punjabfly

This is default featured slide 1 title

Go to Blogger edit html and find these sentences.Now replace these sentences with your own descriptions.This theme is Bloggerized by Lasantha Bandara - Premiumbloggertemplates.com.

This is default featured slide 2 title

Go to Blogger edit html and find these sentences.Now replace these sentences with your own descriptions.This theme is Bloggerized by Lasantha Bandara - Premiumbloggertemplates.com.

This is default featured slide 3 title

Go to Blogger edit html and find these sentences.Now replace these sentences with your own descriptions.This theme is Bloggerized by Lasantha Bandara - Premiumbloggertemplates.com.

This is default featured slide 4 title

Go to Blogger edit html and find these sentences.Now replace these sentences with your own descriptions.This theme is Bloggerized by Lasantha Bandara - Premiumbloggertemplates.com.

This is default featured slide 5 title

Go to Blogger edit html and find these sentences.Now replace these sentences with your own descriptions.This theme is Bloggerized by Lasantha Bandara - Premiumbloggertemplates.com.

Jul 8, 2018


 जय हिन्द 
सर झुक गया इस परिवार के आगे - जिन्होंने कारगिल के शहीद बलविंदर सिंह (फाजिल्का) की याद को ताजा रखने के लिए शहीद बलविंदर सिंह फाजिल्का स्थित घर में एक अलग कमरा बनाया है - जिस में शहीद के बचपन से लेकर शहीदी तक हर याद को सजा क्र रखा है - बचपन में खेलने वाला कैरम बोर्ड, सर्टिफिकेट , पुरस्कार , सेना की वर्दी और शरीर में लगी दुश्मन की दो गोलिया - शहीद की भाभी रोजाना कमरा साफ़ करती है - अगरबत्ती जलती है - सेंट की खुशबू फैलती है - शहीद को आराम देने के लिए उस का बेड साफ़ करती है - शहीद के पीने के लिए ताजा पानी, २४ जानते बिजली का पंखा चलता है, बल्ब जलता है , माँ, भाई, भाभी पूजा करते हैं - बच्चे स्कूल जाएँ तो माथा तक कर जाते है - कोई घर से बाहर जाये तो सर झुका कर जाता है - फिर वो शहीद नहीं - जिन्दा है - फर्क यह है कि वो नज़र नहीं आता - क्योंकि वो सो रहा है भारत माता की गोद में - शहीद की माता की दिलेरी देखो - उस ने अपने एक और बेटे को भारतीय सेना में भर्ती करवा दिया - पोते को भी सैनिक बनाया - ताकि दुश्मन पर पेनी नगाह रखें - बदला ले और भारत माता की इज्जत को बरकरार रखें                                                      - सल्यूट और सल्यूट उस परिवार को- 

शहीद की वर्दी

शहीद ने जो गोली सीने पर खाई

सर्टिफिकेट
शहीद का कमरा 
शहीद की माता और भाभी 
                                                                           -
                                                           
शहीद का बेड
LACHHMAN DOST  FAZILKA  99140-63937





Share:

Jul 7, 2018

List of Coins found at various sites in the Fazilka

ਫਾਜ਼ਿਲਕਾ ਵਿਚ ਪਾਈਆਂ ਗਈਆਂ 16-17ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੀਆਂ ਮੋਹਰਾਂ 
Fazilka ਵਿਚ ਪਹਿਲਾਂ ਵੀ ਮਿਲ ਚੁਕੇ ਹਨ ਪੁਰਾਣੇ ਸਿੱਕੇ 
------ 
List of Coins found at various sites in the Firozpur District.(Now Fazilka Distt.)
Tehsil Site Coins Firozpur Channar A brass tankah(forced currency) of Muhammad-Bin-Tuglaq, struck atDelhi.
Fazilka Abohar ‘Bull and horseman’ coins (king 
of Ohind about A.D.1000), one of Prithvi Raj, one of Alaud-Din-Muhammad Shah of Delhi, coins of Delhi Sultans (Muhammad-Bin-Sam, Shamas -ud-Din-Altutmish,, Balban, Jalal-Ud-Din Firoz, Ala-Ud-Din Muhammad, Muham-mad-Bin-Tughlaq and Firoz Shah Tughlaq). Zira Janer Some coins were found, but the 
see could not be obtanied for identifica tion. Fazilka - Punjabrevenue.nic.in punjabrevenue.nic.in/gazfzpr3.htm
Share:
                                            फाजिल्का में आठवें स्थान पर था अरोड़ा कबीला
       जिला सिरसा में अरोड़ा कबीला का आठवां स्थान था और उनकी संख्या 5554 थी जो कि दो फीसदी थी। 407 सिक्ख और बाकी हिन्दू थे। हिंदू अरोड़ों को मोना कहा जाता था। अरोड़ा सिक्ख को सेव करने वाले सिक्ख थे, जो श्री गुरू नानक देव जी को मानते थे। शेव सिक्ख पंजाबी कबीला था। जो साधारण पंजाबी लहजे में पंजाबी बोलते थे। ऐसे लगता था कि यह देश के उत्तर और सतलुज के पश्चिम क्षेत्र की तरफ से आए थे। यह पंजाब के पश्चिम वाले भाग में ज्यादा थे। कई इलाको में कुल जनसंख्या का दस फीसदी थे। जन्म से बानियों की तरह व्यापारी थे। उनके जैसा ही अहम स्थान सोसायटी मे रखते थे। फाजिल्का तहसील में इन्होंने बानीयों की जगह ली और व्यापार का अच्छा हिस्सा अपने हाथ में ले लिया। 2/3 अरोड़ा गांवों में रहते थे। वह खुद को रोड़ा या अरोड़ा कहलाना ज्यादा पसंद करते थे। वह खुद को असली तौर पर राजपूत कहते थे। यह कौम से अलग होने का कारण बताते हैं कि जब परशुराम राजपूतों को मार रहा था तो परसुराम के पूछने पर कि तुम राजपूत हो तो बताया कि नहीं, वह अरोड़ा हैं। उस के बाद वह अरोड़ा कहलाने लगे। कौम दो भागों में बंटी हुई थी। उत्तरी अरोड़ा, जिन की महिलाएं हाथी दांत की लाल चूडिय़ां पहनती थी। दूसरे दक्षिण अरोड़ा, जिनकी महिलाएं हाथी दांत वाला सफेद चूड़ा पहनती हैं। जो उत्तरी अरोड़ा थे, वह आगे दो भागों में बंटे हुए थे। 12 गोत्र और 52 गोत्र और दक्षिण अरोड़ा दाहड़ा और दक्खना धैण। 12 गोत्र वाले अरोड़ा लडकियों की शादी 52 गोत्र वालो मे नहीं करते थे, लेकिन उनकी लड़कियां अपने घर ले आते थे। दक्खना धैण दाहडिय़ा के घर से लडक़ी ले लेते थे। मगर देते नहीं थे। सिंध और बहावलपुर के लोग यहां बसे थे। अरोड़ा पश्चिम पंजाब से आए थे जो अमीर वर्ग था। कुछ शिकारपुर से आए। सिंध मुलतान से कई फर्में आई और उन्होंने ब्रांचें खोली। इनकी यह खासियत भी थी कि शहर की हर गतिविधियों में भाग लेते थे। यहां के सभी लोग प्यार और एकता के साथ रहते थे। (LACHHMAN DOST- FAZILKA)

                                       The eighth place in Fazilka was the Arora tribe
       Arora tribe was the eighth place in district Sirsa and its number was 5554, which was two percent. 407 Sikhs and the rest were Hindus. Hindu Aurora was called Mona. Arora was a Sikh who saved, who believed in Shri Guru Nanak Dev ji. Shev Sikh was a Punjabi tribe. Who spoke Punjabi in simple Punjabi accent. It seemed that it came from the north side of the country and from the west region of Sutlej. It was more in the western part of Punjab. In many areas there were ten percent of the total population. There were traders like Banei from birth. Keeping the same importance as his in the society. In Fazilka tahsil, he took the place of the banian and took a good share of business. 2/3 Arora lived in the villages. He liked to call himself a baroda or aurora. He actually called himself Rajput. It explains the reason of separation from the community when Parshuram was killing Rajputs, then asked Parasuram if you are a Rajput, he did not say that he is Aurora. After that he started calling Arora. The party was divided into two parts. Northern Arora, whose women wear red elephants of elephant teeth. Second South Aroras, whose women wear white elephants with ivory. The northern Aroras were divided into two parts. 12 tribes and 52 tribes and South Arora Dahra and Dakhaan dain Arora girls of 12 tribes did not marry in 52 tribes, but their girls used to bring her home. The south used to take the girls from the house of Dahdya. But they were not giving up. The people of Sindh and Bahawalpur were settled here. Arora came from West Punjab, which was a rich class. Some come from Shikarpur Many firms came from Sindh Multan and they opened the branches Their specialty was that they used to participate in every activity of the city. All the people here lived with love and unity.

Share:

Jul 6, 2018

                                     दास्तान-ए-वट्टू: हवेली से पहुंचा फाजिल्का वट्टू कबीला
         ब्रिटिश साम्राज्य में भटियाणा (जिला सिरसा) के सहायक सुपरिटेडेंट जे. एच. ओलिवर को फाजिल्का शहर बसाने के लिए भूमि बेचने वाले मुसलमान नंबरदार मिया फज़ल खान वट्टू व अन्य वट्टू परिवार चंद्रवंशी राजपूत का एक कबीला था। मगर वट्टू सन् 1882 से 16 पीढ़ी पहले राजा खीवा के समय मुसलमान बन गए। खीवा हवेली (अब पाकिस्तान में) का राजा था। हवेली में लक्खा वट्टू नाम का एक मशहूर मुस्लमान रहता था। वट्टू वहां से सतलुज दरिया पार करके जिला मिंटगुमरी में आकर बस गया। उनका ही एक परिवार मिंटगुमरी से फाजिल्का के उत्तर की तरफ 16 मील दूर गांव बग्घेकी (जलालाबाद के निकट) आकर बस गया जो दक्षिण की तरफ फुलाही से 70 मील की दूरी पर था। बग्घेकी के उत्तर की तरफ डोगर जाति और दक्षिण की तरफ जोईऑस जाति के लोगों का कबीला बसता था। उधर वट्टू जाति के कई अन्य लोग हवेली के गांव राणा झंग के निकट भी बसे हुए थे। यह गांव राणा वट्टू के नाम पर बसा हुआ था। वट्टू वहां से चार पांच पीढ़ी पहले फज़ल खां वट्टू, राणा और दलेल के नेतृत्व में सतलुज दरिया के इस इलाके में आकर बस गए और यहां बोदला जाति के मुसलमानों के पड़ोसी बन गए। उस समय यह इलाका आबाद नहीं था। चारों ओर धूल ही धूल थी। पूर्व समय में वट्टू धार्मिक गुरू थे। उनका कद छोटा और पतला था। उनके नैन नक्ष तीखे थे। पतले होंठ व छोटे नाक वाले वट्टू जाति के मुसलमानों की भाषा मुस्लिम पंजाबी थी। जिस में नाक से बोले जाने वाले व्यंजन ज्यादा थे। मगर देखने में अपने पड़ोसी बोदला परिवारों से सुंदर थे। वह किफायती नहीं थे। जंगल किनारे बसे होने के कारण उनमें साहस की भावना की कमी नहीं थी। वे परिश्रमी थे और परिश्रम से उन्होंने रेतीले इलाके को आबाद कर लिया। उनके परिश्रम से यहां रेतीली धरती सोना उगलने लगी और वट्टू कृषि क्षेत्र से जुड गए। यहां बसने के बाद उनके बोदला जाति के मुसलमानों से संबध गहरे हो गए। वट्टू सतलुज दरिया के दोनों हिस्सों से जिला फिरोजपुर से जुड़े हुए थे। इनके आसपास चिश्ती, नाईपाल, भट्टी और गुज्जर भी बसे हुए थे। वट्टूओं की अधिकतर जाति आगे और शाखाओंं में बंटी हुई थी। वट्टू एक पूर्वज की ओर से थे। पूर्व समय में यहां उनकी 10-12 पीढिय़ां निवास करती थी। मगर कुछ समय बाद उनकी कुछ पीढ़ीयां वापस चली गई। यहां 1882 तक उनकी सिर्फ तीन-चार पीढ़ीयां ही रह गई। जो पीढिय़ां बाकी रह गई। उनमें ज्यादातर गांव लाधुका, मुहम्मदके और सैदोके में बसी हुई थी। इन गांवों को वट्टूओं ने अपना नाम दिया। ये गांव ही उनके हैड चर्टर बन गए। इसके अलावा सुक्खा के नाम पर गांव सुखेरा और कालो के नाम पर गांव कालोके बस गया। 1911 की जनगणना अनुसार जिला फिरोजपुर में इनकी संख्या 9732 थी। (LACHHMAN DOST FAZILKA)


                                                Dastan-e-Wattu: Fazilka Wattu Kabila from Haveli
         In the British Empire J. Assistant Superintendent of Bhatiana (District Sirsa) Muslim naadder Mia Fazal Khan Wattu, who sells land to settle down Hoshiarpur town, and a Vatu family, was a tribe of Chandravanshi Rajput. But Watoo became a Muslim during the King Killa, 16th generation before 1882. King of the Kiwi Haveli (now in Pakistan). A renowned Muslim named Lakkha Vatu lived in the mansion. Vatu crossed the Satluj river crossing and settled in the district of Mintingumari. One of his family migrated from Mintgumari, 16 miles away to the north of Fazilka, near the village Baggaikei (near Jalalabad), which was 70 miles away from Phulahi on the south side. Dogger caste on the north side of Baggeki and the tribe of the Zoose caste on the south used to be inhabited. On the other side, many other people of the Vatu caste were also living near the village of Rane Jhang of Haveli. This village was named after Rana Vatu. Vatu settled in this area of ​​Satluj Dariya under the leadership of Fazal Khan Vatu, Rana and Dellal, four to five generations before that and here he became a neighbor of the Muslims of Bodla caste. At that time the area was not populated. The dust around was dust itself. In earlier times, Vatu was a religious teacher. His stature was small and thin. Their nan naks were sharp. The language of Muslims of the Vatu caste with thin lips and small noses was Muslim Punjabi. In which nose-fed dishes were more. But in view of the neighboring Bodala families were beautiful. He was not economical Due to being settled on the banks of the forest, they lacked the sense of courage. They were hard-working and by diligence they settled the sandy terrain. From his hard work, the sandy land began to flutter and Wattu joined the agriculture sector. After settling down here, his relationship with the Bodolas of Muslims grew deeper. Vattu was connected to the district Firozpur from both parts of Satluj Dariya. Chishti, Naipal, Bhatti and Gujjar were also settled around them. Most of the castes of Vatu were divided further into branches. Vatu was from an ancestor. In earlier times, he used to live 10-12 generations. But after some time some generations of them went back. It remained only three or four generations until 1882. Generations left Most of them were settled in the villages of Ladkuka, Mohammedke and Sedoke. Vatu gave their names to these villages. These villages became their head charters. Apart from this, village Keloke has been settled in the name of village Sukhera and Kalo in the name of Sukkha. According to the 1911 census, their number in the district Firozpur was 9732.

Share:

Jul 5, 2018

बाबा भूमण शाह की लक्खा वट्टू पर रहमत

      पाकिस्तान में एक गांव है कुतुबकोट। जो मुसलमान लक्खा वट्टू की जागीर थी। एक दिन लक्खा वट्टू ने कोई अपराध कर दिया। जिस कारण लाहौर के सूबेदार ने उसे लाहौर जेल में बंद कर दिया। बाबा भूमण शाह जी की ख्याति सुनकर लक्खा वट्टू की माता बख्तावर बेगम अपने कुछ रिश्तेदारों को साथ लेकर बाबा भूमण शाह जी के धूणें पर गई और रो कर विलाप करने लगी। बख्तावर ने बाबा जी से प्रार्थना की कि आप मेरे बेटे लक्खा वट्टू को लाहौर की जेल से छुड़ा दें तो आपकी आजीवन ऋणी रहूंगी। बाबा जी मुस्कारा कर बोले, जहां पर कुतुबकोट गांव बसा है, वह मेरे पिछले जन्म की तपोभूमि है। तुम्हारे बेटे को तो मैं छुड़वा दूंगा, लेकिन आपको कुतुबकोट गांव छोडक़र कहीं दूसरी जगह जाकर बसना होगा। कुतुबकोट में पहले की तरह लंगर आदि चलेगा और वह वहां पर तप किया करेंगे। बख्तावर बेगम ने शर्त मान ली। चौथे दिन ही लक्खा वट्टू जेल से छूट गया और वापस आ गया। लक्खा वट्टू ने अपनी मां और रिश्तेदारों को बताया कि एक साधु फकीर रात के वक्त जेल के कमरे में प्रकट हुआ और प्रेम व करूणा से बोला, मैं तुम्हें लेने आया हूं, तुम्हारी माता बहुत परेशान है। बाबा जी की कृपा से मेरे पैरों की बेडिय़ां खुल गई। मैं बाबा जी के पीछे-पीछे चलने लगा और घर पहुंच गया, लेकिन साधु गायब हो गया। अगले दिन बख्तावर बेगम लक्खा वट्टू को लेकर बाबा भूमण शाह के धूने पर गई। जहां लक्खा वट्टू ने बाबा जी को पहचान लिया। इसके बाद बख्तावर बेगम ने अपने कबीले को इकट्ठा किया और गांव खाली करने के लिए उनको राजी कर लिया। उस समय सबसे पहले कार सेवा के रूप में पांच एकड़ भूमि दान कर दी। बातचीत दौरान उनके एक रिश्तेदार कुतुबदीन व ताजदीन के कहने पर गांव कुतुबदीन मे एक विशेष स्थान खोदा गया, जहां बाबा भूमण शाह के पूर्व जन्म के धूने के स्थान पर चिमटा व कमंडल मिले। इसके अलावा देगचे, कड़ाहे और तवे भी मिले। तब ताजदीन के मन में लालच आ गया और उसने बाबा जी को ललकारा तो बाबा जी के चमत्कार से ताजदीन के सिपाही आपस में ही लडऩे लग गए। आखिर ताजदीन ने हार मानी और बाबा जी के पैरों में गिर गया। इसके बाद कबीला बख्तावर बेगम के नेतृत्व में वहां से सात किलोमीटर दूर जाकर नयां गांव बसाया। जिसका नाम हवेली लक्खा वट्टू पड़ा और गांव कुतुबकोट धीरे-धीरे बदलकर बाबा भूमण शाह गांव के नाम से पुकारा जाने लगा। जो पाकिस्तान के पंजाब प्रदेश में स्थित है। (Lachhman Dost Fazilka)
Baba Bhuman Shah's Lakkha wattu on Rahmat
      A village in Pakistan is Qutubkot. The Muslim who was the manor of Lakkha Vatu. One day Lakkha Wattu committed no crime. Because of which the Lahore subedar locked him in Lahore jail. After hearing the fame of Baba Bhuman Shah ji, the mother of Lakkha Vatu, Bakhtawar Begum, along with some of his relatives went to the dust of Baba Bhuman Shah ji and started crying and crying. Bakhtwar prayed to Baba that if you rescue my son Lakkha Vatu from Lahore's jail, you will be indebted for your lifetime. Baba ji murmured, where Kutubkot village is situated, it is the pastureland of my previous birth. I will get rid of your son, but you have to move to Kutubkot village and go somewhere else. Like an anchor in the first place, Kutubkot will run there and he will do penance there. Bakhtav Begum accepted the condition. On the fourth day Lakkha Vatu got out of jail and came back. Lakkha Vatu told his mother and relatives that a sadhu fakir appeared in the prison room at night and talked to love and compassion, I have come to take you, your mother is very upset. With the grace of Baba ji opened my legs I started following Baba ji and reached home, but the monk disappeared. On the next day, Bakhtwar went to Begum Lakha Vatu on the smoke of Baba Bhuman Shah about Begum Lakkha Vatu. Where Lakkha Vatu recognizes Baba ji. After this Bakhtawar Begum assembled his tribe and persuaded him to evacuate the village. At that time, first donated five acres of land as a car service. During the conversation, on the request of one of his relatives Qutbuddin and Tajdin, a special place was erected in the village Qutbuddin, where there was a tweezers and kamandal in place of Baba Bhuman Shah's birth place. Apart from this, there is also Durga, Kadah and Taane. Then, in the mind of Tajdin, Greed came and he challenged Baba ji, then the soldiers of Tajdin started fighting with each other. After all, Tajdin defeated and fell on Baba ji's feet. Subsequently, under the leadership of Kabit Bakhtavar Begum, a new village settled seven kilometers away from there. The name of which was Haveli Lakkha Vatu, and the village Kutubkot gradually started to be called by the name of Baba Bhuman Shah Village. Which is located in the Punjab state of Pakistan

Share:

Dec 11, 2017

To complete his hobby, Krishan Taneja (Fazilka) has collected the foreign currency




शौक ने बनाया दुर्लभ सिक्कों का सरताज

फाजिल्का के कृष्ण तनेजा के पास हैं कई देशों की करंसी

फाजिल्का: अपना शौक पूरा करने के लिए उसने देश विदेश की करंसी एकत्र की है। इस काम में उन्हें करीब 20 साल लग गए और इस करंसी पर हजारों रूपये खर्च किए गए। हैरानी की बात है कि उसने 16वीं सदी से लेकर अब तक की भारतीय करंसी और कई देशों की करंसी ढूंढ निकाली है। उसके पास छोटे पैसे से लेकर कई बड़े नोट तक एकत्र किए हैं। यह करंसी फाजिल्का के गांधी नगर मौहल्ला निवासी कृष्ण तनेजा सुपुत्र स्व. चानन लाल के पास सुरक्षित है। एकत्र की गई करंसी के लिए लोग लाखों रूपये देने को तैयार हैं, लेकिन शौंक को लेकर कृष्ण तनेजा इन्हें बेचने को राजी नहीं हैं।
देवी देवताओं के अलावा विभिन्न देशों के सिक्के
कृष्ण तनेजा के पास मुगलकालीन रियासत की अशर्फीयों, ईस्ट इंडिया कंपनी के अलावा उनके गवालियर के महाराजाओं के समय के सिक्के, स्वाई मान सिंह, श्री जीवाजी राय छिन्दे आदि राजाओं के सिक्को अलावा हिन्दु देवी देवताओं शिव पार्वती, राम दरबार, शिव परिवार, हनुमान जी, श्री गुरू नानक देव जी(1804) जिस पर बाला और मरदाना की फोटो भी है और उस पर सत करतार लिखा हुआ है, सहित कई धार्मिक गुरूओं के सिक्के हैं। उनके पास आधा पैसा से लेकर दस रूपये तक के नोट भी हैं। कृष्ण तनेजा के पास अमरीका, कनेडा, अरब अमीरात, श्री लंका, पाकिस्तान, नेपाल, नाईजीरिया, सिंगापुर, साऊथ अफ्रीका, इन्डोनेशिया, बैल्जियम, यूरोप, हांगकांग, आस्ट्रेलिया, शिलिंग, फ्रांस, जर्मनी के सिक्के  हैं।
क्या कहते हैं कृष्ण तनेजा
कृष्ण तनेजा के पास वो तकरीबन हर तरह का सिक्का और नोट है, जो भारत में शुरू हुआ है। इसके अलावा तकरीबन हर देश के नोट या सिक्का है। जिसे उन्होंने विभिन्न स्थानों पर घूम कर इक्_ किया है। उन्होंने बताया कि यह उनका शौंक है और वह इन सिक्कों रूपयों की विभिन्न स्थानों पर प्रदर्शनी लगाएगा।
ऐसे पनपा शौंक
बचपन में माता पिता उन्हें जेब खर्च के लिए कुछ पैसे देते थे और वह इन पैसों में से आकर्षित सिक्कों को अपने पास रख लेते थे और बाकी सिक्कों से वह बाजार से सामान खरीद लेते थे। जैसे जैसे उसने अपना होश संभाला तो उसने अपने दोस्तों, रिश्तेदारों से आकर्षित सिक्कों की मांग करनी शुरू कर दी और धीरे धीरे उसने कई तरह के सिक्कों को अपने पास सुरक्षित कर लिया। जिसके बाद उसका शौक विदेशी करंसी को एकत्र करने की तरफ बढ़ा और उन्हें जहां से भी विदेशी करंसी मिली, उसे पैसे देकर खरीद लिया। आज उसके पास कई सदियों के विभिन्न देशों की करंसी मौजूद है।
--------- 
Fazilka: To complete his hobby, he has collected the foreign currency. In this work he took nearly 20 years and thousands of rupees were spent on this currency. Surprisingly, he has discovered the currency of the Indian currency and many countries since the 16th century. From small money to many big notes collected from MR. Krishan Taneja, R/O Gandhi Nagar Mauhalla Fazilka. People are ready to give millions of rupees for the collected money, but Krishna Taneja is not willing to sell them to Shank.
Coins of different countries besides gods and goddesses
Besides Krishna Taneja, the Ashrafi of Mughal state, other than the East India Company, coins of the time of Maharajas of his Gwalior, Swai Man Singh, Sri Jivaji Rai Chinde, besides Sikko kings, Hindu deities, Shiva Parvati, Ram Darbar, Shiva Parivar, Hanuman ji , Sri Guru Nanak Dev ji (1804), which also has a photograph of Baala and Mardana, and there is a Sat Kartar written on it, including coins of many religious teachers. They have notes from half way to ten rupees. Krishna Taneja has coins of US, Canada, Arab Emirates, Sri Lanka, Pakistan, Nepal, Nigeria, Singapore, South Africa, Indonesia, Belgium, Europe, Hong Kong, Australia, Shilling, France and Germany.
What is called Krishna Taneja
Krishna Taneja has almost every kind of coin and note, which has started in India. In addition, almost every country has a note or coin. Which he has traveled in different places and has done the same. He said that this is his shoe and he will exhibit these coins and rupees at different places.
Such a flourishing show
In their childhood, parents used to pay some money for their pocket expenses and they used to keep coins drawn from these money, and with the other coins they used to buy goods from the market. As he took his senses, he started demanding coins from his friends, relatives, and gradually he secured many types of coins with him. After which, his interest grew to collect foreign currency and from where he got a foreign currency, he bought it by paying him. Today, he has a currency of various countries for many centuries.
KRISHAN TANEJA FAZILKA 88378-63572 or 92566-12340
Written by LACHHMAN DOST FAZILKA 95309-98999 or 99140-63937


Share:

Definition List

blogger/disqus/facebook

Unordered List

Support