ने मजार के निकट एक गांव बसाया, जिसे गुलाबा भैणी का नाम दिया गया। यहां पहले से मौजूद बाबा बुर्जी वाले की मजार पर हर साल मेला लगता है। बताया जाता है कि मेले में पहले भारत-पाक के जवानों के बीच कुश्ती और कबड्डी भी होती थी। 

Devotees throng Baba Burji wala Samadh fair-Malwa Diary
Malwa Diary
Devotees throng Baba Burjiwala Samadh fair

Hundred of devotees from Indian and Pakistan side thronged Baba Burjiwala Samadh fair, which was organised at Zero Line at GG 1 BOP in the border village Gulabad Bhaini. The samadhi of the Baba Burjiwala is situated just on the International border.Every year, a fair is organised and citizens from both the countries of the nearby areas pay obeisance there.51 battalion of the BSF organised the fair. The women constables were also deployed for frisking the women devotees across the barbed wire fencing.First of all, the jawans of the BSF laid "chaddar" on the memorial of the Baba Burjiwala.Notably, only once in a year on June 19, the day of annual fair, the barbed wire fencing gate is thrown open for the public to pay respect at the memorial since the memorial is located across the fencing.The history of memorial is stated to be of pre-partition days. A large number of villagers in singing and dancing mode were seen thronging in the long queues. On the Pakistan side, scores of devotees were also seen laying "chaddar" at the memorial. Pak rangers had also made elaborate security arrangements.The memorial is considered a joint place of obeisance for the Indian and Pakistanis.After paying respect at the memorial, Kundan Singh, a resident of village Gulaba Bhaini said with the presence of citizens of both the countries at the memorial, a congenial atmosphere is established. On the occasion, the BSF officials, RK Kashayap and Kirhan Lal, who looked after the security arrangements, prayed for cordial relations between the two countries.— Praful C Nagpal (TUESDAY, JUNE 22, 2010)with Thanks 

http://www.tribuneindia.com/2010/20100621/bathinda.htm?fbclid=IwAR2ECyHG0mAEykzCsmQ82cN2hanfR1goVBCh2dg4RhAvgybGFObPYAY1vXU#4

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Jun 18, 2019

फाजिल्का की पंजाबी जूती

जूती कसूरी, पैर न पूरी ............
                                फाजिल्का की पंजाबी जूती                                                                       Written by - Lachhman Dost Fazilka

जूती कसूरी, पैरी न पूरी, हाय रब्बा वे सानू तुरना पिया . . . . भारत विभाजन से पहले गायिका सूरिन्द्र कौर केलोकगीत की इन मशहूर पंक्तियों ने कसूर की जूती को अमर कर दिया है। यह गीत विभाजन से पूर्व संयुक्त भारत की याद दिलाता है और दशकों बाद भी यह लोकगीत कानों में गूंजता है। बेशक कसूर पकिस्तान के हिस्से आ गया, लेकिन फाजिल्का में भी कसूर की जूती उपलब्ध है। जूती का तला प्लेन था, मगर उत्तरी भारत में सीधे तले की बनी जूती को कसूरी जूती कहा जाता है।
कसूर में जूती के कारोबार से जुड़े कारीगर विभाजन के बाद यहां आकर बस गए और आज वे इस कलाकृति को संजीव रखे हुए हैं। उन्होंने हाथ से बनी जूती की कारीगरी को जिन्दा रखकर फाजिल्का को पंजाब का ऐसा क्षेत्र बनाया है, जहां की जूती सब से अधिक मशहूर है। माना जाता है कि रस्सी को बाटकर और घास फूस से पैर ढककर चलने से ही जूती की शुरूआत हुई है। साधु-संत उस समय चरण पादुकाएं पहनते थे। चमड़े की जूती बनाने की शुरूआत मुगलकाल से हुई। जूती की खासियत यह है कि जूती में पैर को आराम मिलता है और पैर का आकार भी कम बढ़ता है। चमड़े से बनी जूती पसीना सोख लेती है। फैशन के दौर में फाजिल्का की जूती ने एक अलग पहचान बनाई है।
जूती पंजाब के लोगों की शान है। आजादी से पहले जूतीयों के कारीगरों का केन्द्र बिन्दु रहे फाजिल्का की पंजाबी जूतीयां किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। देंश विदेश में इनकी धूम है। तिल्लेदार, मोतीयों, कढ़ाई वाली जूतीयां, लक्कमारवी, बेलबूटे वाली, जालबूटा, प्लेन, घोड़ी, खोसा, पुठ्ठी घोड़ी वाली, साठ बूटा, स्पॉट, स्पेशल स्पाट, दिल्ली फैशन, मैटरो जूती, लक्की जूती, कन्ने वाली जूती, फैंसी, तिल्लेदार, सिप्पीमोती, दबका वर्क, फुलकारी वर्क, धागा वर्क और जरी वाली कढ़ाई आदि जूती काफी मशहूर हैं। जूती कई कारीगरों के हाथों से निकलकर तैयार होती है। जालंधर व अन्य महानगरों से चमड़ा मगवाया जाता है। मदन शू सेंटर के संचालक जकसा राम ने बताया कि चमड़ा की धूलाई के बाद उसे जूती का माप दिया जाता है। उसके बाद जूती पर कढ़ाई के लिए भेजा जाता है।
कढ़ाई करने वाली युवती सोनिया, रजनी व पुष्पा रानी और राधे श्याम ने बताया कि फाजिल्का ऐसा क्षेत्र है जहां हाथ से बारीक कढ़ाई की जाती है। कढ़ाई करते समय उन्हें काफी परिश्रम करना पड़ता है, ध्यान से कढ़ाई करनी पड़ती है। जिस पर काफी समय व्यय होता है। इसके बावजूद उन्हें पूरी मेहनत नहीं मिलती, लेकिन परिवार का पेट भरने के लिए कड़ा परिश्रम करना पड़ता है। इसके बाद जूती अन्य हाथों में जाती है, जहां तली तैयार की जाती है। तली के बाद पन्ना और फिर सिलाई करने के बाद जूती तैयार हो जाती है। इसके बाद जूती शोरूम में पहँुचती है। फाजिल्का की जूती पंजाब में प्रसिद्ध है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, प्रताप सिंह कैरो, सरदार दरबारा सिंह, सरदार बेअंत सिह, मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल जब भी फाजिल्का आये हैं, वे जूती खरीदना नहीं भूले। बादल परिवार तो खासकर फाजिल्का की जूतियों पर नाज करता है।
फाजिल्का के करीब 2000 लोग इस काम से अपना पेट पाल रहे हैं। होटल बाजार मेंं जूतीयों की कई दुकानें हैं। दीपालपुरिया की हट्टी के संचालक रोशन लाल खत्री ने बताया कि जूती बनाने के साथ-साथ वह जूतीयां बनाने के लिए फे्रम भी खुद ही तैयार करते थे। नईं दिल्ली, पटियाला, अमृतसर, जालंधर, चण्डीगढ़, सिरसा और बठिंडा जैसे बड़े शहरों के व्यापारी यहां से जूतीयां बनवा कर ले जाते हैं और अमेरिका, कनाडा, जापान जैसे देशों में सप्लाई करते हैं।
            इन्दिरा मार्केट में स्थित न्यू फुलकारी जूती पैलेस के संचालक सुभाष चंद्र सांखला और संजय  साखला बताते हैं कि जूतीयों के बाजार ने एक लंबा दौर देखा है। फाजिल्का में आज हालात यह हैं कि जूतीयों के कारोबारी आर्थिक तंगी झेल रहे हैं। जूती बनाने के लिए चमड़े के दाम आसमान को छू रहे हैं। कई कारीगरों के हाथों से तैयार हुई जूती दूकान पर पहुंचती है तो ग्राहक पूराने दाम पर ही जूती मांगते हैं। जबकि जूती बनाने के पदार्थ महंगा होने के कारण उन्हें मुनाफा कम होता है। यही कारण है कि अब तक  कई परिवार इस काम को छोड़ चुके हैं, मगर यह कहना मुनासिब होगा कि फैशन के इस दौर में फाजिल्का की जूतीयां न सिर्फ नयां स्टाइल स्टेटमेंट गढ़ती है,बल्कि सैंकड़ों लोगों को रोजगार भी मुहैया करवा रही है। कभी लाखों रूपए का व्यापार करने वाले कारीगरों को सुविधाएं देने की काफी जरूरत है ताकि वह लोग इस उद्योग को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिला सकें। क्योंकि इस खूबसूरत जूती के कारण ही कहते हैं कि
जुत्ती करे मुटियार दी चीकू-चीकू। 

जद तुरदी मडक़ दे नाल ओए जुत्ती चूँ-चूँ करदी आ।

Jutt kasuri pari na poori . .. . .. . . .

 . Prior to the partition of India, these famous rows of singer Surinder Kaur Kellokide have immortalized the shoe of the Kaunoor. This song reminiscent of United India before partition, and decades later, this folk song resonates in the ears. Of course, parts of Pakistan have come, but in Fazilka there is also a lumbering shoe. The shoe of the shoe was plain, but in northern India, straight shawls are called kasuri shui. The artisans associated with the business of the shoe settled here after partition, and today they are keeping this art alive. Having kept alive the handmade shoe workmanship, Fazilka has made Punjab an area where the shoe is more famous than the other. It is believed that the beginning of the shoe has begun only after covering the rope and covering the feet with grasshopper. Sage-saints used to wear stage padukas at that time. The formation of leather shoe started from the Mughal period. The specialty of the shoe is that the foot gets rest in the shoe and the size of the feet also increases. The leather-made shoe absorbs sweat. Fazilka's shoe has made a different identity in fashionable fashion. The shoe is the glory of the people of Punjab. Fajilka's Punjabi shorts are not an idiom for the identity of the artisans of the jute before Independence. Darnash has his smiles abroad. Tigers, pearls, embroidered shoes, Lakkmaravi, Belboute, Jalbuta, Plain, Marei, Khosa, Putthi mare, sixty boots, spots, special spots, Delhi fashion, matro shoe, lucky shoe, shoe shoe, fancy, Cipromi, Dabka Work, Phulkari Work, Thread Work, and Zari Zari Krahai etc. are very famous. The shoe is set out from the hands of many artisans. Leather is beaked from Jalandhar and other metro cities. Jakasa Ram, the director of Madan Shu Center, told that after shaving leather, she is given a measure of shoe. After that the shoe is sent for embroidery. The embroidered woman, Sonia, Rajni and Pushpa Rani and Radhe Shyam said that Fazilka is an area where fine-grained embroidery is done by hand. They have to do a lot of hard work while embroidering, they have to be carefully embroidered. Which has a lot of time spent. Despite this, they do not get enough work, but hard work has to be done to fill the family's stomach. After this the shoe goes in other hands, where the bottom is prepared. After the bottom of the pane and after sewing, the shoe is ready. After that the shoe comes in the showroom. Fazilka's shoe is famous in Punjab. Former Indian President Giani Zail Singh, Pratap Singh Kairo, Sardar Darbara Singh, Sardar Beant Singh, Chief Minister Parkash Singh Badal, Deputy Chief Minister Sukhbir Singh Badal, whenever they came to Fazilka, they did not forget to buy shoe. The cloud family, especially the Fazilka, shy away from the shoe. Nearly 2000 people of Fazilka are straining their lives with this work. There are many shops of the juveniles in the hotel market. Roshan Lal Khatri, director of Hatti of Deepalpuriya, told that with the making of shoe, he used to prepare frames for making shoe. Merchants from big cities like New Delhi, Patiala, Amritsar, Jalandhar, Chandigarh, Sirsa and Bathinda make shoes from here and supply them in countries like USA, Canada, Japan.
            Subhash Chandra Sankhala and Sanjay Sankhala, the director of New Fulkari Juoti Palace located in the Indira Market, show that the markets of the markets have seen a long period. The situation in Fazilka is that the traders of the juveniles are facing financial hardships. To make shoes, leather prices are touching the sky. Many shirts reach the shoe shop made by hands, then the client asks for a shoe at the full price. While shoe making items are expensive, they have less profits. This is the reason that many families have left this job till now, but it would be reasonable to say that in this period of fashion, Fazilka shoe not only creates a new style statement, but also provides employment to hundreds of people. There is a great need to provide facilities to artisans who have traded lakhs of rupees so that they can recognize this industry internationally. Because of this beautiful shoe that saysJuti kare Mutiyaar dee cheeku cheekuJad Tudi Maddak da Nal Oye Jatti Chun-chun kardi aa                                    (Lachhman Dost) Writter - Fazilka Ek Mahagatha 
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Jun 15, 2019

न कुश्ती, न अखाड़ा, मगर किन्नर मान्यता पर आज भी कायम

न कुश्ती, न अखाड़ा, मगर किन्नर मान्यता पर आज भी कायम चादर चढ़ाने के बाद 3-4 घंटे नाचते हैं किन्नर                                

फाजिल्का: एक सदी से भी अधिक समय हो गया। मेला हर साल होता है। मगर अब वहां न कुश्ती होती है और न कबड्डी, लेकिन मेले के प्रति किन्नरों की मान्यता आज भी कायम है। वह हर साल की तरह भारी तादाद में आते हैं। पीर की मजार पर चादर चढ़ाते हैं और फिर शुरू हो जाता है नृत्य व गीतों का दौर। यह क्रम करीब तीन घंटे तक चलता है। मजाल है कि वहां आया श्रद्धालु उनका नृत्य देखे बिना चला जाए, तब तक किन्नर नृत्य करते रहेंगे, तब तक दर्शक बैठे रहेंगे। जी हां, यह मंजर हर साल फाजिल्का के मौहल्ला पीर गोराया में पीर गोराया की मजार पर देखा जा सकता है। 

मेले का इतिहास

मेला भारत विभाजन से पहले का हो रहा है। बताया जाता है कि पहले फाजिल्का के मियां फज्जल खां वट्टू व अन्य मुसलमान समुदाय की ओर से करवाया जाता था। जो एक सप्ताह तक चलता था। मेले में दूर दराज से पहलवान व जवान कुश्ती और कब्ड्डी खेलने आते थे। मुहम्मद सदीक और सुरिन्द्र छिन्दा आदि पंजाबी कलाकारों सहित मशहूर कलाकारों का मंच पर मुकाबला होता था, लेकिन समय के साथ साथ वह सब कुछ खत्म हो गया। अब मेला सिर्फ एक दिन ही आयोजित किया जाता है। 

किन्नरों की मान्यता

किन्नर माई बताती हैं कि उनके पूर्वज पहले मेले जाते थे और उनके पहुंचने पर ही मेले की शुरूआत होती थी। अपने पूर्वजों के पदचिन्हों पर चलते हुए वह भी मेले में एक टोली के रूप में पहुंचते हैं। उनका कहना है कि ऐसा कोई साल खाली नहीं गया, जब किन्नर मेले में न पहुंचे हों। 

ऐसा करते हैं किन्नर

आसपास के जिलों से आए किन्नर एक डेरे में एकत्र होते हैं। वहां से लड्डूयों का एक बड़ा थाल लिया जाता है। वह डेरे से चलते हैं और बाजार में बाबा का नाम जपते हुए मेले में पहुंचते हैं। जहां पहले चादर चढ़ाते हैं और फिर नृत्य का सिलसिला शुरू करते हैं। यह सिलसिला पहले देर सांय तक चलता था। मगर अब तीन से चार घंटे तक चलता है।

Gaddinasheen before India partition
Pir Baderdeen guraya & other 
photo by- Fazal Abbas Peerzada


No wrestling, no Akhara, but it still persists on sheer recognitionAfter wrapping the sheets, they dance to 3-4 hours.

Fazilka:- It's been more than a century. The fair happens every year. But now there is neither wrestling nor kabaddi, but the recognition of the kinars for the fair is still in place. He comes in a lot like every year. Papers are offered at the pyar's mazar, and then begins the dance and songs round. This sequence runs for about three hours. It is interesting that the devotees who came there should leave without seeing their dance, till then they will continue to dance, till then the audience will be sitting. Yes, it can be seen every year on the mazar of Peer Goraya in Mohalla Pir Goraya, Fazilka.
Fair History
Fair is happening before the partition of India. It is said that the first was made by Mian Fajal Khan Wattoo and other Muslim community of Fazilka. Which lasted for a week. In the fair, wrestlers and young men used to play wrestling and cabbage from far away. Muhammad Sadeek and Surinder Chhinda were fists on the stage of famous artists, including Punjabi artists, but over time the whole thing was over. Now the fair is organized only for one day.
Accession of kiners
Kinnar Mai points out that his ancestors first used to be festooned, and the festivity started only when they reached. While walking on the footprints of their ancestors, they also arrive at the fair as a group. They say that no such year has gone empty, when Kinnar has not reached the fair.
Do so
Shemars from nearby districts gather in a tent. From there there is a big plate of laddoos taken. He walks from the dock and reaches the fair in the market chanting Baba's name in the market. Where the first sheets are offered and then started the process of dancing. This cycle lasted until late evening. But now it lasts for three to four hours.(LACHHMAN DOST FAZILKA)
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Jun 3, 2019

Jannat Kamboj Zeenu Won Gold Medal

पंजाब जीता , अब नेशनल पर नज़र

बेटे को कोई बेटी नहीं बोलता, लेकिन बेटी को बेटा बोलते हैं, . . क्यों।  . .. . ? क्योंकि बेटीआं माँ - बाप का नाम रोशन की ताकत रखती हैं,  - मान है मुझे बेटी  जन्नत पर -. . . - जिस ने 16th Punjab State Cadet & Junior Kickboxing Champianship – 2019 में गोल्ड मेडल जीता है --- अब वह नेशनल खेलेगी -- तेलगाना में होगा मैच - 



- کوئی بیٹا بیٹا نہیں بولتا، لیکن بیٹی بیٹی سے بات کرتی ہے، . کیوں . ... ؟ کیونکہ بہو باپ کے نام کو روشن کرنے کی طاقت رکھتے ہیں، - مجھے آسمان پر ایک بیٹی ہے. . . جنہوں نے 16 ویں پنجاب اسٹیٹ کیڈیٹ اور جونیئر کک باکسنگ چیمپیئن شپ شپ جیت لیا ہے - 2019 میں سونے کا تمغہ - اب وہ تلنگانہ میں قومی میچ کھیلے گا

No son speaks to the son, but the daughter speaks to the daughter, . Why . ... ? Because the daughter-in-law has the power of illuminating the father's name, - I have a daughter, on the heaven. . . - who has won 16th Punjab State Cadet & Junior Kickboxing Champianship - Gold Medal in 2019 - Now he will play National - match in Telangana 

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Jun 2, 2019

Fazilka Heritage Raghuwer Bhawan

2014 में इतिहास को बनाने के लिए ऐतिहासिक आंदोलन हुआ - --- तो ---- - सरकार ने "रघुवर भवन" को हेरिटेज का दर्जा दिया - --- लेकिन आज तक "रघुवर भवन" की संभाल न तो प्रसाशन ने की और ना ही सरकार ने - ---- फिर कहते हैं कि लोग आंदोलन करते है -- क्या करें ---- 

                                Lachhman Dost- Fazilka

 In the year 2014, there was a historic movement to create history - --- - - - The government gave Raghuvar Bhawan the heritage status - --- But till now the administration did not handle the Raghuvar Bhavan nor did the government ------ Then people say that people do agitation - what to do ----







Raghuwar Bhawan, Gol Kothi & Bangla Fazilka (Punjab) get heritage status

Read more at: http://www.merinews.com/article/raghuwar-bhawan-gol-kothi--bangla-fazilka-punjab-get-heritage-status/15901725.shtml&cp


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May 31, 2019

I LOVE FAZILKA

I  LOVE  FAZILKA

1- पाकिस्तान के पाकपटन जिला में सरकारी फाजिल्का इस्लामिया हाई स्कूल है। जो 1953 में बनाया गया। स्कूल 19 केनाल में फैला हुआ है।
1- Government Fazilka Islamia High School in Pakistan's Pakpatan district. Which was built in 1953. The school is spread over 19 canal.



2- फाजिल्का में 1846 में पुलिस स्टेशन बनाया गया। जिसमें सहायक कमिश्नर तैनात किया गया। इस दौरान ही कोर्ट हाऊस स्थापित किया गया। 
2- Police station was built in Fazilka in 1846. In which assistant commissioner was deployed. During this time the court house was established.
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3-फाजिल्का से दो किलोमीटर दूर गांव आवा 1850 में ग्रेवाल परिवार की ओर से बसाया गया था। 
3-Village Aawa was built from the village of Gwewal in 1850, two kilometers away from Fazilka.
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4-साधू आश्रम के संचालक स्वामी कुशल दास जी महाराज थे। 
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4-Swami Kushal Das Ji Maharaj was the successor of the Sadhu Ashram.
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5-सुलेमानकी हैड का निर्माण सन् 1926 में किया गया।
5-Sulemaniki Head was constructed in 1926.




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6-ब्रिटिश साम्रज्य ने बंगला के निकट 1928 में मेथोडिस्ट चर्च का निर्माण करवाया। जो बाद में शास्त्री चौंक के निकट स्थापित की गई। 
6-British Empire constructed the Methodist Church in 1928 near Bangla. Which was later established near Shastri Chowk.


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7-फाजिल्का में विधवा विवाह कांफ्रेंस 24 अप्रैल 1934 को हुई थी।
7-Widow Marriage Conference in Fazilka was held on 24th April 1934.
--------------LACHHMAN DOST FAZILKA-------------------



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May 29, 2019

174-years-old Seth Shopat Rai Haveli Fazilka (Lachhman Dost)

174-years-old Seth Shopat Rai Haveli Fazilka

ओल्ड लुक से पुन: संवरी 174 साल पुरानी सेठ शौपत राय हवेली

HAVELI - Rai Sahab Seth Sheopat Rai Periwal Fazilka 

फाजिल्का को ऐतिहासिक घंटा घर सहित अनेक अमूल्य धरोहरें देने वाले पेड़ीवाल परिवार की ओर से 173 साल पुरानी हवेली की शानो शौकत को भी बरकरार रखा गया है। यह वही हवेली है, जहां बीकानेर रियासत के राजा गंगा सिंह सहित फाजिल्का में आने वाले हर ब्रिटिश अधिकारी और नेताओं का आना जाना रहा है। इस हवेली में ही इलाके के विकास के लिए योजनाएं तैयार की जाती थी। अब किसी मूलभूत ढांचे में परिवर्तन किए बगैर इस हवेली को वही ओल्ड लुक से संवारा गया है जो 174 साल पहले था। नगर कौंसिल में 11 साल तक प्रधान रहे सेठ शौपत राय पेड़ीवाल और 34 साल तक पार्षद व कई साल उपप्रधान रहे सेठ मदन गोपाल पेड़ीवाल की ओर से निर्मित इस हवेली की हर कलाकृति को भी बरकरार रखकर सजाया गया है। Sushil Pediwal ने इसे पुन: ओल्ड लुक दिया है

Main Gate

                                    यह है हवेली का इतिहास

फाजिल्का में बंगले का निर्माण 1844 में ब्रिटिश अधिकारी वंस एगन्यू ने करवाया तो इसके एक साल बाद ही इस हवेली का निर्माण सेठ आईदान ने 1845 में शुरू करवाया था। उन्होंने पोली के अलावा दो कमरे, बाहर के चौंक और मुख्य द्वार का निर्माण करवाया। शेष भाग 1918-20 में सेठ शौपत राय ने करवाया। Haveli के कमरों की दिवारों पर पोर्शलीन टाइल्स और छत्तों पर सिलवर पेंट व काल्स सिलिंग छत्तों का निर्माण 1935 में करवाया गया। भारत विभाजन से पूर्व कौंसिल अध्यक्ष रहे शौपत राय, उपाध्यक्ष रहे मदन गोपाल और विभाजन के बाद दो बार अध्यक्ष रहे सेठ लक्ष्मी नारायण पेड़ीवाल का जन्म इस हवेली में ही हुआ है। शौपत राय और उसके तीन बेटों का संयुक्त परिवार एक अप्रैल 1968 तक इस हवेली में रहा। मगर शौपत राय के निधन के बाद हुए बटवारे अनुसार यह हवेली राम प्रसाद के पास रही। जबकि गंगा प्रसाद को बंगले के निकट बगीचा दिया गया। सेठ लक्ष्मी नारायण को हवेली के सामने कोठी दी गई। राम प्रसाद की दो लड़कियां थी। माता पिता के स्वर्गवास हो जाने के बाद उन्होंने यह हवेली अपने चचेरे भाई सुशील पेड़ीवाल को बेच दी। अब सुशील पेड़ीवाल व उनके पुत्र शैलेष व सिदार्थ बगैर किसी मूलभूत ढांचे में परिवतन करते हुए हवेली को ओल्ड लुक दिया है

2nd Gate

                                           यह है हवेली में 

हवेली में विभाजन से पहले प्रयोग किए जाने वाले दीये, लालटेन, बैल आदि मौजूद हैं। हवेली के दरवाजे पुराने हैं और उन्हें ताला भी पुराना लगाया है। इसके अलावा ऐतिहासिक फोटो से हवेली लबरेज है। हवेली के अंदर खुला हॉल बनाया गया है। चार मंजिला इस हवेली की छत्त पर चढऩे से शहर के हर कोने को निहारा जा सकता है। 

                                

                                

                                             परोपकारी कार्य

1841 में सूरतगढ़ से फाजिल्का में आकर बसने वाले इस परिवार ने फाजिल्का को क्लॉक टावर, जनाना अस्पताल, पेेड़ीवाल धर्मशाला, बठिंडा, सूरतगढ़ और बनारस में धर्मशालाएं, श्री मुक्तसर साहिब के गुरूद्वारा में तालाब दिया है। इस परिवार को ब्रिटिश सरकार की ओर से राय साहिब के खिताब से नवाजा गया था। इसके अलावा भामा शाह अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका है। 


                                

                                  अन्य धरोहरें भी बचाएंगे

सुशील पेड़ीवाल का कहना है कि पेड़ीवाल परिवार की ओर से पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में जो धरोहरें बनाई गई हैं, उनकी देखभाल लगातार क ी जा रह है। अगर कहीं कोई कमीं है तो उसे दूर करने का प्रयास करेंगे। वह बताते हैं कि फाजिल्का की धरोहरों को भी संवारा जाएगा।

                                            

                                      कड़ी में परोया इतिहास

फाजिल्का के इतिहास के लेखक लछमण दोस्त का कहना है कि हवेली इतिहास अमूल्य खजाना है। इसके अलावा भी पेड़ीवाल परिवार ने पंजाब, हरियाणा और राजस्थान को अनेक धरोहरें दी हैं, जो एक मिसाल बन चुकी हैं। पेड़ीवाल परिवार ने अपने इतिहास को एक कड़ी में परोकर रखा हुआ है। जो आज और कल के लिए लाभदायक है।

                               

 174-year-old Seth Shopat Rai Haveli
Sethi 174-year-old Seth Shapat Roy Haveli from Old Look

The beautiful 173-year-old Haveli has been retained by the Pariwal family, which has given many invaluable heritage including historical gard house to Fazilka. This is the same mansion, where Raja Ganga Singh of Bikaner principality, including every British officer and leaders coming to Fazilka, is going to come. In this mansion only the plans were developed for the development of the area. Now, without making any changes in the basic structure, this mansion has been restored with the same old look which was 174 years ago.

                                 

Seth Shapat Roy Pediwal, who is in the city council for 11 years, has been decorated with every work of this mansion built by Seth Madan Gopal Pediwal, who is a councilor for many years and deputy prime minister for 34 years. Sushil Periwal has given it the old look again

                                 

This is the history of the mansion

The construction of the bungalow in Fazilka was done by British officer Van Agnu in 1844, a year after this, the construction of this mansion was started by Seth Ayadan in 1845. He created two rooms, outside shocks and main gate apart from the Poli. The remaining part was done by Seth Shapat Rai in 1918-20. Construction of silhouette paint and blacks ceiling on porcelain tiles and roofs was made in 1935 on the walls of the rooms of the canals. Madan Gopal, who was the Vice-President of the BJP before the partition and Madan Gopal, the vice president of the partition, and Seth Laxmi Narayan Petiwal, who was the president twice after the partition, was born in this mansion only. The joint family of Shapat Rai and his three sons remained in this mansion till 1 April 1968. But according to the distribution of the people after the demise of Shapat Rai, this haveli has been with Rama Prasad. While Ganga Prasad was given a garden near the bungalow. Seth Laxmi Narayan was given a cloth in front of the mansion. Ram Prasad had two girls. After the parents died, they sold this mansion to their cousin Sushil Patiala. Now, Sushil Pediwal and his son Shailesh and Siddartha have made the mansion look like an old structure without any basic structure.
It is in mansion. There ara

                                        

lamps, lanterns, bulls, etc. used before partition in the mansion. Haveli's doors are old and they have locked the lock too old. Apart from this, the Haveli is famous with historical photos. The open hall is built inside the mansion. Every corner of the city can be solved by climbing the roof of this four-storey mansion      

                                            

                                           charitable work

In 1841, this family settling in Suratgarh from Fazilka gave fazilka a pond in the clock tower, Janana (Ladies) Hospital, Periwal Dharamsala, Bathinda, Suratgarh and Bikaner, in the Gurudwara of Sri Muksar Sahib. This family was awarded the title of Rai Sahib by the British Government. Apart from this Bhamma Shah Award
has also been honored.   

                                         

Other heritage will also save

Mr. Sushil Periwal says that the heritage sites in Punjab, Haryana and Rajasthan have been taken care of by the Peediwal family. If there is any fault, then try to remove it. He explains that the heritage of Fazilka will also be saved.

                                       

History used in link

Lachman Dost, author of the history of Fazilka, says that Haveli History is a priceless treasure. Apart from this, the Peddal family has given many heritage to Punjab, Haryana and Rajasthan, which has become an example. The Peddal family has kept its history in a stanza. Which is beneficial for today and tomorrow (Lachhman Dost Fazilka)

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May 28, 2019

Retreat Ceremony - Sadqi Border Fazilka

Retreat Ceremony - Sadqi Border Fazilka 

भारत पाकिस्तान के बीच एक रेखा -

                        इस के इंडिया की तरफ सादकी पोस्ट तो पाकिस्तान की तरफ                                          सुलेमान की पोस्ट -

दोनों देशों के बीच रोज़ाना शाम के समय रिट्रीट सेरेमनी होती है - जिसे देखने के लिए भारी संख्या में दर्शक पहुँचते हैं - 14 और 15 अगस्त को तो एक अलग ही नज़ारा होता है


A line between India-Pakistan - Sadqi Post on India's side - Suleimankee post on Pakistan -


Retreat Ceremonies are held between the two countries in the evening - a large number of visitors reach - 14 and 15 August So have a different view.
(LACHHMAN DOST  FAZILKA)

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May 27, 2019

दलेर गांव मोजम की दास्तान

                    दलेर गांव मोजम की दास्तान 


मोजम खान वट्टू सतलुज दरिया की तरफ जा रहा था - रस्ते में बघियाड और भेड की लड़ाई हो रही थी - भेड ने अपने बच्चे नहीं खाने दिए - डटकर  मुकाबला किया - तब मोजम खान वट्टू ने कहा - यहाँ गावं बसना घाटे का सौदा नहीं है - तब बसा गांव मोजम (Near Fazilka) - जहाँ उन का परपोता मियां मंज़ूर अहमद खान वट्टू (पूर्व मुख्य मंत्री पंजाब  पाकिस्तान  ) आया था - Lachhman Dost Fazilka -
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Mozam Khan Wattu Satluj Darya kee tarf jaa raha tha- raste me baghiyar or Bhed (Sheep) ke beech ladai (Fight) ho rahi thi - Bhed ne apne bachche nahi khane diye - datkar mukabla kiya - tab Mozam khan wattu ne kaha - yahan village basan achha hai - bahadur village bne gaa - tab bsa village Mozam - jahan un kaa perpota Mian Ehmad khan wattu (former Chief Minister Punjab, Pakistan) mozam aayatha - 
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Mozam Khan Wattu was going towards Sutlej River - there was a fight between Bagiyar and sheep in the road - Sheep did not eat her children - met with stubbornness - Then Mozam Khan wattu said - There is no settlement of loss of buses here - Then settle down the village - where his grandfather Mian Manzoor Ahmed Khan Wattu (former Chief Minister Punjab, Pakistan) came.
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