लारी की सवारी
बंगला टू हवेली, बंगला टू मुल्तान
बंगला और हवेली . . . . .नाम में कोई फर्क नही . . . . . देखनेे में भी एक जैसे, बंगला में वन्स एगन्यु की कचहरी लगती थी तो हवेली में लक्खा वट्टू का न्याय होता था। लारी भी चली तो बंगला से हवेली तक। मौजम रेलवे फाटक से जब लारी चलती तो लहलहराते खेतों का हरियाली का नजारा, सडक़ की उड़ती धूल का दृश्य् दिन में तीन-चार बार देखने को मिलता, लेकिन कहाँ गया वो नजारा? जबकि बंगला भी है और हवेली भी है। फर्क क्या है? सिर्फ यह है कि भारत-पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय सरहद पर लगी तारबंदी ने भारत को दो हिस्सों में बांट दिया। एक लकीर . . . वो लकीर जो दोनों शहरों के बीच एक लंबी दूरी बन गई। एक देश था, एक जैसे शहर थे, लेकिन आज जमीन-आसमान का अंतर है। दो अलग-अलग देश, दो अलग-अलग शहर। अगर यहां बंगले की शान नहीं है तो हवेली में भी वो जान नहीं रही, जो विशाल भारत में थी। जबकि पहला बस स्टॉप सलेमशाह और दूसरा बस स्टॉप मौजम वहीं है, उधर लौकिया, शरींहवाला और शाहसवार भी है। मगर एक लकीर ने यह दूरियां बढ़ा दी। जिस कारण अब ये बस स्टैंड बंगला टू हवेली और बंगला टू मुलतान की बस की इंतजार कर रहे हैं। दूसरा बस स्टैंड था कॉलेज रोड़ पर। जहां से लारी मुल्तान तक जाती थी। वह भी इस लकीर की भेंट चढ़ गई। अबोहरी रोड के रास्ते से बस चला करती थी तो बीकानेर रियासत तक सैंकड़ो गांवों से होकर गुजरती थी। फिर कहां गई मेरे शहर की लारियां? अबोहरी बस अड्डा भी है, लेकिन वहां से सीधे अबोहर को लारियां नहीं चलती, लारियों की जगह अगर बस का नाम मिला तो बस स्टैंड का स्थान बदल गया। बसें कचहरी के सामने से चलने लगी। फिर यहां बन गया भीड़भाड़ वाला इलाका। थाना सिटी बनी तो माॢकट बन गई। यातायात प्रभावित होने लगा, तब बस स्टैंड का स्थान बदलना जरूरी हो गया। बस स्टैंड मौजूदा जगह यानि मलोट रोड़ पर चला गया। जहां से अब फिरोजपुर, मलोट, अबोहर और लंबी दूरी के अन्य शहरों तक बसें चलती हैं। विभाजन ने हवेली, मुलतान और बीकानेरी रोड के रास्ते से चलने वाली सारी लारियां निगल ली। आज यहां खुश्हाली का दौर है, बसें हैं, लेकिन नईं पीढ़ी के एक सवाल का जवाब नहीें। वह सवाल है - कहां गया बंगला टू हवेली-बंगला टू मुल्तान तक का सफर? जब हमारा जवाब होता है - विभाजन की एक लकीर ने निगल लिया। तब उनकी आंखों में एक सवाल और झलकता है। लकीर खींचने के हालातों का जिम्मेदार कौन है? उन्हें क्यों नहीं रोका गया? शायद इनका जवाब किसी के पास नहीं होगा। अब उन हलातों की बात उन्हें कैसे समझायें? उन्हें कैसे समझाएं कि दो भाईयों में बटवारा हो गया। हमें फूट डालो और राज करो की ट्रेन तले कुचल दिया गया। ब्रिटिश साम्राज्य ने दो भाईयों को धर्म के नाम पर बांटकर खूब फायदा उठाया। हम उनकी चंगुल में आकर दो हिस्सों में बंट गए। ब्रिटिश साम्राज्य का अंत हो गया। मगर दो भाईयों के बीच खींची गई लकीर बरसों बाद भी संग-संग चलने नहीं दे रही। लकीर ने न तो बंगला को हवेली से मिलने दिया और न ही मुल्तान से। लारी की यादें बाकी रह गई, जो आज भी बंगला टू हवेली और बंगला टू मुलतान की राह ताक रही हैं। मिलने की चाहत इधर भी है और उधर भी। Lachhman Dost Fazilka
Lorry ride
BANGLA TO HAVELI
BANGLA TO MULTAN
Bangla and Haveli . . . No difference in the name. . . . . In the same way, in the bungalow, if there was a wan of forest anaguna, Lakkha Vatu was judged in the mansion. Lari also went from Bengal to mansion. When the lari runs from the majam railway gate, the sight of the greenery of the flowing fields, the sight of the flying dust of the road can be seen three to four times a day, but where is the sight? While there is also a bungalow and the mansion is also there. What's the difference It is only that the ceasefire on the Indo-Pak international border has divided India into two parts. A streak . . . The streak which became a long distance between the two cities. There was a country, there were similar cities, but today there is a difference in land and sea. Two different countries, two different cities If there is no glory of the bungalow here, then in the mansion it is not known who was in huge India. While the first bus stop Salemshah and the other bus stop is there, there are also Laukiya, Shreeinghwala and Shahswar. But a streak raised these distances. Because of this, they are now waiting for the bus stand Bangla to Haveli and Bangla to Multan. The second bus stand was on the college road. From where did Lari go to Multan? He also got the offer of this streak. From Abohar Road, bus used to run buses, then till Bikaner principality, hundreds of villages passed through the villages. Then where did my city's salaries? Abohir is also a bus station, but there is no work from Abohar directly, if the name of the bus is found in place of the lorries, then the location of the bus stand changed. Buses started running from the front of the court. Then there was a crowded area. Thana City turned into a mukta When the traffic started to get affected, it was necessary to change the location of the bus. The bus stand went to the existing place i.e. the Mallaut road. From where buses now run from Ferozepur, Malout, Abohar and other long distance cities. The division swallowed all the salaries that run through Haveli, Multan and Bikaneri Road. Today there is a Khushali period, there are buses, but no answer to a question of the new generation. That is the question - Where did the journey to Bangla to Haveli - Bungalow to Multan? When our answer is - a streak of division swallowed. Then there is a question in their eyes. Who is responsible for the conditions of streak pull? Why not stop them? Perhaps nobody will answer them. Now let them explain the talk of those halatas? How to explain to them that the two brothers got separated. We were crushed under the train and divided and ruled. The British Empire took advantage of two brothers by dividing them on the name of religion. We came into his clutches and split into two parts. The British Empire ended But the streak drawn between the two brothers is not allowed to go on for years. Likir neither let the Bengalis meet the mansion, neither from the Multan Lari's memories remained the same, which still stands for Bangla to Haveli and Bangla to Multan. There is a desire to meet here and there too.
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