इतना सस्ता बन गया बंगले से फाजिल्का !!!
हाय रब्बा...इतनी महंगाई बढ़ गई...हैरानी हो रही है...आजकल तो उतने रूपये का एक किलो देसी घी नहीं मिलता...जितने रूपये में मेरा प्यारा शहर बस गया...हैरानी आपको भी होगी...क्योंकि जिस धरती पर यह शहर बसा हुआ है, उस धरती की कीमत सिर्फ ...और सिर्फ 144 रूपये आठ आन्ने थी...क्यों यकीन नहीं आ रहा...मगर यह हकीकत है...हकीकत और मेजदार दास्तान...रंगले, बंगले फाजिल्का तक के सफर की रंगीली दास्तान।
बात 1846 की है जब बंगला पूरे योवन पर था...वंस एगन्यू का तबादला हो गया तो यह इलाका जे.एच.ओलीवर के अंडर आ गया...उन्होंने फतेहबाद और बीकानेर में मुनादी करवा दी कि आओ, बंगले में आकर बस जाओ...अगर अपने साथ कारपेंटर, नाई, मिस्त्री, मजदूर लेकर आओ तो जगह मुफ्त मिलेगी...ओलीवर भी चाहते थे कि बंगला शहर पूरी तरह से आबाद हो जाए......बात फैलती गई और लोग यहां आकर बसते गए...शहर के लिए जगह कम पड़ गई...तब ओलीवर ने मियां फजल खां वट्टू को बुलाया...
फजल खां वट्टू !!! ...वो कौन था...वो था सतलुज दरिया के किनारे बसने वाले मुस्लिम कबीले का एक जमींदार...जिसे ब्रिटिश सरकार की तरफ से नंबरदार बनाया हुआ था...वह कृषको से कृषि और नहरी पानी का टैक्स इक्_ा करता और ब्रिटिश कोष में जमां करवा देता...ब्रिटिश साम्राज्य के राजस्व में इजाफा होते देखकर ओलिवर ने नंबरदार वट्टू को बुलाकर यहां नगर का दायरा विशाल करने के लिए जमीन बेचने की बात कही...नंबरदार वट्टू के पास जमीन की कमीं नहीं थी...वह जमीन बेचने को तैयार था...मगर उसकी शर्त थी कि इस शहर का नाम उसके नाम (फज़ल खां) पर रखा जाए...गहन विचार के बाद ब्रिटिश अधिकारी ओलिवर ने नंबरदार वट्टू की शर्त मान ली और उससेे साढ़े बत्तीस ऐकड़ जमीन 144 रूपए आठ आन्ने में खरीद ली... उसके बाद नगर का नाम फजिल्की रखा गया...जो धीरे-धीरे फाजिल्का पड़ गया...
शहर का मुख्य बाजार है मेहरियां बाजार...यहां एक दुकान पर कुछ बरस पहले ही मैने ओलीवर द्वारा बनाई गई मार्केट का बोर्ड देखा था...मैं देखना तो चाहता था कि कहीं बंगला लिखा मिल जाए, मगर बंगला लिखा कहीं नहीं मिला...हां बंगला जरूर मिल गया...जहां आजकल डिप्टी कमिशनर का निवास है...बाधा झील के पास...आज भी वही बंगला...खुला व हवादार...मोटी दिवारें ...मोटे शहतीर...वही अदालत ...जहां वंस एगन्यू की कचहरी लगती थी...एक बात और जहन में थी कि फजल खां वट्टू कहां रहता था...खोज की तो पता चला कि वह गांव सलेमशाह में रहता था...जिसे कभी फजलकी बोलते थे...वह वहां से मौजम रेलवे फाटक के पास आकर बस गए...साथ ही मौहल्ला है पीर गोराया...जहां वट्टू पीर की सेवा भी करते थे तो मेला भी लगवाते थे। (यह अन्य ब्लाग में ब्योरे सहित लिखा जाएगा), क्योंकि बात सिर्फ बंगले की हो रही है तो बात को जारी रखते हैं।
फाजिल्का का दायरा विशाल करना था...इसलिए 1862 में सुलतानपुरा, पैंचांवाली, बनवाला, ख्योवाली और केरूवाला रकबे की 2165 बीघा जमीन खरीद कर ली गई...जिसका मूल्य 1301 रूपए तय किया गया था...उसके बाद सात अगस्त 1867 के दिन पंजाब सरकार के नोटीफिकेशन नंबर 1034 के तहत फाजिल्का की सीमा निर्धारित कर दी गई...ब्रिटिश साम्राज्य की ओर से खरीद की गई जमीन का निर्धारित मुल्य 1877 में नंबरदार वट्टू को पंचायती फंड से अदा किया गया।
समय ने करवट ली और फाजिल्का में ऊन का व्यापार गति पकडऩे लगा...व्यापार में इजाफे के लिए ब्रिटिश अधिकारी ने पेड़ीवाल, मारवाड़ी, अग्रवाल और अरोड़वंश जाति के लोगों को न्योता दिया...वह लोग व्यापारी थे और उन्होंने यहां ऊन व अन्य कई तरह के व्यापार शुरू कर दिए...जिससे फाजिल्का व्यापारिक केन्द्र बन गया...उधर 1852 में ब्रिटिश अधिकारी थोमसन को तैनात किया गया, वह 1857 तक रहे और उन्होंने अधिकतर अबोहर व उसके आसपास के गांवों में विकास करवाया।
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Fazilka from the bungalow became so cheap !!!
Hi Rabba ... So much inflation has increased ... Surprising ... Nowadays, one kilo of gigantic ghee can not be found ... as much as my beloved city is settled ... Surprisingly you too will be .. Because the land on which the city is settled, the price of that land was just ... and only 144 rupees had come ... why is not it ... but it is reality ... reality and feudal tears .. Rangoli Dahan of the journey of Rangle, Bangalee Fazilka.
The point is 1846 when the bungalow was on the whole yawn ... Once Vanuagnu was transferred, then the area came under J.H.Olliver ... he had a procession in Fatehabad and Bikaner that come, just come to the bungalow and go ... if you come with carpenter, hairdresser, mistry, laborer, you will get free ... Oliver also wanted that the city of Bangla should be fully populated ... the word spread and people came and settled here ... the place for the city fell short ... Then Oliver got the Mian Faz Called Khan Vttu ...
Fazal Khan Vatu !!! ... who was he ... that was a landlord of the Muslim tribe settling along the Sutlej Darya ... which was made by the British government to be numbered ... he used to tax agricultural and non-agricultural taxes from the farmer Seeing the rise of the British Empire's revenue, Oliver called Noddar Vatu and said that he would sell the land to make the city's gigantic area ... land near Noddar Vatu It was not ... he was ready to sell the land ... but his condition was that the name of this city should be kept on his name (Fazal Khan) ... After a deep thought, the British officer Oliver accepted the condition of Noddar Vatu And bought him four and a half-and-a-half-hundred 144 rupees in eight grams ... after that the town was named Fazilki ... which gradually fell to Fazilka ...
The main market in the city is the Mehrari market ... There was a few years ago at a shop, I saw a board of market made by Oliver ... I wanted to see if a bungalow was found, but the bungalow was not found anywhere. ..Yes the bungalow got it ... where now the deputy commissioner is residing ... near the barrier lake ... even today the same bungalow ... open and airy ... thick walls ... thick purple ... The same court ... where Van Agnu was feeling shackled ... one left It was in Javan that where Was Fazal Khan Vatu lived ... Searching, it was discovered that he lived in the village Salemshah ... who ever used to speak Fazalki ... he settled down to the present railway gate. ..With the mohalla pir goraya ... where Vatu used to serve Pir also used to organize fair. (It will be written with details in other blogs), because the thing is happening only in the bungalow, keep the matter going.
The scope of the phazilka was to be enlarged ... So in 1862, 2165 Bigha land was purchased for Sultanpura, Panchanwali, Banwala, Khaywali and Keruvalla land ... which was valued at Rs 1301 ... followed by seven August 1867 The day was fixed by the Punjab Government's notification no. 1034 under the limit of phazilka ... fixed price of land purchased by the British Empire in 1877, Namkar Vatu was paid from the Panchayat funds.
Time took a turn, and the business of wool in Phazilka caught up in speed ... The British authorities invited the people of Periwal, Marwari, Agrawal and Aroravans to increase the trade ... they were businessmen and they were wool and others here Started many types of businesses ... by which Fazilka became a trading center ... In 1852, British officer Thompson was deployed, he remained until 1857 and he was mostly abohar and his Made development in the surrounding villages
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