बंगला के निर्माणकर्ता
वन्स एगन्यू का कलकता से मुल्तान तक का सफर
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Bangla |
सतलुज दरिया के किनारे हरियाली, लहलहराते खेत, कहीं धूल, कहीं जंगल। यह अदभुत व मनमोहक नजारा, उन ग्रामीणों के लिए तो कोई नया नहीं था। जो बरसों से इस नजारे के आसपास रह रहे थे, लेकिन उस व्यक्ति के लिए यह नजारा वास्तव में अनूठा था, जिसने यहां एक शहर बसाने की सोची। वैसे कोई शहर बसाया नहीं जाता। अलबत्ता शहर खुद ही बस जाता है, लेकिन उसमें किसी न किसी व्यक्ति का हाथ, सहयोग और समपर्ण जरूर होता है। ऐसे ही एक शख्स थे, वंस एगन्यू यानि पैट्रिक वंस एगन्यू। वंस एगन्यू तो उनका सर नेम था। उनका असली नाम था, पैट्रिक एलैगजेंडर। सर नेम मिलने के बाद उनका नाम पैट्रिक एलेगजेंडर वंस एगन्यू पड़ गया। वंस एगन्यू एक ऐसे ब्रिटिश अधिकारी थे जो पंजाबी भाषा का भी ज्ञान रखते थे। उनका फाजिल्का को बसाने की राह में अहम योगदान है। फाजिल्का के इतिहास में बंगले की दास्तान के जिक्र दौरान मुस्लमान फजल खां वट्टू के नाम के साथ वंस एगन्यू का जिक्र जरूर होगा। पिता के नक्शे कदमों पर चलकर ब्रिटिश आर्मी में भर्ती होने वाले वंस एगन्यू बंगाल सिविल सर्विस में तैनात हुए। इसके बाद उन्हें ब्रिटिश सरकार ने भटियाणा में सहायक सुपरिटेडेंट के पद पर तैनात किया गया। वह एक सियासी अधिकारी की कला में माहिर हो गए। हालांकि उनकी आयु कम थी। मगर ब्रिटिश अफसरों में उनका प्रदर्शन अच्छा रहा। उनका मनपसंद काम था शहरों को आबाद करना। वह जहां भी गए। शहरों के विकास में उनका अह्म योगदन रहा। बात चाहे फाजिल्का की हो या लाहौर की। वह तीन बातों में इतफाक रखते थे, पहली बात किसी चीज को आरंभ करने के लिए सही जगह क्या है? दूसरा किन लोगों को मिलना या सुनना चाहिए? उनके जहन में तीसरी बात यह थी कि सब से महत्वपूर्ण कार्य क्या है, जिसे प्राथमिकता के आधार पर किया जाए। इस सोच को आधार मानकर ही उन्होंने फाजिल्का शहर बसाने में प्राथमिकता से काम किया।
फाजिल्का में बंगले के निर्माणकर्ता ब्रिटिश अधिकारी पैट्रिक एलेगजेंडर वन्स एगन्यू ने भले ही ब्रिटिश साम्राज्य में सिर्फ 7 साल तक सेवा की, लेकिन इस सेवा दौरान उन्होंने ऐसी कई भूली बिसरी यादें छोड़ी जो अमिट यादें बनकर रह गई। कलकत्ता में उन्होंने 3 साल गुजारे तो फाजिल्का में वह 2 साल रहे। फाजिल्का में उन्होंने एक ऐसे बंगले का निर्माण करवाया। जिसके नाम पर क्षेत्र का नाम बंगला ही पड़ गया। हॉर्श शू लेक किनारे निर्मित इस बंगले की धूम दूर-दूर तक रही है। बंगला नामक इस कस्बे को खुशहाली देने के पश्चात उन्हें लाहौर में तैनात कर दिया गया। वहां से मुलतान तक के सफर में उन्हें कई खट्टे-मीठे अनुभव हुए। मुल्तान में दूसरा सिक्ख एंग्लो युद्ध शुरू हुआ तो उनकी जिंदगी का अंतिम सफर भी समाप्त हो गया।
वन्स एगन्यू का जन्म 21 अप्रैल 1822 को नागपुर में पैट्रिक वन्स एगन्यू के घर हुआ। उसकी माता का नाम कैथराइन फरेसर था। उनके पिता मद्रास आर्मी में लेफ्टीनेंट कर्नल थे। जिन्होंने सिक्ख व ब्रिटिश साम्राज्य के निणार्यक युद्ध पहले एंगलो सिख युद्ध सन् 1845-1846 में भी भाग लिया। मार्च 1841 में बंगाल सिविल सर्विस में ज्वाइंन करने वाला युवा वंस एगन्यू 1844 में फाजिल्का में बंगले का निर्माणकर्ता बन गया। उन्होंने बहावलपुर के नवाब मुहम्मद बहावल खान।।। से जगह ली और बाधा झील यानि हार्श शू लेक के किनारे एक विशाल बंगले का निर्माण करवाया। बंगले में हर सरकारी व गैर सरकारी काम होने लगे। दूरदराज से लोग यहां न्याय पाने के लिए आने लगे। बंगला नाम प्रत्येक व्यक्तिकी जुबान पर चढ़ गया। सब लोग बंगला का नाम पुकारने लगे। यही कारण है कि फाजिल्का नाम से पहले नगर का नाम बंगला हुआ करता था। बुजुर्ग आज भी शहर को फाजिल्का कम और बंगला ज्यादा पुकारते हैं। वंस एगन्यू सियासी ब्रिटिश अफसर थे, इस कारण हर सियासी नेता का यहां आना-जाना था। सियासी नेता ही नहीं, प्रत्येक ब्रिटिश अफसर भी यहां पहुंचते। सिरसा के अलावा मालवा, सतलुज राज्य की बैठकें यहां होने लगी। एक युवा अफसर के नेतृत्व में बंगला का नाम चंद ही महीनों में मशहूर हो गया। यहीं से शुरू हुआ बंगला नगर के निर्माण का कार्य। इधर वंस एगन्यू ने 1844 में बंगले का निर्माण करवाया, उधर दीवान मूल चंद को मुल्तान का गर्वनर बनाया गया।
इस पद के बदले वह लाहौर सरकार को 20 लाख रूपए वार्षिक अदा करता था। जबकि कई इतिहासकारों ने इस की अदायगी की रकम 12 लाख रूपए बताई है। सभराओं की लड़ार्ई में विजयी होने के बाद अंग्रेजों ने लाहौर की तरफ कूच किया तो किसी ने उन की खिलाफत नहीं की। आखिर 20 फरवरी 1846 को अंग्रेज सेना लाहौर पहुंच गई। इस बीच बंगला नगर की प्रसिद्धी पंख फैला रही थी। एक खुशहाल और ऐगन्यू के सपनों का नगर बसने की योजना तैयार हो रही थी कि वंस एगन्यू का यहां से 13-12-1845 को फिरोजपुर का अतिरिक्त चार्ज दे दिया गया। जहां वह से 23-02-1846 तक रहे। उसके बाद एगन्यू का तबादला लाहौर कर दिया गया। लाहौर सिक्खों की राजधानी थी। वहां भी वंस एगन्यू ने शहर के विकास को ओर आगे बढ़ाया उधर धीरे-धीरे पंजाब के चिलियांवाला, गुजरात, राम नगर और लाहौर में अंग्रेजों के खिलाफ दूसरे युद्ध की तैयारी शुरू होने लगी।
पहले एंग्लो-सिक्ख युद्ध सन् 1845-1846 के बाद अंग्रेजों ने जालंधर दोआब में कब्जा जमा लिया था। युद्ध के बाद सिक्ख कमजोर पड़ चुके थे। शासन प्रणाली का कंट्रोल ब्रिटिश सरकार ने अपने हाथों में ले लिया। अंग्रेज महाराजा रणजीत सिंह के समय से ही लाहौर को घेरने की नीति बना चुके थे। जब अंग्रेज लाहौर पहुंचे तो उन्होंने महाराजा रणजीत सिंह की एक पत्नी महारानी जिन्द कौर को डेढ़ लाख रूपए की वार्षिक पैंशन तय कर दी। जो बाद में 48 हजार रूपए वार्षिक की गई। उन्हें पहले शेखू पुरा और बाद में बनारस भेज दिया गया। युद्ध का एक अन्य कारण यह भी था कि पहला ऐंग्लो सिक्ख युद्ध में हार का बदला लेने की भावना अंगेजों के दिल में घर कर चुकी थी। इस बीच शुरू हो गया मुलतान के सूबेदार दीवान मूलराज का विद्रोह। इस विद्रोह में ही बंगले नगर के निर्माणकर्ता वंस एगन्यू को मार दिया गया। जो एक इतिहास बन गया। यह दास्तान भी बड़ी अजीब है। इस अनोखी दास्तान के पन्ने बताते हैं कि 20 फरवरी 1846 को जब अंगे्रजों ने लाहौर का शासन प्रबंध अपने हाथों में ले लिया तो उन्होंने मूलराज का टैक्स 20 लाख रूपए से बढ़ाकर 30 लाख रूपए वार्षिक दिया। (फॉर्मली हैड, पोस्ट ग्रेजूऐट डिपार्टमेंट ऑफ हिस्ट्री आर्य कॉलेज लुधियाना के श्री एस.पी. सभ्रवाल ने पंजाब के इतिहास में यह टैक्स 12 से बढक़र 18 लाख रूपए बताया है। साथ ही उन्होंने राज्य का 1/3 हिस्सा भी लेना बताया गया है।) टैक्स ज्यादा होने के कारण दीवान मूल राज ने इसे अदा करने में असमर्था जताई, लेकिन अंग्रेज नहीं माने। अपीलों के बावजूद इंकार होता रहा तो दीवान मूल राज ने पद से इस्तीफा दे दिया। अंग्रेज तो पहले ही इस ताक मेें थे और मार्च 1848 में नएं रैजीडेंट फ्रैड्रिक करी ने मूलराज का इस्तीफा स्वीकार कर लिया, लेकिन शायद वे यह नहीं जानते थे कि सिक्खों का विद्रोह उन पर भारी पड़ सकता है। दूसरी तरफ उनकी सोच का एक हिस्सा यह भी था कि अंग्रेज विद्रोह को जान-बुझ कर हवा देना चाहते थे ताकि उन्हें पंजाब पर कब्जे का एक बहाना मिल जाए। अधिक मजबूती के लिए ब्रिटिश साम्राज्य ने काहन सिंह को मुल्तान का सूबेदार घोषित कर दिया। उनकी सहायता के लिए बंगला (फाजिल्का ) के निर्माणकर्ता वंस एगन्यू और विलियम एंडरसन को भेजा गया। 19 अप्रैल 1848 को दीवान मूल राज ने खुशीपूर्वक नए सूबेदार को चार्ज दे दिया। अंग्रेजों की ओर से नया सूबेदार बनाने से मुल्तानी सैनिक खुश नहीं थे। उन्होंने विद्रोह शुरू कर दिया। जब वंस एगन्यू और विलियम एंडरसन के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना विद्रोह दबाने के लिए मुलतान की ओर बढ़ी तो मुलतानी सैनिक और भडक़ उठे। सिक्खोंं को पता चला कि ब्रिटिश सैनिक वंस एगन्यू और विलियम एंडरसन के नेतृत्व मेेंं आगे बढ़ रहे हंै तो उन्होंने बृज पार करते समय दोनों अंग्रेज अफसरों को घोड़े से नीचे उतार लिया और उन्हें बुरी तरह से मारपीट करके घायल कर दिया गया। युद्ध शुरू हो गया। सिक्ख व ब्रिटिश सैनिकों के तेजधार हथियार एक दूसरे पर धड़ाधड बरसने लगे। मैदान लहूलुहान हो गया। वहां से घायल वंस एगन्यू व विलियम ऐंडरसन को ब्रिटिश सैनिक पनाह यानि ईदगाह में ले गए। मुलतानी सैनिकों में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति नफरत की ज्वाला पूरी तरह भडक़ चुकी थी। 20 अप्रैल 1848 की सांय सिक्खों का झुंड वंस एगन्यू और विलियम एंडरसन की पनाहगाह में घुस गया और दोनों ब्रिटिश अफसरों को मार दिया। यहीं से बंगला के निर्माणकर्ता वंस एगन्यू की जिंदगी के सफर की आखरी राह बंद हो गई। इधर वंस एगन्यू की ओर से बनाया गया बंगला की निगरानी के लिए सिरसा के डिप्टी कमिशनर जे.एच.ओलिवर को कमान दी गई। उन्होंने यहां बरसों तक अपनी धाक जमाई और फाजिल्का को विकास की राह पर अग्रसर किया। वंस एगन्यू का बसाए बंगले की धूम तो आज भी है, लेकिन उनके द्वारा निर्मित बंगला में वो शान नहीं रही। बाधा झील का अस्तित्व भी खत्म हो गया। रह गया तो सिर्फ उनकी यादें, जो इतिहास के पन्नों पर है।
--LACHHMAN DOST FAZILKA-
Builder of bungalow
Once Agnew's journey from Calcutta to Multan
. No such city is settled. But the city itself settles itself, but there is of course someone's hand, cooperation and support from him. There was such a man, Vans Agnew i.e. Patrick vans Agnew Vans Agnew was his Sir Name. His real name was Patrick Alexander. After getting the Sir name, his name Patrick Alexander vans Agnew fell. Once Agnew was a British officer who also had knowledge of Punjabi language. They have a significant contribution in the path of settling their Fazilka. During the mention of the bungalow's story in the history of Fazilka, there must be mention of Vans Agnew with the name of Muslim Fazal Khan Vattu. Following on the map steps of the father, Vans Agnew, who was admitted to the British Army, was posted in the Bengal Civil Services. After this he was deployed as Assistant Superintendent of Bhatiana by the British Government. He specializes in the art of a political officer. Although his age was low. But his performance in British officers was good. His favorite work was to populate cities. Where did he go? His pride in the development of the cities remained. Whether it is Fazilka or Lahore He kept in three things, first thing, what is the right place to start something? What other people should meet or hear? The third thing in his mind was that what is the most important task, which is done on priority basis. Based on this thinking, he worked primarily in settling the city of Fazilka.
British physicist Patrick Alexander van Agnue, the builder of the bungalow in Fazilka, served for only 7 years in the British Empire, but during this service he left many forgotten memories, which remained unmatched memories. In Calcutta, he lived for 3 years, he lived for two years in Fazilka. In Fazilka, he built a bungalow. The name of the area, named after it, was a bungalow. The bungalow built on the edge of Horsh Shoe Lake has been far away. After the prosperity of this town named Bangla, he was deployed in Lahore. From there there have been many sour experiences in traveling to Multan. If the second Anglo-Sikh war broke out in Multan, the final journey of their life ended.
Once Agnu was born on April 21, 1822 in Nagpur, Patrick Vans Agnew's house. His mother's name was Katherine Fareser. His father was a lieutenant colonel in the Madras Army. Who participated in the Anglo Sikh war, 1845-1846 before the decisive battle of Sikhism and British Empire. Young Vance Agnew, who joined the Bengal Civil Service in March 1841, became the builder of the bungalow in Fazilka in 1844. He is the Nawab Muhammad Bahawal Khan of Bahawalpur ... From the place and construct a huge bungalow on the banks of the Barrier Lake i.e. Harsh Shu Lake. Every government and non-government work started to be done in the bungalow. People come from far away to come here to get justice. Bangla name climbed on every individual expression. Everyone started calling the name of Bangla. This is the reason that the name of the city used to be named bungala before the name of phazilka. Even the elderly still call the city down to Fazilka and bungalow more. Vans Agnew was a political British officer, for this reason every political leader had to come here. Not only the political leader, every British officer also goes here. In addition to Sirsa, meetings of the state of Satluj in Malwa, were started here. Under the leadership of a young officer, the name of Bangla became famous in only a few months. This is where the construction of Bangla Nagar started from here. Here, Vans Agnew built a bungalow in 1844; On the other hand, Diwan Mool Chand was appointed the governor of Multan.
In exchange for this post, he used to pay Rs 20 lakh annually to the Lahore Government. While many historians have reported the payment amount of Rs 12 lakhs. After victorious in the battle of the all-rounds, the British traveled towards Lahore, then no one gave a protest against them. After all, the British army reached Lahore on February 20, 1846. In the meantime Bangla Nagar's publicity was spreading wings. There was a plan to settle a happy and happy city of Agnew, that Vans Agnew was given additional charge of Ferozpur on 13-12-1845 from here. Where he stayed from 23-02-1846. After that, Agnew was transferred to Lahore. Lahore was the capital of the Sikhs. Even there, Van Agnew proceeded towards the development of the city, and gradually the preparations for the second war against the British in Chilianwala, Gujarat, Ram Nagar and Lahore began to begin.
After the first Anglo-Sikh war, 1845-1846, the British had occupied Jalandhar Doab. After the war, the Sikhs were weakened. The British government took control of the governance system. From the time of the British Maharaja Ranjit Singh, the policy of enclosing Lahore was made. When the British arrived in Lahore, he fixed an annual pension of 1.5 lakh rupees to Maharani Jind Kaur, a wife of Maharaja Ranjit Singh. Which was later made 48 thousand rupees annually. She was first sent to Shekhu Pura and later to Banaras. Another reason for the war was that the first Anglo Sikh had made a sense of revenge for the defeat in the war, in the heart of Angaz