हवेली से आया, बंगले में रह गया तनेजा परिवार
हवेली और बंगले में कोई खास अंतर नहीं। हवेली पाकिस्तान में है और बंगला भारत में। दूरी भी कोई खास नहीं, लेकिन इनके बीच जो लकीर खींची गई है, उस लकीर ने यह दूरी काफी अधिक कर दी है। आम आदमी तो वहां पहुंच भी नहीं सकता। अगर किसी ने वहां पहुंचना है तो उन्हें मंजूरी लेनी होगी। भारत विभाजन के समय वहां से कई परिवार आए, उनमें फाजिल्का का सुरजीत सिंह तनेजा का परिवार भी शामिल है।
जो विभाजन से पहले पिपली दहूजियां वाली, लक्खा हवेली तहसील दोपालपुर जिला मिन्टगुमरी में रहते थे। तहसील दोपालपुर। पांच मार्च 1940 को जीवन सिंह के घर माता ठाकरी देवी की कोख से हुआ। सरकारी हाई स्कूल ओकाड़ा रोड लक्खा हवेली से प्राथमिक शिक्षा हासिल करने वाले सुरजीत सिंह तनेजा जब दूसरी कक्षा में थे तो देश का विभाजन हो गया। उन्हें याद है कि उनके स्कूल के हैड मास्टर उस समय असलम अली थे। वह बताते हैं कि उस समय चौथी कक्षा में गुलाब हिसाब पढ़ाया जाता था जो पास करता उसे पटवारी की नौकरी लग जाता था।
S. Surjeet Singh With his Faimly
वहां काम के बारे में वह बताते हैं कि उनके पिता टांगा चलाते थे और उनके चार टांगे थे जो अन्यों को किराये पर दिए जाते थे। वहां से वह हवेली आकर रहने लगे। भले ही उस समय उनकी आयु कम थी, लेकिन उन्हें याद है कि उनका जमाती गुलशन दहूजा थे। जबकि पड़ोसी मौज राए, निर्मल सिंह ठेकेदार, बावा ठेकेदार, सरदार दलीप ङ्क्षसह लक्कड़ मिस्त्री, साधू सिंह, दिवान चंद, इश्नाग राए थे। उनके बड़े भाई सतनाम सिंह व बहन का जन्म वहां हुआ था। बचपन को याद करते हुए वह बतातें हैं कि उन्हें पतंग उडानी, वांझी, खुदो खुंडी, गुल्ली डंडा आदि खेले काफी पंसद थे।
देश का विभाजन हो गया। उन्हें पता चला तो उन्होंने घरेलू समान दो टांगों पर लाद लिया। सुलेमान हैड पर पहुंचे तो तेज बारिश शुरू हो गई। मगर उन्होंने हौंसला नहीं हारा और चलते रहे। वह फाजिल्का पहुंच गए और यहां एक नंबर स्कूल में बनाए गए रिफ्यूजी कैंप में रहने लगे। रिफ्यूजी कैंप की कमान किशोर चंद भठेजा व एसडीएम ने संभाली हुई थी। इस दौरान उनके पिता ने लोगों की काफी सेवा की। फाजिल्का के कुछ ओढ़ जाति के परिवार थे। जो इनके पिता के पास आए और पाकिस्तान छोडक़र आने को कहने लगे। उन्होंने तुरंत टांगा तैयार किया और उन्हें लेकर सुलेमानकी हैड तक पहुंच गए। जहां ओढ़ों ने वास्ता दिया कि उनके पास किराया नहीं है। पिता बोले, कोई बात नहीं, वाहेगुरू की मेहर है।
यहां दो दिन रहने के बाद वह गांव टाहली वाला बोदला के निकट टिंडा वाला खूह पर रूके। वहां उन्हें पांच एकड़ भूमि की पक्की अलॉटमैंट हुई। वहां रहते वक्त उनके पिता ने लोगों में अपना काफी रसूख बना लिया। लोगों ने प्यार दिया और विभाजन के बाद उनके पिता गांव के पहले नंबरदार बन गए। सुरजीत ङ्क्षसह तनेजा बताते हैं कि उन्होंने पढ़ाई प्राइवेट की थी। मास्टर बुद्ध राम से शिक्षा ली। वह बताते हैं कि तब फीस सात रूपये दो आन्ने थी, वह भी नगद नहीं देनी होती थी, उसका राशन लेकर देते थे। वह बताते हंै कि उनकी चौथी कक्षा बोर्ड की परीक्षा थी और दमकल विभाग फाजिल्का के पास परीक्षा हुई थी। पांचवीं डीएवी हाई स्कूल से की। जिसके मैनेजर हरीकृष्ण थे। 1960 में उन्होंने दसवीं कक्षा पास कर ली। इसके बाद 1961 में बेलदार की नौकरी मिल गई, जिसका मासिक वेतन मात्र 60-65 रूपये था।
वह बताते हैं कि उनकी सिलेक्शन अबोहर में हुई थी, जहां व नौकरी के लिए साइकिल पर गए थे। वहीं उन्होंने नौकरी के साथ साथ खालसा हाई स्कूल के बच्चों को निशुल्क टयूशन भी दी। 1963-64 को आईटीआई मोगा से उन्होंने इलैक्ट्रीशयन ट्रेड पास कर ली और 1965 में पब्लिक हैल्थ विभाग फिरोजपुर में बतौर इलैक्ट्रीशियन नौकरी शुरू कर ली। 8 मई 1965 को उनकी शादी फाजिल्का के माछी सिंह फुटेला व पार्वती देवी की पुत्री राजिन्द्र कौर से हुई। उस समय लंडे भाषा काफी प्रसिद्ध थी। वह बताते हैं उन्होंने माता दीन मास्टर से लंडे सीखे। 1965 में बिजली बोर्ड में सहायक लाइनमैन की नौकरी ज्वाइंन की और 1968 में लाइनमैन बने, 1986 में पदोन्नत होकर जे.ई. बन गए। वह बिजली बोर्ड में बेहतर सेवाएं देते हुए 31 मार्च 2000 को घुबाया में सेवानिवृत हो गए। एक बेटा एक बेटी शादीशुद्धा हैं। सुरजीत सिंह तनेजा की धर्मपत्नी की 16 जनवरी 2003 को मृत्यु हो गई। स. तनेजा का नाम समाजसेवियों में काफी आगे है। वह टीएसयू के कानूनी सलाहकार, मानव कल्याण, वृद्ध आश्रम, आईटीआई एसोशिएशन पंजाब सीनियर उपप्रधान, बार्डर ऐरिया विकास फ्रंट, मोनिंग कल्ब, सोशल वेलफेयर सोसायटी के सदस्य हैं और प्रशासन व गुरूद्वारा सिंह सभा की तरफ से उन्हें सम्मानित भी किया जा चुका है। उन्होंने फाजिल्का जिला बनाओ आंदोलन में भी सराहनीय योगदान दिया।
प्रस्तुति-कृष्ण तनेजा- 92566-12340
Writer Krishan Taneja with S. Surjeet Singh Taneja