punjabfly

Aug 8, 2018

गांव लाधुका की दास्तां
न्याय में धोखा नहीं खाती थी वली मुहम्मद खान की अंधी आँखे

    उसकी आँखों ने जिंदगी भर किसी का चेहरा नहीं देखा, लेकिन फिर भी आँखे न्याय को पहचाननें में कभी धोखा नहीं खा सकती थी। अंधा था, मगर न्याय करते समय अगर बेटे की बात भी झूठ साबित हो गई तो वह उसे भी सजा देने से नहीं घबराता। ऐसा न्यायप्रिय था, मुहम्मद लाधु खान का बेटा वली मुहम्मद खान। वली मुहम्मद खान तीन भाईयों में सबसे बड़ा था। उसका छोटा भाई कुत्तुबदीन ऑनरेरी मजिस्ट्रेट था और सबसे छोटा नजामदीन तो इज्जत का रखवाला के नाम से आसपास के इलाके में प्रसिद्ध था। वली मुहम्मद खान की आँखों की रोशनी बचपन से ही नहीं थी। मगर उसकी काबलियत का लोहा पूरा इलाका माानता था। जमींदार मुस्लमान लाधु खान के परिवार के न्याय के किस्से तो दूर तक के लोग मानते थे। जमींदार लाधु खान की मौत हुई तो गांव का नाम ही लाधुका पड़ गया। सतलुज दरिया से तीन किलोमीटर दूर बसा गांव लाधुका की गलियों जैसी साफ-सफाई तो निकट के किसी गांव में नहीं थी। खुली गलियां, गांव के बीच चौपाल, कुआं और बड़ी-बड़ी हवेलियां गांव की शान थी। मुहम्मद लाधु खान की भूमि का रक्बा बहुत बड़ा था। गांव किडिय़ांवाली तक उनकी सरहद थी। लाधु खान के भाई लक्खा खान की भूमि का रक्बा भी कम नहीं था। गांव लक्खा मुसाहिब, लक्खा कड़ाईयां, लक्खेके हिठाड, लक्खे के उत्ताड़, लक्खा असली मुहम्मद लक्खा खान के गांव थे। मगर इनका अधिकतर ध्यान अपनी भूमि की संभल की तरफ था और लाधु खान के बेटे मुहम्मद वली खान अपना ध्यान लोगों को न्याय दिलाने की तरफ जयादा देता था।
      बात 1850 के आसपास की है। वली मुहम्मद का बेटा सादिक पशुओं का व्यापार करता था। सादिक का एक व्यापारी साथी सतलुज दरिया के पार से पशु खरीदकर दरिया के इस ओर सरकंडे के साथ बांध देता था। सरकंडे की निशानी पर सादिक पहुंचता और पशु लेकर बेच देता। पशु बेचने के बाद सादिक दूसरे व्यापारी को उसका हिस्सा अदा कर देता। एक बार सादिक के साथी व्यापारी ने दरिया के इस ओर सटे किनारे तक भंैस भेज दी। भैंस के नैंन नक्श सुंदर थे। दूध तो इतना था कि देखने वाला भी दंग रह जाता। दूसरे दिन सादिक ने व्यापारी के पास संदेश भेजा कि वह रात को भैंस लेने गया था। मगर वहां भैंस नहीं मिली। व्यापारी हैरान हो गया कि जब वह भैंस ठिकाने पर खुद बांधकर आया है तो सादिक कैसे कह रहा है कि वहां भैंस नहीं है ? व्यापारी चोर की तलाश में दरिया के इस ओर आ गया। चोर की तलाश करते-करते तीन दिन बीत गए। मगर चोर का पता नहीं चला। बात वली मुहम्मद तक पहुंची। सादिक को चौपाल में बुलाया गया। मगर सादिक ने वहां से भैंस नहीं लेकर आने की बात कही। इस बारे में दोनों ने सौगंध उठाई। अब झूठ से पर्दा उठाकर हकीकत को सामने लेकर आने के लिए वली मुहम्मद ने एक योजना बनाई। योजना मुताबिक उस सरकंडे को गवाह बनाया गया, जहां भैंस बांधी गई थी। वली मुहम्मद ने दोनों को उस सरकंडे से एक टहनी तोडक़र लाने को कहा, जहां व्यापारी भैंस बाधता था। सादिक और व्यापारी सरकंडे की टहनी के लिए चल पड़े। सादिक तो टहनी लेकर आ गया, लेकिन व्यापारी देरी से पहुंचा। उसके बाद वली मुहम्मद की ओर से सादिक और व्यापारी के पीछे हकीकत जानने के लिए भेजे गए व्यक्ति भी आ गए। उन्होंने बताया कि सादिक ने तो गांव के बाहर खड़े सरकंडे से टहनी तोड़ी है। जबकि व्यापारी ने उस स्थान पर मौजूद सरकंडे की टहनी तोड़ी है, जहां भैंस के पैरों के निशान आज भी हैं। सच्चाई कुछ हद तक सामने आ चुकी थी। इस दौरान वह व्यक्ति भी आ पहुंचा, जिसने भैंस खरीदी थी। उसने बताया कि भैंस बेचने वाला सादिक था। अब हकीकत सामने आ गई। वली मुहम्मद ने अपने फैसला सुनाया कि सादिक सजा के तौर पर भैंस का मूल्य व्यापारी को तीन दिन में अदा करेगा। साथ ही लाधुका और आसपास के गांवों में एक माह के बीच जितनी भी लड़कियों की शादी होगी। उसका खर्च सादिक उठाएगा। ऐसे न्याय की दास्तां सुनते हुए गांव लाधुका में बरसों गुजारने के बाद फाजिल्का की मास्टर कालोनी में बसे बाऊ राम कहते हैं कि कुत्तुबदीन और नजामदीन भी नयाय करते समय धर्म और परिवार को एक तरफ रखकर ही फैसला सुनाते थे।(LACHHMAN DOST FAZILKA)
Tales of village Ladhuka
Wali Muhammad Khan's blind eyes did not cheat in justice             
      His eyes had not seen anyone's face throughout his life, but still the eye could never be deceived in recognizing justice. There was blindness, but in the course of judgment, even if the son's statement was proved false then he would not be afraid to punish him. It was so fair, the son of Muhammad Ladhu Khan, Wali Muhammad Khan. Wali Muhammad Khan was the eldest of three brothers. His younger brother was Kutubdin Honorary Magistrate, and the youngest Najamuddin was famous in the vicinity in the name of Ijtat's Rakwala. Wali Muhammad Khan's eyesight was not from his childhood. But the iron of its power was the whole area. The people of far and wide were considered by the far-reaching of the justice of the family of landlord Ladhu Khan. When landlord Ladhu Khan died, the name of the village fell into a lonely person. There was no cleanliness in the nearby villages like the streets of Ladka, three kilometers away from Satluj Dariya. The open streets, the village was the pride of the village, the Chowpal, the well and the huge Haveli. The land of Mohammad Ladhu Khan's land was very big The village was bound by Kiddianwali. The land of Ladkha Khan's brother Lakkha Khan was not even less. The village was Lakkha Mussahib, Lakha Kadaian, Lakhe ke Hithad, Lakhe ke Utad, Lakkha village of real Muhammad Lakhna Khan. But most of his attention was on the side of his land and the son of Ladhu Khan, Muhammad Wali Khan, gave his attention to people to give justice to the people.
      The thing is around 1850. Wali Muhammad's son Sadiq used to do cattle trading. A businessman from Sadiq used to buy cattle from across Sutlej Dariya and bind them with the movement on the other side of the river. Sadiq reaches Saddi on the mark of Sarkanda and sells him with cattle. After selling the animals, Sadiq paid the other trader part of it. Once, Sadiq's fellow businessman sent a bhajan to the adjoining side of the river. The nyan map of buffalo was beautiful. The milk was so much that the viewer would also be stunned. On the second day, Sadiq sent a message to the trader that he went to take a buffalo at night. But there was no buffalo there. The trader was surprised that when the buffalo himself came on the shelter, how did Sadiq say that there is no buffalo there? The trader came to the side of the river in search of a thief. Three days passed by searching for a thief But the thief was not detected. The talk reached Wali Muhammad. Sadiq was called in the Chaupal But Sadiq said that there was no buffaloes coming from there. Both of them took the oath. Now Wali Muhammad made a plan to bring the reality from the lie and bring the reality forward. According to the plan, that gang was made witness, where buffalo was built. Wali Muhammad asked both of them to bring a twig in the shackles, where the buffer was in charge of the buffalo. Sadiq and traders move for the twig. Sadiq came with a twig, but the dealer arrived late. After that, the person sent by Wali Muhammad to know the reality behind Sadiq and the businessman also came. He told that Sadiq had broken his sword standing outside the village. Whereas the trader has broken the sprig of the public at that place, where there are still traces of buffalo feet. The truth had come to some extent. During this time the person also came, who buys buffalo. She told that buffalo selling was Sadiq. Now the reality has come out. Wali Muhammad has ruled that Sadiq will pay the trader for three days as a punishment for buffaloes. At the same time, between Ladies and the surrounding villages, the number of girls in the middle of a month will be married. His cost will be simple. After listening to the tales of such justice, after passing the years in Ladkuka, Bau Ram, who settled in the Master Colony of Phazilka, says that Kutubdin and Najamuddin used to pronounce decisions only by keeping religion and family together.

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