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Oct 30, 2018

फाजिल्का के मुलाजिम नेता सतीश वर्मा के सुपुत्र व पटियाला के मल्टीपर्पज सीनियर सैकेंडरी स्कूल के विद्यार्थी रवित वर्मा राष्ट्रीय क्रिकेट मुकाबले में चयनित

फाजिल्का: लुधियाना में आशीर्वाद सेवा संस्थान की ओर से इंटरनैशनल पब्लिक स्कूल सिविल सिटी लुधियाना ेमं एक दिसम्बर 2018 से गोवा में शुरू हो रहे नैशनल स्तरीय क्रिकेट मुकाबलों के लिए खिलाडिय़ों के ट्रायल लिए गए। जिन में जूनियर व सीनियर वर्ग के लिए गए ट्रायल में पंजाब के विभिन्न हिस्सों से खिलाडिय़ों ने हिस्सा लिया। इस मौके पर संस्था के राष्ट्रीय सचिव डी.के. गौतम ने विशेष रूप से टीम सिलैक्शन में भाग यिा। इसके अलावा प्रदेशाध्यक्ष एस.के. वर्मा, लुधियाना से उपाध्यक्ष जतिन्द्र नोनू, पंजाब के महासचिव हरप्रीत सिंह, अमृतसर के कोच लक्षमी राम, लुधियाना के कोच रवि कुमार, संदीप सिंह, सिलैक्शन कमेटी के सदस्यों ने अपनी सेवाएं दी। इस ट्रायल में अनेक कुशल खिलाडिय़ों का चयन किया गया। जो नैशनल लेवल मुकाबलों के लिए वायु मार्ग से एक दिसम्बर को गोवा जाकर साप्ताहिक आयोजन में भाग लेंगे।इस आयोजन में फाजिल्का के युवा खिलाडी रवित वर्मा पुत्र सतीश वर्मा (मुलाजिम नेता) को भी उनके सराहनीय प्रदर्शन के बल पर चुना गया है। इसके चलते वर्मा राष्ट्रीय टीम में खेलने वाले फाजिल्का में सबसे छोटी आयु के पहले खिलाड़ी बन गए हैं। आने वाले दिनों में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली व गोवा में और भी ट्रायल लिए जाएंगे। सभी राज्य की एक एक टीम बनाकर गोवा इवैंट में भाग लेने के लिए दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटर नैशनल एयरपोर्ट से गोवा रवाना होगी। लुधियाना ट्रायल आयोजन में कौंसलर बलजिन्द्र संधू, मनु, सैम वर्मा, शम्मी, गगन, हरप्रीत सिंह, दीपक अमृतसर ने सहयोग दिया। 

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Oct 26, 2018

बिर्मिंघम से मंगवाया गया था फाजिल्का के क्लॉक टॉवर का क्लॉक !Clock Tower of Fazilka's clock was arranged from Birmingham !

बिर्मिंघम से मंगवाया गया था फाजिल्का के क्लॉक टॉवर का क्लॉक  !
Clock Tower of Fazilka's clock was arranged from Birmingham !



Lachhman Dost Fazilka


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Oct 2, 2018

Om Press and Ram Press Fazilka

¥æð× Âýðâ ¥æñÚU ÚUæ× Âýðâ

Õèâßè´ âÎè ·ð¤ ¥æ»æÁ ×ð´ ȤæçÁË·¤æ §UÜæ·ð¤ ×ð´ ª¤Ù ¥æñÚU M¤§ZU ·¤æ ÃØæÂæÚU ØæñßÙ ÂÚU ÍæÐ ÕæÌ v~vv-vw ·¤è ãñUÐ ÁÕ È¤æçÁË·¤æ ×´ð ¥æð× Âýðâ ·´¤ÂÙè ·ð¤ Ùæ× âð °·¤ ·¤æÚU¹æÙæ ¹éÜæÐ çÁâ×ð´ ª¤Ù ·¤è »æ´ÆðU Õæ´ŠæÙð ·¤æ ·¤æØü ãUæðÌæ ÍæÐ §Uâ·ð¤ ÕæÎ v~vx ×´ð ÚUæ× Âýðâ ·¤è SÍæÂÙæ ·¤è »§üUÐ Øãæ´ ·¤æ çãUâæÕ ç·¤ÌæÕ ÎðßÙæ»ÚUè ×ð´ ç·¤Øæ ÁæÌæ ÍæРȤæçÁË·¤æ ·¤è ª¤Ù ×´ÇUè °ðçàæØæ ×´ð ÂýçâhU ãUæð ¿é·¤è Íè, Üðç·¤Ù v~w® ×ð´ ÂýçÌ·ê¤Ü çSÍçÌ ·ð¤ ·¤æÚU‡æ ÃØæÂæçÚUØæð´ ·¤æð Üæ¹æð´ âð ¥çŠæ·¤ Ùé·¤âæÙ ãUæð »ØæÐ €Øæð´ç·¤ ÜèßÚUÂêÜ ×ð´ Áæ𠪤٠çÎâ´ÕÚU v~v{ ·ð¤ ÙèÜæ× ×ð´ xz ÂñÙè ÂýçÌ ÚUÌÜ ·ð¤ Öæß âð çÕ·¤è ÍèÐ ßãU v~w® ·ð¤ çß·ý¤Ø ×´ð ©Uâ·¤æ Öæß v{ ÂñÙè ÚUãU »ØæÐ §Uâ·ð¤ âæÍ ãUè çßÜæØÌ ·¤è ãé´UÇUè ·¤æ Öæß Öè ÕÎÜ »ØæÐ vx ȤÚUßÚUè v~w® ·¤æð ©Uâ·¤æ Öæß w çàæçÜ´» v®/v ÂñÙè Íæ, Áæð w} çÎâ´ÕÚU v~w® ·¤æð v çàæçÜ´» {/v} ÂñÙè ãUæð »ØæÐ çÁâ ·¤æÚU‡æ ÃØæÂæçÚUØæð´ ·¤æð z® Üæ¹ M¤ÂØð âð ¥çŠæ·¤ Ùé·¤âæÙ ãéU¥æÐ §Uâ ÕæÚÔU ×ð´ v{ ÁÙßÚUè v~wv ·¤æð ÜæãUæñÚU ·ð¤ ÎñçÙ·¤ â×æ¿æÚU ˜æ Îðàæ ×ð´ Üð¹ Öè Âý·¤æçàæÌ ãéU¥æ ÍæÐ §Uâ·ð¤ ÕæÎ v~xv ×´ð °·¤ ÕæÚU ÂéÙÑ §Uâ ÃØæÂæÚU ×ð´ ãUæçÙ ãéU§üUР

Om Press and Ram Press
In the early twentieth century, trade of wool and cotton was on puberty in Fazilka area. The point is 1911-12. When Fazilka opened a factory under the name of Om Press Company. In which the work of tying wool was made. After this, the Ram Press was established in 1913. Here the account was used in Dev-Nagari. Fazilka's wool market was well-known in Asia, but due to adverse conditions in 1920, traders suffered more than millions of lives. Because the wool in Liverpool was sold at auction in December 1916 for 35 paisa per ralph. In the sale of 1920, his price remained 16 penny. Along with that, the price of the bill of luxury was changed too. On February 13, 1920, its price was 2 shilling 10/1 paani, which became a shilling 6/18 on December 28, 1920. That is why traders suffered more than Rs 50 lakh. An article was also published in this regard on January 16, 1921 in Lahore's daily newspaper 'Desh'. After this, there was a loss in this trade once again in 1931.
-Lachhman Dost Fazilka-
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Sep 28, 2018

After the murder of Sandrass arrived in Fazilka Shaheed-Azam S. Bhagat Singh

सांडर्स की हत्या के बाद फाजिल्का पहुंचे
शहीदे-आजम स.भगत सिंह

   शहीद किसी भी देश तथा राष्टï्र अमूल्य निधि होते हैं। उनका आत्मोत्सर्ग तथा बलिदान ही देशवासियों की सुप्त भावनाओं को नवचेतना प्रदान करके उन्हें जीवन का नया संदेश देते हैं। वे हंसते-हंसते अपना तन, मन और धन देश पर कुर्बान होकर अपने रक्त से स्वाधीनता का वृक्ष सिंचित करते हैं। उनके रक्त के संचार से स्वाधीनता का वृक्ष हरा-भरा रहता तथा फलता-फुलता रहता है। सच्चे देश भक्त ही जनता का पथ प्रदर्शन करके उन्हें देश के लिए जीने तथा मरने की प्रेरणा देते हैं। इस कतार में शहीद-ऐ-आजम स.भगत सिंह का नाम सबसे आगे है। जिनका स्मरण होते ही प्रत्येक भारतीय नत-मस्तक हो जाता है। उनकी देश भक्ति के किस्सों की कड़ी फाजिल्का क्षेत्र से भी जुड़ी हुई है। 
           3 अक्तूबर 1928 में साईमन कमिशन लाहौर पहुंचा तो वहां पर भारतीयों ने कमिशन की डटकर खिलाफत की। इस पर ब्रिटिश अधिकरियों ने अन्यों देश भक्तों सहित लाला लाजपत राय जैसे सरीखे नेता पर भी लाठियों बरसाई। 17 दिसंबर 1928 के दिन जब लाला जी की मौत हो गई तो भगत सिंह ने इसका बदला लेने की ठान ली। बदला लेने के लिए स. भगत सिंह ने ब्रिटिश अधिकारी सार्जेंट स्कॉट समझकर मोटर साईकल पर आ रहे सार्जेंट सांडर्स को गोली से उड़ा दिया। जिससे ब्रिटिश सम्राज्य में खलबली मच गई और ब्रिटिश अधिकरियों ने स. भगत सिंह को ढूंढने को अभियान तेज कर दिया। स. भगत सिंह अनेक जगहों से होते हुए फाजिल्का तहसील के गांव दानेवाला में पहुंचे। जहां उन्होंने अपने देश भक्त साथी स. जसवंत सिंह दानेवालिया घर में पनाह ली। स. भगत सिंह दिन के समय भेष बदलकर अन्य देश भक्तों के साथ अपने सबंध कायम रखते और रात के समय दानेवालिया के घर लौट आते। जहां वह स. जसवंत सिंह क बाहरले घर की हवेली में ठहरते। स. भगत सिंह वहां कई महीनों तक रहे। वहां से जाते समय स.भगत सिंह ने गांव के लुहार हाजी करीम से अपनी पिस्तौल की मुरम्मत करवाई। 1929 में गिरफ्तारी के बाद स. भगत सिंह ने पुलिस को यह बता भी दिया कि इस दौरान उन्होंने कहां-कहां पनाह ली? इसके बाद ब्रिटिश पुलिस ने गांव में छापामारी करके घर-घर की तलाशी ली और ग्रामीणों से स. भगत सिंह के बारे जानकारी हासिल करने का प्रयास किया। लेकिन किसी भी ग्रामीण ने स. भगत सिंह के गांव में छुपे रहने की बात नही बताई। बेशक ब्रिटिश पुलिस को पता चल चुका था कि स. भगत सिंह ने गांव दानेवाला में पनाह ली थी। मगर ग्रामीणों द्वारा इसकी जानकारी नहीं देने पर पुलिस ने स्वतन्त्रता सेनानी दानेवालिया परिवार के किसी सदस्य को तंग नहीं किया और न ही उन्हें  किसी झूठे मुकदमे में फंसाने की जुर्रत की। उधर अदालत में स.भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव पर मुकदमा गया। जिसमें इन देश भक्तों को फांसी का आदेश दिया गया। भारत माता को ब्रिटिश साम्राज्य की जंजीरों से मुक्त कराने वाले इन देश भक्तों को फांसी देने के बाद फिरोजपुर में हुसैनीवाला निकट सतलुज दरिया किनारे अंतिम संस्कार किया गया। उनकी राख दरिया के पानी में बही और दरिया का पानी राख को बहाकर फाजिल्का तक ले आया । जिससे फाजिल्का की धरती ओर भी पवित्र हो गई।
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साभार: पंजाब के पूर्व इंस्पैक्टर जनरल ऑफ पुलिस स.भगवान सिंह दानेवालिया की पुस्तक 20वीं सदी दा पंजाब पृष्ठ नं.78 
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After the murder of Sandrass arrived in Fazilka
 Shaheed-Azam S. Bhagat Singh
   Martyrs are priceless funds in any country and nation. Their self-sacrifice and sacrifice give new message of life to them by giving a new thought to the dormant feelings of the countrymen. They laugh and eat their body, mind and wealth on the country and consume the tree of freedom from their blood. From the communication of their blood, the tree of independence remains green and flourishes. True country devotees show the path of the masses and inspire them to live and die for the country. In this line, the name of Shaheed-e-Azam S. Bhagat Singh is at the forefront. Whenever they are remembered, every Indian becomes a master. His country is also linked to the fajilka region of the stories of devotion.
   When the Simon Commission reached Lahore on October 3, 1928, Indians there protested against the commission and made the Khilafat. On this, British officials also lashed the sticks on other leaders like Lala Lajpat Rai, along with other country's devotees. On 17th December, 1928, when Lala Ji died, Bhagat Singh decided to take revenge. To take revenge Bhagat Singh blamed Sgt Sanders, who came to the motor cycle, as British officer Sergeant Scott. This led to a stir in the British Empire and the British officers did. Extending the campaign to find Bhagat Singh S Bhagat Singh, through many places, reached Phajilka Tehsil's village, Danewalia. Where he is a devotee of his country. Jaswant Singh took refuge in Danewalia house. S Bhagat Singh kept changing his identity during the day while other countries kept their relationship with the devotees and returned to the home of Danewaliya at night. Where he is Jaswant Singh lives in the house mansion of Jaswant Singh. S Bhagat Singh stayed there for several months. While going from there, Mr. Bhagat Singh made a pledge of his pistol from Lohar Haji Karim of the village. After the arrest in 1929 Bhagat Singh also told the police that where did he take refuge during this period? After this, the British police conducted raids in the village and searched the house and demanded from the villagers. He tried to get information about Bhagat Singh. But any villager Bhagat Singh did not talk about being hidden in the village Of course, the British police had come to know that Bhagat Singh took refuge in village Danewaliya. But when the villagers did not give this information, the freedom fighter did not disturb any member of the Danawalia family nor did they try to trap him in a false suit. In the court there, S. Bhagat Singh, Rajguru and Sukhdev were sued. In which these countries were ordered to hang the devotees. After hanging the country's devotees, who liberated Bharat Mata from the chains of the British Empire, the last rites were performed at Sutlej River beside Hussainiwala near Ferozepur. In the water of his ash river, water and water of the river brought ash to Fazilka. By which the land of Fazilka became sacred too.
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Credit: 20th sadi Da Punjab, page number 78, written by former Inspector General of Police, Punjab, Bhagwan Singh Denewaliya.

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Sep 27, 2018

Buildings - Something Still Strong Vill- Diwan Khera Fazilka

इमारतें - कुछ आज भी बुलंद हैं 
Jyoti Public High School Vill Diwan Khera
फाजिल्का जिले का गावं दीवान खेड़ा की यह इमारतें भारत विभाजन से पहले की हैं -
जो आज भी बुलंद इमारतें हैं -
इन इमारतों के निर्माण के लिए सामान कराची से मंगवाया गया था - 
Buildings - Something Still Strong
The buildings of Fazilka District, Lachhman Dost Fazilka 
Diwan Khera, have been preceded by the partition of India -
which are still high buildings - goods were constructed from Karachi for the construction of these buildings -

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Sep 25, 2018

(Babu Rajjab Ali dee kothi)


ਬਾਬੂ ਰਜਬ ਅਲੀ ਦੀ ਕੋਠੀ(Babu Rajjab Ali dee kothi)

ਪਿੰਡ Dhippan wali ਦੇ ਕੋਲ ਅਰਨੀਵਾਲਾ ਮਾਈਨਰ ਤੇ ਬਾਬੂ ਰਜਬ ਅਲੀ ਦੀ ਕੋਠੀ ਹੈ, 1939 ਵਿਚ ਜਦੋ ਮਾਈਨਰ ਬਣੀ ਸੀ- ਓਦੋਂ ਬੈਂਤ ਛੰਦ ਦੇ ਰਚਨਹਾਰਾ ਬਾਬੂ ਰਜਬ ਅਲੀ ਨਹਿਰੀ ਵਿਭਾਗ ਵਿਚ ਮੁਲਾਜਮ ਸੀ- ਬੁਗੁਰਗ ਦਸਦੇ ਹਨ ਕਿ ਓਦੋ ਫਾਜ਼ਿਲਕਾ ਇਲਾਕਾ ਖੁਸ਼ਕ ਸੀ-ਬਾਬੂ ਰਜਬ ਅਲੀ ਨੇ ਕਿਸਾਨਾ ਨੂੰ ਨੇਹਰੀ ਪਾਣੀ ਦੇਣ ਲੈ ਮਾਈਨਰ ਵਿਚੋਂ ਕਈ ਮੋਘੇ ਰਖੇ ਸੀ-ਆਖਦੇ ਹਨ ਕਿ ਬਾਬੂ ਰਜਬ ਅਲੀ ਦੀ 2nd mariage ਪਿੰਡ ਗੰਧੜ ਪਿੰਡ ਦੀ ਬੀਬੀ ਫਾਤਿਮਾ ਨਾਲ ਹੋਈ ਸੀ- ਪਰ ਉਸ ਦੀ ਮੋਤ ਹੋ ਗਈ- ਤੀਸਰੀ ਸ਼ਾਦੀ ਅਬੋਹਰ ਨੇੜੇ ਪਿੰਡ ਕਲਾ ਟਿੱਬਾ ਦੀ ਬੀਬੀ ਰਹਮਤ ਨਾਲ ਹੋਈ ਸੀ- ਯਾਰ, ਇਸ ਮਹਾਨ ਸ਼ਖਸ਼ੀਅਤ ਦੀ ਯਾਦਗਾਰ ਨੂੰ ਵਿਰਾਸਤੀ ਦਰਜੇ ਦਾ ਹੱਕ ਤਾਂ ਮਿਲਣਾ ਚਾਹਿਦਾ ਹੈ -ਕਿਓਂ ਸਹਮਤ ਹੋ ਕਿ ਨਹੀ ? (-NIshan Sandhu)

----LACHHMAN DOST FAZILKA------


Pind Dhippan wali de kol Arniwala Minar te Babu Rajjab Ali dee kothi hai- 1939 vich jado Minar bani see odon Baint Chhand de rachanhara Babu Rajjab Ali Nehri Vichag vich Mulajam see- Akhde han k Babu jee dee 2nd marriage pind gandhar dee bibi Fatima naal hoi see per us dee Death ho gai- 3rd marriage Abohar de pind Kala Tibba dee bibi Rehmat naal hoi see- yaar-is mahan sakhsiyat dee kothi noo Virasti darja milna chahida hai-Kiyon sehmat ho k nahi-
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Sep 24, 2018

Periwal Family Made Ladies Hospital Fazilka

पेड़ीवाल परिवार ने बनवाया जनाना अस्पताल
Ladies Hospital Fazilka

सिविल अस्पताल में महिलाओं के इलाज के लिए अलग वार्ड की जरूरत थी। जिसके चलते पेड़ीवाल परिवार की ओर से सेठ राम नारायण पेड़ीवाल की याद में 1914 में फाजिल्का के सिविल अस्पताल में एडवर्ड मेमोरियल जनाना अस्पताल बनाया गया। जिस पर 10,500 रूपये खर्च किए गए थे। मगर 2011 में यह इमारत गिरा दी गई।

Periwal Family Made Ladies Hospital Fazilka 
There was a need for separate ward for the treatment of women in civil hospital. Because of this, in the memory of Seth Ram Narayana Periwal on behalf of the Periwal family, in 1914, Edward Memorial Janaana Hospital was built at Civil Hospital, Fazilka. On which 10,500 was spent. But this building was dropped in 2011.(Lachhman Dost Fazilka)

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Sep 18, 2018

"Raja Cinema, Sanjeev Cinema Fazilka"

"Raja Cinema, Fazilka"
                               
One of the biggest Hindi film hits in its decade "Anarkali", a 1953 Hindi historical drama based on the historical legend of the Mughal emperor Jahangir was the first movie released in "Raja Cinema, Fazilka" on 24th July 1953.
-------------------------------LACHHMAN DOST FAZILKA------------------------------------
Sanjeev Cinema Fazilka" 
Do You Know "Amar Akbar Anthony" was the first hindi movie screened in Sanjeev Cinema, Fazilka on 23rd December 1977
-Thx- The Retreat Cafe - Fazilka

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Sep 17, 2018

Kari kitte mail Rabba Dilhi te Lahor daa

ਕਰੀ ਕਿਤੈ ਮੇਲ ਰੱਬ ਦਿਲੀ ਤੇ ਲਾਹੌਰ ਦਾ 

ਇਹ ਰੇਲਵੇ ਲਾਈਨ ਕਦੇ ਕਰਾਚੀ ਤਕ ਜਾਂਦੀ ਸੀ - ਪਰ ਹੁਣ ਚੱਕਰ ਵਾਲੇ ਝੁਗੇ ਤਕ ਦੀ ਯਾਦ ਹੀ ਰਹਿ ਗਈ - ਬੜਾ ਦੁਖ ਹੈ - ਵਿਭਾਜਨ ਦੀ ਚੰਦਰੀ ਅੱਗ ਨੇ ਫਾਜ਼ਿਲਕਾ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿਚ ਵੀ ਵਡੀ ਰੁਕਾਵਟ ਪਾਈ ਹੈ -

Kari kitte mail Rabba Dilhi te Lahor daa 
 Eh Railway Line kade KARACHI tak jandi see- per hun chakker wale jhuge tak dee yaad hee reh gai * bahut afsos hai - Partition dee chandri agg ne Fazilka de vikas vich bahut Rukawat pai hai
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Sep 16, 2018

ਪਿੰਡ ਲਾਧੂਕਾ LADHU KA VILLAGE

ਪਿੰਡ ਲਾਧੂਕਾ LADHU KA VILLAGE

ਲਾਧੂਕਾ ਪਿੰਡ ਲਾਧੋ ਖਾਨ ਵੱਟੂ ਨੇ ਵਸਾਇਆ ਸੀ - ਉਸਦਾ ਇਕ ਪੁੱਤਰ ਵਲੀ ਮੁਹਮਦ ਅੰਨਾ ਸੀ, ਪਰ ਨਿਆ ਸਹੀ ਕਰਦਾ ਸੀ- ਇਕ ਵਾਰੀ ਚੋਰੀ ਦੇ ਇਕ ਕੇਸ ਵਿਚ ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਨੂੰ ਸਜਾ ਦਿਤੀ ਸੀ, ਸਜਾ ਪਤਾ ਹੈ ਕੀ ਸੀ ?
ਸਜਾ ਸੀ ਕਿ ਲਾਧੋਕਾ (ਲਾਧੂਕਾ) ਤੇ ਲਾਗਲੇ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਲੜਕੀਆਂ ਦੇ ਵਿਆਹ ਵਿਚ ਘਿਓ, ਗੁੜ, ਦੁਧ, ਲੱਸੀ ਤੇ ਬਰਾਤੀਆਂ ਦਾ ਸਾਰਾ ਖਰਚ ਓਹ ਕਰੇਗਾ - ਕੀਤਾ ਵੀ ਸੀ , ਕੀ ਅੱਜਕੱਲ ਏਹੋ ਜਿਹਾ ਨਿਆ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ? ਲਾਧੋ ਖਾਨ ਦੇ ਇਕ ਪੁੱਤਰ ਨਿਜ਼ਾਮ ਉਦ ਦੀਨ ਸਰਦਾਰ ਓਨ੍ਰੇਰੀ ਮਜਿਸਟ੍ਰੇਟ ਸੀ, ਜਿਸ ਨੇ ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਇਹ ਮਸਜਿਦ ਬਨਵਾਈ ਸੀ - ਮੇਨੂ ਇਹ ਕਹਾਣੀ ਦੱਸੀ ਹੈ ਬੁਜੁਰਗ ਬਾਬੂ ਰਾਮ arora ਨੇ (LACHHMAN DOST FAZILKA)

--- LADHUKA VILLAGE
Ladhika pind ladho khan wattoo ne vasaya see. us da ik putter wali mohammad anna see - par niya sahi karda see- ik wari chori de ik kesh vich us ne apne putter noo saza ditti see- saza pta hai kee see ?
saza eh see k ladhuka te lagle pindan vich jis ladki (Girl) daa viah hovega us vich ghiyo, gud, dudh te lassi deve ga- baraat dee seva vee karega - kita vv inj- KI ajj kall is taran da NIYA hunda hai - us da ik putter Nizam-ud-din onreri Mazistret see - jis ne pind vich maszid banvai see - mainu eh gall dassi hai Bujurg Babu Ram Arora ne
-- is maszid te likhya hai Nizam-ud-din
(LACHHMAN DOST FAZILKA) Writter - Fazilka Ek Mahagatha

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Sep 15, 2018

Builder of bungalow(Fazilka)- Once Agnew's journey from Calcutta to Multan

बंगला के निर्माणकर्ता
वन्स एगन्यू का कलकता से मुल्तान तक का सफर 
Bangla
    सतलुज दरिया के किनारे हरियाली, लहलहराते खेत, कहीं धूल, कहीं जंगल। यह अदभुत व मनमोहक नजारा, उन ग्रामीणों के लिए तो कोई नया नहीं था। जो बरसों से इस नजारे के आसपास रह रहे थे, लेकिन उस व्यक्ति के लिए यह नजारा वास्तव में अनूठा था, जिसने यहां एक शहर बसाने की सोची। वैसे कोई शहर बसाया नहीं जाता। अलबत्ता शहर खुद ही बस जाता है, लेकिन उसमें किसी न किसी व्यक्ति का हाथ, सहयोग और समपर्ण जरूर होता है। ऐसे ही एक शख्स थे, वंस एगन्यू यानि पैट्रिक वंस एगन्यू। वंस एगन्यू तो उनका सर नेम था। उनका असली नाम था, पैट्रिक एलैगजेंडर। सर नेम मिलने के बाद उनका नाम पैट्रिक एलेगजेंडर वंस एगन्यू पड़ गया। वंस एगन्यू एक ऐसे ब्रिटिश अधिकारी थे जो पंजाबी भाषा का भी ज्ञान रखते थे। उनका फाजिल्का को बसाने की राह में अहम योगदान है। फाजिल्का के इतिहास में बंगले की दास्तान के जिक्र दौरान मुस्लमान फजल खां वट्टू के नाम के साथ वंस एगन्यू का जिक्र जरूर होगा। पिता के नक्शे कदमों पर चलकर ब्रिटिश आर्मी में भर्ती होने वाले वंस एगन्यू बंगाल सिविल सर्विस में तैनात हुए। इसके बाद उन्हें ब्रिटिश सरकार ने भटियाणा में सहायक सुपरिटेडेंट के पद पर तैनात किया गया। वह एक सियासी अधिकारी की कला में माहिर हो गए। हालांकि उनकी आयु कम थी। मगर ब्रिटिश अफसरों में उनका प्रदर्शन अच्छा रहा। उनका मनपसंद काम था शहरों को आबाद करना। वह जहां भी गए। शहरों के विकास में उनका अह्म योगदन रहा। बात चाहे फाजिल्का की हो या लाहौर की। वह तीन बातों में इतफाक रखते थे, पहली बात किसी चीज को आरंभ करने के लिए सही जगह क्या है? दूसरा किन लोगों को मिलना या सुनना चाहिए? उनके जहन में तीसरी बात यह थी कि सब से महत्वपूर्ण कार्य क्या है, जिसे प्राथमिकता के आधार पर किया जाए। इस सोच को आधार मानकर ही उन्होंने फाजिल्का शहर बसाने में प्राथमिकता से काम किया।                       
  फाजिल्का में बंगले के निर्माणकर्ता ब्रिटिश अधिकारी पैट्रिक एलेगजेंडर वन्स एगन्यू ने भले ही ब्रिटिश साम्राज्य में सिर्फ 7 साल तक सेवा की, लेकिन इस सेवा दौरान उन्होंने ऐसी कई भूली बिसरी यादें छोड़ी जो अमिट यादें बनकर रह गई। कलकत्ता में उन्होंने 3 साल गुजारे तो फाजिल्का में वह 2 साल रहे। फाजिल्का में उन्होंने एक ऐसे बंगले का निर्माण करवाया। जिसके नाम पर क्षेत्र का नाम बंगला ही पड़ गया। हॉर्श शू लेक किनारे निर्मित इस बंगले की धूम दूर-दूर तक रही है। बंगला नामक इस कस्बे को खुशहाली देने के पश्चात उन्हें लाहौर में तैनात कर दिया गया। वहां से मुलतान तक के सफर में उन्हें कई खट्टे-मीठे अनुभव हुए। मुल्तान में दूसरा सिक्ख एंग्लो युद्ध शुरू हुआ तो उनकी जिंदगी का अंतिम सफर भी समाप्त हो गया। 
    वन्स एगन्यू का जन्म 21 अप्रैल 1822 को नागपुर में पैट्रिक वन्स एगन्यू के घर हुआ। उसकी माता का नाम कैथराइन फरेसर था। उनके पिता मद्रास आर्मी में लेफ्टीनेंट कर्नल थे। जिन्होंने सिक्ख व ब्रिटिश साम्राज्य के निणार्यक युद्ध पहले एंगलो सिख युद्ध सन् 1845-1846 में भी भाग लिया। मार्च 1841 में बंगाल सिविल सर्विस में ज्वाइंन करने वाला युवा वंस एगन्यू 1844 में फाजिल्का में बंगले का निर्माणकर्ता बन गया। उन्होंने बहावलपुर के नवाब मुहम्मद बहावल खान।।। से जगह ली और बाधा झील यानि हार्श शू लेक के किनारे एक विशाल बंगले का निर्माण करवाया। बंगले में हर सरकारी व गैर सरकारी काम होने लगे। दूरदराज से लोग यहां न्याय पाने के लिए आने लगे। बंगला नाम प्रत्येक व्यक्तिकी जुबान पर चढ़ गया। सब लोग बंगला का नाम पुकारने लगे। यही कारण है कि फाजिल्का नाम से पहले नगर का नाम बंगला हुआ करता था। बुजुर्ग आज भी शहर को फाजिल्का कम और बंगला ज्यादा पुकारते हैं। वंस एगन्यू सियासी ब्रिटिश अफसर थे, इस कारण हर सियासी नेता का यहां आना-जाना था। सियासी नेता ही नहीं, प्रत्येक ब्रिटिश अफसर भी यहां पहुंचते। सिरसा के अलावा मालवा, सतलुज राज्य की बैठकें यहां होने लगी। एक युवा अफसर के नेतृत्व में बंगला का नाम चंद ही महीनों में मशहूर हो गया। यहीं से शुरू हुआ बंगला नगर के निर्माण का कार्य। इधर वंस एगन्यू ने 1844 में बंगले का निर्माण करवाया, उधर दीवान मूल चंद को मुल्तान का गर्वनर बनाया गया। 
          इस पद के बदले वह लाहौर सरकार को 20 लाख रूपए वार्षिक अदा करता था। जबकि कई इतिहासकारों ने इस की अदायगी की रकम 12 लाख रूपए बताई है। सभराओं की लड़ार्ई में विजयी होने के बाद अंग्रेजों ने लाहौर की तरफ कूच किया तो किसी ने उन की खिलाफत नहीं की। आखिर 20 फरवरी 1846 को अंग्रेज सेना लाहौर पहुंच गई। इस बीच बंगला नगर की प्रसिद्धी पंख फैला रही थी। एक खुशहाल और ऐगन्यू के सपनों का नगर बसने की योजना तैयार हो रही थी कि वंस एगन्यू का यहां से 13-12-1845 को फिरोजपुर का अतिरिक्त चार्ज दे दिया गया। जहां वह से 23-02-1846 तक रहे। उसके बाद एगन्यू का तबादला लाहौर कर दिया गया। लाहौर सिक्खों की राजधानी थी। वहां भी वंस एगन्यू ने शहर के विकास को ओर आगे बढ़ाया उधर धीरे-धीरे पंजाब के चिलियांवाला, गुजरात, राम नगर और लाहौर में अंग्रेजों के खिलाफ दूसरे युद्ध की तैयारी शुरू होने लगी। 
            पहले एंग्लो-सिक्ख युद्ध सन् 1845-1846 के बाद अंग्रेजों ने जालंधर दोआब में कब्जा जमा लिया था। युद्ध के बाद सिक्ख कमजोर पड़ चुके थे। शासन प्रणाली का कंट्रोल ब्रिटिश सरकार ने अपने हाथों में ले लिया। अंग्रेज महाराजा रणजीत सिंह के समय से ही लाहौर को घेरने की नीति बना चुके थे। जब अंग्रेज लाहौर पहुंचे तो उन्होंने महाराजा रणजीत सिंह की एक पत्नी महारानी जिन्द कौर को डेढ़ लाख रूपए की वार्षिक पैंशन तय कर दी। जो बाद में 48 हजार रूपए वार्षिक की गई। उन्हें पहले शेखू पुरा और बाद में बनारस भेज दिया गया। युद्ध का एक अन्य कारण यह भी था कि पहला ऐंग्लो सिक्ख युद्ध में हार का बदला लेने की भावना अंगेजों के दिल में घर कर चुकी थी। इस बीच शुरू हो गया मुलतान के सूबेदार दीवान मूलराज का विद्रोह। इस विद्रोह में ही बंगले नगर के निर्माणकर्ता वंस एगन्यू को मार दिया गया। जो एक इतिहास बन गया। यह दास्तान भी बड़ी अजीब है। इस अनोखी दास्तान के पन्ने बताते हैं कि 20 फरवरी 1846 को जब अंगे्रजों ने लाहौर का शासन प्रबंध अपने हाथों में ले लिया तो उन्होंने मूलराज का टैक्स 20 लाख रूपए से बढ़ाकर 30 लाख रूपए वार्षिक दिया। (फॉर्मली हैड, पोस्ट ग्रेजूऐट डिपार्टमेंट ऑफ हिस्ट्री आर्य कॉलेज लुधियाना के श्री एस.पी. सभ्रवाल ने पंजाब के इतिहास में यह टैक्स 12 से बढक़र 18 लाख रूपए बताया है। साथ ही उन्होंने राज्य का 1/3 हिस्सा भी लेना बताया गया है।) टैक्स ज्यादा होने के कारण दीवान मूल राज ने इसे अदा करने में असमर्था जताई, लेकिन अंग्रेज नहीं माने। अपीलों के बावजूद इंकार होता रहा तो दीवान मूल राज ने पद से इस्तीफा दे दिया। अंग्रेज तो पहले ही इस ताक मेें थे और मार्च 1848 में नएं रैजीडेंट फ्रैड्रिक करी ने मूलराज का इस्तीफा स्वीकार कर लिया, लेकिन शायद वे यह नहीं जानते थे कि सिक्खों का विद्रोह उन पर भारी पड़ सकता है। दूसरी तरफ उनकी सोच का एक हिस्सा यह भी था कि अंग्रेज विद्रोह को जान-बुझ कर हवा देना चाहते थे ताकि उन्हें पंजाब पर कब्जे का एक बहाना मिल जाए। अधिक मजबूती के लिए ब्रिटिश साम्राज्य ने काहन सिंह को मुल्तान का सूबेदार घोषित कर दिया। उनकी सहायता के लिए बंगला (फाजिल्का ) के निर्माणकर्ता वंस एगन्यू और विलियम एंडरसन को भेजा गया। 19 अप्रैल 1848 को दीवान मूल राज ने खुशीपूर्वक नए सूबेदार को चार्ज दे दिया। अंग्रेजों की ओर से नया सूबेदार बनाने से मुल्तानी सैनिक खुश नहीं थे। उन्होंने विद्रोह शुरू कर दिया। जब वंस एगन्यू और विलियम एंडरसन के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना विद्रोह दबाने के लिए मुलतान की ओर बढ़ी तो मुलतानी सैनिक और भडक़ उठे। सिक्खोंं को पता चला कि ब्रिटिश सैनिक वंस एगन्यू और विलियम एंडरसन के नेतृत्व  मेेंं आगे बढ़ रहे हंै तो उन्होंने बृज पार करते समय दोनों अंग्रेज अफसरों को घोड़े से नीचे उतार लिया और उन्हें बुरी तरह से मारपीट करके घायल कर दिया गया। युद्ध शुरू हो गया। सिक्ख व ब्रिटिश सैनिकों के तेजधार हथियार एक दूसरे पर धड़ाधड बरसने लगे। मैदान लहूलुहान हो गया। वहां से घायल वंस एगन्यू व विलियम ऐंडरसन को ब्रिटिश सैनिक पनाह यानि ईदगाह में ले गए। मुलतानी सैनिकों में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति नफरत की ज्वाला पूरी तरह भडक़ चुकी थी। 20 अप्रैल 1848 की सांय सिक्खों का झुंड वंस एगन्यू और विलियम एंडरसन की पनाहगाह में घुस गया और दोनों ब्रिटिश अफसरों को मार दिया। यहीं से बंगला के निर्माणकर्ता वंस एगन्यू की जिंदगी के सफर की आखरी राह बंद हो गई। इधर वंस एगन्यू की ओर से बनाया गया बंगला की निगरानी के लिए सिरसा के डिप्टी कमिशनर जे.एच.ओलिवर को कमान दी गई। उन्होंने यहां बरसों तक अपनी धाक जमाई और फाजिल्का को विकास की राह पर अग्रसर किया। वंस एगन्यू का बसाए बंगले की धूम तो आज भी है, लेकिन उनके द्वारा निर्मित बंगला में वो शान नहीं रही। बाधा झील का अस्तित्व भी खत्म हो गया। रह गया तो सिर्फ उनकी यादें, जो इतिहास के पन्नों पर है। 
--LACHHMAN DOST FAZILKA-
Builder of bungalow
Once Agnew's journey from Calcutta to Multan
. No such city is settled. But the city itself settles itself, but there is of course someone's hand, cooperation and support from him. There was such a man, Vans Agnew i.e. Patrick vans Agnew Vans Agnew was his Sir Name. His real name was Patrick Alexander. After getting the Sir name, his name Patrick Alexander vans Agnew fell. Once Agnew was a British officer who also had knowledge of Punjabi language. They have a significant contribution in the path of settling their Fazilka. During the mention of the bungalow's story in the history of Fazilka, there must be mention of Vans Agnew with the name of Muslim Fazal Khan Vattu. Following on the map steps of the father, Vans Agnew, who was admitted to the British Army, was posted in the Bengal Civil Services. After this he was deployed as Assistant Superintendent of Bhatiana by the British Government. He specializes in the art of a political officer. Although his age was low. But his performance in British officers was good. His favorite work was to populate cities. Where did he go? His pride in the development of the cities remained. Whether it is Fazilka or Lahore He kept in three things, first thing, what is the right place to start something? What other people should meet or hear? The third thing in his mind was that what is the most important task, which is done on priority basis. Based on this thinking, he worked primarily in settling the city of Fazilka.
  British physicist Patrick Alexander van Agnue, the builder of the bungalow in Fazilka, served for only 7 years in the British Empire, but during this service he left many forgotten memories, which remained unmatched memories. In Calcutta, he lived for 3 years, he lived for two years in Fazilka. In Fazilka, he built a bungalow. The name of the area, named after it, was a bungalow. The bungalow built on the edge of Horsh Shoe Lake has been far away. After the prosperity of this town named Bangla, he was deployed in Lahore. From there there have been many sour experiences in traveling to Multan. If the second Anglo-Sikh war broke out in Multan, the final journey of their life ended.
    Once Agnu was born on April 21, 1822 in Nagpur, Patrick Vans Agnew's house. His mother's name was Katherine Fareser. His father was a lieutenant colonel in the Madras Army. Who participated in the Anglo Sikh war, 1845-1846 before the decisive battle of Sikhism and British Empire. Young Vance Agnew, who joined the Bengal Civil Service in March 1841, became the builder of the bungalow in Fazilka in 1844. He is the Nawab Muhammad Bahawal Khan of Bahawalpur ... From the place and construct a huge bungalow on the banks of the Barrier Lake i.e. Harsh Shu Lake. Every government and non-government work started to be done in the bungalow. People come from far away to come here to get justice. Bangla name climbed on every individual expression. Everyone started calling the name of Bangla. This is the reason that the name of the city used to be named bungala before the name of phazilka. Even the elderly still call the city down to Fazilka and bungalow more. Vans Agnew was a political British officer, for this reason every political leader had to come here. Not only the political leader, every British officer also goes here. In addition to Sirsa, meetings of the state of Satluj in Malwa, were started here. Under the leadership of a young officer, the name of Bangla became famous in only a few months. This is where the construction of Bangla Nagar started from here. Here, Vans Agnew built a bungalow in 1844; On the other hand, Diwan Mool Chand was appointed the governor of Multan.
          In exchange for this post, he used to pay Rs 20 lakh annually to the Lahore Government. While many historians have reported the payment amount of Rs 12 lakhs. After victorious in the battle of the all-rounds, the British traveled towards Lahore, then no one gave a protest against them. After all, the British army reached Lahore on February 20, 1846. In the meantime Bangla Nagar's publicity was spreading wings. There was a plan to settle a happy and happy city of Agnew, that Vans Agnew was given additional charge of Ferozpur on 13-12-1845 from here. Where he stayed from 23-02-1846. After that, Agnew was transferred to Lahore. Lahore was the capital of the Sikhs. Even there, Van Agnew proceeded towards the development of the city, and gradually the preparations for the second war against the British in Chilianwala, Gujarat, Ram Nagar and Lahore began to begin.
            After the first Anglo-Sikh war, 1845-1846, the British had occupied Jalandhar Doab. After the war, the Sikhs were weakened. The British government took control of the governance system. From the time of the British Maharaja Ranjit Singh, the policy of enclosing Lahore was made. When the British arrived in Lahore, he fixed an annual pension of 1.5 lakh rupees to Maharani Jind Kaur, a wife of Maharaja Ranjit Singh. Which was later made 48 thousand rupees annually. She was first sent to Shekhu Pura and later to Banaras. Another reason for the war was that the first Anglo Sikh had made a sense of revenge for the defeat in the war, in the heart of Angaz

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Sep 13, 2018

Mahajani in the south east, village of Wattu, Chishti and Bodla in north west

दक्षिण पूर्व में महाजनी, उत्तर पश्चिम में वट्टू, चिश्ती और बोदला के गांव


         सबसे पहले पश्चिम की तरफ से आए वट्टू, चिश्ती व बोदला जाति के लोगों ने दरिया किनारे बसेरा किया। ओढ़ जाति अबोहर रोड के आसपास बस गई। इन गांवों पर ममदोट और बहावलपुर के नवाबों का नियंत्रण था। जो कि लड़ाईयों द्वारा स्थापित किया हुआ हैं। इन पर 13 अगस्त 1809 से 17 अप्रैल 1826 तक सादिक मुहम्मद खां द्वितीय का नियंत्रण था। बाद में 19 अक्तूबर 1843 तक मुहम्मद बहावल खां तृतीय ने अपनी धाक जमाई। धीरे-धीरे दक्षिण की तरफ 129 गांव बने, इनमें मुख्य गांव मलोट था। दक्षिण पूर्व की तरफ 45 महाजनी गांव थे। उत्तर पश्चिम की तरफ वट्टू चिश्ती जाति के 80 गांव और बोदला के 39 गांव थे। अंग्रेजों के आने पर सतलुज दरिया के नीचे का भू-भाग बहावलपुर के नवाब  मुहम्मद बहावल खां तृतीय ने त्याग दिया। -LACHHMAN  DOST   FAZILKA-
Mahajani in the south east, village of Wattu, Chishti and Bodla in north west
         First of all, the people of the Wattu, Chishti and Bodala's who came from the west, lived in the riverside. Oudh caste settled around Abohar Road. These villages were under the control of the Nawabs of Mamdot and Bahawalpur. Which are established by the fight. These were the control of Sadiq Muhammad Khan II from 13 August 1809 to 17 April 1826. Later on 19th October 1843, Muhammad Bahawal Khan III took his courage. Slowly, towards the south, 129 villages were built, Malout was the main village. There were 45 Mahajani villages on the southeast side. On the north west, there were 80 villages of Vatu Chishti caste and 39 villages of Bodla. On arrival of the British, the land under the Sutlej River was abandoned by Nawab Muhammad Bahawal Khan III of Bahawalpur.

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Sep 12, 2018

वट्टू और बोदला के रीति-रिवाज

निकाह कबूल है!
वट्टू और बोदला के रीति-रिवाज
     वट्टू और बोदला जाति के मुरुलमानों के रीति-रिवाज आपस में मिलते-जुलते थे। उनके विवाह की रस्में इक्सवीं सदी के मुसलमानों से कुछ भिन्न थे। ब्रिटिश साम्राज्य में फाजिल्का के सेटलमेंट अधिकारी रहे जे. विल्सन ने मुस्लिम जाति के रीति-रिवाजों पर बारीकी से जांच की और वट्टू व बोदला जाति के रीति-रिवाजों में समानता पाई। जे. विल्सन के अनुसार मुस्लिम जाति की लडक़ी का पिता लडक़ी का निकाह करता था तो वह लडक़े के परिवार की ओर से अपनी लडक़ी के लिए पैसे की मांग करता था। लडक़ी के निकाह के बाद वह पैसा लडक़ी की जायदाद बन जाती थी। मगर जब ब्रिटिश साम्राज्य में मैरिज एक्ट बना तो ब्रिटिश नियमों में मुसलमानों को पुराने रीत रिवाज निभानें में काफीं मुश्किलें पेश आने लगी। नियम लागू होने के बाद जब कोई मुसलमान लडक़ी-लडक़े का रिश्ता जोड़ता तो उन्हें कानून को सबूत देना पड़ता था। जो बोदला और वट्टू जाति की लडक़ी और लडक़े के पिता के लिए एक नियम बन गया। 

     नियम अनुसार कोई मुस्लिम परिवार अपने बेटे की शादी करता तो उन्हें गवाह के तौर पर काजी और मौलवी को बुलाना पड़ता था। शादी में इजाब काबुल को सेवा के लिए बुलाया जाता था। जो शादी करने वाले माता-पिता से पूछते थे कि वह अपने बेटे या बेटी के निकाह को तैयार हैं। एक अन्य नियम मुताबिक लडक़े से भी शादी के लिए पूछा जाता था। जब तक लडक़ा शादी के लिए हां नहीं कहता था, तब तक शादी नहीं होती थी। शादी से पहले अगर लडक़े की मौत हो जाती तो लडक़ी को निकाह करने पर विचार करने का मौका नहीं दिया जाता था। बिरादरी में लडक़ी को विधवा घोषित कर दिया जाता था। विधवा घोषित हो जाने के बाद भी रस्में लगातार जारी रहती थी। सगाई के बाद निकाह की रस्में होती रहती और निकाह कर दिया जाता था। निकाह की रस्में दोबारा नहीं होती थी। इन नए रीति-रिवाजों के कारण यह तय हो गया कि लडक़ी का पिता निकाह के समय जो धन लडक़े वालों से लेता था, वह वापस नहीं किया जाता था। यह लडक़ी और लडक़े के पिता के बीच गवाहों के सामने एक समझौता होता था। उसके बाद ही असली रिश्ता होता था। फाजिलका के दूसरे मुस्लमानों की ओर से काजी और मौलवी को बुलाया जाता था। जो नवविवाहित जोडी को आशीर्वाद देते थे। बोदला, वट्टू, भट्टी और जाईया अंगूठी या कोई अन्य सोने का आभूषण साथ देते थे और कपड़े का आदान-प्रदान करते थे। मुंह की मिठास के लिए चीनी या गुड़ दिया जाता था। 
      ब्रिटिश अधिकारी जे. विल्सन मुसलमानों की शादियों की बारीकी से जांच की और जांच के बाद 1882 ई. में उन्हें मान्यता दी। उनके बनाए गए इस नियम पर फाजिलका और सिरसा में विवादित मामले कम थे। फाजिलका में 9 और सिरसा में सिर्फ पांच फाइले ही विवादित थी।(Lachhman Dost Fazilka)
The marriage is confessed!
Customs of Wattu and Bodla
     The customs of the Mulim of the Wattu and the Bodlas were similar among themselves. The rituals of their marriage were a little different from the Muslims of the XX century. Fazilka's settlement officer in the British Empire, J. Wilson examined the customs of the Muslim race closely and found the similarities in the customs of the Wattu and Bodla castes. J. According to Wilson, the father of a Muslim caste used to marry a girl, then she asked for money for the girl's family on behalf of the girl's family. After the marriage of the girl, that money would become the property of the girl. But when the Marriage Act was made in the British Empire, there was a lot of difficulties in the British rules, to the Muslims in ancient rituals. After the rule was enacted, when a Muslim related the relationship of the girl-girl, they had to give evidence to the law. Which became a rule for the father of Bodla and Wattu caste and the father of the girl.
     According to the law, when a Muslim family married his son, he had to call Kaji and Maulvi as a witness. Ezab Kabul was called for service in marriage. Who asked the married parents to prepare for the marriage of their son or daughter. According to another rule, the girl was asked for marriage too. Until the boy did not say yes to the marriage, the marriage was not there. If the girl dies before marriage, then the girl was not given the opportunity to consider marrying. The girl was declared a widow in the community. Even after the widow was declared, the rituals continued. After the engagement, rituals of marriage and marriage were done. The rituals of marriage did not repeat. Due to these new customs, it was decided that the girl's father who used to take money from the fighters at the time of her marriage did not return. This was an agreement between the girl and the girl of the girl in front of the witnesses. After that there was a real relationship. Kazi and Maulvi were called on behalf of the other Muslims of Fazilka. Who blessed the newly married couple. Bodla, Wattu, Bhatti and Jaya ring or any other gold ornament
ornaments and used to exchange clothes. Sugar or jaggery was given to sweetness of mouth.
      British officer J. Wilson examined the weddings of Muslims closely and after examination he recognized them in 1882. The disputed cases were less in Fazilka and Sirsa on this rule made by them. Only 9 files in Fazilka and 5 files in Sirsa were disputed.

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