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Jan 25, 2016

Fazilka Railway Over Brize - Lachhman Dost Fazilka


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Jul 13, 2015

Fazilka-Lachhman Dost -सिर्फ 22 साल के थे बंगले के निर्माणकर्ता वंस एगन्यू


इतिहास
सिर्फ 22 साल के थे बंगले के निर्माणकर्ता वंस एगन्यू
बंगले में शुरू दूसरे सिख एंगलो युद्ध में खत्म हुई दास्तान
लछमण दोस्त
 हार्श शू लेक के मनमोहक नजारों के किनारे 1844 में एक बंगले का निर्माण करवाया गया था। जिसकी धूम दूर-दूर तक रही है। जिस कारण फाजिल्का का नाम पहले बंगला हुआ करता था। बुजुर्ग आज भी फाजिल्का को बंगला के नाम से जानते हैं। इस बंगले का निर्माण करवाया था ब्रिटिश अधिकारी पैट्रिक एलेगजेंडर वंस एगन्यू ने। तब उनकी आयु मात्र 22 साल की थी। उनकी दास्तान बंगले से शुरू होकर दूसरे सिख एंगलो युद्ध में खत्म हो गई।
तीन बातों में था इत्तेफाक
सियासी अफसरों के साथ शहरों को आबाद करना वंस एगन्यू का मनपसंद काम था। वह तीन बातों में इत्तेफाक रखते थे, पहली बात किसी चीज को आरंभ करने के लिए सही जगह क्या है? दूसरा किन लोगों को मिलना या सुनना चाहिए? उनके जहन में तीसरी बात यह थी कि सब से महत्वपूर्ण कार्य क्या है, जिसे प्राथमिकता के आधार पर किया जाए। इस सोच पर बंगला कस्बा बसाने में उन्होंने प्राथमिकता से काम किया।
वंस एगन्य की दास्तान
वन्स एगन्यू का जन्म 21 अप्रैल 1822 को नागपुर में पैट्रिक वन्स एगन्यू के घर कैथराइन फरेसर की कोख से हुआ। उनके पिता मद्रास आर्मी में लेफ्टीनेंट कर्नल थे। 1841 में बंगाल सिविल सर्विस में ज्वाइंन करने वाला युवा वंस एगन्यू 1844 में फाजिल्का में बंगले का निर्माणकर्ता बन गया। उन्होंने बहावलपुर के नवाब मोहम्मद बहावल खान (तीसरा) से जगह ली और हार्श शू लेक के किनारे बंगले का निर्माण करवाया। जहां हर सरकारी व गैर सरकारी काम होने लगे। दूरदराज से लोग यहां न्याय पाने के लिए आने लगे। सिरसा के अलावा मालवा, सतलुज राज्य की बैठकें तक यहां होने लगी। वंस एगन्यू को 13-12-1845 को फिरोजपुर का अतिरिक्त चार्ज दिया गया। जहां वह 23-02-1846 तक रहे।
मुलतान में खत्म हुआ जिंदगी का सफर
फिर उन्हें लाहौर भेज दिया गया। जब मुलतान के दीवान मूल राज ने पद से इस्तीफा दिया तो मजबूती के लिए ब्रिटिश साम्राज्य ने काहन सिंह को मुलतान का सूबेदार घोषित कर दिया। उनकी सहायता के लिए बंगला के निर्माणकर्ता वंस एगन्यू और विलियम एंडरसन को साथ भेजा गया। मगर नया सूबेदार बनाने से मुलतानी सैनिक खुश नहीं थे। उन्होंने विद्रोह शुरू कर दिया। जब वंस एगन्यू और विलियम एंडरसन के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना विद्रोह दबाने के लिए मुलतान की ओर बढ़ी तो सिखों ने वंस एगन्यू और विलियम एंडरसन को बृज पार करते समय घोड़े से नीचे उतार लिया। दोनों को बुरी तरह से मारपीट करके जख्मी कर दिया गया। जख्मी वंस एगन्यू व विलियम ऐंडरसन को ब्रिटिश सैनिक पनाह यानि ईदगाह में ले गए। 20 अप्रैल 1848 की शाम सिखों का एक झुंड वंस एगन्यू और विलियम एंडरसन की पनाहगाह में घुस गया और दोनों को मार दिया।



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फाजिल्का में मेहंदी हसन ने गाई थी पहली गज़ल
-लछमण दोस्त-
 पाकिस्तान में मशहूर रहे गज़ल गायक और प्ले बैक सिंगर मेहंदी हसन का जन्म राजस्थान में हुआ और भारत विभाजन के बाद वह परिवार सहित पाकिस्तान चले गए। तब वह 20 वर्ष के थे।  फाजिल्का के साथ उनकी एक अहम याद जुड़ी है। जिस कारण यहां के गायक आज भी उन्हें याद करते हैं। मेहंदी हसन खान का जन्म 18 जुलाई 1927 को हुआ और भारत-पाक में किंग ऑफ गज़ल के नाम से प्रसिद्ध रहे। उनका निधन 13 जुलाई 2012 को कराची के एक अस्पताल में हुआ था।
यह जुड़ी है याद
मेहंदी हसन को बचपन में ही गाने का शौंक था। उनके पिता उस्ताद अजीम खान प्रसिद्ध गायक थे। बात 1935 की है, जब वह फाजिल्का के बंगले (मौजूदा डीसी हाऊस) में अपने पिता के साथ एक प्रोग्राम करने के लिए आए थे। यह उनकी पहली प्रोफॉमेंस थी। इस दौरान मेहंदी हसन ने ध्रूप्द एवं ख्याल ताल में गज़ल गाई थी। इसका खुलासा संगीत पर पुस्तकें लिख चुके व फाजिल्का के गज़ल गायक डॉ. विजय प्रवीण ने किया है।
इसलिए आए थे फाजिल्का
मेहंदी हसन के पिता राज गायक बनना चाहते थे। उन्होंने इस बारे में जिला सिरसा के डीसी जे.एच. ओलिवर से इस बारे में निवेदन किया था। ओलिवर उनकी प्रोफॉर्मेंस सुनना चाहते थे ताकि इस बारे फैसला लिया जा सके। इस कारण मेहंदी हसन व उनके पिता फाजिल्का आए थे। जहां उन्होंने अपना प्रोफॉर्मेंस दिया। मगर ओलिवर ने उन्हें राज गायक का खिताब नहीं दिया।
25 हजार गाई गजलें
डॉ. विजय प्रवीण ने बताया कि मेहंदी हसन ने 25 हजार से अधिक गज़लें गाई हैं। उन्होंने दो दो राग मिलाकर गज़लों को नया रूप देकर गाया था। इनमें चिराग तूर जलाओ बड़ा अंधेरा है भी एक है।
Lachhman Dost- Fazilka

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बंगला के निर्माण से 41 साल पहले फाजिल्का आए थे दौलत राव सिंधिया

इतिहास के झरोखे से 
बंगला के निर्माण से 41 साल पहले फाजिल्का आए थे दौलत राव सिंधिया 
दि पंजाब, नार्थं-वेस्ट फरांटियर प्रॉविन्स एंड कश्मीर से हुआ खुलासा
लछमण दोस्त
हलांकि बंगला (फाजिल्का) का इतिहास 1844 से शुरू हुआ माना जा रहा है। जबकि इसका इतिहास इससे भी काफी पुराना है। इसका खुलासा 1916 में ब्रिटिश अधिकारी डॉवी की ओर से लिखी गई पुस्तक दि पंजाब, नाथ-वेस्ट फरांटियर प्रॉविन्स एंड कश्मीर से हुआ है। जिसमें बताया गया है कि दौलत राव सिंधिया बंगले के निर्माण से 41 वर्ष पहले फाजिल्का पहुंचा था। उस समय यहां सतलुज दरिया था और आसपास जंगल ही जंगल थे। मगर इस बीच कुछ गांव भी बस चुके थे।
1803 में आया था सिंधिया
जेम्स डॉवी ने पुस्तक में लिखा है कि ब्रिटिश अधिकारी वेलेस्ले के मार्की ने भारत में सुप्रीत पॉवर बनने की सोची। उधर नेपोलियन ने भी भारत पर हमला करने की सोची हुई थी। इधर पंजाब में दौलत राव सिंधिया ने हमला कर दिया, लेकिन वह नाकाम रहा। इसके बाद वह 1803 में फाजिल्का (यह नाम बाद में रखा गया है) पहुंचा और यहां से दिल्ली के लिए कूच किया। पुस्तक में लिखा गया है कि उस समय फाजिल्का पर किसी का कंट्रोल नहीं था।
ओलिवर भी आया था
नंबरदार मिया फ’जल खां वट्टू से 144 रूपये 8 आन्ने में भूमि खरीदकर फाजिल्का शहर बसाने वाला ब्रिटिश अधिकारी फाजिल्का के लिए विकास दूत व प्रभावशाली अधिकारी माना जाता था। शहर के बीचो बीच ओलिवर गंज मार्केट (मेहरियां बाजार) का निर्माण करवाना वाला ओलिवर जिला सिरसा में कस्टम अधिकारी था। हिस्टरी ऑफ सिरसा टाऊन में लेखक जुगल किशोर गुप्ता ने ओलिवर के हवाले से लिखा है कि उस वक्त फाजिल्का में क्षेत्र सुरक्षित नहीं था। यहां से गुजरना खतरे से खाली नहीं था। चोर, डाकू, शेर और सांप जैसे जंगली जानवारों का खौफ था। मलोट रोड और फिरोजपुर रोड पर लोग टोलियां बनाकर गुजरते थे। उस समय बंगले का निर्माण नहीं हुआ था।
बहावलपुर के नवाबों ने किया कंट्रोल
बंगले के निर्माण से पहले यहां बहावलपुर के राजाओं अपना कंट्रोल जमा लिया। ब्रिटिश अधिकारी वंस एगन्यू जब फाजिल्का पहुंचा तो उससे बहावलपुर के नवाब मुहम्मद बहावल खान से जगह ली और हॉर्स शू लेक किनारे बंगले का निर्माण किया। जहां लोग न्याय पाते थे। इस बंगले के कारण फाजिल्का का नाम बंगला पड़ गया।
फाजिल्का में नहीं थी पुलिस पोस्ट
ओलिवर जिला भटियाणा (सिरसा) के सहायक अधिक्षक बने और उनकी फाजिल्का में 1846 में तैनाती की गई। तब फाजिल्का, अरनीवाला और अबोहर तहसील में पुलिस पोस्ट खाली थी। अरनीवाला-जोधका में एक कस्टम पोस्ट थी। ओलिवर ने भूमि खरीदकर फाजिल्का शहर बसाया। 1857 में भारत की आजादी के लिए चले आंदोलन को फाजिल्का में ओलिवर ने ही दबाया था।
बीकानेर के महाराजा से संबंध
ओलिवर के बीकानेर के महाराजा से अ‘छे संबंध हैं। इस बात का पता बीकानेर के राजा की ओर से ओलिवर को लिखे गए पत्रों से इसका खुलासा हुआ है।

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Jul 4, 2015

village in Fazilka


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M.R.govt College Fazilka - Lachhman Dost Fazilka


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Jun 6, 2014

Fazilka Clock Tower - 6 June 1939 Clock towers were placed at the city centres in Fazilka and Lyallpur (Now known as Faisalabad). Both city centres were designed by Captain Poham Young, to imitate the Union Flag when seen from above, with eight roads to the main markets radiating from a centre with a large clock tower. The cities of Fazilka and Lyallpur both came into existence between 1840 and 1880. Layallpur Clock Tower was built by the British Lieutenant Governor of the Punjab, Sir James Broadwood Lyall, for whom it was originally named Lyallpur. Fazilka Clock Tower was built in the memory of a famous philanthropist of Fazilka, Ram Narayan Periwal, by Rai Sahab Madan Gopal Periwal and Shopat Rai Periwal. The Fazilka clock tower, at an approximate height of 95 feet (29 m), is the tallest clock tower in North India. Fazilka Clock Tower was made by contractor Sh. Narain Singh under the supervision of Mohd. Ch Abdul Shakoor Kareem Malak, who was the sardar of the region. It was inaugurated by Mr. M.R. Sachdev, ESQ, ICS, the then Deputy Commissioner of Ferozepur on June 6, 1939 in the presence of Sheepseks Asquire ICS DC Jalandhar and Rai Sahab Lala Vidyadhar PCS SDO of Fazilka. The tower was designed by Architect S.D. Wasan. Fazilka and Faislabad Clock towers were both inaugurated on the same day. Previously it was maintained by the Periwal Trust but since 1991, the Municipal Council of Fazilka has been responsible. http://en.wikipedia.org/wiki/Main_Page Photo by Lachhman Dost


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