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क्या 144 Rs/- में कोई शहर बस सकता है .. शायद नहीं.... मगर आप को एक हकीकत बता दूँ कि जिसधरतीपर Fazilka शहरबसाहुआहै, उसधरतीकीकीमतसिर्फ …औरसिर्फ 144 रूपयेआठआन्नेथी…यकीननहींआरहा…मगरयहहकीकतहै…हकीकतऔरमेजदारदास्तान…रंगले, बंगलेफाजिल्कातककेसफरकीरंगीलीदास्तान। यही एक शहर है – जो कभी गांव नहीं थी – शहर था
बात 1846 कीहैजबबंगलापूरेयोवनपरथा - वंसएगन्यूकातबादलाहोगयातोयहइलाकाजे.एच.ओलीवरकेअंडरआगया…उन्होंनेफतेहबादऔरबीकानेरमेंमुनादीकरवादीकिआओ, बंगलेमेंआकरबसजाओ…अगरअपनेसाथकारपेंटर, नाई, मिस्त्री, मजदूरलेकरआओतोजगहमुफ्तमिलेगी…ओलीवरभीचाहतेथेकिबंगलाशहरपूरीतरहसेआबादहोजाए……बातफैलतीगईऔरलोगयहांआकरबसतेगए…शहरकेलिएजगहकमपड़गई…तबओलीवरनेमियांफजलखांवट्टूकोबुलाया…
समय ने करवट ली और फाजिल्का में ऊन का व्यापार गति पकडऩे लगा…व्यापार में इजाफे के लिए ब्रिटिश अधिकारी ने पेड़ीवाल, मारवाड़ी, अग्रवाल और अरोड़वंश जाति के लोगों को न्योता दिया…वह लोग व्यापारी थे और उन्होंने यहां ऊन व अन्य कई तरह के व्यापार शुरू कर दिए…जिससे फाजिल्का व्यापारिक केन्द्र बन गया…उधर 1852 में ब्रिटिश अधिकारी थोमसन को तैनात किया गया, वह 1857 तक रहे और उन्होंने अधिकतर अबोहर व उसके आसपास के गांवों में विकास करवाया।
फाजिल्का की भूमि गुरुओं, पीरों पैगम्बरों, अवतारों और शहीदों के आशीर्वाद से ओत-प्रोत है तथा उनकी रहमत से यहां नेकदिल इन्सान बसते हैं, जो हर क्षण दूसरों की सेवा करने को तत्पर रहते हैं। यहां श्री गुरू नानक देव जी और शहीद-ए-आजम स. भगत सिंह ने कदम रखकर इस धरती को पवित्र बनाया। भारत-पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय सीमा से मात्र 11 किलोमीटर की दूरी पर बसा फाजिल्का, पंजाब की सबसे पुरानी तहसील है, जो अब जिला बन चुका है। यह शहर 1844 में बसाया गया। दरिया के एक किनारे मुस्लिम समुदाय के 12 गाँव थे, जिनमें वट्टू, चिश्ती और बोदला जाति के मुस्लिम परिवारों की संख्या अधिक थी। इन गांवों पर बहावलपुर और ममदोट के नवाबों का नियंत्रण था।
ईस्ट इंडिया कम्पनी ने कम्पनी ने सबसे पहले यहां एक अंग्रेज अफसर पैट्रिक एलेग्जेंडर वन्स एगन्यू को आर्गेनाइजेशन एजेंसी की देखरेख के लिए नियुक्त किया। वन्स एगेन्यू ने हार्श शू लेक यानि बाधा झील किनारे एक बंगले का निर्माण करवाया। जिस कारण शहर का नाम बंगला पड़ गया। क्षेत्र की सीमा ममदोट, सिरसा, बीकानेर और बहावलपुर तक थी। फिर जिला सिरसा के कैप्टन जे. एच. ऑलिवर को नियुक्त किया गया। यहां नगर को बसाने के लिए ईस्ट इंडिया कम्पनी ने 32 एकड़ भूमि केवल 144 रुपए 8 आने में भूमि खरीदी थी। यह भूमि वट्टू जाति के मुखिया फज़ल खां वट्टू से खरीद की गई थी, लेकिन वट्टू की एक शर्त थी कि इस स्थान पर जो नगर बसाएगा, उसका नाम फज़ल खां के नाम से रखा जाए। उसके बाद शहर को फाजिल्का के पुकारा जाने लगा। सन् 1862 में अंग्रजों ने सुल्तानपुरा, पैंचांवाली, खियोवाली, केरूवाला और बनवाला रकबे की 2165 बिघा भूमि ओर खरीद ली। यह भूमि 1301 रुपए में खरीद की गई।
बाद में, 7 अगस्त 1867 में पंजाब सरकार के नोटिफिकेशन 1034 के तहत फाजिल्का की सीमा तय की गई। फाजिल्का को कभी बाढ़ ने उजाड़ा, तो कभी प्लेग, भूख व गरीबी ने, लेकिन ऊन के व्यापार ने इस नगर को बहुत संभाला। व्यापार की दृष्टि से अंग्रजों के न्योते पर यहां पेड़ीवाल, अरोड़वंश, अग्रवाल और मारवाड़ी समुदाय के लोगों ने यहां व्यापार कार्य आरंभ कर दिया। फाजिल्का एशिया की प्रसिद्ध ऊन मंडी बन गया। ऊन की गांठें यहां तैयार होती और रेलगाड़ी के जरिये, दिल्ली, लाहौर और सिन्ध व कराची तक पहुंचाई जाती। वहां कराची की बन्दरगाहों से यह ऊन यूरोप की मंडियों तक पहुंचाई जाती थी। ऐतिहासिक धरोहर घंटाघर जहां पंजाब विधानसभा की आर्ट गैलरी की शान है, वहीं हिन्दोस्तान का गौरव है। घंटाघर 6 जून 1939 में बनाया गया। गाँव आसफवाला में 80 फुट लंबी और 18 फुट चौड़ी शहीदी स्मारक बनाई गई है। सबसे पुरानी ऐतिहासिक इमारत रघुवर भवन है।
इसके अतिरिक्त यहां डेन अस्पताल, ऑलिवर गार्डन, सतलुज दरिया, एशिया के द्वितीय नंबर का टी.वी. टावर, हॉर्स शू लेक, गोल कोठी, प्रताप बाग, सेठ चानण लाल आहूजा पुस्तकालय, बेरीवाला पुल, सरकारी एम. आर. कॉलेज, संस्कृत कॉलेज व अनेक धार्मिक स्थान दर्शनीय हैं। यहां की बनने वाली जूती, मिठाई तोशा, वंगा सुप्रसिद्ध हैं। 27 जुलाई 2011 को फाजिल्का जिला घोषित किया गया। आज फाजिल्का जिला कहलाता है और लगातार तरक्की की राह पर चल रहा है। (Lachhman Dost -Whats App No. 99140-63937)
देश की आजादी में फाजिल्का जिले के लोगों का भी अहम योगदान रहा है…फाजिल्का निवासी एडवोकेट नंद लाल सोनी, चौधरी वधावा राम, लाला सुनाम राए एम.ए., हर किशन, डोगर दास पुत्र शाम दास, मुरारी लाल पुत्र तुलसा राम, जोगिन्द्र सिंह पुत्र मेहताब सिंह, देस राज पुत्र कांशी राम मिस्त्री, चांदी राम वर्मा अबोहर, गांव नुकेरिया निवासी हरनाम सिंह पुत्र मघर सिंह, पंजावा के बिशन सिंह पुत्र भाग सिंह, जंडवाला भीमे शाह के तारा सिंह पुत्र अत्तर सिंह, पाकां के ज्ञान चंद पुत्र ज्योति राम, सुुरेश वाला के चेता सिंह पुत्र सूरता राम, घट्टियां वाली के झांगा राम पुत्र वधावा राम, खुईखेड़ा के अर्जुन सिंह पुत्र तलोक सिंह,
चक्क पालीवाला के बचित्र सिंह पुत्र इंद्र सिंह, झोक डिपोलाना के अजीत सिंह पुत्र चंदा सिंह, चिराग ढ़ाणी के गुलजारा सिंह पुत्र उजागर सिंह, कच्चा कालेवाला के लछमण दास, टाहलीवाला जट्टां के नंद सिंह पुत्र फुम्मन सिंह, राजपुरा के पूरन सिंह पुत्र चतर सिंह, सुलखन सिंह पुत्र माहला सिंह वासी रत्ता थेहड़, गुरमुख सिंह पुत्र सुंदर सिंह गांव मिनिया वाला, बघेल सिंह पुत्र इशर सिंह कमालवाला, ज्ञान सिंह पुत्र हजूरा सिंह कमालवाला, बहल सिंह पुत्र सुरैण सिंह जंडवाला भीमे शाह, दयाल सिंह पुत्र कथा सिंह पाकां, महल सिंह पुत्र संता सिंह कंधवाला हाजर खां आदि ने देश की आजादी में अपना अहम योगदान दिया है…सरकार की ओर से इन्हें स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा दिया गया है।(Lachhman Dost Whatsapp 99140-63937)