punjabfly

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Jul 12, 2018

जाने - किस यूनियन को कब मिली मान्यता 
संस्था का नाम                                                                              कब मान्यता मिली
दी फाजिल्का सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक                                         स्थापित वर्ष 1915 
बार एसोसिएशन का गठन                                                            1930
मुंशी राम चैरीटेबल ट्रस्ट                                                                20 फरवरी 1937
दी आजाद हिन्द रामलीला सोसायटी                                            स्थापित वर्ष 1943
दी फजिल्का को ऑपरेटिव मार्किटिंग सोसायटी फाजिल्का        दो नवंबर 1954 
कॉटन मिल मजदूर यूनियन                                                          25 अगस्त 1967
फाजिल्का सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक इम्प्लाइज यूनियन              01 मार्च 1973
बिस्कुट बेकरी वर्कस यूनियन                                                        07 नवंबर 1973 
सफाई कर्मचारी यूनियन                                                                09 सिंतंबर 1974 
जिला फिरोजपुर कॉटन एंड जिनिंग मिल मजदूर यूनियन         14 अप्रैल 1975
                                       -LACHHMAN DOST- FAZILKA-


The Fazilka Central Co-operative Bank 
established the year 1915
Bar Association formed in 1930
Munshi Ram Charitable Trust                      20 February 1937
The Azad Hind Ramlila Society        established in the year 1943
The Fazilka, operative marketing society- November 2, 1954
Cotton Mill Workers Union - 25 August 1967
Fazilka Central Co-operative Bank Employees Union 
-01 March 1973
Biscuits Bakery Workers Union    07 November 1973
Cleanliness workers union    09 September 1974

District Firozpur Cotton and Jining Mill Workers Union 
14 April 1975
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Jul 11, 2018

तनेजा संगीत कला केन्द्र पर करवाया संगीतमयी कार्यक्रम
                                  फाजिल्का, 11 जुलाई: 
तनेजा संगीत कला केन्द्र फाजिल्का में एक संगीतमयी कार्यक्रम का आयोजन कि या गया। जिसमें गजल सम्राट डॉ. विजय प्रवीण व डॉ. अजय धवन ने विशेष तौर पर शिरकत की। कार्यक्रम की शुरूआत वंश सचदेवा ने गीत सुनाकर की। डॉ. विजय प्रवीण द्वारा गजल व गीत जी वे सोहणेआं जी प्रस्तुत किया गया। गायक वेद हंस ने पंजाब गीत बापू गल्लां दस्स लाहौर दियां सुनाकर गायकी का लौहा मनवाया।

    कोटकपूरा से विशेष रूप से पहुंचे कलाकार प्रीत इन्द्र ने पाकिस्तानी गीत मैनूं यादां तेरीयां आऊंदीयांने, नैन, जुग जुग जीवे व लग गए नैन सुनाकर वाहवाही लूटी। इसके अतिरिक्त संगीत अध्यापक अमित शर्मा, हैप्पी डिलाईट, गौरव, अनिरूद्ध शर्मा, गुरमीत सिंह जस्सल, हरविन्द्र सिंह, प्रभसीरत सिंह, सोनू ने भी गीतों के जरिए अपनी हाजरी दर्ज करवाई। इस मौके गोपाल कुमार ने तबला व रामा पंछी ने ढोलक बजाई। तनेजा संगीत कला केन्द्र द्वारा गायक प्रीत इन्द्र को सम्मान चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। तनेजा संगीत कला केन्द्र के संचालक मनजिन्द्र तनेजा ने बताया कि भविष्य में भी ऐसे संगीतमयी कार्यक्रम का आयोजन किया जाता रहेगा। (LACHHMAN DOST)


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इतिहास के झरोखे से 
बंगला के निर्माण से 41 साल पहले फाजिल्का आए थे दौलत राव सिंधिया 
दि पंजाब, नार्थं-वेस्ट फरांटियर प्रॉविन्स एंड कश्मीर से हुआ खुलासा

लछमण दोस्त
हलांकि बंगला (फाजिल्का) का इतिहास 1844 से शुरू हुआ माना जा रहा है। जबकि इसका इतिहास इससे भी काफी पुराना है। इसका खुलासा 1916 में ब्रिटिश अधिकारी डॉवी की ओर से लिखी गई पुस्तक दि पंजाब, नाथ-वेस्ट फरांटियर प्रॉविन्स एंड कश्मीर से हुआ है। जिसमें बताया गया है कि दौलत राव सिंधिया बंगले के निर्माण से 41 वर्ष पहले फाजिल्का पहुंचा था। उस समय यहां सतलुज दरिया था और आसपास जंगल ही जंगल थे। मगर इस बीच कुछ गांव भी बस चुके थे।
1803 में आया था सिंधिया
जेम्स डॉवी ने पुस्तक में लिखा है कि ब्रिटिश अधिकारी वेलेस्ले के मार्की ने भारत में सुप्रीत पॉवर बनने की सोची। उधर नेपोलियन ने भी भारत पर हमला करने की सोची हुई थी। इधर पंजाब में दौलत राव सिंधिया ने हमला कर दिया, लेकिन वह नाकाम रहा। इसके बाद वह 1803 में फाजिल्का (यह नाम बाद में रखा गया है) पहुंचा और यहां से दिल्ली के लिए कूच किया। पुस्तक में लिखा गया है कि उस समय फाजिल्का पर किसी का कंट्रोल नहीं था।

ओलिवर भी आया था
नंबरदार मिया फ’जल खां वट्टू से 144 रूपये 8 आन्ने में भूमि खरीदकर फाजिल्का शहर बसाने वाला ब्रिटिश अधिकारी फाजिल्का के लिए विकास दूत व प्रभावशाली अधिकारी माना जाता था। शहर के बीचो बीच ओलिवर गंज मार्केट (मेहरियां बाजार) का निर्माण करवाना वाला ओलिवर जिला सिरसा में कस्टम अधिकारी था। हिस्टरी ऑफ सिरसा टाऊन में लेखक जुगल किशोर गुप्ता ने ओलिवर के हवाले से लिखा है कि उस वक्त फाजिल्का में क्षेत्र सुरक्षित नहीं था। यहां से गुजरना खतरे से खाली नहीं था। चोर, डाकू, शेर और सांप जैसे जंगली जानवारों का खौफ था। मलोट रोड और फिरोजपुर रोड पर लोग टोलियां बनाकर गुजरते थे। उस समय बंगले का निर्माण नहीं हुआ था।
बहावलपुर के नवाबों ने किया कंट्रोल
बंगले के निर्माण से पहले यहां बहावलपुर के राजाओं अपना कंट्रोल जमा लिया। ब्रिटिश अधिकारी वंस एगन्यू जब फाजिल्का पहुंचा तो उससे बहावलपुर के नवाब मुहम्मद बहावल खान से जगह ली और हॉर्स शू लेक किनारे बंगले का निर्माण किया। जहां लोग न्याय पाते थे। इस बंगले के कारण फाजिल्का का नाम बंगला पड़ गया।
फाजिल्का में नहीं थी पुलिस पोस्ट
ओलिवर जिला भटियाणा (सिरसा) के सहायक अधिक्षक बने और उनकी फाजिल्का में 1846 में तैनाती की गई। तब फाजिल्का, अरनीवाला और अबोहर तहसील में पुलिस पोस्ट खाली थी। अरनीवाला-जोधका में एक कस्टम पोस्ट थी। ओलिवर ने भूमि खरीदकर फाजिल्का शहर बसाया। 1857 में भारत की आजादी के लिए चले आंदोलन को फाजिल्का में ओलिवर ने ही दबाया था।
बीकानेर के महाराजा से संबंध
ओलिवर के बीकानेर के महाराजा से अ‘छे संबंध हैं। इस बात का पता बीकानेर के राजा की ओर से ओलिवर को लिखे गए पत्रों से इसका खुलासा हुआ है।
From the window of history
Daulat Rao Scindia came to Fazilka 41 years ago by building Bangla
Revealed from The Punjab, North-West Frontier Province and Kashmir
-  Lachhman Dost -
However, history of Bangla (Fazilka) is believed to have started from 1844. While its history is much older than this. The disclosure was made in 1916 by the British official Dovi, a book written by The Punjab, Nath-West Frontier Province and Kashmir. It has been said that Daulat Rao reached Phazilka 41 years ago by building the Scindia bungalow. At that time, there was Sutlej Darya and surrounding forest itself was forest. But in the meantime some villages had settled.
Sindhia came in 1803
In the book, James Dowie wrote that the British officer Wellesley's Marquee thought to be the most powerful power in India. On the other hand, Napoleon had even thought of attacking India. Daulat Rao Scindia attacked here in Punjab, but he failed. After this he reached Phazilka in 1803 (this name was later placed) and traveled to Delhi from here. It has been written in the book that there was no control over Phazilka at that time.
Oliver also came
144,000 from Namdhari Mia Fajjal Kha Watu 8 was considered as a development ambassador and influential officer for Fazilka, a British officer who settled down the city of Phazilka by purchasing land. Oliver district, who was the builder of the Olive Ganj Market (Mehriya Bazaar) in the heart of the city, was a custom officer in Sirsa. Writer Jugal Kishore Gupta in History of Sirsa Town, quoted Oliver, that the area was not safe in Phazilka at that time. Passing through here was not empty from danger. There was a fear of wild boar like thieves, robbers, lions and snakes. People used to make trolley on Malhot Road and Ferozepur road. At that time the bungalow was not built.
Bahawalpur's Nawabs did control
Before the construction of the bungalow, the kings of Bahawalpur got their control here. When the British officer Van Agnew reached Fazilka, he took the place from Bahawalpur's Nawab Muhammad Bahawal Khan and built a bungalow on horse shoe lake. Where people found justice Due to this bungalow, the name of phazilka got bungalow.
Fazilka did not have police post
Olivar became assistant superintendent of Bhatiya (Sirsa) district and his deployment was done in Fazilka in 1846. Then the police post was empty in Fazilka, Arniwala and Abohar tehsil. There was a custom post in Arniwala-Jodhka. Oliver bought the land and built the city of Fazilka. In 1857 Oliver had pressed the movement for India's independence in Phazilka.
Relationship to Maharaja of Bikaner
Olivar has some relation with the Maharaja of Bikaner. This has been revealed to the letter written by Oliver to the King of Bikaner
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I  LOVE  FAZILKA
1- पाकिस्तान के पाकपटन जिला में सरकारी फाजिल्का इस्लामिया हाई स्कूल है। जो 1953 में बनाया गया। स्कूल 19 केनाल में फैला हुआ है।
1- Government Fazilka Islamia High School in Pakistan's Pakpatan district. Which was built in 1953. The school is spread over 19 canal.



2- फाजिल्का में 1846 में पुलिस स्टेशन बनाया गया। जिसमें सहायक कमिश्नर तैनात किया गया। इस दौरान ही कोर्ट हाऊस स्थापित किया गया। 
2- Police station was built in Fazilka in 1846. In which assistant commissioner was deployed. During this time the court house was established.
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3-फाजिल्का से दो किलोमीटर दूर गांव आवा 1850 में ग्रेवाल परिवार की ओर से बसाया गया था। 
3-Village Aawa was built from the village of Gwewal in 1850, two kilometers away from Fazilka.
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4-साधू आश्रम के संचालक स्वामी कुशल दास जी महाराज थे। 
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4-Swami Kushal Das Ji Maharaj was the successor of the Sadhu Ashram.
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5-सुलेमानकी हैड का निर्माण सन् 1926 में किया गया।
5-Sulemaniki Head was constructed in 1926.



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6-ब्रिटिश साम्रज्य ने बंगला के निकट 1928 में मेथोडिस्ट चर्च का निर्माण करवाया। जो बाद में शास्त्री चौंक के निकट स्थापित की गई। 
6-British Empire constructed the Methodist Church in 1928 near Bangla. Which was later established near Shastri Chowk.
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7-फाजिल्का में विधवा विवाह कांफ्रेंस 24 अप्रैल 1934 को हुई थी।
7-Widow Marriage Conference in Fazilka was held on 24th April 1934.
--------------LACHHMAN DOST FAZILKA-

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Jul 10, 2018

                                                              Fazilka Ek Mahagatha


-फाजिल्का बसने से पूर्व बहावलपुर और ममदोट के नवाबों ने यहां कुछ छोटे - छोटे किले बनवाए , मगर उन की सरहदें सही ढंग से नहीं थी जब वट्टु और बहक परगना का आगमन हुआ तो उन्होंने सरहदें निर्धारित कर ली, 
- 1844 में ब्रिटिश अधिकारिओं ने बहावलपुर के नवाबों से जगह का आदान प्रदान कर लिया और इस के बदले नवाबों को सिंध प्रान्त से कुछ जगह दे दी 
-नवंबर 1884 में जब सिरसा जिले के दो हिस्से हुए तब पच्छिम का आधा हिस्सा फाजिल्का तहसील का था और 40 गावं डबवाली तहसील के थे जो फिरोजपुर के साथ जोड़े गए.

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Before the settlement of Fazilka, the Nawabs of Bahawalpur and Mamdot used to build some small fortresses here, but their border was not right when Vattu and Dheka Paragana arrived, they set boundaries,
- In 1844, British officials exchanged space with the Nawabs of Bahawalpur and in exchange for this, the Nawabs gave some place from Sindh province
In November 1884, when Sirsa district had two parts, half of the western part was of Fazilka tahsil and 40 villages were of Dabwali tehsil, which were connected with Ferozepur.
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सुरेश वाला को बनाएंगे हरा भरा: सरपंच सुधीर कुमार      

-पंचायत ने ग्रामीणा के सहयोग से रोपित किए पौधे


फाजिल्का, 10 जुलाई: 

गांव सुरेश वाला को हरा भरा बनाने के लिए ग्राम पंचायत ने ग्रामीणों व बच्चों के साथ मिलकर गांव में पौधे रोपित किए। इस बारे में जानकारी देते हुए सरपंच सुधीर कुमार ने बताया कि घर घर हरियाली स्कीम के तहत गांव सुरेश वाला में पंचायत ने ग्रामीणों व स्कूल के बच्चों के सहयोग से गांव में पौधे रोपित किए ताकि गांव को हरा भरा बनाया जा सके। इस मौके पर सरपंच सुधीर कुमार ने कहा कि लगातार दूषित हो रहे वातावरण को स्वच्छ रखना समय की मांग है। इसलिए हर व्यक्ति को अपने जन्मदिन या शादी की सालगिरह पर पौधे रोपित जरूर करने चाहिए ताकि वातावरण को स्वच्छ बनाया जा सके। इस मौके पर वन विभागके ब्लाक अफसर विनोद कुमार, वन गार्ड सुखदेव सिंह, पंच शिव चंद, ग्रामीण जगमोहन, राहुल, सुमित, रमन, कुलवीर, विक्की, रमेश, संदीप, बब्बलू आदि मौजूद थे।
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                                                     Know about FAZILKA 
                कुछ ऐसे नाम - जिन की है खूब पहचान - चिठ्ठी पत्र पर आज भी वही नाम 

जैसे .........
नाम होटल बाजार - होटल कितने है ? सिर्फ दो - चार ?
नाम मेहरीआं बाजार - क्या कभी देखा है वहां मेहरीआं को ?
नाम - डेड हाउस रोड - इस का मतलब तो समझते होंगे आप ?
नाम- वान बाजार - कहाँ है वान की दूकान ?
नाम - वूल मार्किट - कहाँ है वूल ?
नाम - मुलतानी चुंगी - जहाँ चुंगी नहीं काटी जाती ?
नाम- बीकानेरी रोड , बठिंडा रोड, और भी कई अनूठे नाम हैं बॉस !
क्यों ? हैं ना अनूठे नाम - फिर भी है इन की पहचान - बॉस - यही तो है मेरे फाजिल्का की पहचान !(LACHHMAN DOST)
Know about FAZILKA
Some such names - who have a lot of identity - are still on the same letter even today.
like .........
Name Hotel Market - How much is the hotel? Only two - four?
Name Mehari Bazar - What have you ever seen there?
Name - Dead House Road - What do you mean by this?
Name-Van Bazar - Where is the Van Shop?
Name - Wool Market - Where is Wool?
Name - Multani Chungi - Where Do Taxes Not Cut?
Name: Bikaneri Road, Bathinda Road, and many other unique names are Boss!
Why? There is no unique name - yet the identity of these - boss - that is the identity of my Fazilka!
LACHHMAN DOST FAZILKA

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Jul 9, 2018

Maharaja Ganga Singh took out the Gang Canal

                                      महाराजा गंगा सिंह ने निकाली गंग केनाल
     बीकानेर रियासत को पानी देने वाली गंग केनाल फाजिल्का के क्षेत्र से होकर गुजरती है। इसे सतलुज वैली प्रोजेक्ट समझोते के तहत बीकानेर रिसायत को पानी देने के लिए बनाया गया है। बात 1899-1900 की है। जब बीकानरे रियासत में अकाल पड़ गया। तब बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह ने केनाल के लिए ब्रिटिश साम्राज्य से अपील की। पंजाब के चीफ इंजीनियर आर.जी. कनेडी ने 1906 में सतलुज वैली प्रोजेक्ट की रूपरेखा तैयार की तो महाराजा गंगा सिंह को अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया गया। तब महाराजा गंगा सिंह लार्ड कर्जन के पास शिमला पहुंचे। क्योंकि बहावलपुर रियासत की ओर से इसकी खिलाफत की जा रही थी। इसलिए केनाल निकालना आसान नहीं था। बहावलपुर रियासत का तर्क था कि रिपोरियन नियमानुसार बीकानेर रियासत का इस पानी पर कोई हक नहीं है। मगर पंजाब के गवर्नर सर डैंजिल इबटसन को महाराजा से हमदर्दी थी और 1912 में योजना बनाकर तैयार कर ली गई। मगर पहले विश्व युद्ध के कारण यह कार्य अधर में लटक गया। इसके बाद 4 सितंबर 1920 को पंजाब, बहावलपुर और बीकानेर रियासत में सतलुज घाटी प्रोजेक्ट समझौता हुआ।
        महाराजा गंगा सिंह ने केनाल की जिम्मेदार रैवन्यू कमिश्नर जी.डी. रूडकिन को सौंप दी। केनाल पर करीब तीन करोड़ रूपये खर्च आने का अंदाजा था। महाराजा द्वारा 5 दिसंबर 1925 को हुसैनीवाला में गंग नहर का नींव पत्थर पंजाब के गवर्नर सर मैलकम हैले, चीफ जस्टिस ऑफ पंजाब सर सादी लाल, सतलुज वैली प्रोजेक्ट के चीफ इंजीनियर ई.आर. फाए की मौजूदगी में रखा गया। इस केनाल का नाम महाराजा गंगा सिंह के नाम पर गंग केनाल रखा गया। हुसैनीवाला से शिवपुर तक इसकी लंबाई 129 किलोमीटर है। उस समय यह नहर दुनियां की सबसे लंबी नहर थी। महाराजा ने पंजाब क्षेत्र में नहर और रेस्ट हाउस बनाने के लिए सारी भूमि पंजाब सरकार से खरीद की थी। पांच वर्ष में चूने से तैयार की गई यह केनाल अब सीमेंट बजरी और ईंटों से बनी अन्य नहरों से मजबूत है। 26 अक्तूबर 1927 को शिवपुर हैड से केनाल का पानी छोडक़र महाराजा द्वारा इसका उद्घाटन किया गया। इस मौके पर वायसराये ऑफइंडिया लार्ड इरविन के अलावा कई राज्यों के राजा-महाराजा और नवाब भी मौजूद थे।
Gang Canal - Fazilka 
                                          Maharaja Ganga Singh took out the Gang Canal
     Bikaner passes through the area of ​​Gang Kanal Fazilka, which gives the water to the principality. It is designed to give water to Bikaner Reasi under the Sutlej Valley Project Settlement. The talk is from 1899-1900. When there was a famine in the basin kingdom. Then Maharaja Ganga Singh of Bikaner principality appealed to the British Empire for canal. Chief Engineer of Punjab RG When Kanadei outlined the Sutlej Valley Project in 1906, then Maharaja Ganga Singh was called to keep his side. Then Maharaja Ganga Singh reached Shimla near Lord Curzon. Because it was being opposed by Bahawalpur principality. So it was not easy to remove canals. The Bahawalpur principality argued that according to the Reporian rule Bikaner principality has no right over this water. But Sir Darjeeling Ibbatson, Governor of Punjab, was sympathetic to the Maharaja and was prepared in 1912 by planning. But due to World War I this work was hanging in the balance. After this, on September 4, 1920, the Sutlej Valley Project agreement was settled in Punjab, Bahawalpur and Bikaner.
        Maharaja Ganga Singh, responsible for the canal, is the revenue commissioner, G.D. Handed to Rudkin. The estimated cost of the canal was about three crore rupees. The foundation stone of the Gang Canal at Husainainiwala, on December 5, 1925, by Maharaja Sir Sir Malcolm Hailey, Chief Justice of Punjab Sir Sardar Lal, Chief Engineer of Sutlej Valley Project, ER; Kept in the presence of FAA. This canal was named after Gangkal in the name of Maharaja Ganga Singh. Its length is 129 kilometers from Hussainiwala to Shivpura. At that time the canal was the longest canal in the world. The Maharaja had bought all the land from Punjab Government to make canal and rest house in Punjab area. This canal, made from lime in five years, is now stronger than cement gravel and other canals made of bricks. It was inaugurated on 26 October 1927 by Shivaji Mahar, leaving the canal water from Shivpura Head. On this occasion besides the Viceroy of India Lord Irwin, King-King and Nawab of many states were also present.


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Jul 8, 2018


 जय हिन्द 
सर झुक गया इस परिवार के आगे - जिन्होंने कारगिल के शहीद बलविंदर सिंह (फाजिल्का) की याद को ताजा रखने के लिए शहीद बलविंदर सिंह फाजिल्का स्थित घर में एक अलग कमरा बनाया है - जिस में शहीद के बचपन से लेकर शहीदी तक हर याद को सजा क्र रखा है - बचपन में खेलने वाला कैरम बोर्ड, सर्टिफिकेट , पुरस्कार , सेना की वर्दी और शरीर में लगी दुश्मन की दो गोलिया - शहीद की भाभी रोजाना कमरा साफ़ करती है - अगरबत्ती जलती है - सेंट की खुशबू फैलती है - शहीद को आराम देने के लिए उस का बेड साफ़ करती है - शहीद के पीने के लिए ताजा पानी, २४ जानते बिजली का पंखा चलता है, बल्ब जलता है , माँ, भाई, भाभी पूजा करते हैं - बच्चे स्कूल जाएँ तो माथा तक कर जाते है - कोई घर से बाहर जाये तो सर झुका कर जाता है - फिर वो शहीद नहीं - जिन्दा है - फर्क यह है कि वो नज़र नहीं आता - क्योंकि वो सो रहा है भारत माता की गोद में - शहीद की माता की दिलेरी देखो - उस ने अपने एक और बेटे को भारतीय सेना में भर्ती करवा दिया - पोते को भी सैनिक बनाया - ताकि दुश्मन पर पेनी नगाह रखें - बदला ले और भारत माता की इज्जत को बरकरार रखें                                                      - सल्यूट और सल्यूट उस परिवार को- 

शहीद की वर्दी

शहीद ने जो गोली सीने पर खाई

सर्टिफिकेट
शहीद का कमरा 
शहीद की माता और भाभी 
                                                                           -
                                                           
शहीद का बेड
LACHHMAN DOST  FAZILKA  99140-63937





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Jul 7, 2018

List of Coins found at various sites in the Fazilka

ਫਾਜ਼ਿਲਕਾ ਵਿਚ ਪਾਈਆਂ ਗਈਆਂ 16-17ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੀਆਂ ਮੋਹਰਾਂ 
Fazilka ਵਿਚ ਪਹਿਲਾਂ ਵੀ ਮਿਲ ਚੁਕੇ ਹਨ ਪੁਰਾਣੇ ਸਿੱਕੇ 
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List of Coins found at various sites in the Firozpur District.(Now Fazilka Distt.)
Tehsil Site Coins Firozpur Channar A brass tankah(forced currency) of Muhammad-Bin-Tuglaq, struck atDelhi.
Fazilka Abohar ‘Bull and horseman’ coins (king 
of Ohind about A.D.1000), one of Prithvi Raj, one of Alaud-Din-Muhammad Shah of Delhi, coins of Delhi Sultans (Muhammad-Bin-Sam, Shamas -ud-Din-Altutmish,, Balban, Jalal-Ud-Din Firoz, Ala-Ud-Din Muhammad, Muham-mad-Bin-Tughlaq and Firoz Shah Tughlaq). Zira Janer Some coins were found, but the 
see could not be obtanied for identifica tion. Fazilka - Punjabrevenue.nic.in punjabrevenue.nic.in/gazfzpr3.htm
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                                            फाजिल्का में आठवें स्थान पर था अरोड़ा कबीला
       जिला सिरसा में अरोड़ा कबीला का आठवां स्थान था और उनकी संख्या 5554 थी जो कि दो फीसदी थी। 407 सिक्ख और बाकी हिन्दू थे। हिंदू अरोड़ों को मोना कहा जाता था। अरोड़ा सिक्ख को सेव करने वाले सिक्ख थे, जो श्री गुरू नानक देव जी को मानते थे। शेव सिक्ख पंजाबी कबीला था। जो साधारण पंजाबी लहजे में पंजाबी बोलते थे। ऐसे लगता था कि यह देश के उत्तर और सतलुज के पश्चिम क्षेत्र की तरफ से आए थे। यह पंजाब के पश्चिम वाले भाग में ज्यादा थे। कई इलाको में कुल जनसंख्या का दस फीसदी थे। जन्म से बानियों की तरह व्यापारी थे। उनके जैसा ही अहम स्थान सोसायटी मे रखते थे। फाजिल्का तहसील में इन्होंने बानीयों की जगह ली और व्यापार का अच्छा हिस्सा अपने हाथ में ले लिया। 2/3 अरोड़ा गांवों में रहते थे। वह खुद को रोड़ा या अरोड़ा कहलाना ज्यादा पसंद करते थे। वह खुद को असली तौर पर राजपूत कहते थे। यह कौम से अलग होने का कारण बताते हैं कि जब परशुराम राजपूतों को मार रहा था तो परसुराम के पूछने पर कि तुम राजपूत हो तो बताया कि नहीं, वह अरोड़ा हैं। उस के बाद वह अरोड़ा कहलाने लगे। कौम दो भागों में बंटी हुई थी। उत्तरी अरोड़ा, जिन की महिलाएं हाथी दांत की लाल चूडिय़ां पहनती थी। दूसरे दक्षिण अरोड़ा, जिनकी महिलाएं हाथी दांत वाला सफेद चूड़ा पहनती हैं। जो उत्तरी अरोड़ा थे, वह आगे दो भागों में बंटे हुए थे। 12 गोत्र और 52 गोत्र और दक्षिण अरोड़ा दाहड़ा और दक्खना धैण। 12 गोत्र वाले अरोड़ा लडकियों की शादी 52 गोत्र वालो मे नहीं करते थे, लेकिन उनकी लड़कियां अपने घर ले आते थे। दक्खना धैण दाहडिय़ा के घर से लडक़ी ले लेते थे। मगर देते नहीं थे। सिंध और बहावलपुर के लोग यहां बसे थे। अरोड़ा पश्चिम पंजाब से आए थे जो अमीर वर्ग था। कुछ शिकारपुर से आए। सिंध मुलतान से कई फर्में आई और उन्होंने ब्रांचें खोली। इनकी यह खासियत भी थी कि शहर की हर गतिविधियों में भाग लेते थे। यहां के सभी लोग प्यार और एकता के साथ रहते थे। (LACHHMAN DOST- FAZILKA)

                                       The eighth place in Fazilka was the Arora tribe
       Arora tribe was the eighth place in district Sirsa and its number was 5554, which was two percent. 407 Sikhs and the rest were Hindus. Hindu Aurora was called Mona. Arora was a Sikh who saved, who believed in Shri Guru Nanak Dev ji. Shev Sikh was a Punjabi tribe. Who spoke Punjabi in simple Punjabi accent. It seemed that it came from the north side of the country and from the west region of Sutlej. It was more in the western part of Punjab. In many areas there were ten percent of the total population. There were traders like Banei from birth. Keeping the same importance as his in the society. In Fazilka tahsil, he took the place of the banian and took a good share of business. 2/3 Arora lived in the villages. He liked to call himself a baroda or aurora. He actually called himself Rajput. It explains the reason of separation from the community when Parshuram was killing Rajputs, then asked Parasuram if you are a Rajput, he did not say that he is Aurora. After that he started calling Arora. The party was divided into two parts. Northern Arora, whose women wear red elephants of elephant teeth. Second South Aroras, whose women wear white elephants with ivory. The northern Aroras were divided into two parts. 12 tribes and 52 tribes and South Arora Dahra and Dakhaan dain Arora girls of 12 tribes did not marry in 52 tribes, but their girls used to bring her home. The south used to take the girls from the house of Dahdya. But they were not giving up. The people of Sindh and Bahawalpur were settled here. Arora came from West Punjab, which was a rich class. Some come from Shikarpur Many firms came from Sindh Multan and they opened the branches Their specialty was that they used to participate in every activity of the city. All the people here lived with love and unity.

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Jul 6, 2018

                                     दास्तान-ए-वट्टू: हवेली से पहुंचा फाजिल्का वट्टू कबीला
         ब्रिटिश साम्राज्य में भटियाणा (जिला सिरसा) के सहायक सुपरिटेडेंट जे. एच. ओलिवर को फाजिल्का शहर बसाने के लिए भूमि बेचने वाले मुसलमान नंबरदार मिया फज़ल खान वट्टू व अन्य वट्टू परिवार चंद्रवंशी राजपूत का एक कबीला था। मगर वट्टू सन् 1882 से 16 पीढ़ी पहले राजा खीवा के समय मुसलमान बन गए। खीवा हवेली (अब पाकिस्तान में) का राजा था। हवेली में लक्खा वट्टू नाम का एक मशहूर मुस्लमान रहता था। वट्टू वहां से सतलुज दरिया पार करके जिला मिंटगुमरी में आकर बस गया। उनका ही एक परिवार मिंटगुमरी से फाजिल्का के उत्तर की तरफ 16 मील दूर गांव बग्घेकी (जलालाबाद के निकट) आकर बस गया जो दक्षिण की तरफ फुलाही से 70 मील की दूरी पर था। बग्घेकी के उत्तर की तरफ डोगर जाति और दक्षिण की तरफ जोईऑस जाति के लोगों का कबीला बसता था। उधर वट्टू जाति के कई अन्य लोग हवेली के गांव राणा झंग के निकट भी बसे हुए थे। यह गांव राणा वट्टू के नाम पर बसा हुआ था। वट्टू वहां से चार पांच पीढ़ी पहले फज़ल खां वट्टू, राणा और दलेल के नेतृत्व में सतलुज दरिया के इस इलाके में आकर बस गए और यहां बोदला जाति के मुसलमानों के पड़ोसी बन गए। उस समय यह इलाका आबाद नहीं था। चारों ओर धूल ही धूल थी। पूर्व समय में वट्टू धार्मिक गुरू थे। उनका कद छोटा और पतला था। उनके नैन नक्ष तीखे थे। पतले होंठ व छोटे नाक वाले वट्टू जाति के मुसलमानों की भाषा मुस्लिम पंजाबी थी। जिस में नाक से बोले जाने वाले व्यंजन ज्यादा थे। मगर देखने में अपने पड़ोसी बोदला परिवारों से सुंदर थे। वह किफायती नहीं थे। जंगल किनारे बसे होने के कारण उनमें साहस की भावना की कमी नहीं थी। वे परिश्रमी थे और परिश्रम से उन्होंने रेतीले इलाके को आबाद कर लिया। उनके परिश्रम से यहां रेतीली धरती सोना उगलने लगी और वट्टू कृषि क्षेत्र से जुड गए। यहां बसने के बाद उनके बोदला जाति के मुसलमानों से संबध गहरे हो गए। वट्टू सतलुज दरिया के दोनों हिस्सों से जिला फिरोजपुर से जुड़े हुए थे। इनके आसपास चिश्ती, नाईपाल, भट्टी और गुज्जर भी बसे हुए थे। वट्टूओं की अधिकतर जाति आगे और शाखाओंं में बंटी हुई थी। वट्टू एक पूर्वज की ओर से थे। पूर्व समय में यहां उनकी 10-12 पीढिय़ां निवास करती थी। मगर कुछ समय बाद उनकी कुछ पीढ़ीयां वापस चली गई। यहां 1882 तक उनकी सिर्फ तीन-चार पीढ़ीयां ही रह गई। जो पीढिय़ां बाकी रह गई। उनमें ज्यादातर गांव लाधुका, मुहम्मदके और सैदोके में बसी हुई थी। इन गांवों को वट्टूओं ने अपना नाम दिया। ये गांव ही उनके हैड चर्टर बन गए। इसके अलावा सुक्खा के नाम पर गांव सुखेरा और कालो के नाम पर गांव कालोके बस गया। 1911 की जनगणना अनुसार जिला फिरोजपुर में इनकी संख्या 9732 थी। (LACHHMAN DOST FAZILKA)


                                                Dastan-e-Wattu: Fazilka Wattu Kabila from Haveli
         In the British Empire J. Assistant Superintendent of Bhatiana (District Sirsa) Muslim naadder Mia Fazal Khan Wattu, who sells land to settle down Hoshiarpur town, and a Vatu family, was a tribe of Chandravanshi Rajput. But Watoo became a Muslim during the King Killa, 16th generation before 1882. King of the Kiwi Haveli (now in Pakistan). A renowned Muslim named Lakkha Vatu lived in the mansion. Vatu crossed the Satluj river crossing and settled in the district of Mintingumari. One of his family migrated from Mintgumari, 16 miles away to the north of Fazilka, near the village Baggaikei (near Jalalabad), which was 70 miles away from Phulahi on the south side. Dogger caste on the north side of Baggeki and the tribe of the Zoose caste on the south used to be inhabited. On the other side, many other people of the Vatu caste were also living near the village of Rane Jhang of Haveli. This village was named after Rana Vatu. Vatu settled in this area of ​​Satluj Dariya under the leadership of Fazal Khan Vatu, Rana and Dellal, four to five generations before that and here he became a neighbor of the Muslims of Bodla caste. At that time the area was not populated. The dust around was dust itself. In earlier times, Vatu was a religious teacher. His stature was small and thin. Their nan naks were sharp. The language of Muslims of the Vatu caste with thin lips and small noses was Muslim Punjabi. In which nose-fed dishes were more. But in view of the neighboring Bodala families were beautiful. He was not economical Due to being settled on the banks of the forest, they lacked the sense of courage. They were hard-working and by diligence they settled the sandy terrain. From his hard work, the sandy land began to flutter and Wattu joined the agriculture sector. After settling down here, his relationship with the Bodolas of Muslims grew deeper. Vattu was connected to the district Firozpur from both parts of Satluj Dariya. Chishti, Naipal, Bhatti and Gujjar were also settled around them. Most of the castes of Vatu were divided further into branches. Vatu was from an ancestor. In earlier times, he used to live 10-12 generations. But after some time some generations of them went back. It remained only three or four generations until 1882. Generations left Most of them were settled in the villages of Ladkuka, Mohammedke and Sedoke. Vatu gave their names to these villages. These villages became their head charters. Apart from this, village Keloke has been settled in the name of village Sukhera and Kalo in the name of Sukkha. According to the 1911 census, their number in the district Firozpur was 9732.

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Jul 5, 2018

बाबा भूमण शाह की लक्खा वट्टू पर रहमत

      पाकिस्तान में एक गांव है कुतुबकोट। जो मुसलमान लक्खा वट्टू की जागीर थी। एक दिन लक्खा वट्टू ने कोई अपराध कर दिया। जिस कारण लाहौर के सूबेदार ने उसे लाहौर जेल में बंद कर दिया। बाबा भूमण शाह जी की ख्याति सुनकर लक्खा वट्टू की माता बख्तावर बेगम अपने कुछ रिश्तेदारों को साथ लेकर बाबा भूमण शाह जी के धूणें पर गई और रो कर विलाप करने लगी। बख्तावर ने बाबा जी से प्रार्थना की कि आप मेरे बेटे लक्खा वट्टू को लाहौर की जेल से छुड़ा दें तो आपकी आजीवन ऋणी रहूंगी। बाबा जी मुस्कारा कर बोले, जहां पर कुतुबकोट गांव बसा है, वह मेरे पिछले जन्म की तपोभूमि है। तुम्हारे बेटे को तो मैं छुड़वा दूंगा, लेकिन आपको कुतुबकोट गांव छोडक़र कहीं दूसरी जगह जाकर बसना होगा। कुतुबकोट में पहले की तरह लंगर आदि चलेगा और वह वहां पर तप किया करेंगे। बख्तावर बेगम ने शर्त मान ली। चौथे दिन ही लक्खा वट्टू जेल से छूट गया और वापस आ गया। लक्खा वट्टू ने अपनी मां और रिश्तेदारों को बताया कि एक साधु फकीर रात के वक्त जेल के कमरे में प्रकट हुआ और प्रेम व करूणा से बोला, मैं तुम्हें लेने आया हूं, तुम्हारी माता बहुत परेशान है। बाबा जी की कृपा से मेरे पैरों की बेडिय़ां खुल गई। मैं बाबा जी के पीछे-पीछे चलने लगा और घर पहुंच गया, लेकिन साधु गायब हो गया। अगले दिन बख्तावर बेगम लक्खा वट्टू को लेकर बाबा भूमण शाह के धूने पर गई। जहां लक्खा वट्टू ने बाबा जी को पहचान लिया। इसके बाद बख्तावर बेगम ने अपने कबीले को इकट्ठा किया और गांव खाली करने के लिए उनको राजी कर लिया। उस समय सबसे पहले कार सेवा के रूप में पांच एकड़ भूमि दान कर दी। बातचीत दौरान उनके एक रिश्तेदार कुतुबदीन व ताजदीन के कहने पर गांव कुतुबदीन मे एक विशेष स्थान खोदा गया, जहां बाबा भूमण शाह के पूर्व जन्म के धूने के स्थान पर चिमटा व कमंडल मिले। इसके अलावा देगचे, कड़ाहे और तवे भी मिले। तब ताजदीन के मन में लालच आ गया और उसने बाबा जी को ललकारा तो बाबा जी के चमत्कार से ताजदीन के सिपाही आपस में ही लडऩे लग गए। आखिर ताजदीन ने हार मानी और बाबा जी के पैरों में गिर गया। इसके बाद कबीला बख्तावर बेगम के नेतृत्व में वहां से सात किलोमीटर दूर जाकर नयां गांव बसाया। जिसका नाम हवेली लक्खा वट्टू पड़ा और गांव कुतुबकोट धीरे-धीरे बदलकर बाबा भूमण शाह गांव के नाम से पुकारा जाने लगा। जो पाकिस्तान के पंजाब प्रदेश में स्थित है। (Lachhman Dost Fazilka)
Baba Bhuman Shah's Lakkha wattu on Rahmat
      A village in Pakistan is Qutubkot. The Muslim who was the manor of Lakkha Vatu. One day Lakkha Wattu committed no crime. Because of which the Lahore subedar locked him in Lahore jail. After hearing the fame of Baba Bhuman Shah ji, the mother of Lakkha Vatu, Bakhtawar Begum, along with some of his relatives went to the dust of Baba Bhuman Shah ji and started crying and crying. Bakhtwar prayed to Baba that if you rescue my son Lakkha Vatu from Lahore's jail, you will be indebted for your lifetime. Baba ji murmured, where Kutubkot village is situated, it is the pastureland of my previous birth. I will get rid of your son, but you have to move to Kutubkot village and go somewhere else. Like an anchor in the first place, Kutubkot will run there and he will do penance there. Bakhtav Begum accepted the condition. On the fourth day Lakkha Vatu got out of jail and came back. Lakkha Vatu told his mother and relatives that a sadhu fakir appeared in the prison room at night and talked to love and compassion, I have come to take you, your mother is very upset. With the grace of Baba ji opened my legs I started following Baba ji and reached home, but the monk disappeared. On the next day, Bakhtwar went to Begum Lakha Vatu on the smoke of Baba Bhuman Shah about Begum Lakkha Vatu. Where Lakkha Vatu recognizes Baba ji. After this Bakhtawar Begum assembled his tribe and persuaded him to evacuate the village. At that time, first donated five acres of land as a car service. During the conversation, on the request of one of his relatives Qutbuddin and Tajdin, a special place was erected in the village Qutbuddin, where there was a tweezers and kamandal in place of Baba Bhuman Shah's birth place. Apart from this, there is also Durga, Kadah and Taane. Then, in the mind of Tajdin, Greed came and he challenged Baba ji, then the soldiers of Tajdin started fighting with each other. After all, Tajdin defeated and fell on Baba ji's feet. Subsequently, under the leadership of Kabit Bakhtavar Begum, a new village settled seven kilometers away from there. The name of which was Haveli Lakkha Vatu, and the village Kutubkot gradually started to be called by the name of Baba Bhuman Shah Village. Which is located in the Punjab state of Pakistan

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