गोल्डन ट्रेक: हुकमरानों की नजर-ए-इनायत का इन्तजार
भारत पाकिस्तान के बीच मधूर होते रिश्तों के चलते वाघा बॉर्डर से चली समझौता एक्सप्रेस ने दोनों देशों के बीच दोस्ती की महक फैलाई। मगर फाजिल्का का गोल्डन ट्रैक आज भी देश के हुकमरानों की नजर-ए-इनायत को तरस रहा है। गोल्डन टै्रक के नाम से 1898 में शुरू फाजिल्का कराची रेल मार्ग व्यापार की दृष्टिï से अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हुआ। इस गोल्डन टै्रक ने भारत विभाजन तक फाजिल्का को एक समृद्ध क्षेत्र की ताकत बख्शी। मगर विभाजन के दर्द ने दोनों देशों में ऐसी खटास भर दी कि गोल्डन टै्रक पर सन्नाटा छा गया। हालांकि फाजिल्का के बुद्धिजीवियों ने गोल्डन ट्रैक पर रेल गाड़ी पुन: दौड़ाने के लिये देश के हुक्मरानों के सामने आवाज बुलंद की, मगर हमेशा उनकी आवाज को नजरअंदाज किया गया। अगर गोल्डन टै्रक दोबारा शुरू किया जाता है तो फाजिल्का पुन: समृद्ध क्षेत्र के रूप में उभरकर सामने आने की क्षमता रखता है।
रेलगाड़ी लुधियाना से कराची तक वाया फिरोजपुर-फाजिल्का-अमरूका-मकलोडगंज रोड़-मिनचिंदाबाद-बहावलनगर-समासाटा-खानपुर-रहीमयार खान-रोहड़ी-नवाबशाह जाती थी। भारत का माल युरोप मिडल ईस्ट और खाड़ी के अन्य देशों में ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा भेजा जाता था जोकि एक सस्ता व बेहतर रास्ता साबित हुआ। मगर विभाजन के बाद गोल्डन Treck इतिहास में दफन हो गई।
अगर हुकमरान नजर-ए-इनायत करें तो आज भी गोल्डन टै्रक गोल्डन बैंक बनकर फाजिल्का की तकदीर बदल सकती है। इस पर अधिक खर्च भी नहीं होगा। भारत में लुधियाना से फाजिल्का तक और पाकिस्तान के अमरूका से समासाटा तक पहले ही ब्रॉडगेज लाइन बिछाई गई है। समासाटा से कराची तक डबल टै्रक सिर्फ व्यापारिक कार्यों के लिये प्रयोग किया जाता है। फाजिल्का से अमरूका तक सिर्फ 10 किलोमीटर रेल लाइन जल्दी बन सकती है।जब भी भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान जाने वाले चर्चित रास्ते खोले जाने की कवायद शुरू हुई है तो फाजिल्का के लोगों ने गोल्डन टै्रक खोलने की मांग दोहराई है। हालांकि फाजिल्का के दौरे के दौरान 1977 में भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अंतर्राष्टï्रीय सीमा व्यापार के लिये खोलने का वादा किया था। बुद्धिजीवियों ने पत्रों के जरिये उन्हें वादा भी याद करवाया था।
सिर्फ यह ही नहीं फाजिल्का के डबवाली गांव के निवासी और पंजाब विधानसभा के स्पीकर स. चरणजीत सिंह अटवाल के समक्ष लोगों ने गोल्डन टै्रक खोलने के लिये आवाज उठाई।
Golden Track:
Due to the friendly relations between India and Pakistan, the Samjhauta Express, which runs from Wagah border, spreads the fragrance of friendship between the two countries. But the Golden track of Phazilka is still craving the eyes of the nation's eyebrows. Starting in 1898, under the name of Golden Trac, the Fazilka Karachi rail route proved to be extremely important with business vision. This Golden Tract lays the power of a prosperous region to Fazilka till the partition of India. But the splitting pain filled the saddle in both the countries that silence on the golden track was covered. Although the intellectuals of Phazilka raised their voices against the dictatorship of the country to re-run the train on the Golden track, their voice was always ignored. If Golden Tract is restarted then Fazilka has the ability to emerge as a re-enriched region.
The train used to travel from Ludhiana to Karachi via Via Ferozepur-Fazilka-Amruka-MacLoadganj Road-Minchindaabad-Bahawalnagar-Samasata-Khanpur-Rahimar Khan-Rohdi-Nawabshah. India's goods were sent by the East India Company in Europe, the Middle East and other Gulf countries, which proved to be a cheap and better route. But after the split, Golden Trac was buried in history. Even if the Hukamaran look-alikes, golden trek can be transformed into a golden bank even today. There will be no more spending on this. The broad gauge line has already been set up in India from Ludhiana to Phazilka and from Pakistan to Amarka to Samastata. Double trak from Samastata to Karachi is used only for business purposes. From Fazilka to Amruka, only 10 kilometers of rail line can be made soon. Whenever the Government of India has started the exercise of opening the well-known pathways to Pakistan, the people of Phazilka have repeatedly demanded the opening of Golden Trek. Although during the visit of Fazilka in 1977, the then External Affairs Minister of India, Shri Atal Bihari Vajpayee, promised to open for the International Border Trade. The intellectuals had also reminded them through letters. Not only this, the resident of Dabwali village of Phazilka and speaker of Punjab assembly. In front of Charanjit Singh Atwal, people raised their voices for opening the Golden Tract. But the golden track became a dream. Even today, the golden track is wearing eye-cover in the eyes of Indo-Pak's Hukmarson-A-Inayat.
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