punjabfly

Jan 7, 2020

गाँव नहीं, शहर से ही वज़ूद में आया था FAZILKA

क्या 144 Rs/- में कोई शहर बस सकता है .. शायद नहीं.... मगर आप को एक हकीकत बता दूँ कि जिस धरती पर Fazilka शहर बसा हुआ हैउस धरती की कीमत सिर्फ …और सिर्फ 144 रूपये आठ आन्ने थी यकीन नहीं  रहामगर यह हकीकत हैहकीकत और मेजदार दास्तानरंगलेबंगले फाजिल्का तक के सफर की रंगीली दास्तान। यही एक शहर है – जो कभी गांव नहीं थी – शहर था  
          बात 1846 की है जब बंगला पूरे योवन पर था - वंस एगन्यू का तबादला हो गया तो यह इलाका  जे.एच.ओलीवर के अंडर  गयाउन्होंने फतेहबाद और बीकानेर में मुनादी करवा दी कि आओबंगले में आकर बस जाओअगर अपने साथ कारपेंटरनाईमिस्त्रीमजदूर लेकर आओ तो जगह मुफ्त मिलेगीओलीवर भी चाहते थे कि बंगला शहर पूरी तरह से आबाद हो जाए……बात फैलती गई और लोग यहां आकर बसते गएशहर के लिए जगह कम पड़ गईतब ओलीवर ने मियां फजल खां वट्टू को बुलाया
     फजल खां वट्टू !!! …वो कौन थावो था सतलुज दरिया के किनारे बसने वाले मुस्लिम कबीले का एक जमींदारजिसे ब्रिटिश सरकार की तरफ से नंबरदार बनाया हुआ थावह कृषको से कृषि और नहरी पानी का टैक्स इक्_ करता और ब्रिटिश कोष में जमां करवा देताब्रिटिश साम्राज्य के राजस्व में इजाफा होते देखकर ओलिवर ने नंबरदार वट्टू को बुलाकर यहां नगर का दायरा विशाल करने के लिए जमीन बेचने की बात कहीनंबरदार वट्टू के पास जमीन की कमीं नहीं थीवह जमीन बेचने को तैयार थामगर उसकी शर्त थी कि इस शहर का नाम उसके नाम (फज़ल खांपर रखा जाएगहन विचार के बाद ब्रिटिश अधिकारी ओलिवर ने नंबरदार वट्टू की शर्त मान ली और उससेे साढ़े बत्तीस ऐकड़ जमीन 144 रूपए आठ आन्ने में खरीद ली… उसके बाद नगर का नाम फजिल्की रखा गयाजो धीरेधीरे फाजिल्का पड़ गया

Peer Goraya
शहर का मुख्य बाजार है मेहरियां बाजार… यहां एक दुकान पर कुछ बरस पहले ही मैने ओलीवर द्वारा बनाई गई मार्केट का बोर्ड देखा था… मैं देखना तो चाहता था कि कहीं बंगला लिखामिल जाएमगर बंगला लिखा कहीं नहीं मिला
हां बंगला जरूर मिल गया… जहां आजकल डिप्टी कमिशनर का निवास हैबाधा झील के पासआज भी वही बंगला… खुला  हवादारमोटी दिवारें …मोटे शहतीरवही अदालत … जहां वंस एगन्यू की कचहरी लगती थी… एक बात और जहन में थी कि फजल खां वट्टू कहां रहता था खोज की तो पता चला कि वह गांव सलेमशाह में रहता थाजिसे कभी फजलकी बोलते थेवह वहां से मौजम रेलवे फाटक के पास आकर बस गएसाथ ही मौहल्ला है पीर गोराया… जहां वट्टू पीर की सेवा भी करते थे तो मेला भी लगवाते थे (यह अन्य ब्लाग में ब्योरे सहित लिखा जाएगा), क्योंकि बात सिर्फ बंगले की हो रही है तो बात को जारी रखते हैं।

Village Salem Shah kaa ek purana makaan
       फाजिल्का का दायरा विशाल करना थाइसलिए 1862 में सुलतानपुरापैंचांवालीबनवालाख्योवाली और केरूवाला रकबे की 2165 बीघा जमीन खरीद कर ली गईजिसका मूल्य 1301 रूपए तय किया गया थाउसके बाद सात अगस्त 1867 के दिन पंजाब सरकार के नोटीफिकेशन नंबर 1034 के तहत फाजिल्का की सीमा निर्धारित कर दी गई… ब्रिटिश साम्राज्य की ओर से खरीद की गई जमीन का निर्धारित मुल्य 1877 में नंबरदार वट्टू को पंचायती फंड से अदा किया गया।
       समय ने करवट ली और फाजिल्का में ऊन का व्यापार गति पकडऩे लगा…व्यापार में इजाफे के लिए ब्रिटिश अधिकारी ने पेड़ीवाल, मारवाड़ी, अग्रवाल और अरोड़वंश जाति के लोगों को न्योता दिया…वह लोग व्यापारी थे और उन्होंने यहां ऊन व अन्य कई तरह के व्यापार शुरू कर दिए…जिससे फाजिल्का व्यापारिक केन्द्र बन गया…उधर 1852 में ब्रिटिश अधिकारी थोमसन को तैनात किया गया, वह 1857 तक रहे और उन्होंने अधिकतर अबोहर व उसके आसपास के गांवों में विकास करवाया।



Fazilka City
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