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Mar 2, 2020

ਫਾਜ਼ਿਲਕਾ ਨਾਂ ਬਾਅਦ ‘ਚ ਮਿਲਐ, ਰਾਜਾ ਤਾਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਆਇਆ ਸੀ

ਸੰਨ 1818 ਤੱਕ ਫ਼ਾਜ਼ਿਲਕਾ (ਇਹ ਨਾਮ ਬਾਅਦ ‘ਚ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ ਸੀ) ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਦਾ ਕੰਟਰੋਲ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਉਦੋਂ ਦੌਲਤ ਰਾਓ ਸਿੰਧੀਆ ਫ਼ਾਜ਼ਿਲਕਾ ਆਇਆ ਸੀ । ਸਰ ਜੇਮਸ ਡਾਵੀ (Sir James Dowie) ਨੇ 1916 ਵਿਚ ਦੀ ਪੰਜਾਬ,  ਨਾਰਥ – ਵੈਸਟ ਫ਼ਰੰਟੀਅਰ  ਪਰਾਵਿੰਸ ਐਂਡ ਕਸ਼ਮੀਰ (The Punjab, North -West Frontier Provinces and Kashmir) ‘ਚ ਇਸ ਗੱਲ ਦਾ ਖ਼ੁਲਾਸਾ ਕੀਤਾ ਹੈ। ਗੱਲ 19ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਦੀ ਹੈ , ਜਦੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਅਧਿਕਾਰੀ ਵੇਲੇਸਲੇ ਕੇ. ਮਾਰਕੀ ਨੇ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਸੁਪਰੀਮ ਪਾਵਰ ਬਣਨ ਦੀ ਸੋਚੀ। ਉੱਧਰ ਨਪੋਲੀਅਨ ਨੇ ਵੀ ਭਾਰਤ ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਦੀ ਸੋਚੀ। ਇੱਧਰ ਪੰਜਾਬ ਤੇ ਦੌਲਤ ਰਾਓ ਸਿੰਧੀਆ ਨੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ। ਪਰ ਉਹ ਅਸਫਲ ਹੋਇਆ। ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ 1803 ਵਿਚ ਉਹ ਫ਼ਾਜ਼ਿਲਕਾ ਆਇਆ। ਕੁੱਝ ਦਿਨ ਇੱਥੇ ਠਹਿਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉਹ ਦਿੱਲੀ ਵੱਲ ਕੂਚ ਕਰ ਗਿਆ। 1818 ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਬਹਾਵਲਪੁਰ ਦੇ ਨਵਾਬ ਤੇ ਨਵਾਬ ਮਮਦੋਟ ਨੇ ਇੱਥੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਇੱਥੇ ਕਿਲਾ-ਨੁਮਾ ਇਮਾਰਤਾਂ ਬਣਵਾਈਆਂ- ਇਕ ਇਮਾਰਤ ਮੌਜੂਦਾ ਰੇਲਵੇ ਸਟੇਸ਼ਨ ਦੇ ਕੋਲ ਸੀ। ਇੱਕ ਬੀ. ਡੀ. ਪੀ. ਓ. ਦਫ਼ਤਰ ਕੋਲ ਸੀ। ਭਾਵੇਂ ਇਮਾਰਤਾਂ ਕੱਚੀਆਂ ਸਨ, ਪਰ ਚੀਨੀ ਮਿੱਟੀ ਨਾਲ ਬਣੀਆਂ ਮੋਟੀਆਂ ਕੰਧਾਂ ਤੇ ਪਲੱਸਤਰ ਕੀਤਾ ਹੁੰਦਾ ਸੀ, ਜੋ ਗਰਮੀਆਂ ‘ਚ ਠੰਢਾ ਤੇ ਸਰਦੀਆਂ ‘ਚ ਗਰਮ ਹੁੰਦਾ ਸੀ। ਜਿਹਨਾਂ ਤੇ ਬਾਅਦ ਵਿਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ। ਊਰਜਾ ਪੁਰਸ਼ ਡਾ. ਭੁਪਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੀ ਕਿਤਾਬ ‘ ਦੀ ਟਾਊਨ ਆਫ਼ ਲਾਰਡ ਪੀਪਲ’ ਵਿਚ ਲਿਖਿਆ ਹੈ ਕਿ ਇਹਨਾਂ ‘ਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸੈਨਿਕ ਠਹਿਰਦੇ ਸਨ। ਪਰ ਫ਼ਾਜ਼ਿਲਕਾ ਦੀਆਂ ਇਹ ਇਮਾਰਤਾਂ ਜਾਂ ਤਾਂ ਦਰਿਆ ‘ਚ ਆਏ ਹੜ ਨੇ ਨਿਗਲ ਲਈਆਂ ਜਾਂ ਫਿਰ ਸਮੇਂ ਦੀ ਮਾਰ ਹੇਠ ਦੱਬ ਕੇ ਢਹਿ ਢੇਰੀ ਹੋ ਗਈਆਂ… Lachhman Dost Whatsapp 99140-63937
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Feb 26, 2020

पहले था खट्टियां वाला बाग, कई नाम बदले, अगर मशहूर है तो सिर्फ प्रताप बाग ! ! !

बात फिरोजपुर की है … डकैतों ने एक लडक़ी व उसकी मां को किडनैप कर लिया था … ब्रिटिश साम्राज्य था और फिरोजपुर के डीसी थे एस. प्रताप … उन्हें पता चला और उन्होंने ब्रिटिश एस.पी. के साथ मिलकर डकैत को ढूंढा और मार डाला … मां बेटी को आजाद करवाया … उस डीसी ने फाजिल्का को एक ऐसा पार्क दिया … जहां हम रोजाना सैर को जाते हैं … बच्चे झूले झूलते हैं … यानि प्रताप बाग … बात 1930 के दशक की है… सामने था सिविल हॉस्पिटल फॉर वूमेन … चलो पार्क की बैक राउंड पर चलते हैं… यहां लडक़ों और लड़कियों के लिए भी स्कूल था … 1926 में लडक़ों को स्कूल रेलवे लाइनों के पार बना दिया गया … यहां रह गया लड़कियों का स्कूल … जिसक ी प्रथम प्रिंसिपल थी मिस मौसमी … इस स्कूल के साथ था खट्टियां वाला बाग … जगह नगर परिषद की … डीसी एस. प्रताप आए और खट्टियां वाला बाग भी देखा … अधिकारियों से बोले … बच्चों के लिए पार्क बना दो … जगह करीब दस एकड़ थी … पार्क बना … डीसी ने उदघाटन किया और नाम रखा गया प्रताप बाग (LACHHMAN DOST Whats App 99140-63937)
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Feb 18, 2020

वट्टू और बोदला के रीति-रिवाज - Customs of Wattu and Bodla

                                                             वट्टू और बोदला के रीति-रिवाज
     वट्टू और बोदला जाति के मुरुलमानों के रीति-रिवाज आपस में मिलते-जुलते थे। उनके विवाह की रस्में इक्सवीं सदी के मुसलमानों से कुछ भिन्न थे। ब्रिटिश साम्राज्य में फाजिल्का के सेटलमेंट अधिकारी रहे जे. विल्सन ने मुस्लिम जाति के रीति-रिवाजों पर बारीकी से जांच की और वट्टू व बोदला जाति के रीति-रिवाजों में समानता पाई। जे. विल्सन के अनुसार मुस्लिम जाति की लडक़ी का पिता लडक़ी का निकाह करता था तो वह लडक़े के परिवार की ओर से अपनी लडक़ी के लिए पैसे की मांग करता था। लडक़ी के निकाह के बाद वह पैसा लडक़ी की जायदाद बन जाती थी। मगर जब ब्रिटिश साम्राज्य में मैरिज एक्ट बना तो ब्रिटिश नियमों में मुसलमानों को पुराने रीत रिवाज निभानें में काफीं मुश्किलें पेश आने लगी। नियम लागू होने के बाद जब कोई मुसलमान लडक़ी-लडक़े का रिश्ता जोड़ता तो उन्हें कानून को सबूत देना पड़ता था। जो बोदला और वट्टू जाति की लडक़ी और लडक़े के पिता के लिए एक नियम बन गया। 

     नियम अनुसार कोई मुस्लिम परिवार अपने बेटे की शादी करता तो उन्हें गवाह के तौर पर काजी और मौलवी को बुलाना पड़ता था। शादी में इजाब काबुल को सेवा के लिए बुलाया जाता था। जो शादी करने वाले माता-पिता से पूछते थे कि वह अपने बेटे या बेटी के निकाह को तैयार हैं। एक अन्य नियम मुताबिक लडक़े से भी शादी के लिए पूछा जाता था। जब तक लडक़ा शादी के लिए हां नहीं कहता था, तब तक शादी नहीं होती थी। शादी से पहले अगर लडक़े की मौत हो जाती तो लडक़ी को निकाह करने पर विचार करने का मौका नहीं दिया जाता था। बिरादरी में लडक़ी को विधवा घोषित कर दिया जाता था। विधवा घोषित हो जाने के बाद भी रस्में लगातार जारी रहती थी। सगाई के बाद निकाह की रस्में होती रहती और निकाह कर दिया जाता था। निकाह की रस्में दोबारा नहीं होती थी। इन नए रीति-रिवाजों के कारण यह तय हो गया कि लडक़ी का पिता निकाह के समय जो धन लडक़े वालों से लेता था, वह वापस नहीं किया जाता था। यह लडक़ी और लडक़े के पिता के बीच गवाहों के सामने एक समझौता होता था। उसके बाद ही असली रिश्ता होता था। फाजिलका के दूसरे मुस्लमानों की ओर से काजी और मौलवी को बुलाया जाता था। जो नवविवाहित जोडी को आशीर्वाद देते थे। बोदला, वट्टू, भट्टी और जाईया अंगूठी या कोई अन्य सोने का आभूषण साथ देते थे और कपड़े का आदान-प्रदान करते थे। मुंह की मिठास के लिए चीनी या गुड़ दिया जाता था। 
      ब्रिटिश अधिकारी जे. विल्सन मुसलमानों की शादियों की बारीकी से जांच की और जांच के बाद 1882 ई. में उन्हें मान्यता दी। उनके बनाए गए इस नियम पर फाजिलका और सिरसा में विवादित मामले कम थे। फाजिलका में 9 और सिरसा में सिर्फ पांच फाइले ही विवादित थी।(Lachhman Dost Fazilka)
                                                 The marriage is confessed!
                                              Customs of Wattu and Bodla
     The customs of the Mulim of the Wattu and the Bodlas were similar among themselves. The rituals of their marriage were a little different from the Muslims of the XX century. Fazilka's settlement officer in the British Empire, J. Wilson examined the customs of the Muslim race closely and found the similarities in the customs of the Wattu and Bodla castes. J. According to Wilson, the father of a Muslim caste used to marry a girl, then she asked for money for the girl's family on behalf of the girl's family. After the marriage of the girl, that money would become the property of the girl. But when the Marriage Act was made in the British Empire, there was a lot of difficulties in the British rules, to the Muslims in ancient rituals. After the rule was enacted, when a Muslim related the relationship of the girl-girl, they had to give evidence to the law. Which became a rule for the father of Bodla and Wattu caste and the father of the girl.
     According to the law, when a Muslim family married his son, he had to call Kaji and Maulvi as a witness. Ezab Kabul was called for service in marriage. Who asked the married parents to prepare for the marriage of their son or daughter. According to another rule, the girl was asked for marriage too. Until the boy did not say yes to the marriage, the marriage was not there. If the girl dies before marriage, then the girl was not given the opportunity to consider marrying. The girl was declared a widow in the community. Even after the widow was declared, the rituals continued. After the engagement, rituals of marriage and marriage were done. The rituals of marriage did not repeat. Due to these new customs, it was decided that the girl's father who used to take money from the fighters at the time of her marriage did not return. This was an agreement between the girl and the girl of the girl in front of the witnesses. After that there was a real relationship. Kazi and Maulvi were called on behalf of the other Muslims of Fazilka. Who blessed the newly married couple. Bodla, Wattu, Bhatti and Jaya ring or any other gold ornament
ornaments and used to exchange clothes. Sugar or jaggery was given to sweetness of mouth.
      British officer J. Wilson examined the weddings of Muslims closely and after examination he recognized them in 1882. The disputed cases were less in Fazilka and Sirsa on this rule made by them. Only 9 files in Fazilka and 5 files in Sirsa were disputed.

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Feb 13, 2020

Akbar Ali Pir became the first MLA in Fazilka

फाजिल्का में पहले विधायक बने अकबर अली पीर

2nd MLA in Fazilka Mia Bagh Ali sukhera special Envoy of the Viceroy of India visits sukhera family to Congratulate on the Glorious victory in the Elections(1945)...with A.C macleod commissioner of Jalandhar Divsion and Mia Bagh Ali Sukhera MLA in Fazilka and lives in sukhera Basti Abohar..(photo Courtesy :- Abohar Digital Museum History and memory)
भारत विभाजन से पूर्व फाजिल्का क्षेत्र में मुस्लिम अधिक संख्या में थे। 1941 की जनगणना के मुताबिक फाजिल्का तहसील में 75.12 प्रतिशत मुस्लिम थे। मुस्लिम बहुसंख्या में होने के कारण विभाजन से पूर्व यहां मुसलमान ही विधायक बने हैं।
Bagh Ali Sukhera with his faimly
पंजाब विधानसभा के चुनाव 1937 में हुए तो फाजिल्का मुहम्मदन रूरल सीट से अकबर अली पीर ने जीत हासिल की। उन्हें 38.11 प्रतिशत मत मिले। वह 5 अप्रैल 1937 से 19 मार्च 1945 तक पंजाब विधानसभा सदस्य रहे। दूसरे विधानसभा चुनाव 1946 में हुए तो मिया बाग अली सुखेरा विधायक बने। उन्हें 61.9 प्रतिशत मत मिले और वह 21 मार्च 1946 से 4 जुलाई 1947 तक विधायक रहे।
इसके बाद जब भारत विभाजन हुआ तो फाजिल्का के प्रथम विधायक चौधरी वधावा राम बने।
Ch. Wadhawa Ram

Akbar Ali Pir became the first MLA in Fazilka
Before partition of India, there were more Muslims in the area of Fazilka. According to the census of 1941, there were 75.12 percent Muslims in Tahsil of Fazilka. Due to the Muslim majority, Muslims have been the only legislators before partition. In the elections of Punjab assembly in 1937, Akbar Ali Pir won from Fazilka Muhammadan Rural seat. They got 38.11 percent of the votes. He was a Punjab Assembly member from 5th April 1937 to 19th March 1945. In the second assembly elections held in 1946, Mia Bagh Ali Sukhera became the MLA. He got 61.9 percent of the votes and he was a legislator from 21 March 1946 to 4 July 1947. After this, when India was partitioned, Fazilka's first legislator Chaudhary Wadhwa Ram,
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Feb 12, 2020

ਕਿਵੇਂ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ਸਲੇਮਸ਼ਾਹ ਪਿੰਡ ਵਸਾਉਣ ਵਾਲਾ ਸਲੀਮ ਖਾਂ ? ?

          village Salem Shah

 ਇੱਕ ਰਾਤ ਸਲੀਮ ਖਾਂ ਘੋੜੇ ਤੇ ਸ਼ਹਿਰ ਤੋਂ ਪਿੰਡ ਆ ਰਿਹਾ ਸੀ। ਜਦੋਂ ਉਹ ਪਿੰਡ ਸਲੇਮਸ਼ਾਹ ਦੇ ਨੇੜੇ ਨਹਿਰ ਦੀ ਪੁਲ ਤੇ ਪੁੱਜਿਆ ਤਾਂ ਮੂੰਹ ਸਿਰ ਲਪੇਟੇ ਕੁੱਝ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਉਸ ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ। ਸਲੀਮ ਖਾਂ ਨੇ ਡਟ ਕੇ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤਾ। ਪਰ ਜਦੋਂ ਅਮੀਨ ਖਾਂ ਨੇ ਬੰਦੂਕ ਨਾਲ ਸਲੀਮ ਖਾਂ ਨੂੰ 2 ਗੋਲੀਆਂ ਮਾਰੀਆਂ ਤਾਂ ਸਲੀਮ ਖਾਂ ਧਰਤੀ ਤੇ ਡਿਗ ਪਿਆ। ਨਾਲ ਹੀ ਕਾਠ ਵਾਲਾ ਖੂਹ ਸੀ। ਰੋਲਾ ਸੁਣ ਕੇ ਉੱਥੋਂ ਬੰਦੇ ਭੱਜ ਕੇ ਆ ਗਏ। ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਵੀ ਪਤਾ ਲੱਗ ਗਿਆ । ਲੋਕ ਜੁੜ ਗਏ ਤਾਂ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਭੱਜ ਗਏ। ਸਲੀਮ ਖਾਂ ਨੂੰ ਸਰਕਾਰੀ ਹਸਪਤਾਲ ‘ਚ ਦਾਖਲ ਕਰਵਾਇਆ ਗਿਆ। ਥਾਣੇ ਤੋਂ ਦਰੋਗ਼ਾ ਆਇਆ ਤਾਂ ਸਲੀਮ ਖਾਂ ਨੇ ਸਾਰੀ ਗੱਲ ਲਿਖਾ ਦਿੱਤੀ।
ਪੁਲਸ ਨੇ ਪਿੰਡ ਦੇ 110 ਬੰਦਿਆਂ ਨੂੰ ਹਵਾਲਾਤ ‘ਚ ਡੱਕ ਦਿੱਤਾ। ਕੇਸ ਚੱਲਦਾ ਰਿਹਾ ਤੇ 7 ਸ਼ਰੀਕਾਂ ਤੇ ਅਮੀਨ ਖਾਂ ਨੂੰ 7-7 ਸਾਲ ਦੀ ਸਜਾ ਹੋਈ। ਜਾਣਦੇ ਹੋ ਸਲੀਮ ਕੌਣ ਸੀ, ਸਲੀਮ ਖਾਂ ਫ਼ਜ਼ਲ ਖਾਂ ਵੱਟੂ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ਸੀ। ਉਹ ਫਜ਼ਲ ਖਾਂ ਬਜ਼ੁਰਗ ਹੋ ਗਿਆ ਤਾਂ ਉਸ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ਸਲੀਮ ਆਪਣੇ ਭਰਾਵਾਂ ਤੋਂ ਅਲੱਗ ਹੋ ਗਿਆ। ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਉਸ ਨੇ ਪਿੰਡ ਫ਼ਜ਼ਲਕੀ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਇੱਕ ਹੋਰ ਪਿੰਡ ਵਸਾ ਲਿਆ ਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਨਾਂਅ ਸਲੀਮਕੀ ਦਿੱਤਾ। ਅੱਜ ਕੱਲ ਪਿੰਡ ਨੂੰ ਸਲੇਮਸ਼ਾਹ ਦੇ ਨਾਂਅ ਨਾਲ ਜਾਣਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਸਲੀਮ ਨੇ ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਮਸੀਤ ਵੀ ਅਲੱਗ ਬਣਵਾ ਲਈ ਅਤੇ ਪਿੰਡ ਦੇ 7 ਖੂਹਾਂ ਚੋਂ 3 ਖੂਹ ਆਪਣੇ ਹਿੱਸੇ ਕਰਵਾ ਲਏ।
ਜ਼ਮੀਨੀ ਝਗੜੇ ਕਾਰਨ ਸਲੀਮ ਦਾ ਆਪਣੇ ਭਰਾਵਾਂ ਸਿਕੰਦਰ ਖਾਂ ਵੱਟੂ, ਚਿਰਾਗ਼ ਖਾਂ ਵੱਟੂ ਤੇ ਜ਼ਾਬਤਾ ਖਾਂ ਵੱਟੂ ਨਾਲ ਨਹੀਂ ਬਣਦੀ ਸੀ। ਸਲੀਮ ਖ਼ਾਨ ਦੇ ਘਰ 2 ਬੱਚੇ ਹੋਏ, ਦੋਵਾਂ ਦੀ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ। ਦੂਜੇ ਭਰਾਵਾਂ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ਕਿ ਸਲੀਮ ਨੂੰ ਵੀ ਮਾਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਉਹ ਸਾਰੀ ਜ਼ਮੀਨ ਦੇ ਮਾਲਕ ਬਣ ਜਾਣਗੇ। ਸਲੀਮ ਦੇ ਭਰਾਵਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਚਚੇਰੇ ਭਰਾਵਾਂ ਜਲਾਲ ਖਾਂ ਤੇ ਨਵਾਬ ਖਾਂ ਨਾਲ ਮਿਲ ਸਲੀਮ ਖਾਂ ਨੂੰ ਮਾਰਨ ਦੀ ਯੋਜਨਾ ਤਿਆਰ ਕੀਤੀ। ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਅਮੀਨ ਖਾਂ (ਪਿੰਡ ਸਜਰਾਨਾ) ਨੂੰ ਪੈਸੇ ਦੇ ਕੇ ਸਲੀਮ ਖਾਂ ਨੂੰ ਮਾਰਨ ਲਈ ਤਿਆਰ ਕਰ ਲਿਆ ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਮਿਲ ਕੇ ਸਲੀਮ ਤੇ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ Lachhman Dost 99140-63937
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Jan 22, 2020

ਕਰੀ ਕਿਤੈ ਮੇਲ ਰੱਬ ਦਿਲੀ ਤੇ ਲਾਹੌਰ ਦਾ kari kite mail RABBA Dilhi te Lahor daa

ਕਰੀ ਕਿਤੈ ਮੇਲ ਰੱਬ ਦਿਲੀ ਤੇ ਲਾਹੌਰ ਦਾ 

ਇਹ ਰੇਲਵੇ ਲਾਈਨ ਕਦੇ ਕਰਾਚੀ ਤਕ ਜਾਂਦੀ ਸੀ - ਪਰ ਹੁਣ ਚੱਕਰ ਵਾਲੇ ਝੁਗੇ ਤਕ ਦੀ ਯਾਦ ਹੀ ਰਹਿ ਗਈ - ਬੜਾ ਦੁਖ ਹੈ - ਵਿਭਾਜਨ ਦੀ ਚੰਦਰੀ ਅੱਗ ਨੇ ਫਾਜ਼ਿਲਕਾ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿਚ ਵੀ ਵਡੀ ਰੁਕਾਵਟ ਪਾਈ ਹੈ -

Kari kitte mail Rabba Dilhi te Lahor daa 
 Eh Railway Line kade KARACHI tak jandi see- per hun chakker wale jhuge tak dee yaad hee reh gai * bahut afsos hai - Partition dee chandri agg ne Fazilka de vikas vich bahut Rukawat pai hai
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Jan 15, 2020

ਇਕ ਉਹ ਸੀ ‘ਸ਼ਹੀਦ-ਏ-ਮੁਹੱਬਤ ਬੂਟਾ ਸਿੰਘ’, ਇਕ ਇਹ ਹੈ ‘ਬੂਟਾ ਸਿੰਘ ਸੂਰਮਾ’



ਇਕ ਉਹ ਸੀ ‘ਸ਼ਹੀਦ-ਏ-ਮੁਹੱਬਤ ਬੂਟਾ ਸਿੰਘ’, ਇਕ ਇਹ ਹੈ ‘ਬੂਟਾ ਸਿੰਘ ਸੂਰਮਾ’



1990 ‘ਚ ਇਕ ਫ਼ਿਲਮ ਆਈ ਸੀ ‘ਸ਼ਹੀਦ-ਏ-ਮੁਹੱਬਤ ਬੂਟਾ ਸਿੰਘ’ … ਪੰਜਾਬੀ ਫ਼ਿਲਮ ਸੀ … ਜਿਸ ਵਿਚ ਗੁਰਦਾਸ ਮਾਨ ਨੇ ਬੂਟਾ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਦਿਵਿਆ ਦੱਤਾ ਨੇ ਜੈਨਬ ਦਾ ਕਿਰਦਾਰ ਨਿਭਾਇਆ ਸੀ… ਵਧੀਆ ਫ਼ਿਲਮ ਸੀ … ਇਕ ਅਸਲੀ ਪ੍ਰੇਮ ਕਹਾਣੀ…ਜੇ ਉਹ ਫ਼ਿਲਮ ਅਸਲੀ ਪ੍ਰੇਮ ਕਹਾਣੀ ਸੀ ਤਾਂ ਕਹਾਣੀ ਇਹ ਵੀ ਅਸਲੀ ਹੈ … ‘ਬੂਟਾ ਸਿੰਘ ਸੂਰਮਾ’ … ਰਾਏ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਮੁੰਡਾ ਸੀ ਬੂਟਾ ਸਿੰਘ … ਬੜਾ ਤਕੜਾ ਜਵਾਨ… ਦਰਿਆ ਕਿਨਾਰੇ ਪਸ਼ੂ ਚਾਰਦਾ… ਇੱਕ ਦਿਨ ਉਹ ਦਰਿਆ ਕਿਨਾਰੇ ਪਸ਼ੂ ਚਾਰ ਰਿਹਾ ਸੀ ਤਾਂ ਪਸ਼ੂਆਂ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਮੁੰਡੇ ਨਾਲ ਲੜਾਈ ਹੋ ਗਈ … ਪਹਿਲਾਂ ਹੱਥੋਪਾਈ ਹੁੰਦੇ ਰਹੇ, ਫਿਰ ਬੂਟਾ ਸਿੰਘ ਦੇ ਹੱਥ ਪਸ਼ੂਆਂ ਨੂੰ ਮੋੜਨ ਵਾਲਾ ਸੋਟਾ ਆ ਗਿਆ… ਉਸ ਨੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਜਵਾਨ ਦੇ ਸਿਰ ‘ਚ ਮਾਰਿਆ ਤੇ ਜਵਾਨ ਲਹੂ ਲੁਹਾਨ ਹੋ ਗਿਆ… ਸ਼ਾਮ ਨੂੰ ਪਸ਼ੂ ਲੈ ਕੇ ਘਰ ਆ ਗਿਆ… ਸੂਰਜ ਚੜਿਆ… ਦੂਜਾ ਦਿਨ ਹੋ ਗਿਆ… ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਔਰਤ ਉਸ ਦੇ ਘਰ ਆ ਗਈ… ਹੱਥ ‘ਚ ਕਾਹ ਦਾ ਛੰਨਾ ਤੇ ਵਿਚ ਘਿਉ … ਪੁੱਛਣ ਲੱਗੀ, ‘ ਬੂਟਾ ਸਿੰਘ ਤੇਰਾ ਈ ਨਾਂਅ ਏ’… ਬੂਟਾ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸਿਰ ਹਿਲਾ ਕੇ ‘ਹਾਂ’ ਦਾ ਜਵਾਬ ਦਿੱਤਾ …ਕਹਿਣ ਲੱਗੀ,’ ਲੈ ਪੁੱਤਰਾ, ਘਿਉ ਦਾ ਛੰਨਾ ਪੀ, ਤੂੰ ਇੱਕ ਇਹੋ ਜਿਹਾ ਜਵਾਨ ਏ, ਜਿਸ ਨੇ ਮੇਰੇ ਪੁੱਤ ਦਾ ਸਿਰ ਪਾੜਿਆ ਏ, ਵੈਸੇ ਅੱਜ ਤੱਕ ਕਿਸੇ ਵੀ ਜਵਾਨ ਦੀ ਏਨੀ ਹਿੰਮਤ ਨਹੀਂ ਪਈ ਕਿ ਉਹ ਮੇਰੇ ਪੁੱਤ ਦੀ ਕੰਡ ਲਾ ਸਕੇ, ਪਰ ਤੂੰ ਵਾਕਿਆ ਹੀ ਸੂਰਮਾ ਨਿਕਲਿਆ ਏ’। ਬੂਟਾ ਸਿੰਘ ਪਿੰਡ ਨੂਰ ਸ਼ਾਹ ਉਰਫ਼ ਵੱਲੇ ਸ਼ਾਹ ਉਤਾੜ ਦਾ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਸੀ।


ਇਸ ਹੀ ਪਿੰਡ ਨਾਲ ਇਕ ਹੋਰ ਕਹਾਣੀ ਜੁੜੀ ਹੈ… ਪਿੰਡ ਦੀਆਂ ਮੱਝਾਂ ਚੋਰੀ ਹੋਣ ਦੀ ਕਹਾਣੀ … ਅਜੇ ਵੀ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਯਾਦ ਹੈ … ਇੱਕ ਵਾਰੀ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਦੇ ਪਿੰਡ ਫਕੀਰੀਆ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਪਿੰਡ ਵਿਚੋਂ 60 ਮੱਝਾਂ ਚੋਰੀ ਕਰ ਕੇ ਲੈ ਗਏ… ਬੂਟਾ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਬੜਾ ਗੁੱਸਾ ਚੜਿਆ… ਪਹਿਲਾਂ ਤਾਂ ਉਹ ਇਕੱਲਾ ਹੀ ਮੱਝਾਂ ਲੈਣ ਲਈ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਜਾਣ ਲੱਗਾ… ਪਰ ਪਿੰਡ ਦੇ ਅਰਜਨ ਸਿੰਘ, ਹਾਕਮ ਸਿੰਘ ਤੇ ਇੱਕ ਹੋਰ ਨੋਜਵਾਨ ਨੇ ਵੀ ਨਾਲ ਜਾਣ ਦੀ ਜਿੱਦ ਕਰ ਲਈ… ਦਰਿਆ ਨੇੜੇ ਪੁੱਜ ਗਏ … ਉਹਨਾਂ ਦੇਖਿਆ ਕਿ ਮੁਸਲਮਾਨ ਆਪਣੇ ਪਸ਼ੂਆਂ ਨੂੰ ਚਰਾਉਣ ਆਉਂਦੇ ਹਨ ਤੇ ਆਪ ਦਰਖਤਾਂ ਦੀ ਛਾਂ ਥੱਲੇ ਬੈਠ ਜਾਂਦੇ ਹਨ… ਜਦੋਂ ਉਹਨਾਂ ਦੀਆਂ ਮੱਝਾਂ ਇਸ ਪਾਸੇ ਆਈਆਂ ਤਾਂ 150 ਮੱਝਾਂ ਨੂੰ ਜਵਾਨ ਆਪਣੇ ਪਿੰਡ ਨੂਰ ਸ਼ਾਹ ਲੈ ਆਏ… ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਪੰਚਾਇਤ ਹੋਈ ਤੇ ਫ਼ੈਸਲੇ ਅਨੁਸਾਰ 20 ਮੱਝਾਂ ਰੱਖ ਕੇ ਬਾਕੀ ਦੀਆਂ ਹੋਰਨਾਂ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਗ਼ਰੀਬ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਵੰਡ ਦਿੱਤੀਆਂ… ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਵੰਡ ਦੌਰਾਨ ਇਕ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨੀ ਲੜਕੀ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ‘ਚ ਰਹਿ ਗਈ ਸੀ… ਜਿਸ ਨੂੰ ਵਾਪਸ ਲੈ ਕੇ ਆਉਣ ਲਈ ਬੂਟਾ ਸਿੰਘ ਨੇ ਵਾਅਦਾ ਕੀਤਾ ਸੀ… ਦੋ ਚਾਰ ਦਿਨ ਬਾਅਦ ਲੜਕੀ ਵੀ ਆ ਗਈ … ਕਹਿੰਦੀ, ਬੂਟਾ ਸਿੰਘ ਕੁੱਝ ਮੁਸਲਮਾਨ ਲੜਕਿਆਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਦਾ ਹੋਇਆ ਜਖ਼ਮੀ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ … ਦਰਿਆ ਕੋਲ ਆ ਕੇ ਮੈਂ ਝਾੜੀਆਂ ਵਿਚ ਲੁੱਕ ਗਈ… ਪਰ ਜਖਮੀ ਬੂਟਾ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਨੋਜਵਾਨ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਵਾਲੇ ਚੁੱਕ ਕੇ ਲੈ ਗਏ … ਜੋ ਅੱਜ ਤੱਕ ਨਹੀਂ ਪਰਤਿਆ…Lachhman Dost- 99140-63937


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Jan 13, 2020

ਕਿਵੇਂ ਰੱਖਿਆ ਪਿੰਡ ਦਾ ਨਾਂਅ-2


(ਲੜੀ ਜੋੜਣ ਲਈ ਪਿਛਲਾ ਬਲਾਗ ਦੇਖੋ)- ਕਈ ਪਿੰਡਾਂ ਨਾਲ ‘ਭੈਣੀ’ ਲਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਦਰਅਸਲ ਭੈਣੀ ਦਾ ਮਤਲਬ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ‘ਬਹਿਣਾ’, ਜਦੋਂ ਲੋਕ ਵੱਸ ਗਏ ਤਾਂ ਪਿੰਡ ਦੇ ਨਾਂਅ ਨਾਲ ‘ਭੈਣੀ’ ਲੱਗ ਗਿਆ। ਜਿਵੇਂ ਰੇਤੇ ਵਾਲੀ ਭੈਣੀ, ਦਿਲਾਵਰ ਭੈਣੀ। ਕਈ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਨਾਂਅ ‘ਗੱਟੀ’ ਦੇ ਨਾਂਅ ਤੇ ਹਨ। ਅਸਲ ਵਿਚ ਦਰਿਆ ਦੇ ਇੱਕ ਪਾਸੇ ਤੋਂ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਕਿਸ਼ਤੀ ਲੈ ਕੇ ਜਾਣ ਲਈ ਲੱਕੜ ਲਾ ਕੇ ਨਿਸ਼ਾਨ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ। ਪੰਜਾਬੀ ਵਿਚ ਉਸ ਨੂੰ ‘ਡੰਡਾ’ ਜਾਂ ‘ਗੱਟੀ’ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਕਾਰਨ ਉੱਥੇ ਵਸੇ ਪਿੰਡਾਂ ਦਾ ਨਾਂਅ ‘ਗੱਟੀ’ ਪੈ ਗਿਆ। ਦਰਿਆ ਕਿਨਾਰੇ ਵਸੇ ਪਿੰਡ ਗੱਟੀ ਨੰ. ਇੱਕ, ਗੱਟੀ ਨੰਬਰ ਦੋ ਇਸ ਦੀਆਂ ਉਦਾਹਰਨਾਂ ਹਨ। ਕਈ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਨਾਵਾਂ ਵਿਚ ਇੱਕ ਵਚਨ ਤੇ ਬਹੁਵਚਨ ਦਾ ਵੀ ਖ਼ਾਸ ਧਿਆਨ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ ਹੈ। ਜਿਵੇਂ ਲਾਲੋ ਵਾਲੀ, ਕਾਂਵਾਂ ਵਾਲੀ। ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਦਰਖਤਾਂ ਤੇ ਪਸ਼ੂਆਂ ਨੂੰ ਪਹਿਲ ਦੇ ਕੇ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਨਾਂਅ ਤੇ ਹੀ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਨਾਂਅ ਰੱਖੇ ਗਏ। ਜਿਵੇਂ ਟਾਹਲੀ ਵਾਲਾ ਬੋਦਲਾ, ਕੱਟਿਆਂ ਵਾਲੀ ਤੇ ਝੋਟਿਆਂ ਵਾਲੀ। ਅਕਸਰ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਸਰਲ ਕਰਨ ਦਾ ਰਿਵਾਜ ਪੁਰਾਣੇ ਜ਼ਮਾਨੇ ਤੋਂ ਹੀ ਚੱਲਿਆ ਆ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਜਿਵੇਂ ਪਿੰਡ ਗੁਲਾਬ ਸਿੰਘ ਰਾਏ ਤੋਂ ਪਿੰਡ ਗੁਲਾਬਾ, ਮੁਹੰਮਦ ਲਾਲ ਖ਼ਾਨ ਦਾਹਾ ਤੋਂ ਪਿੰਡ ਲਾਲੋ ਵਾਲੀ।  

    ਬਾਗੜੀ ਪਿੰਡਾਂ ਨੇ ਵੀ ਮੋਢੀ, ਜਾਤੀ ਬਿਰਾਦਰੀ ਜਾਂ ਦਰਖਤਾਂ, ਖੂਹਾਂ ਆਦਿ ਨੂੰ ਪਿੰਡਾਂ ਦਾ ਨਾਂਅ ਰੱਖਣ ਵੇਲੇ ਪਹਿਲ ਦਿੱਤੀ ਹੈ। ਜਿਵੇਂ ਪੱਤਰਿਆਂ ਵਾਲੀ, ਬਾਰੇ ਕਾ। ਓਢ ਜਾਤੀ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਮੋਢੀ ਦੇ ਨਾਂਅ ਪਿੱਛੇ ਮਲਕੀਅਤ ਜ਼ਾਹਿਰ ਕੀਤੀ ਹੈ। ਜਿਵੇਂ ਕਮਾਲ ਵਾਲਾ, ਦਾਨੇਵਾਲਾ। ਰਾਏ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਮੋਢੀ ਦੇ ਨਾਂਅ ਤੇ ਦੋਨਾ ਨਾਨਕਾ ਪਿੰਡ ਵਸਾਇਆ। ਇਸ ਮਕਸਦ ਨਾਲ ਜੱਟਾਂ ਨੇ ਵੀ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਨਾਂਅ ਰੱਖੇ, ਜਿਵੇਂ ਜੱਟ ਵਾਲੀ, ਸਿੰਘ ਪੁਰਾ ਆਦਿ। ਇੱਥੇ ਪਹਿਲਾਂ ਦਰਿਆ ਵਹਿੰਦਾ ਸੀ। ਜੋ ਪਿੰਡ ਦਰਿਆ ਦੇ ਹੇਠਲੇ ਪਾਸੇ ਸਨ। ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਨਾਂਅ ਨਾਲ ਹਿਠਾੜ ਪੈ ਗਿਆ ਤੇ ਜੋ ਪਿੰਡ ਉੱਪਰਲੇ ਪਾਸੇ ਸਨ। ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਉਤਾੜ ਕਹਿਣ ਲੱਗ ਪਏ। ਜਿਵੇਂ ਵੱਲੇ ਸ਼ਾਹ ਉਤਾੜ ਤੇ ਵੱਲੇ ਸ਼ਾਹ ਹਿਠਾੜ। ਜੋ ਪਿੰਡ ਦਰਿਆ ਜਾਂ ਫਾਟ ਦੇ ਬੰਨ ਕੋਲ ਵਸੇ ਸਨ। ਉਹਨਾਂ ਨਾਲ ਬੰਨ ਸ਼ਬਦ ਲਾਇਆ ਗਿਆ। ਜਿਵੇਂ ਬੰਨਵਾਲਾ  ਹਨੂੰਵੰਤਾ (ਕਿਸੇ ਸਮੇਂ ਦਰਿਆ ਦਾ ਕਿਨਾਰਾ ਇੱਥੋਂ ਤੱਕ ਸੀ), ਬਾਧਾ (ਬੰਨ)। ਪਰ ਜੋ ਪਿੰਡ ਬਾਅਦ ਵਿਚ ਆਬਾਦ ਹੋਏ ਹਨ, ਉਹਨਾਂ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਨਾਂਅ ਪੁਰਾਣੇ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਮਿਲਦੇ – ਜੁਲਦੇ ਜਾਂ ਪੁਰਾਣੇ ਪਿੰਡ ਨਾਲ ਨਵਾਂ ਸ਼ਬਦ ਲਾ ਦਿੱਤਾ ਹੈ। ਜਿਵੇਂ ਨਵਾਂ ਹਸਤਾ, ਨਵਾਂ  ਸਲੇਮ ਸ਼ਾਹ। ਇਸੇ ਤਰਾਂ ਹੀ ਸ਼ਹਿਰ ਦੇ ਬਾਜ਼ਾਰਾਂ ਦੇ ਨਾਂਅ ਹਨ। ਜਿੱਥੇ ਉੱਨ ਦਾ ਕੰਮ ਹੁੰਦਾ ਸੀ। ਉਸ ਨੂੰ ਉੱਨ ਬਾਜ਼ਾਰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ। ਇਸੇ ਤਰਾਂ ਜੰਡ ਬਾਜ਼ਾਰ, ਡੈਡ ਹਾਊਸ ਰੋਡ, ਨਵੀਂ ਆਬਾਦੀ ਸੁਲਤਾਨ ਪੁਰਾ ਹਨ। ਇਹ ਨਾਂਅ ਅੱਜ ਵੀ ਪਹਿਲਾਂ ਵਾਂਗ ਹੀ ਹਨ। ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਹੁਣ ਬਦਲਣਾ ਬੜਾ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਹੈ। ਕਿਉਂਕਿ ਲੋਕ ਇਹਨਾਂ ਨਾਵਾਂ ਤੋਂ ਜਾਣੂ ਹਨ ਤੇ ਇਹਨਾਂ ਨਾਵਾਂ ਤੇ ਹੀ ਚਿੱਠੀ-ਪੱਤਰ ਆਉਂਦਾ ਹੈ।

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Jan 11, 2020

ਕਿਵੇਂ ਰੱਖਿਆ ਪਿੰਡ ਦਾ ਨਾਂਅ

Hazi khan Haveli in Fazilka
19ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿਚ ਫ਼ਾਜ਼ਿਲਕਾ ਅਤੇ ਇਸ ਦੇ ਜ਼ਿਆਦਾ ਪਿੰਡ ਹੋਂਦ ਵਿਚ ਆਏ। ਉਸ ਵੇਲੇ ਰੱਖੇ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਨਾਵਾਂ ਵਿਚ ਅੱਜ ਤੱਕ ਕੋਈ ਖ਼ਾਸ ਬਦਲਾਅ ਨਹੀਂ ਆਇਆ। ਜੇ ਕੁੱਝ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਨਾਂਅ ਬਦਲੇ ਹਨ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਉਰਫ਼ ਲਾਇਆ ਗਿਆ ਗਿਆ ਹੈ। ਫ਼ਾਜ਼ਿਲਕਾ ਸ਼ਹਿਰ ਵੱਸਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਇੱਥੇ ਬੋਦਲਾ, ਵੱਟੂ ਤੇ ਚਿਸ਼ਤੀ ਜਾਤੀ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਆਏ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਫ਼ਾਜ਼ਿਲਕਾ – ਫ਼ਿਰੋਜਪੁਰ ਰੋਡ ਦੇ ਆਸੇ-ਪਾਸੇ, ਮਲੋਟ ਰੋਡ ਦੇ ਖੱਬੇ ਹੱਥ ਅਤੇ ਫ਼ਾਜ਼ਿਲਕਾ ਦੇ ਪੱਛਮ ਵੱਲ ਵਸੇ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪਿੰਡਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਜਾਤੀ ਦਾ ਨਾਂਅ ਦਿੱਤਾ। ਕੁੱਝ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਖ਼ੁਦ ਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ। ਸੁਖੇਰਾ ਜਾਤੀ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਵੀ ਫ਼ਾਜ਼ਿਲਕਾ ਦੇ ਪੱਛਮ ਵੱਲ ਵਸੇ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮੋਢੀ ਦੇ ਨਾਂਅ ਨੂੰ ਪਹਿਲ ਦਿੱਤੀ। ਜਿਵੇਂ ਬਹਿਕ ਬੋਦਲਾ,  ਸਲੇਮ ਸ਼ਾਹ ਤੇ ਪੱਕਾ ਚਿਸ਼ਤੀ।
Fazilka
ਬਾਗੜੀ ਲੋਕ ਅਬੋਹਰ ਰੋਡ ਦੇ ਆਸੇ-ਪਾਸੇ ਵਸੇ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮੋਢੀ, ਦਰਖਤਾਂ ਤੇ ਭੂਮੀਗਤ ਚੀਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਜ਼ਿਆਦਾ ਪਹਿਲ ਦਿੱਤੀ।  ਬੇਗਾਂ ਵਾਲੀ, ਖੂਹੀ ਖੇੜਾ, ਕਿੱਕਰ ਵਾਲਾ ਰੂਪਾ ਆਦਿ। ਕਈ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਨਾਵਾਂ ਨਾਲ ਵਿਦੇਸ਼ ਤੋਂ ਆਏ ਸ਼ਬਦ ਵੀ ਲਾਏ ਗਏ ਹਨ। ਕਿਉਂਕਿ ਇੱਥੇ ਵੱਸਣ ਵਾਲੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਵਿਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਭਾਰਤ ਆਏ ਸਨ। ਜਿਵੇਂ ਈਰਾਨ ਦਾ ਸ਼ਹਿਰ ਸ਼ਾਹਪੁਰ ਤੇ ਏਸ਼ੀਆ ਦਾ ਸ਼ਹਿਰ ਦੋਲਤਾਬਾਦ। ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਫ਼ਾਜ਼ਿਲਕਾ ਦੇ ਕਈ ਪਿੰਡਾਂ ਤੇ ਮੁਹੱਲਿਆਂ ਦੇ ਪਿੱਛੇ ਪੁਰ, ਆਬਾਦ ਜਾਂ ਸ਼ਾਹ ਲੱਗਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਜਿਵੇਂ ਫ਼ਾਜ਼ਿਲਕਾ ਦਾ ਮੁਹੱਲਾ ਨਵੀਂ ਆਬਾਦੀ ਇਸਲਾਮਾਬਾਦ ਤੇ ਪਿੰਡ ਸ਼ਮਸ਼ਾਬਾਦ, ਨੂਰ ਪੁਰਾ ਆਦਿ। ਜਦੋਂ ਕਿ ਡੇਰਾ ਜਾਂ ਨਗਰ ਪੰਜਾਬੀ ਅਲਫ਼ਾਜ਼ ਹਨ। ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨਾਂਅ ਤੇ ਵੀ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਨਾਂਅ ਰੱਖੇ ਗਏ। ਜਿਵੇਂ ਮਹਾਤਮ ਨਗਰ, ਰਾਮ ਨਗਰ ਆਦਿ।
Village Alam Sham
   ਪਹਿਲਾਂ ਪਿੰਡ ਦਾ ਮੋਢੀ ਪਿੰਡ ਬੱਝਣ ਤੇ ਪਿੰਡ ਜਾਂ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਨਾਂਅ ਆਪਣੇ ਜਾਂ ਬਜ਼ੁਰਗ, ਬਰਾਦਰੀ, ਗੋਤ, ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਘਟਨਾ, ਰਸਮ ਰਿਵਾਜ ਜਾਂ ਜਗ੍ਹਾ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਵਿਚ ਰੱਖ ਕੇ ਪਿੰਡ ਦਾ ਨਾਂਅ ਰੱਖਦਾ ਸੀ। ਜਿਵੇਂ ਫ਼ਾਜ਼ਿਲਕਾ ਵਿਚ 1841 ਵਿਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਅਫ਼ਸਰ ਵੰਸ ਐਗਨਿਊ ਨੇ ਇੱਕ ਬੰਗਲਾ ਬਣਵਾਇਆ ਸੀ। ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਇਸ ਦਾ ਨਾਂਅ ਬੰਗਲਾ ਪੈ ਗਿਆ। ਬਾਅਦ ਵਿਚ ਸ਼ਹਿਰ ਵਸਾਉਣ ਲਈ ਜਦੋਂ ਓਲੀਵਰ ਨੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਮੀਆਂ ਫ਼ਜ਼ਲ ਖਾਂ ਵੱਟੂ ਨੂੰ ਬੁਲਾਇਆ ਤਾਂ ਵੱਟੂ ਨੇ ਇਸ ਸ਼ਰਤ ਤੇ ਜ਼ਮੀਨ ਦਿੱਤੀ ਕਿ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਨਾਂਅ ਉਸ ਦੇ ਨਾਂਅ ਤੇ ਰੱਖਿਆ ਜਾਵੇ। ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਫ਼ਾਜ਼ਿਲਕਾ ਦਾ ਨਾਂਅ ਫ਼ਾਜ਼ਿਲਕੀ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ ਸੀ। ਜੋ ਬਾਅਦ ਵਿਚ ਫ਼ਾਜ਼ਿਲਕਾ ਦੇ ਨਾਂਅ ਨਾਲ ਮਸ਼ਹੂਰ ਹੋ ਗਿਆ। ਬਰਾਦਰੀ ਦੇ ਨਾਂਅ ਤੇ ਕਲੰਦਰ ਬਿਰਾਦਰੀ ਨੇ ਪਿੰਡ ਥੇਹ ਕਲੰਦਰ ਦਾ ਨਾਂਅ ਰੱਖਿਆ। ਵੈਸੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਜਾਤੀ ਬਿਰਾਦਰੀ ਦੇ ਨਾਂਅ ਤੇ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਨਾਂਅ ਰੱਖਣ ਨੂੰ ਜ਼ਿਆਦਾ ਪਹਿਲ ਦਿੱਤੀ ਹੈ। ਬਾਕੀ ਅਗਲੇ ਬਲਾਗ ਵਿਚ। (Lachhman Dost 99140-63937)
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Jan 7, 2020

गाँव नहीं, शहर से ही वज़ूद में आया था FAZILKA

क्या 144 Rs/- में कोई शहर बस सकता है .. शायद नहीं.... मगर आप को एक हकीकत बता दूँ कि जिस धरती पर Fazilka शहर बसा हुआ हैउस धरती की कीमत सिर्फ …और सिर्फ 144 रूपये आठ आन्ने थी यकीन नहीं  रहामगर यह हकीकत हैहकीकत और मेजदार दास्तानरंगलेबंगले फाजिल्का तक के सफर की रंगीली दास्तान। यही एक शहर है – जो कभी गांव नहीं थी – शहर था  
          बात 1846 की है जब बंगला पूरे योवन पर था - वंस एगन्यू का तबादला हो गया तो यह इलाका  जे.एच.ओलीवर के अंडर  गयाउन्होंने फतेहबाद और बीकानेर में मुनादी करवा दी कि आओबंगले में आकर बस जाओअगर अपने साथ कारपेंटरनाईमिस्त्रीमजदूर लेकर आओ तो जगह मुफ्त मिलेगीओलीवर भी चाहते थे कि बंगला शहर पूरी तरह से आबाद हो जाए……बात फैलती गई और लोग यहां आकर बसते गएशहर के लिए जगह कम पड़ गईतब ओलीवर ने मियां फजल खां वट्टू को बुलाया
     फजल खां वट्टू !!! …वो कौन थावो था सतलुज दरिया के किनारे बसने वाले मुस्लिम कबीले का एक जमींदारजिसे ब्रिटिश सरकार की तरफ से नंबरदार बनाया हुआ थावह कृषको से कृषि और नहरी पानी का टैक्स इक्_ करता और ब्रिटिश कोष में जमां करवा देताब्रिटिश साम्राज्य के राजस्व में इजाफा होते देखकर ओलिवर ने नंबरदार वट्टू को बुलाकर यहां नगर का दायरा विशाल करने के लिए जमीन बेचने की बात कहीनंबरदार वट्टू के पास जमीन की कमीं नहीं थीवह जमीन बेचने को तैयार थामगर उसकी शर्त थी कि इस शहर का नाम उसके नाम (फज़ल खांपर रखा जाएगहन विचार के बाद ब्रिटिश अधिकारी ओलिवर ने नंबरदार वट्टू की शर्त मान ली और उससेे साढ़े बत्तीस ऐकड़ जमीन 144 रूपए आठ आन्ने में खरीद ली… उसके बाद नगर का नाम फजिल्की रखा गयाजो धीरेधीरे फाजिल्का पड़ गया

Peer Goraya
शहर का मुख्य बाजार है मेहरियां बाजार… यहां एक दुकान पर कुछ बरस पहले ही मैने ओलीवर द्वारा बनाई गई मार्केट का बोर्ड देखा था… मैं देखना तो चाहता था कि कहीं बंगला लिखामिल जाएमगर बंगला लिखा कहीं नहीं मिला
हां बंगला जरूर मिल गया… जहां आजकल डिप्टी कमिशनर का निवास हैबाधा झील के पासआज भी वही बंगला… खुला  हवादारमोटी दिवारें …मोटे शहतीरवही अदालत … जहां वंस एगन्यू की कचहरी लगती थी… एक बात और जहन में थी कि फजल खां वट्टू कहां रहता था खोज की तो पता चला कि वह गांव सलेमशाह में रहता थाजिसे कभी फजलकी बोलते थेवह वहां से मौजम रेलवे फाटक के पास आकर बस गएसाथ ही मौहल्ला है पीर गोराया… जहां वट्टू पीर की सेवा भी करते थे तो मेला भी लगवाते थे (यह अन्य ब्लाग में ब्योरे सहित लिखा जाएगा), क्योंकि बात सिर्फ बंगले की हो रही है तो बात को जारी रखते हैं।

Village Salem Shah kaa ek purana makaan
       फाजिल्का का दायरा विशाल करना थाइसलिए 1862 में सुलतानपुरापैंचांवालीबनवालाख्योवाली और केरूवाला रकबे की 2165 बीघा जमीन खरीद कर ली गईजिसका मूल्य 1301 रूपए तय किया गया थाउसके बाद सात अगस्त 1867 के दिन पंजाब सरकार के नोटीफिकेशन नंबर 1034 के तहत फाजिल्का की सीमा निर्धारित कर दी गई… ब्रिटिश साम्राज्य की ओर से खरीद की गई जमीन का निर्धारित मुल्य 1877 में नंबरदार वट्टू को पंचायती फंड से अदा किया गया।
       समय ने करवट ली और फाजिल्का में ऊन का व्यापार गति पकडऩे लगा…व्यापार में इजाफे के लिए ब्रिटिश अधिकारी ने पेड़ीवाल, मारवाड़ी, अग्रवाल और अरोड़वंश जाति के लोगों को न्योता दिया…वह लोग व्यापारी थे और उन्होंने यहां ऊन व अन्य कई तरह के व्यापार शुरू कर दिए…जिससे फाजिल्का व्यापारिक केन्द्र बन गया…उधर 1852 में ब्रिटिश अधिकारी थोमसन को तैनात किया गया, वह 1857 तक रहे और उन्होंने अधिकतर अबोहर व उसके आसपास के गांवों में विकास करवाया।



Fazilka City
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