बंगला के निर्माण से 41 साल पहले फाजिल्का आए थे दौलत राव सिंधिया

इतिहास के झरोखे से 
बंगला के निर्माण से 41 साल पहले फाजिल्का आए थे दौलत राव सिंधिया 
दि पंजाब, नार्थं-वेस्ट फरांटियर प्रॉविन्स एंड कश्मीर से हुआ खुलासा
लछमण दोस्त
हलांकि बंगला (फाजिल्का) का इतिहास 1844 से शुरू हुआ माना जा रहा है। जबकि इसका इतिहास इससे भी काफी पुराना है। इसका खुलासा 1916 में ब्रिटिश अधिकारी डॉवी की ओर से लिखी गई पुस्तक दि पंजाब, नाथ-वेस्ट फरांटियर प्रॉविन्स एंड कश्मीर से हुआ है। जिसमें बताया गया है कि दौलत राव सिंधिया बंगले के निर्माण से 41 वर्ष पहले फाजिल्का पहुंचा था। उस समय यहां सतलुज दरिया था और आसपास जंगल ही जंगल थे। मगर इस बीच कुछ गांव भी बस चुके थे।
1803 में आया था सिंधिया
जेम्स डॉवी ने पुस्तक में लिखा है कि ब्रिटिश अधिकारी वेलेस्ले के मार्की ने भारत में सुप्रीत पॉवर बनने की सोची। उधर नेपोलियन ने भी भारत पर हमला करने की सोची हुई थी। इधर पंजाब में दौलत राव सिंधिया ने हमला कर दिया, लेकिन वह नाकाम रहा। इसके बाद वह 1803 में फाजिल्का (यह नाम बाद में रखा गया है) पहुंचा और यहां से दिल्ली के लिए कूच किया। पुस्तक में लिखा गया है कि उस समय फाजिल्का पर किसी का कंट्रोल नहीं था।
ओलिवर भी आया था
नंबरदार मिया फ’जल खां वट्टू से 144 रूपये 8 आन्ने में भूमि खरीदकर फाजिल्का शहर बसाने वाला ब्रिटिश अधिकारी फाजिल्का के लिए विकास दूत व प्रभावशाली अधिकारी माना जाता था। शहर के बीचो बीच ओलिवर गंज मार्केट (मेहरियां बाजार) का निर्माण करवाना वाला ओलिवर जिला सिरसा में कस्टम अधिकारी था। हिस्टरी ऑफ सिरसा टाऊन में लेखक जुगल किशोर गुप्ता ने ओलिवर के हवाले से लिखा है कि उस वक्त फाजिल्का में क्षेत्र सुरक्षित नहीं था। यहां से गुजरना खतरे से खाली नहीं था। चोर, डाकू, शेर और सांप जैसे जंगली जानवारों का खौफ था। मलोट रोड और फिरोजपुर रोड पर लोग टोलियां बनाकर गुजरते थे। उस समय बंगले का निर्माण नहीं हुआ था।
बहावलपुर के नवाबों ने किया कंट्रोल
बंगले के निर्माण से पहले यहां बहावलपुर के राजाओं अपना कंट्रोल जमा लिया। ब्रिटिश अधिकारी वंस एगन्यू जब फाजिल्का पहुंचा तो उससे बहावलपुर के नवाब मुहम्मद बहावल खान से जगह ली और हॉर्स शू लेक किनारे बंगले का निर्माण किया। जहां लोग न्याय पाते थे। इस बंगले के कारण फाजिल्का का नाम बंगला पड़ गया।
फाजिल्का में नहीं थी पुलिस पोस्ट
ओलिवर जिला भटियाणा (सिरसा) के सहायक अधिक्षक बने और उनकी फाजिल्का में 1846 में तैनाती की गई। तब फाजिल्का, अरनीवाला और अबोहर तहसील में पुलिस पोस्ट खाली थी। अरनीवाला-जोधका में एक कस्टम पोस्ट थी। ओलिवर ने भूमि खरीदकर फाजिल्का शहर बसाया। 1857 में भारत की आजादी के लिए चले आंदोलन को फाजिल्का में ओलिवर ने ही दबाया था।
बीकानेर के महाराजा से संबंध
ओलिवर के बीकानेर के महाराजा से अ‘छे संबंध हैं। इस बात का पता बीकानेर के राजा की ओर से ओलिवर को लिखे गए पत्रों से इसका खुलासा हुआ है।

Comments

  1. Nice mamu ji ranjeet khairpur

    ReplyDelete
  2. Such kind of Knowledge is our real heritage to be preserved for coming generations.Thanks a lot Mr. Dost

    ReplyDelete
  3. Please add my new mail id nareshsapra79@gmail.com

    ReplyDelete

Post a Comment