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Mar 29, 2020

India Partition - हवेली से आया, बंगले में रह गया तनेजा परिवार

                                            हवेली से आया, बंगले में रह गया तनेजा परिवार

हवेली और बंगले में कोई खास अंतर नहीं। हवेली पाकिस्तान में है और बंगला भारत में। दूरी भी कोई खास नहीं, लेकिन इनके बीच जो लकीर खींची गई है, उस लकीर ने यह दूरी काफी अधिक कर दी है। आम आदमी तो वहां पहुंच भी नहीं सकता। अगर किसी ने वहां पहुंचना है तो उन्हें मंजूरी लेनी होगी। भारत विभाजन के समय वहां से कई परिवार आए, उनमें फाजिल्का का सुरजीत सिंह तनेजा का परिवार भी शामिल है। 

जो विभाजन से पहले पिपली दहूजियां वाली, लक्खा हवेली तहसील दोपालपुर जिला मिन्टगुमरी में रहते थे। तहसील दोपालपुर। पांच मार्च 1940 को जीवन सिंह के घर माता ठाकरी देवी की कोख से हुआ। सरकारी हाई स्कूल ओकाड़ा रोड लक्खा हवेली से प्राथमिक शिक्षा हासिल करने वाले सुरजीत सिंह तनेजा जब दूसरी कक्षा में थे तो देश का विभाजन हो गया। उन्हें याद है कि उनके स्कूल के हैड मास्टर उस समय असलम अली थे। वह बताते हैं कि उस समय चौथी कक्षा में गुलाब हिसाब पढ़ाया जाता था जो पास करता उसे पटवारी की नौकरी लग जाता था। 
                                      S. Surjeet Singh With his Faimly
वहां काम के बारे में वह बताते हैं कि उनके पिता टांगा चलाते थे और उनके चार टांगे थे जो अन्यों को किराये पर दिए जाते थे। वहां से वह हवेली आकर रहने लगे। भले ही उस समय उनकी आयु कम थी, लेकिन उन्हें याद है कि उनका जमाती गुलशन दहूजा थे। जबकि पड़ोसी मौज राए, निर्मल सिंह ठेकेदार, बावा ठेकेदार, सरदार दलीप ङ्क्षसह लक्कड़ मिस्त्री, साधू सिंह, दिवान चंद, इश्नाग राए थे। उनके बड़े भाई सतनाम सिंह व बहन का जन्म वहां हुआ था। बचपन को याद करते हुए वह बतातें हैं कि उन्हें पतंग उडानी, वांझी, खुदो खुंडी, गुल्ली डंडा आदि खेले काफी पंसद थे। 

देश का विभाजन हो गया। उन्हें पता चला तो उन्होंने घरेलू समान दो टांगों पर लाद लिया। सुलेमान हैड पर पहुंचे तो तेज बारिश शुरू हो गई। मगर उन्होंने हौंसला नहीं हारा और चलते रहे। वह फाजिल्का पहुंच गए और यहां एक नंबर स्कूल में बनाए गए रिफ्यूजी कैंप में रहने लगे। रिफ्यूजी कैंप की कमान किशोर चंद भठेजा व एसडीएम ने संभाली हुई थी। इस दौरान उनके पिता ने लोगों की काफी सेवा की। फाजिल्का के कुछ ओढ़ जाति के परिवार थे। जो इनके पिता के पास आए और पाकिस्तान छोडक़र आने को कहने लगे। उन्होंने तुरंत टांगा तैयार किया और उन्हें लेकर सुलेमानकी हैड तक पहुंच गए। जहां ओढ़ों ने वास्ता दिया कि उनके पास किराया नहीं है। पिता बोले, कोई बात नहीं, वाहेगुरू की मेहर है। 

यहां दो दिन रहने के बाद वह गांव टाहली वाला बोदला के निकट टिंडा वाला खूह पर रूके। वहां उन्हें पांच एकड़ भूमि की पक्की अलॉटमैंट हुई। वहां रहते वक्त उनके पिता ने लोगों में अपना काफी रसूख बना लिया। लोगों ने प्यार दिया और विभाजन के बाद उनके पिता गांव के पहले नंबरदार बन गए। सुरजीत ङ्क्षसह तनेजा बताते हैं कि उन्होंने पढ़ाई प्राइवेट की थी। मास्टर बुद्ध राम से शिक्षा ली। वह बताते हैं कि तब फीस सात रूपये दो आन्ने थी, वह भी नगद नहीं देनी होती थी, उसका राशन लेकर देते थे। वह बताते हंै कि उनकी चौथी कक्षा बोर्ड की परीक्षा थी और दमकल विभाग फाजिल्का के पास परीक्षा हुई थी। पांचवीं डीएवी हाई स्कूल से की। जिसके मैनेजर हरीकृष्ण थे। 1960 में उन्होंने दसवीं कक्षा पास कर ली। इसके बाद 1961 में बेलदार की नौकरी मिल गई, जिसका मासिक वेतन मात्र 60-65 रूपये था। 

वह बताते हैं कि उनकी सिलेक्शन अबोहर में हुई थी, जहां व नौकरी के लिए साइकिल पर गए थे। वहीं उन्होंने नौकरी के साथ साथ खालसा हाई स्कूल के बच्चों को निशुल्क टयूशन भी दी। 1963-64 को आईटीआई मोगा से उन्होंने इलैक्ट्रीशयन ट्रेड पास कर ली और 1965 में पब्लिक हैल्थ विभाग फिरोजपुर में बतौर इलैक्ट्रीशियन नौकरी शुरू कर ली। 8 मई 1965 को उनकी शादी फाजिल्का के माछी सिंह फुटेला  व पार्वती देवी की पुत्री राजिन्द्र कौर से हुई। उस समय लंडे भाषा काफी प्रसिद्ध थी। वह बताते हैं उन्होंने माता दीन मास्टर से लंडे सीखे। 1965 में बिजली बोर्ड में सहायक लाइनमैन की नौकरी ज्वाइंन की और 1968 में लाइनमैन बने, 1986 में पदोन्नत होकर जे.ई. बन गए। वह बिजली बोर्ड में बेहतर सेवाएं देते हुए 31 मार्च 2000 को घुबाया में सेवानिवृत हो गए। एक बेटा एक बेटी शादीशुद्धा हैं। सुरजीत सिंह तनेजा की धर्मपत्नी की 16 जनवरी 2003 को मृत्यु हो गई। स. तनेजा का नाम समाजसेवियों में काफी आगे है। वह टीएसयू के कानूनी सलाहकार, मानव कल्याण, वृद्ध आश्रम, आईटीआई एसोशिएशन पंजाब सीनियर उपप्रधान, बार्डर ऐरिया विकास फ्रंट, मोनिंग कल्ब, सोशल वेलफेयर सोसायटी के सदस्य हैं और प्रशासन व गुरूद्वारा सिंह सभा की तरफ से उन्हें सम्मानित भी किया जा चुका है। उन्होंने फाजिल्का जिला बनाओ आंदोलन में भी सराहनीय योगदान दिया। 
                                                 प्रस्तुति-कृष्ण तनेजा- 92566-12340

Writer Krishan Taneja with S. Surjeet Singh Taneja
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Mar 24, 2020

भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव की समाधि लेने के बदले फाजिल्का ने दी इतनी बड़ी कुर्बानी ! ! !

शहीदे आजम स. भगत सिंह ने फाजिल्का में अपने कदम रखकर जहां इस धरती को पवित्र किया, वहीं शहीद भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव की समाधि लेने के बदले फाजिल्का ने बहुत बड़ी कुर्बानी दी है…उसी कुर्बानी के चलते फाजिल्का की भौगोलिक स्थिति बिगड़ गई और अनेक वीर जवानों को भारत-पाक 1965 व 1971 युद्ध में शहादत देनी पड़ी…इसके बावजूद फाजिल्का को नजरअंदाज किया गया है…जिस कारण फाजिल्का पिछड़ गया है।
शहीदे आजम स. भगत सिंह को याद करने वाले नेताओं में ऐसे कम नेता है, जिन्हें पता हो कि 60 के दशक से पहले तीनों शहीदों की समाधि पाकिस्तान के कब्जे में थी…जन भावनाओं को देखते हुए 1950 में नेहरू-नून-मुहाइदे के तहत फैसला लिया गया था कि पाकिस्तान से शहीदों की समाधि वापस ली जाए…करीब एक दशक की इस ऊहापोह के बाद पाकिस्तान ने फाजिल्का का अहम हिस्सा मांग लिया…जिस कारण फाजिल्का के 12 गांव और सुलेमानकी हैड पाकिस्तान को देना पड़ा।    
जो इलाका पाकिस्तान को दिया, वह सैन्य दृष्टि से काफी अहम था…यह इलाका देने से फाजिल्का के कई गांव पाकिस्तान की नजर के निकट आ गये और इलाका तिकोन आकार का बन गया…जिस कारण पाक के साथ हुए दो युद्धों में फाजिल्का को काफी नुकसान उठाना पड़ा।     
पाक को बारह गांव देने के कारण फाजिल्का सैक्टर में पाक से हुए युद्धों  में 216 सैना के जवानों को कुर्बान होना पड़ा…यह शहीद देश के विभिन्न राज्यें के रहने वाले थे…जिन की समाधि गांव आसफवाला में बनाई गई है…इसके बावजूद इस धरती को न तो शहीदों की धरती घोषित किया गया है और न ही स्मारक धरोहर घोषित किया गया है।
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Mar 23, 2020

स. भगत सिंह ने फाजिल्का में ठीक करवाई थी अपनी पिस्टल ! ! !



स. भगत सिंह ने फाजिल्का में ठीक करवाई थी अपनी पिस्टल ! ! !


3 अक्तूबर 1928 में साईमन कमिशन लाहौर पहुंचा तो वहां भारतीयों ने कमीशन की डटकर खिलाफत की। इस पर ब्रिटिश अधिकरियों ने अन्यों देश भक्तों सहित लाला लाजपत राय जैसे सरीखे नेता पर भी लाठियां बरसाई। 17 दिसंबर 1928 के दिन जब लाला जी की मौत हो गई तो भगत सिंह ने इसका बदला लेने की ठान ली। बदला लेने के लिए स. भगत सिंह ने ब्रिटिश अधिकारी सार्जेंट स्कॉट समझकर मोटर साईकल पर आ रहे सार्जेंट सांडर्स को गोली से उड़ा दिया। जिससे ब्रिटिश सम्राज्य में खलबली मच गई और ब्रिटिश अधिकरियों ने स. भगत सिंह को ढूंढने का अभियान तेज कर दिया। स. भगत सिंह अनेक जगह से होते हुए फाजिल्का तहसील के गांव दानेवाला में पहुंचे।
जहां उन्होंने अपने देश भक्त साथी स. जसवंत सिंह दानेवालिया के घर में पनाह ली। स. भगत सिंह दिन के समय भेष बदलकर अन्य देश भक्तों के साथ अपने सबंध कायम रखते और रात के समय दानेवालिया के घर लौट आते। जहां वह स. जसवंत सिंह के बाहर वाले घर की हवेली में ठहरते। स. भगत सिंह वहां कई महीनों तक रहे। वहां से जाते समय स.भगत सिंह ने गांव के लुहार हाजी करीम से अपनी पिस्तौल की मुरम्मत करवाई। 1929 में गिरफ्तारी के बाद स. भगत सिंह ने पुलिस को यह बता भी दिया कि इस दौरान उन्होंने कहां-कहां पनाह ली? इसके बाद ब्रिटिश पुलिस ने गांव में छापामारी करके घर-घर की तलाशी ली और ग्रामीणों से स. भगत सिंह के बारे जानकारी हासिल करने का प्रयास किया, लेकिन किसी भी ग्रामीण ने स. भगत सिंह के गांव में छुपे रहने की बात नही बताई। (इस बात का खुलासा पंजाब के पूर्व इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस भगवान सिंह की पुस्तक 20वीं सदी दा पंजाब पृष्ठ नं.78 पर किया गया है) 


When the Simon Commission arrived in Lahore on 3 October 1928, the Indians there protested against the commission and made the Khilafat. On this, the British superintendents of the country including Lala Lajpat Rai, along with other countrymen, also raided ladders. On 17th December, 1928, when Lala Ji died, Bhagat Singh decided to take revenge. To take revenge Bhagat Singh blamed Sgt Sanders, who came to the motor cycle, as British officer Sergeant Scott. This led to a stir in the British Empire and the British officers did. Speed ​​up the campaign to find Bhagat Singh S Bhagat Singh, through many places, reached Phajilka Tehsil’s village, Danavala. Where he is a devotee of his country. Jaswant Singh took refuge in Danawalia’s house. S Bhagat Singh kept changing his identity during the day while other countries kept their relationship with the devotees and returned to the home of Danawaliya at night. Where he is Stay in the mansion of a house outside Jaswant Singh. S Bhagat Singh stayed there for several months. While going from there, Mr. Bhagat Singh made a pledge of his pistol from Lohar Haji Karim of the village. After the arrest in 1929 Bhagat Singh also told the police that where did he take refuge during this period? After this, the British police conducted raids in the village and searched the house and demanded from the villagers. Attempted to get information about Bhagat Singh, but any villager Bhagat Singh did not talk about being hidden in the village


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Mar 20, 2020

ਨੂਰ ਸਮੰਦ ਦੇ ‘ਪਠਾਣਾ ਡਾਕੂ’ ਨੇ ਕਿਉਂ ਮਾਰੀ ਖੁੱਦ ਨੂੰ ਗੋਲੀ ?

ਕੁੰਡੀਆਂ ਮੁੱਛਾਂ ਤੇ ਠੱਪਵੀਂ ਦਾੜੀ। ਲੰਬੇ ਕੱਦ ਦਾ ਤਕੜਾ ਜਵਾਨ ਸੀ ਪਠਾਣਾ-ਦੇਸ਼ ਦੀ ਵੰਡ ਵੇਲੇ ਉਹ ਆਪਣੇ ਮਾਂ- ਪਿਉ ਤੇ ਭੈਣ ਨੂੰ ਦਰਿਆ ਕਿਨਾਰੇ ਛੱਡ ਕੇ ਗਿਆ ਸੀ ਤੇ ਕਹਿ ਗਿਆ ਗਿਆ ਕਿ ਉਹ ਵਾਪਸ ਪਿੰਡ ਚੱਲਿਆ ਹੈਜੋ ਸਮਾਨ ਘਰ ‘ ਰਹਿ ਗਿਆ ਉਹ ਲੈ ਕੇ ਆਵੇਗਾ ਤੇ ਇਕੱਠੇ ਹੀ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਜਾਵਾਂਗੇ। ਉਦੋਂ ਤੱਕ ਬੇੜਾ ਵੀ  ਜਾਵੇਗਾ।         ਪਰ ਜਦੋਂ ਪਿੰਡੋਂ ਹੋ ਕੇ ਆਇਆ ਤਾਂ ਲਹੂ ਨਾਲ ਲੱਥਪੱਥ ਮਾਂਪਿਉ ਦੀਆਂ ਲਾਸ਼ਾਂ ਪਈਆਂ ਸਨ ਤੇ ਦਰਿਆ ਦੇ ਕਿਨਾਰੇ ਭੈਣ ਦੀ ਚੁੰਨੀ ਪਈ ਸੀ। ਦਰਿਆ ਵੱਲ ਦੌੜਦੇ ਹੋਏ ਭੈਣ ਦੇ ਪੈਰਾਂ ਦੇ ਨਿਸ਼ਾਨ ਵੀ ਸਾਫ਼ ਦਿੱਖ ਰਹੇ ਸਨ। ਕਈ ਬੰਦਿਆਂ ਦੇ ਨਿਸ਼ਾਨ ਵੀ ਸਨ। ਇੰਞ ਲੱਗਦਾ ਸੀਜਿਵੇਂ ਉਨਾਂ ਨਾਲ ਕੁੱਝ ਬੰਦੇ ਹੱਥੋਪਾਈ ਹੋਏ ਹੋਣ। ਪਰ ਭੈਣ ਦੀ ਲਾਸ਼ ਤਾਂ ਦੂਰ ਤੱਕ ਵੀ ਨਜ਼ਰ ਨਹੀਂ  ਰਹੀ ਸੀ। ਰਿਮਝਿਮ ਬਾਰਸ਼ ਵੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਈ- ਸਰਕੰਡਿਆਂ ਨੂੰ ਚੀਰਦੀ ਹੋਈ ਲੁਟੇਰਿਆਂ ਦੀ ਟੋਲੀ ਦੀ ਆਵਾਜ਼ ਆਈ,’ ਪਕੜ ਲਓਮਾਰ ਦਿਓ ਟੋਲੀ ਦੇ ਕੁੱਝ ਬੰਦਿਆਂ ਨੂੰ ਪਠਾਣਾ ਜਾਣਦਾ ਵੀ ਸੀ। ਕੁੱਝ ਉਸ ਦੇ ਪਿੰਡ ਦੇ ਸਨ ਤੇ ਕੁੱਝ ਲਾਗਦੇ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ।                                            ਟੋਲੀ ਵੇਖਦਿਆਂ ਹੀ ਪਠਾਣਾ ਨੇ ਦਰਿਆ ‘ ਛਾਲ ਮਾਰ ਦਿੱਤੀ ਤੇ ਤੈਰਦਾ ਹੋਇਆ ‘ਪਿੰਡ ਨੂਰ ਸਮੰਦ‘  ਗਿਆ। ਜਿੱਥੇ ਕੱਚੀ ਮਸੀਤ ਸੀ।
      ਰਾਤ ਬੀਤ ਗਈ ਤੇ ਸਵੇਰ ਹੋਈ ਤਾਂ ਦੇਖਿਆ ਕਿ ਪਿੰਡ ਸੁੰਨਸਾਨ ਪਿਆ ਸੀ। ਕੁੱਝ ਘਰਾਂ ਵਿਚ ਭੁੱਖੇ ਤਿਹਾਏ ਪਸ਼ੂ ਬੰਨੇ ਹੋਏ ਸਨ ਤੇ ਕੁੱਝ ਘਰਾਂ ‘ ਘੜੇ ਪਕਾਉਣ ਲਈ ਲੱਗੀ ਭੱਠੀ ਦੀ ਸੁਆਹ ਪਈ ਸੀ ਤੇ ਘਰਾਂ ਨੂੰ ਤਾਲੇ ਲੱਗੇ ਹੋਏ ਸਨ-- ਪਠਾਣਾ ਕਈ ਪਿੰਡਾਂ ‘ ਗਿਆ ਤੇ ਉਸ ਨੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਟੋਲੀ ਤਿਆਰ ਕਰ ਲਈ। ਜੋ ਰਾਤ ਵੇਲੇ ਦਰਿਆ ਟੱਪ ਕੇ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਦੇ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਜਾਂਦੀ ਤੇ ਲੁੱਟਮਾਰ ਕਰਦੀ। ਹੋਲੀਹੋਲੀ ‘ਪਠਾਣਾ ਡਾਕੂ‘ ਦਾ ਨਾਂਅ ਮਸ਼ਹੂਰ ਹੋ ਗਿਆ।            ਪਾਕਿਸਤਾਨੀ ਪਠਾਣਾ ਦੀ ਲੁੱਟਮਾਰ ਤੋਂ ਤੰਗ  ਗਏ। ਉੱਥੋਂ ਦੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਨੇ ਵੀ ਟੋਲੀ ਬਣਾ ਲਈ ਤੇ ਪਿੰਡ ‘ਨੂਰ ਸਮੰਦ‘ ਵਿਚ ਡਾਕਾ ਮਾਰਿਆ। ਪਠਾਣਾ ਪਿੰਡ ‘ ਨਹੀਂ ਸੀ। ਟੋਲੀ ਨੇ ਪਿੰਡ ‘ ਬਹੁਤ ਲੁੱਟਮਾਰ ਕੀਤੀ। ਪਠਾਣਾ ਦੇ ਸਾਥੀਆਂ ਨੇ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤਾਪਰ 4 ਜਣੇ ਮਾਰੇ ਗਏ। ਪਠਾਣਾ ਨੇ ਆਉਂਦਿਆਂ ਹੀ ਰਾਈਫ਼ਲ ਚੁੱਕੀ ਤੇ ਪੁਰਾਣੇ ਪਿੰਡ ਪੁੱਜ ਗਿਆ।           ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਦੀ ਮਿਲਟਰੀ ਵੀ ਪੁੱਜ ਗਈ। ਪਠਾਣਾ ਤੇ ਉਸ ਦੇ 2 ਸਾਥੀਆਂ ਨੇ ਮਿਲਟਰੀ ਦਾ ਡਟ ਕੇ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤਾ। ਪਠਾਣਾ ਦੇ ਸਾਥੀ ਮਰ ਗਏ ਤੇ ਅਸਲਾ ਵੀ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਿਆ। ਪਠਾਣਾ ਕੋਲ ਸਿਰਫ਼ ਇੱਕ ਗੋਲੀ ਬਾਕੀ ਸੀ। ਮਿਲਟਰੀ ਨੇ ਪਠਾਣਾ ਨੂੰ ਘੇਰ ਲਿਆ ਤੇ ਪਠਾਣਾ ਨੇ ਆਪਣੀ ਰਾਈਫ਼ਲ ਨਾਲ ਗੋਲੀ ਮਾਰ ਕੇ ਖ਼ੁਦਕੁਸ਼ੀ ਕਰ ਲਈ। ‘ਨੂਰ ਸਮੰਦ‘ ਤੇ ਲਾਗਲੇ ਪਿੰਡਾਂ ‘ ਕਾਫ਼ੀ ਸਮਾਂ ‘ਪਠਾਣਾ ਡਾਕੂ‘ ਦੀ ਚਰਚਾ ਰਹੀ।                                                ਕਿਉਂ ਪਿਆ ਪਿੰਡ ਦਾ ਨਾਂਅ ?
ਦਰਿਆ ਦੇ ਕਿਨਾਰੇ ਵਸਿਆ ਪਿੰਡ ਨੂਰ ਸਮੰਦ ‘ਵੱਟੂਆਂ’ ਦਾ ਆਖ਼ਰੀ ਪਿੰਡ ਸੀ। ਪਿੰਡ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਵੱਟੂਆਂ ਦੀ ਹੱਦ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ਤੇ ਫਿਰ ‘ਬੋਦਲਿਆਂ’ ਦੀ ਹੱਦ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਸੀ। ਪਿੰਡ ‘ਚ ‘ਨੂਰਾ ਵੱਟੂ’ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ ਤੇ ਕੁੱਝ ਘਰ ਮਿੱਟੀ ਦੇ ਬਰਤਨ ਬਣਾਉਣ ਵਾਲੇ ਘੁਮਿਆਰਾਂ ਦੇ ਸਨ। ਨੂਰਾ ਵੱਟੂ ਕੋਲ ਇੱਕ ਵਧੀਆ ਘੋੜਾ ਸੀ, ਰੰਗ ਬਦਾਮੀ, ਜਿਸ ਦੀ ਗਰਦਨ ਅਤੇ ਪੂਛ ਤੇ ਕਾਲੇ ਵਾਲ ਪੁੱਠੇ ਸਨ। ਉਸ ਘੋੜੇ ਨੂੰ ਸਮੰਦ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ। ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਪਿੰਡ ਦਾ ਨਾਂਅ ‘ਨੂਰ ਸਮੰਦ’ ਪੈ ਗਿਆ।
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Mar 18, 2020

Golden Track था – Photo's भी Golden होगी Boss ! ! !

There was a time. … when there was a Golden Track from Fazilka to Karachi. … Fazilka was also Golden at the time. … The track stopped, even gold went to iron……!!!!!11

1st Train in Fazilka 1898
Gol Chakkar Near Mouzam Railway Crosing Fazilka
Amruka Railway Station Pakistan
Amruka Railway Station Pakistan
Track Amruka Pakistan
Railway Station Samasata Pakistan
The END
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Mar 15, 2020

फाजिल्का की 8 यादगार तस्वीरें Eight memorable photos of Fazilka

Fazilka Photo-9 May1944 Sub Judge Mr. Ram Singh Bindra with Shri Guru Singh Sabha Fazilka’s Members
Govt High School Fazilka Session 1947-48
Swami Kushal Dass ji
Fazilka Steam Ship
2nd MLA Fazilka Mr. Bagh Ali Sukhera with other
-photo 1930- right side Hagi bahawal khan Kuria zaildar-
Photo 6 June 1939- 1st. Lala Dolat Ram Gupta, peer zada inamudin, Chiman Lal, Rameshwer diyal, Rai Sahib lala Vidya Dhar, DC Ferozwpur M.R. Sachdev, Seth Shopat Rai Periwal, Dr. Kartar Singh, Lala Kulwant Singh- 2nd. Seth Ganga Parsad, Lala Bihari Lal, Lala Manohar Lal, Lala Karam Chand, ch, Mohri lal, Abdul Kareem, Seth Jas Raj or 3rd Megh Raj and Hans Raj
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Mar 2, 2020

ਫਾਜ਼ਿਲਕਾ ਨਾਂ ਬਾਅਦ ‘ਚ ਮਿਲਐ, ਰਾਜਾ ਤਾਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਆਇਆ ਸੀ

ਸੰਨ 1818 ਤੱਕ ਫ਼ਾਜ਼ਿਲਕਾ (ਇਹ ਨਾਮ ਬਾਅਦ ‘ਚ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ ਸੀ) ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਦਾ ਕੰਟਰੋਲ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਉਦੋਂ ਦੌਲਤ ਰਾਓ ਸਿੰਧੀਆ ਫ਼ਾਜ਼ਿਲਕਾ ਆਇਆ ਸੀ । ਸਰ ਜੇਮਸ ਡਾਵੀ (Sir James Dowie) ਨੇ 1916 ਵਿਚ ਦੀ ਪੰਜਾਬ,  ਨਾਰਥ – ਵੈਸਟ ਫ਼ਰੰਟੀਅਰ  ਪਰਾਵਿੰਸ ਐਂਡ ਕਸ਼ਮੀਰ (The Punjab, North -West Frontier Provinces and Kashmir) ‘ਚ ਇਸ ਗੱਲ ਦਾ ਖ਼ੁਲਾਸਾ ਕੀਤਾ ਹੈ। ਗੱਲ 19ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਦੀ ਹੈ , ਜਦੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਅਧਿਕਾਰੀ ਵੇਲੇਸਲੇ ਕੇ. ਮਾਰਕੀ ਨੇ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਸੁਪਰੀਮ ਪਾਵਰ ਬਣਨ ਦੀ ਸੋਚੀ। ਉੱਧਰ ਨਪੋਲੀਅਨ ਨੇ ਵੀ ਭਾਰਤ ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਦੀ ਸੋਚੀ। ਇੱਧਰ ਪੰਜਾਬ ਤੇ ਦੌਲਤ ਰਾਓ ਸਿੰਧੀਆ ਨੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ। ਪਰ ਉਹ ਅਸਫਲ ਹੋਇਆ। ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ 1803 ਵਿਚ ਉਹ ਫ਼ਾਜ਼ਿਲਕਾ ਆਇਆ। ਕੁੱਝ ਦਿਨ ਇੱਥੇ ਠਹਿਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉਹ ਦਿੱਲੀ ਵੱਲ ਕੂਚ ਕਰ ਗਿਆ। 1818 ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਬਹਾਵਲਪੁਰ ਦੇ ਨਵਾਬ ਤੇ ਨਵਾਬ ਮਮਦੋਟ ਨੇ ਇੱਥੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਇੱਥੇ ਕਿਲਾ-ਨੁਮਾ ਇਮਾਰਤਾਂ ਬਣਵਾਈਆਂ- ਇਕ ਇਮਾਰਤ ਮੌਜੂਦਾ ਰੇਲਵੇ ਸਟੇਸ਼ਨ ਦੇ ਕੋਲ ਸੀ। ਇੱਕ ਬੀ. ਡੀ. ਪੀ. ਓ. ਦਫ਼ਤਰ ਕੋਲ ਸੀ। ਭਾਵੇਂ ਇਮਾਰਤਾਂ ਕੱਚੀਆਂ ਸਨ, ਪਰ ਚੀਨੀ ਮਿੱਟੀ ਨਾਲ ਬਣੀਆਂ ਮੋਟੀਆਂ ਕੰਧਾਂ ਤੇ ਪਲੱਸਤਰ ਕੀਤਾ ਹੁੰਦਾ ਸੀ, ਜੋ ਗਰਮੀਆਂ ‘ਚ ਠੰਢਾ ਤੇ ਸਰਦੀਆਂ ‘ਚ ਗਰਮ ਹੁੰਦਾ ਸੀ। ਜਿਹਨਾਂ ਤੇ ਬਾਅਦ ਵਿਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ। ਊਰਜਾ ਪੁਰਸ਼ ਡਾ. ਭੁਪਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੀ ਕਿਤਾਬ ‘ ਦੀ ਟਾਊਨ ਆਫ਼ ਲਾਰਡ ਪੀਪਲ’ ਵਿਚ ਲਿਖਿਆ ਹੈ ਕਿ ਇਹਨਾਂ ‘ਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸੈਨਿਕ ਠਹਿਰਦੇ ਸਨ। ਪਰ ਫ਼ਾਜ਼ਿਲਕਾ ਦੀਆਂ ਇਹ ਇਮਾਰਤਾਂ ਜਾਂ ਤਾਂ ਦਰਿਆ ‘ਚ ਆਏ ਹੜ ਨੇ ਨਿਗਲ ਲਈਆਂ ਜਾਂ ਫਿਰ ਸਮੇਂ ਦੀ ਮਾਰ ਹੇਠ ਦੱਬ ਕੇ ਢਹਿ ਢੇਰੀ ਹੋ ਗਈਆਂ… Lachhman Dost Whatsapp 99140-63937
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