punjabfly

Jul 6, 2018

                                     दास्तान-ए-वट्टू: हवेली से पहुंचा फाजिल्का वट्टू कबीला
         ब्रिटिश साम्राज्य में भटियाणा (जिला सिरसा) के सहायक सुपरिटेडेंट जे. एच. ओलिवर को फाजिल्का शहर बसाने के लिए भूमि बेचने वाले मुसलमान नंबरदार मिया फज़ल खान वट्टू व अन्य वट्टू परिवार चंद्रवंशी राजपूत का एक कबीला था। मगर वट्टू सन् 1882 से 16 पीढ़ी पहले राजा खीवा के समय मुसलमान बन गए। खीवा हवेली (अब पाकिस्तान में) का राजा था। हवेली में लक्खा वट्टू नाम का एक मशहूर मुस्लमान रहता था। वट्टू वहां से सतलुज दरिया पार करके जिला मिंटगुमरी में आकर बस गया। उनका ही एक परिवार मिंटगुमरी से फाजिल्का के उत्तर की तरफ 16 मील दूर गांव बग्घेकी (जलालाबाद के निकट) आकर बस गया जो दक्षिण की तरफ फुलाही से 70 मील की दूरी पर था। बग्घेकी के उत्तर की तरफ डोगर जाति और दक्षिण की तरफ जोईऑस जाति के लोगों का कबीला बसता था। उधर वट्टू जाति के कई अन्य लोग हवेली के गांव राणा झंग के निकट भी बसे हुए थे। यह गांव राणा वट्टू के नाम पर बसा हुआ था। वट्टू वहां से चार पांच पीढ़ी पहले फज़ल खां वट्टू, राणा और दलेल के नेतृत्व में सतलुज दरिया के इस इलाके में आकर बस गए और यहां बोदला जाति के मुसलमानों के पड़ोसी बन गए। उस समय यह इलाका आबाद नहीं था। चारों ओर धूल ही धूल थी। पूर्व समय में वट्टू धार्मिक गुरू थे। उनका कद छोटा और पतला था। उनके नैन नक्ष तीखे थे। पतले होंठ व छोटे नाक वाले वट्टू जाति के मुसलमानों की भाषा मुस्लिम पंजाबी थी। जिस में नाक से बोले जाने वाले व्यंजन ज्यादा थे। मगर देखने में अपने पड़ोसी बोदला परिवारों से सुंदर थे। वह किफायती नहीं थे। जंगल किनारे बसे होने के कारण उनमें साहस की भावना की कमी नहीं थी। वे परिश्रमी थे और परिश्रम से उन्होंने रेतीले इलाके को आबाद कर लिया। उनके परिश्रम से यहां रेतीली धरती सोना उगलने लगी और वट्टू कृषि क्षेत्र से जुड गए। यहां बसने के बाद उनके बोदला जाति के मुसलमानों से संबध गहरे हो गए। वट्टू सतलुज दरिया के दोनों हिस्सों से जिला फिरोजपुर से जुड़े हुए थे। इनके आसपास चिश्ती, नाईपाल, भट्टी और गुज्जर भी बसे हुए थे। वट्टूओं की अधिकतर जाति आगे और शाखाओंं में बंटी हुई थी। वट्टू एक पूर्वज की ओर से थे। पूर्व समय में यहां उनकी 10-12 पीढिय़ां निवास करती थी। मगर कुछ समय बाद उनकी कुछ पीढ़ीयां वापस चली गई। यहां 1882 तक उनकी सिर्फ तीन-चार पीढ़ीयां ही रह गई। जो पीढिय़ां बाकी रह गई। उनमें ज्यादातर गांव लाधुका, मुहम्मदके और सैदोके में बसी हुई थी। इन गांवों को वट्टूओं ने अपना नाम दिया। ये गांव ही उनके हैड चर्टर बन गए। इसके अलावा सुक्खा के नाम पर गांव सुखेरा और कालो के नाम पर गांव कालोके बस गया। 1911 की जनगणना अनुसार जिला फिरोजपुर में इनकी संख्या 9732 थी। (LACHHMAN DOST FAZILKA)


                                                Dastan-e-Wattu: Fazilka Wattu Kabila from Haveli
         In the British Empire J. Assistant Superintendent of Bhatiana (District Sirsa) Muslim naadder Mia Fazal Khan Wattu, who sells land to settle down Hoshiarpur town, and a Vatu family, was a tribe of Chandravanshi Rajput. But Watoo became a Muslim during the King Killa, 16th generation before 1882. King of the Kiwi Haveli (now in Pakistan). A renowned Muslim named Lakkha Vatu lived in the mansion. Vatu crossed the Satluj river crossing and settled in the district of Mintingumari. One of his family migrated from Mintgumari, 16 miles away to the north of Fazilka, near the village Baggaikei (near Jalalabad), which was 70 miles away from Phulahi on the south side. Dogger caste on the north side of Baggeki and the tribe of the Zoose caste on the south used to be inhabited. On the other side, many other people of the Vatu caste were also living near the village of Rane Jhang of Haveli. This village was named after Rana Vatu. Vatu settled in this area of ​​Satluj Dariya under the leadership of Fazal Khan Vatu, Rana and Dellal, four to five generations before that and here he became a neighbor of the Muslims of Bodla caste. At that time the area was not populated. The dust around was dust itself. In earlier times, Vatu was a religious teacher. His stature was small and thin. Their nan naks were sharp. The language of Muslims of the Vatu caste with thin lips and small noses was Muslim Punjabi. In which nose-fed dishes were more. But in view of the neighboring Bodala families were beautiful. He was not economical Due to being settled on the banks of the forest, they lacked the sense of courage. They were hard-working and by diligence they settled the sandy terrain. From his hard work, the sandy land began to flutter and Wattu joined the agriculture sector. After settling down here, his relationship with the Bodolas of Muslims grew deeper. Vattu was connected to the district Firozpur from both parts of Satluj Dariya. Chishti, Naipal, Bhatti and Gujjar were also settled around them. Most of the castes of Vatu were divided further into branches. Vatu was from an ancestor. In earlier times, he used to live 10-12 generations. But after some time some generations of them went back. It remained only three or four generations until 1882. Generations left Most of them were settled in the villages of Ladkuka, Mohammedke and Sedoke. Vatu gave their names to these villages. These villages became their head charters. Apart from this, village Keloke has been settled in the name of village Sukhera and Kalo in the name of Sukkha. According to the 1911 census, their number in the district Firozpur was 9732.

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