हवालदार जस्सा सिंह
वतन को नाज है जिन पर
भारत-पाक युद्ध 1965 के गैलेंट हीरो हवलदार जस्सा सिंह
आंखों में टपकते दुश्मनी के खून ने तोड़ी दुश्मनों की हिम्मत
भारत पाकिस्तान 1965 के युद्ध में बेशक सैकड़ों जांबाज वीरों ने दुश्मनों को धूल चटाई, लेकिन उनमें भारतीय सेना के एक शौर्य पुरुष ऐसे भी थे। जिनका जिक्र बहुत कम हुआ है। यह दास्तान है भारतीय सेना की 14 पंजाब नाभा अकाल के उस वीर जवान की। जिसने दुश्मनों के घर में घुसकर हमले का करारा जवाब दिया। भारत-पाक 1965 के युद्ध में वह गैलेंट हीरो थे हवलदार जस्सा सिंह। जिन्हें बहादुरी के बदले वीर चक्र सम्मान से नवाजा गया। लंबे कद के इस जवान में युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके यूनिट को फाजिल्का सैक्टर के गांव चाननवाला के निकट तैनात किया गया। इस तरफ से ही दुश्मनों ने भारत पर हमला किया। सुलेमानकी बॉर्डर दुश्मनों के निशाने पर था। दुश्मन साबूना ड्रेन पार न कर सकें। इस उद्देश्य से इस यूनिट को ड्रेन के दूसरी ओर तैनात किया गया। ड्रेन और बॉर्डर के बीच सिर्फ सात किलोमीटर की दूरी थी। दुश्मन धीरे-धीरे भारतीय सीमा में घुसने लगा तो लैफ्टीनेट कर्नल सी. एस. भुल्लर ने एक योजना बनाई। उस योजना मुताबिक दो कंपनियों के साथ सुरक्षा तैनात की गई। योजना अनुसार मध्य से निकलती सडक़ को दो हिस्सों ए और बी में बांटा गया। हवलदार जस्सा सिंह को बी कंपनी में तैनात किया गया। दुश्मन ने अपनी योजना मुताबिक सात सितंबर की रात हमला किया। उस जबरदस्त हमले में एक जवान शहीद हो गया। मगर सेना के वीर जवानों ने दुश्मन को अपनी धरती पर कदम नहीं रखने दिया।
दुश्मन भारतीय जवानों के मुकाबले से घबरा गया, मगर हमले की आदत से बाज नहीं आया। दुश्मन ने हमले की दिशा बदलकर 9 सितंबर को दोबारा हमला किया। दुश्मन ने बी कंपनी पर सुनयोजित हमला किया। हमले के जवाब में हवलदार जस्सा सिंह ने दुश्मन पर गोलियों की बौछार कर दी। जस्सा सिंह की गोलियों की आवाज बंद हुई तो दुश्मन आगे बढऩे लगा। जस्सा सिंह भी आगे बढ़ा और एक बंकर में पहुंच गया। हवलदार जस्सा सिंह को दुश्मनों को मार गिराने का इतना हौसला था कि उसे पता भी नहीं चला कि वह दुश्मन की धरती पर बने पाकिस्तानी बंकर में पहुंच चुका है। यह पता चलते ही दुश्मन जस्सा सिंह पर टूट पड़े, दुश्मन ने धड़ाधड़ गोलीबारी की। जवाब में जस्सा सिंह ने गोलियां दागी, लेकिन बाद में उसकी बंदूक की गोलियां खत्म हो गई। फिर भी जस्सा सिंह ने हौसला नहीं छोड़ा और दोनाली के बट से दुश्मन की भूमि पर दुश्मन चौकी रक्षक को ढ़ेर कर दिया। दुश्मनों को इस बात का पता चला तो वे जस्सा सिंह की तरफ बढ़े। दुश्मनों का बहादुरी से मुकाबला करते हुए जस्सा सिंह के शरीर के तीन हिस्से चोट से ग्रसित हो गए। शरीर से खून की बूंदे गिरती देख जस्सा सिंह घायल शेर की तरह दुश्मनों पर टूट पड़ा। दोनाली के बट और गोलियों का जबरदस्त मुकाबला बन गया। घायल शेर के आगे दुश्मन टिक नहीं पाया। जस्सा सिंह ने तीन दुश्मनों को मौत की नींद सुला दिया, खून से रंगे हाथ आगे बढ़ते गए। दोनाली के बट से हमला जारी रहा जो दुश्मन जस्सा सिंह की तरफ बढ़ा, वह उसकी दोनाली के बट का शिकार बन गया। दो दुश्मनों को ढ़ेर करने के बाद दोनाली जस्सा सिंह के खून से रंग गई। जस्सा सिंह की आंखों में से दुश्मनी का खून टपकता देख दुश्मन के आगे बढऩे की हिम्मत टूट गई। जस्सा सिंह आगे बढ़ा और दुश्मन के हथियारों वाले बक्से तक पहुंच गया। जस्सा सिंह ने उस बक्से को इस तरह बेकार कर डाला कि वे कभी भारत के खिलाफ प्रयोग ही न हो पाये। इतने में भारतीय सेना के अन्य जवान भी जस्सा सिंह के साथ आगे बढ़ते हुये मौके पर पहुंच गए। वहां दुश्मनों के कुछ हथियार बेकार होने से बचे पड़े थे जवानों ने उन्हें कब्जे में ले लिया। कुछ दिन बाद युद्ध समाप्ति की घोषणा हो गई। इस गैलेंट हीरो को बहादुरी के लिये वीर चक्र सम्मान से नवाजा गया।(साभार- कर्नल अनिल शौरी)
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