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Dec 25, 2019

आज बरसी पर विशेष -- आई.सी.एस. की नौकरी नहीं चाहिए, देश भक्त हूं और देश के लिए ही काम करूंगा: लाला सुनाम राए


बापू गांधी जी केसादा जीवन, उच्च विचारके सिद्धांत को अपनाए खादी को धारण करने वाले लाला सुनाम राए की बरसी है। ब्रिटिश साम्राज्य में आई.सी.एस. की नौकरी ठुकरा कर स्वतंत्रता संग्राम में कूदने वाले स्वतंत्रता सेनानी लाला सुनाम राय एम.. का जन्म 23 नवंबर 1896 को फाजिल्का में हुआ था। 1918 में मिशन कालेज लाहौर से अंग्रेजी में एम..पास करने वाले लाला जी जिला फिरोजपुर के प्रथम एम.. थे। लाला जी ने अपने जीवन काल में स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के एवज में कभी किसी प्रकार का लाभ लेने का कोई प्रयास अपने जीवन पर्यन्त नहीं किया। लाला जी इस नशवर संसार को छोड़ कर 25 दिसंबर 1959 को ब्रह्मïलीन हो गए।

फाजिल्का में पहली बार जलाई विदेशी वस्त्रों की होली

उन्होंने 1919 के असहयोग आंदोलन में सक्रियता से भाग लिया तथा प्रथम बार जेल यात्रा की। उसके पश्चात उन्होंने कांग्रेस द्वारा चलाए गए सभी आंदोलनों में बढ़ चढ़ कर भाग लिया। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेेने के कारण उन्हें निरंतर अढ़ाई वर्ष तक सेंट्रल जेल मुलतान (पाकिस्तान) में बंदी बन कर रहना पड़ा। जहां कठिन यातनाओं निम्न स्तर के भोजन के कारण उन्हें दमे का रोग लग गया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ही लाला जी पंजाब केसरी लाला लाजपत राय, जलियावाला बाग कांडके नायक डॉ. सतपाल के निकट सहयोगी रहे। स्वतंत्रता संग्राम में लाला जी के नेतृत्व में फाजिल्का में प्रथम बार विदेशी वस्त्रों की एक बड़ी होली जलाई गई। इसके अलावा उन्होंने पत्रकारिता शिक्षक के तौर पर काफी नाम कमाया।याद में स्थापितउनकी स्मृति में वर्ष 1960 में एक परिवार नियोजन केंद्र सिविल अस्पताल के सामने खोला गया था। कालांतर में इस केंद्र को लाला सुनाम राय एम.. मैमोरियल वैल्फेयर सेंटर के रूप में बदल कर सोशल वैल्फेयर सोसायटी फाजिल्का द्वारा संचालित किया जा रहा है। इस केंद्र में जरूरतमंदों के कल्याण हेतु अन्य अनेकों गतिविधियां चलाई जा रही है। इसी के प्रांगण में इस वर्ष 14 अक्तूबर को लाला जी की प्रतिमा का अनावरण किया गया। (Lachhman Dost 99140-63937)
Lala Sunam Rai M.A.


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Nov 28, 2019

जब Mehdi Hassan ने Fazilka में गई थी गजल

           उसके पिता ने राज गायक बनने के लिए पेश की थी प्रोफॉर्मेंस

                                    

पाकिस्तान में मशहूर रहे गज़ल गायक और प्ले बैक सिंगर मेहंदी हसन गजलों के शौकीनों की पहली पसंद रहे हैं। हालांकि मेंहदी हसन का जन्म भारत राजस्थान राज्य के जोधपुर जिले के गांव लूना में 18 जुलाई 1927 को हुआ था। भारत विभाजन तक वह यहां रहे, लेकिन विभाजन के बाद वह पाकिस्तान में चले गए। भले ही वह भारत में 20 साल रहे, लेकिन इस दौरान यहां उन्होंने अपनी कई खट्टी मीठी यादें छोड़ी। भारत पाक सरहद पर बसे शहर फाजिल्का में भी उनकी याद जुड़ी है। तब वह सिर्फ आठ साल के थे। जब वह अपने पिता के साथ फाजिल्का (बंगला) आए थे।
      
मेहंदी हसन को बचपन में ही गाने का शौंक था। उनके पिता उस्ताद अजीम खान प्रसिद्ध गायक थे। बात 1935 की है, जब वह फाजिल्का के बंगले (मौजूदा डीसी हाऊस) में अपने पिता के साथ एक प्रोग्राम करने के लिए आए थे। यह उनकी पहली प्रोफॉमेंस थी। इस दौरान मेहंदी हसन ने ध्रूप्द एवं ख्याल ताल में गज़ल गाई थी। इसका खुलासा संगीत पर पुस्तकें लिख चुके गज़ल गायक डॉ. विजय प्रवीण ने किया है।
    मेहंदी हसन के पिता राज गायक बनना चाहते थे। उन्होंने इस बारे में जिला सिरसा के डी.सी. जे.एच. ओलिवर से इस बारे में निवेदन किया था। ओलिवर उनकी प्रोफॉर्मेंस सुनना चाहते थे ताकि इस बारे फैसला लिया जा सके। इस कारण मेहंदी हसन उनके पिता फाजिल्का आए थे। जहां उन्होंने अपना प्रोफॉर्मेंस दिया। मगर ओलिवर ने उन्हें राज गायक का खिताब नहीं दिया।
गायक मेहंदी हसन की कुछ गजलें।
जिंदगी में तो सभी प्यार करते हैं...
अब के हम बिछड़ के
किसी की आंख का नूर
शिकवा ना कर, गिला ना कर

         Eight-year-old Mehdi Hasan, D.C. Heard of ghazal
Famous singer and playback singer Mehdi Hassan, who is famous in Pakistan, has been the first choice for Ghazals. Though Mehndi Hassan was born on July 18, 1927 in the village Luna of Jodhpur district of Rajasthan state of India. He stayed here till the partition of India, but after partition he went to Pakistan. Even though he stayed for 20 years in India, but during this time he left his many sour sweet memories here. His memory is also included in the city of Fazilka, which is located on the Indian border. Then he was only eight years old. When he came to Fazilka (Bangla) with his father.
    Mehndi Hassan used to sing songs in childhood. His father, Ustad Azim Khan, was a famous singer. The matter is in 1935, when he came to a program with his father at the bungalow (current DC house) of Fazilka. This was his first profomenus. During this time Mehdi Hassan sang the ghazal in Dhruupad and Khayal tal. It has been disclosed by books written by music and by ghazal singer Dr Vijay Praveen.
    Mehdi Hassan's father wanted to become a State singer. He said this about D.C. of Sirsa district. J.H. The request was made from Oliver. Oliver wanted to hear his perception so that the decision could be taken. For this reason Mehndi Hasan and his father had come to Fazilka. Where he gave his proforma. But Oliver did not give him the title of a Raj singer.
Some ghazals of singer Mehdi Hassan
Abb ke hm bichhur ke
Zindgi me to sabhi piyar karte hain. .
Na kisi kee aankh kaa noor
Shikwa naa kar, gila naa kar 
(Lachhman Dost 99140-63937)

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Nov 26, 2019

फाजिल्का: यह रहा सिर्फ 13 माह का विधायक !!!!

Special Envoy Of The Viceroy Of India Visits Sukhera Family To Congratulate On The Glorious Victory In The Elections — with A.C.Macleod - Commissioner Of Jalandhar Division and Mian Bagh Ali Sukhera MLA in Fazilka (Sukhera Lives in Sukhera Basti Abohar.)
क्या आप जानते हं कि जब देश का विभाजन हुआ था तो उस समय फाजिल्का के विधायक कौन थे। बस यही बताना है, मगर यह पहले बता दूं कि उस समय अबोहर क्षेत्र फाजिल्का में था और जलालाबाद विधान सभा नहीं थी, फाजिल्का के गांव बहक बोदला से ममदोट विधान सभा हलका शुरू हो जाता था। खैर, यह बात फिर कभी, फाजिल्का की बात करते हैं। उस समय विधान सभा सीट फाजिल्का मुहम्मदन रूरल थी, यहां चुनाव मार्च में हुए . . . इस सीट पर Unionist Party की तरफ से बाघ अली सुखेरा (सुखेरा बस्ती, अबोहर)  चुनाव लड़े थे। बात 1946 की है। मतदान केन्द्र बना था मुहम्मदन थाना, जहां वोटरों ने मतदान किया। हालांकि उस समय लोगों में आज के चुनावों जितनी रूचि नहीं थी, फिर भी जो वोटर वोट के लिए थाने जाते थे। उनका थाने में नाम, पता लिखा जाता था . . . फिर पूछा जाता था कि आपने किस उम्मीदवार को वोट देनी है . . . सिपाही द्वारा यह एक रजिस्टर पर लिखा जाता था और दूसरे रजिस्टर में दूसरा सिपाही दस्तखत करवाता था या अंगूठा लगवाता था . . . वोटिंग का यह सिलसिला कई दिन तक चलता था। इसका परिणाम 21 मार्च 1946 को आया था। फाजिल्का से बाघ अली को 61.9 प्रतिशत मत मिले और वह एम.एल.. चने गए। 1947 में देश के विभाजन की घोषणा हो गई और उनका कार्यकाल 4 जुलाई 1947 को समाप्त हो गया। वह अबोहर की सुखेरा बस्ती को छोडकऱ मुस्लिम परिवारों के साथ मैकलोडगंज रोड से पाकिस्तान चले गए। (Lachhman Dost 99140-63937)

Fazilka: Here is only 13 months MLA !!!!


   Do you know who was the Fazilka MLA at the time when the country was divided. Just to say this, but let me first state that at that time the Abohar area was in Fazilka and there was no Jalalabad Legislative Assembly, Mamadot Legislative Assembly used to lighten up from Bahak Bodla, village of Fazilka. Well, let's talk about Fazilka sometime again. At that time the Legislative Assembly seat was Fazilka Muhammadan Rural, elections were held here in March. . . This seat was contested by Bagh Ali Sukhera (Sukhera Basti, Abohar) on behalf of Unionist Party and Muhammad Deen Bhandara (Village Diwan Khera) from the Muslim League. It is from 1946. The polling station was built at the Muhammadan police station, where voters voted. Although people were not as interested in today's elections at that time, the voters who used to go to the police station for votes. Name, address were written in his police station. . . Then it was asked which candidate you want to vote for. . . It was written on one register by the soldier and in the other register, the other soldier used to sign or get a thumb. . . This process of voting lasted for several days. The result came on 21 March 1946. Bagh Ali Sukher got 61.9 percent of the votes from Fazilka and he is MLA. gone. The partition of the country was announced in 1947 and his term ended on 4 July 1947. He moved to Pakistan from McLeodganj Road with Muslim families leaving Sukhera township in Abohar.


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Nov 24, 2019

ਜਨਮ ਦਿਨ ਤੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ - ਪੰਜਾਬੀ ਗੀਤਾਂ ਦੀ ਪਵਿੱਤਰਾ ਨੂੰ ਕਾਇਮ ਰੱਖਦੀ ਹੋਈ ਤੁਰ ਗਈ ਇਹ ਗਾਇਕਾ



 ਜੇ ਕਿਸੇ ਕਲਾਕਾਰ ਨੇ ਪੰਜਾਬੀ ਗੀਤਾਂ ਦੀ ਪਵਿੱਤਰਾ ਨੂੰ ਕਾਇਮ ਰੱਖਿਆ ਹੈ ਤਾਂ ਉਹਨਾਂ ਵਿਚ ਸੁਰਿੰਦਰ ਕੌਰ ਦਾ ਨਾਂਅ ਮੋਹਰੀ ਕਤਾਰ ਵਿਚ ਆਉਂਦਾ ਹੈ। ਮਿੱਠੀ ਆਵਾਜ਼ ਕੋਇਲ ਵਰਗੀ, ਤਾਹਿਓ ਸੁਰਿੰਦਰ ਕੌਰ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਕੋਇਲ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਗਾਣਾ ਭਾਵੇਂ ਆਪਣੀ ਭੈਣ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕੌਰ ਨਾਲ 1943 ਵਿਚ ਲਾਹੌਰ  ਰੇਡਿਉ ਤੇ ਗਾਇਆ ਗਿਆ ' ਮਾਵਾਂ ਤੇ ਧੀਆਂ ਰਲ ਬੈਠੀਆਂ ਨੀ ਮਾਏ' ਹੋਵੇ ਜਾਂ ਫਿਰ ਬਾਅਦ 'ਚ ਗਾਇਆ ਲੱਠੇ ਦੀ ਚਾਦਰ ਉੱਤੇ ਸਲੇਟੀ ਰੰਗ ਮਾਹੀਆ, ਆਵੋ ਸਾਹਮਣੇ ਕੋਲੋਂ ਦੀ ਰੁੱਸ ਕੇ ਨਾ ਲੰਘ ਮਾਹੀਆ ... ਹਰੇਕ ਨੇ ਉਸ ਦੇ ਇਸ ਸਫ਼ਰ ਦਾ ਸ਼ਲਾਘਾ ਕੀਤੀ ਹੈ। 

ਸੁਰਿੰਦਰ ਕੌਰ ਦਾ ਜਨਮ 25 ਨਵੰਬਰ 1929 ਨੂੰ ਨੂੰ ਪਿਤਾ ਬਿਸ਼ਨ ਦਾਸ ਦੇ ਘਰ ਮਾਇਆ ਦੇਵੀ ਦੇ ਕੁੱਖੋਂ ਹੋਇਆ। ਛੋਟੀ ਉਮਰੇ ਹੀ ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੀ ਭੈਣ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕੌਰ ਦੇ ਨਾਲ ਉਸਤਾਦ ਇਨਾਇਤ ਹੁਸੈਨ ਅਤੇ ਪੰਡਿਤ ਮਨੀ ਪ੍ਰਸ਼ਾਦ ਤੋਂ ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਸੰਗੀਤ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਲਈ। ਦੋਵਾਂ ਭੈਣਾਂ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਗੀਤ ' ਮਾਵਾਂ ਤੇ ਧੀਆਂ ਰਲ ਬੈਠੀਆਂ ' ਨੇ ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਸਟਾਰ ਕਲਾਕਾਰਾਂ ਦੀ ਲਾਈਨ ਵਿਚ ਖੜਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ। ਦੇਸ਼ ਦੀ ਵੰਡ ਹੋਈ ਤਾਂ ਉਹ ਪਰਿਵਾਰ ਨਾਲ ਗਾਜ਼ੀਆਬਾਦ ਆ ਗਏ। ਫਿਰ ਮੁੰਬਈ ਚਲੇ ਗਏ, ਜਿੱਥੇ ਪਲ਼ੇ ਬੈਕ ਸਿੰਗਰ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਫ਼ਿਲਮ ' ਸ਼ਹੀਦ ' ਲਈ ਗੀਤ -ਬਦਨਾਮ ਨਾ ਹੋ ਜਾਏ ਮੁਹੱਬਤ ਕਾ ਫਸਾਨਾ ਗਾਇਆ। ਸੁਰਿੰਦਰ ਕੌਰ ਦਾ ਵਿਆਹ ਦਿੱਲੀ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਵਿਚ ਪੰਜਾਬੀ ਸਾਹਿੱਤ ਦੇ ਲੈਕਚਰਾਰ ਜੋਗਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਸੋਢੀ ਨਾਲ ਹੋਇਆ।
 ਆਪ ਦੇ ਘਰ 3 ਲੜਕੀਆਂ ਵਿਚੋਂ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਲੜਕੀ ਡੋਲੀ ਗੁਲੇਰੀਆ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਨਾਮਵਰ ਗਾਇਕਾ ਹੈ। 15 ਜੂਨ 2006 ਨੂੰ ਇਹ ਮਹਾਨ ਗਾਇਕਾ ਸਦਾ ਲਈ ਅਲਵਿਦਾ ਤਾਂ ਕਹਿ ਗਈ, ਪਰ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਗੀਤਾ ਉਸ ਦੀ ਯਾਦ ਨੂੰ ਹਮੇਸ਼ਾ ਜਿੰਦਾ ਰੱਖੇ ਹੋਏ ਹਨ।

ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਕੋਇਲ - ਸੁਰਿੰਦਰ ਕੌਰ

ਜੁੱਤੀ ਕਸੂਰੀ ਪੈਰੀਂ ਨਾ ਪੂਰੀ
ਹਾਏ ਰੱਬਾ ਵੇ ਸਾਨੂੰ ਤੁਰਨਾ ਪਿਆ।
ਜਿਹਨਾਂ ਰਾਹਾਂ ਦੀ ਮੈਂ ਸਾਰ ਨਾ ਜਾਣਾ
ਉਹਨੀਂ ਰਾਹੀਂ ਵੇ ਸਾਨੂੰ ਮੁੜਨਾ ਪਿਆ।

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ਨੀ ਇਕ ਮੇਰੀ ਅੱਖ ਕਾਸ਼ਨੀ
ਦੂਜਾ ਰਾਤ ਦੇ ਉਨੀਂਦਰੇ ਨੇ ਮਾਰਿਆ
ਨੀ ਸ਼ੀਸ਼ੇ ਨੂੰ ਤਰੇੜ ਪੈ ਗਈ
ਵਾਲ ਵਾਹੁੰਦੀ ਨੇ ਧਿਆਨ ਜਦੋਂ ਮਾਰਿਆ
ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਕੋਇਲ - ਸੁਰਿੰਦਰ ਕੌਰ
ਸੂਹੇ ਵੀ ਚੀਰੇ ਵਾਲਿਆ ਮੈਂ ਕਹਿਣੀ ਆਂ
ਕਰ ਛੱਤਰੀ ਦੀ ਛਾਂ ਮੈਂ ਛਾਵੇਂ ਬਹਿਣੀ ਆਂ
ਸੂਹੇ ਵੇ ਚੀਰੇ ਵਾਲਿਆ ਫਲ ਕਿੱਕਰਾਂ ਦੇ
ਕਿੱਕਰਾਂ ਲਾਈ ਬਹਾਰ ਮੇਲੇ ਮਿੱਤਰਾਂ ਦੇ

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ਸੜਕੇ ਸੜਕੇ ਜਾਂਦੀਏ ਮੁਟਿਆਰੇ ਨੀ
ਕੰਡਾ ਚੁੱਭਾ ਤੇਰੇ ਪੈਰ ਬਾਂਕੀਏ ਨਾਰੇ ਨੀ
ਕੌਣ ਕੱਢੇ ਤੇਰਾ ਕੰਡਾ ਮੁਟਿਆਰੇ ਨੀ
ਕੌਣ ਸਹੇ ਤੇਰੀ ਪੀੜ ਬਾਂਕੀਏ ਨਾਰੇ ਨੀ

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"ਸ਼ਰਧਾਂਜਲੀ"

ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਕੋਇਲ
ਸਵ. ਸੁਰਿੰਦਰ ਕੌਰ
25 ਨਵੰਬਰ 1929-15 ਜੂਨ 2006
ਲਛਮਣ ਦੋਸਤ  99140-63937

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