कहाँ गुम हो गई फाजिल्का की यह महान कलाकार
पीपल या बोहड़ के नीचे गाती थी दुक्की
पीपल या बोहड़ के नीचे गाती थी दुक्की
फाजिल्का के उत्तर की तरफ 16 मील दूर गांव बग्घेकी के उत्तर की तरफ डोगर जाति और दक्षिण की तरफ गांव प्रभात सिंह वाला उर्फ सुभाज के में जोईऑस जाति के लोगों का कबीला बसता था। इसके साथ ही गांव है प्रभात सिंह वाला (सुभाजके)। जहां गरीब परिवार के घर 1922 में एक बेटी ने जन्म लिया। जिसका नाम निशा रखा गया। मगर जल्द ही उसके मां-बाप की मौत हो गई। अनाथ बच्ची घरों से रोटी मांग कर अपना गुजारा करने लगी। भगवान ने उसे सुरीली आवाज दी। उसकी शैली, नखरा और अंदाज के साथ-साथ सुंदर नैन-नक्श भी दिए। जब वह घरों से मांगने के लिए जाती तो साथ ही कुछ गुणगुनाने लग जाती। बड़ी हुई तो उसकी आवाज और सुरीली होती गई। लोगों ने उसे दुक्की का नाम दिया। वह इस कदर गायिका बनी कि लोग उसकी आवाज के जादू से कायल हो जाते। उसने आसपास के क्षेत्र में प्रसिद्धी हासिल की, लेकिन एक तो गरीब और दूसरा जंगल जैसे गांव में रहने वाली बिन मां-बाप की बेटी दूर तक नहीं जा पाई। वह नाच-गाकर गुजारा करती। मगर गांव वाले उसे बहुत प्यार करते थे। ग्रामीणों को अपना मां-बाप ही समझती थी। छोटा कद और सांवले रंग की दुक्की के बारे में ग्रामीणों का कहना है कि उसकी शादी उसके चाचा के लडक़े के साथ की गई। अभी शादी को कुछ ही महीने हुए थे कि उसके पति की भी मौत हो गई।
पहले वह मां-बाप के दुख में गाया करती थी तो अब पति के वियोग ने उसे दर्द भरे गीत गाने को मजबूर कर दिया। जब उसने गीत गाना तो गीत के साथ उसके नाच को देखकर भी लोग हैरान रह जाते। लोग उसे दुक्की या निशा कंजरी के नाम से पुकारते थे। उसकी आवाज इस कदर तेज थी कि जब उसका अखाड़ा लगता तो दूर तक जा रहे राहगीर भी रूक जाते। बग्घेकी गांव के गुरदित्त सिंह बताते हैं कि वह अधिकतर पीपल या बोहड़ के नीचे गाती थी। उनके गांव की चौपाल में पीपल का पेड़ था, जहां वह अक्सर गाया करती थी। उस का कोई गुरू पीर नहीं था, बस भगवान को आंखों में बसाकर गाती थी। उसके गीतों की रिकार्डिंग होती थी। जो घर-घर सुने जाते थे और परिवार में मिल बैठकर सुनने के योग्य थे। विवाह-शादी पर गांवों में आज भी जब स्पीकर वाले बुक किए जाते हैं तो लोग कहते है कि दुक्की के रिकॉर्ड (तवे) हों तो ले आना, नहीं तो न आना। वह अपने साथ एक सारंगी वाला और तबले वाला रखती थी। कान पर हाथ रखकर जब आवाज बुलन्द करती थी तो लोग मस्त हो जाते। १९४५ के आसपास उसके 25 से 30 तक गीत रिकॉर्ड हुए थे। मगर अब तो रिकॉर्ड इतने खराब हो चुके हैं कि उसके गीतों की समझ भी नहीं आती, मगर ग्रामीण समझ लेते हैं। रोंदी दे नैन चो गए, यह उसका प्रथम रिकॉर्ड है। दुक्की के रिकॉर्ड दोबारा नए छोटे तवों में 1970 में पाकिस्तान ने आज़ाज किए। एक रिकॉर्ड में ही आठ गाने थे जिसका नम्बर है।
गांव के बुजुर्ग सरदार काला सिंह का कहना है कि मेरा जन्म हुआ तो रीतों पर दुक्की को बुलाया गया था। उस समय दुक्की ने जो गीत सुनाया उसके बोल थे। रूता ने फिरीयां, कई वन्जाने ने घुम्मे, घूक चरखडिय़ां तेरे सांवे ने मुन्ने। वह बताते हैं कि जब गांव में किसी लडक़ी की शादी होती तो वह अखाड़े में मिला पैसा उसकी शादी पर खर्च करती थी। एक बार नवाब ने अखाड़ा लगवाया तो इनाम के तौर पर दुक्की ने नवाब से कहा कि वह बग्घेकी उताड़ से हिठाड़ तक सडक़ बनवा दें। तब वह सडक़ बनाई गई। ग्रामीण बताते हैं कि इस गांव से 15 किलोमीटर दूर गांव अटारी के साथ मंडी हीरा है। वहा नवाब ने दुक्की का अखाड़ा लगवाया। जब अखाड़ा खत्म हुआ तो नवाब दुक्की पर बेईमान हो गया और उसे कैद कर लिया। किसी तरह दुक्की ने गांव में संदेश भेजा। जिसमें लिखा था कि मेरे गांव के लोगों, मैं भी तुम्हारी बेटी-बहन हूं। मुझे ले जाओ। गांव में पचांयत हुई और दुक्की को वापस लाने का फैसला लिया गया। गुरदित्त सिंह वड़वाल और सरदार इशर सिंह ने सतलुज दरिया पार किया और जोगी का भेष बनाकर नवाब की हवेली में पहुंच गए। वहां जोगियों की भाषा में उन्होंने दुक्की को बताया कि वह रात के वक्त आएंगे और चौबारे में रस्सा फैंक देंगे। आप नीचे आ जाना। रात हुई और वह इसमें कामयाब हो गए। मगर नवाब को इसका पता चल गया। उसने पीछे बदमाश भेजे मगर तब तक वह दरिया पार करने में कामयाब हो गए। तब दुक्की ने गीत गाया कि जंगली चीज़ा छुट्टिया, फे र कदी नहीं हत्थी आईया, नवांबा तेरी जेल चो, घुड़ के मेरीयां ले चले ने बाहयां। फिर भारत विभाजन हो गया और दुक्की के कहने पर ग्रामीण उसे दरिया पार तक छोड़ आए। मगर विभाजन के बाद दुक्की का कुछ पता नहीं चला।
photo Rajdeep |
Where is this great artist of Fazilka lost
Dukki
On the north side of Fazilka, 16 miles away from the Dogar race on the north side of the village Baghakei and the south side of the village Prabhat Singh, aka Subhaj, was inhabited by the tribe of Jioes. With this, the village is Prabhat Singh Vaala (Subhajke). Where the poor family's house was born in 1922 by a daughter. Named Nisha. But soon after the death of her parents. The orphan girl started pleading for her bread from the houses and demanded bread. God gave her a melodious voice. His style, flirtation and style, along with beautiful nan-map also. When he went to the houses to ask for something, he started to sing some virtues. If he grew up, his voice and melodiousness had gone. People named him Dukki. She became a singer so much that people would be convinced by the magic of her voice. He achieved popularity in the surrounding area, but the daughter of the father and father of one poor and the other living in a forest like this was not able to go far. He would dance and sing. But the villagers loved him very much. The villagers only considered their parents. The villagers say that they were married with their uncle's girls, about the small stature and sanyal dunki. It was just a few months since the marriage that her husband also died.
Earlier, he used to sang in the misery of the parents, now the husband's disconnection forced him to sing a painful song. When he singing songs, people would be surprised to see his dance with the song. People used to call him Dukki or Nisha Kanjari. His voice was so sharp that when his akhara was seen, the passers-by going too far would stop. Gurditt Singh of Baggaike village explains that he sang mostly under Peepal or Bohr. There was a peepal tree in his village's choupal, where he often used to sing. There was no Guru of that person, just singing God in the eyes. His songs were recording. Those who were heard at home and were able to meet and meet in the family. Even when the speakers are booked in the villages on marriage and marriage, people say that if there are records of dukki, then do not bring it, otherwise it will not come. He used to be a Sarangi and Tabla with him. When keeping the hands on the ears, the voice started shouting, people would have been happy. There were recorded 25 to 30 songs from around 1945. But now the record is so bad that there is no understanding of his songs, but the villagers understand. Ronadi de Nain Chau, this is his first record. Dukki's record was revised by Pakistan in 1970 in the new small screen. There were only eight songs in a record whose numbers are numbered.
The village's elderly Sardar Kala Singh says that when I was born, Dukki was called on the rituals. At that time, the song that Deekki had said was. Rutha ferries, many windies swim, the wheezing wheels, your snout He explains that when a girl was married in the village, she used to spend money in the arena on her wedding. Once the Nawab used the amphitheater, as a reward, Dukki told the Nawab that he would make the road from the carnage to Hithar by making the road. Then he made the road. Rural explains that Mandi diamond is 15 kms away from this village with village attic. There, the Nawab has used the Dakki's arena. When the arena ended, Nawab became dishonest and captured him. Somehow Dukki sent a message in the village. It was written that people of my village, I am your daughter-sister too. Take me It was decided in the village and it was decided to bring Dukki back. Gurditt Singh Wadwal and Sardar Ishar Singh crossed the Sutlej daraya and made Jogi's trace and reached the Nawab's mansion. In the language of the jogis, he told Dukki that he will come at night and will hang the rope in the four corners. You come down The night got over and he managed it. But the Nawab came to know about it. He sent a bad man behind him, but till then he managed to cross the river. Then Dukki sang that the wild things were taken from the holidays, feet and no hitti Iya, Navambhoba, your gel cho, the horses of horses, took the arms out. Then India split, and on the sayings of Dukki, the villagers left it till the river crossing. But after the partition, there was no known deuce.
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