punjabfly

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Aug 24, 2021

नई खोज – 150 साल पुराने मील पत्थर ने इतिहास में जोड़ी एक और कड़ी !!!New Discovery - Another link in history by 150 year old landmark !!!

     विशाल भारत की सबसे लंबी व चौड़ी सडक़ों में शुमार रही एक सडक़ फाजिल्का तक पहुंचती थी। यह सडक़ नरेला से शुरू होकर वाया सिरसा से होते हुए फाजिल्का के निकट सतलुज दरिया तक पहुंचती थी।


बरसों पुरानी इस सडक़ का एक मील पत्थर गांव मौजम के एक घर में मिला है। इसका पता फाजिल्का के इतिहासकार लछमण दोस्त ने लगाया है। उन्होंने बताया कि फाजिल्का और सिरसा के निकट पक्की सडक़ें एक या दो मील तक ही लंबी थी। जो कच्ची सडक़ हजारों मील लंबी थी वो फाजिल्का से गुजरती थी।    इसके बाद कच्ची सडक़ जिला औकाड़ा (अब पाकिस्तान मेंतक जाती थी।

अंग्रेजी व फारसी पर लिखा है सिरसा

लछमण दोस्त ने बताया कि यह मील पत्थर गांव मौजम के रहने वाले राम सिंह पुत्र करतार सिंह के घर में मिला है. घर की बुजुर्ग महिला गहलो बाई ने बताया कि सतलुज दरिया में बाढ़ के कारण उनके खेत के निकट मिट्टी का टिब्बा सा बन गया, वहां से धीरे धीरे मिट्टी हटाई जाती रही तो नीचे से मील पत्थर निकला।                                जो उन्होंने एक यादगार के तौर पर अपने घर में रख लिया। इस मील पत्थर पर अंग्रेजी व फारसी में सिरसा 90 लिखा हुआ है।

Gehlo Bai

औकाड़ा तक जाती थी सडक़

जो सिंध–पंजाब–दिल्ली रेल लाइन पर मिंटगुमरी जिले में मौजूद है।यह कच्ची सडक़ नरेला (अब उत्तर दिल्ली का जिला) से शुरू होकर जिला हिसार पहुंचती। सडक़ हिसार के बीचो–बीच से गुजरकर जिला सिरसा और डबवाली तहसील से होती हुई फाजिल्का पहुंचती थी।


फाजिल्का से यह सडक़ मौजम गांव तक जाती थी। जहां से सतलुज दरिया पार करने के लिए किश्ती में जाना पड़ता था। दरिया पार करने के बाद सडक़ औकाड़ा शहर तक जाती थी,   

Lachhman Dost Historian 99140-63937

पाविन्दा व्यापारी करते थे प्रयोग 

उन्होंने बताया कि इस सडक़ का प्रयोग अधिकांश पाविन्दा नामक व्यापारी करते थे तो काबूल कंधार से चलकर दिल्ली में व्यापार के बाद उत्तर पच्छित इलाकों में पहुंचते थे। पाविन्दा व्यापारी सर्दी के दिनों में जिला सिरसा से होकर फाजिल्का पहुंचते थे और यहां से आगे अपना कारोबार के लिए चले जाते थे। व्यापारी अपने ऊटों पर व्यापारिक वस्तुओं को भरकर लाते थे। ऊटों की संख्यां दो-चार नहीं, सैंकड़ों होती। जब वह चलते तो ऊंटों की एक बड़ी कतार होती थी।


       New Discovery - Another link in history by 150 year old landmark !!!                                                  One of the longest and widest roads in vast India used to reach Fazilka. This road started from Narela, passed through Sirsa and reached Sutlej river near Fazilka. A milestone of this years old road has been found in a house in village Maujam. This has been discovered by the historian Lachhman Dost of Fazilka. He said that the paved roads near Fazilka and Sirsa were only one or two miles long. The dirt road that was thousands of miles long passed through Fazilka.After this the unpaved road used to go to Okada district (now in Pakistan)

Sirsa is written in English and Persian

Lachhman Dost said that this milestone was found in the house of Ram Singh's son Kartar Singh, a resident of village Maujam. Gehlo Bai, an elderly woman of the house, said that due to the flood in the Sutlej river, it became like a mound of mud near her farm. From there, the soil was gradually removed and a milestone came out from below.Which he kept in his house as a memento. Sirsa 90 is written in English and Persian on this milestone.

The road used to go to Okada

This unpaved road would start from Narela (now North Delhi district) and reach Hisar district. The road passed through the middle of Hisar and reached Fazilka through Sirsa and Dabwali tehsils. This road used to go from Fazilka to Maujam village. From where one had to go by boat to cross the river Sutlej. After crossing the river, the road led to the city of Okada,

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Aug 23, 2021

ਕੀ ਤੁਸੀ ਮੁਕਾਬਲੇ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰੀਖਿਆਵਾਂ ਲਈ ਤਿਆਰੀ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹੋ ਤਾਂ ਪੜ੍ਹੋ ਪੰਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ਸਕੀਮ ਬਾਰੇ




 ਦੋਸਤੋਂ ਪੰਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਵੱਲੋਂ ਮਿਸ਼ਨ ਘਰ ਘਰ ਰੋਜ਼ਗਾਰ ਤਹਿਤ ਮੁਕਾਬਲੇ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰੀਖਿਆਵਾਂ ਦੀ ਮੁਫ਼ਤ ਕੋਚਿੰਗ ਮੁਹੱਈਆ ਕਰਵਾਈ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਐਸ.ਐਸ.ਸੀ., ਬੈਂਕ ਪੀ.ਓ/ਕਲੈਰੀਕਲ, ਆਰ.ਆਰ.ਬੀ., ਸੀ.ਈ.ਟੀ., ਪੀ.ਪੀ.ਐਸ.ਸੀ., ਪੰਜਾਬ ਸੁਬਾਰਡੀਨੇਟ 

ਸਰਵਿਸ ਸਲੈਕਸ਼ਨ ਬੋਰਡ ਅਤੇ ਰਾਜ ਤੇ ਸੈਂਟਰ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਵਿਭਾਗਾਂ ਵਿਖੇ ਵਕੈਸੀਆਂ ਬਾਰੇ ਕੋਚਿੰਗ ਦਿੱਤੀ ਜਾਵੇਗੀ। 




 ਇਹ ਕੋਚਿੰਗ ਸਤੰਬਰ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਹਫ਼ਤੇ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਵੇਗੀ। ਇਸ ਵਿੱਚ ਬਾਰਵੀਂ ਅਤੇ ਗ੍ਰੈਜੂਏਸ਼ਨ ਦੋਵੇਂ ਯੋਗਤਾ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਾਰਥੀ ਭਾਗ ਲੈ ਸਕਦੇ ਹਨ। ਬਾਰਵੀਂ ਪਾਸ ਪ੍ਰਾਰਥੀ ਪੁਲਿਸ ਕਾਂਸਟੇਬਲ ਅਤੇ ਗ੍ਰੈਜੂਏਸ਼ਨ ਪਾਸ ਪ੍ਰਾਰਥੀ ਕਲੈਰੀਕਲ ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਦੀ ਕੋਚਿੰਗ ਲੈ ਸਕਦੇ ਹਨ।ਇਹ ਕੋਚਿੰਗ ਆਨਲਾਈਨ ਮੋਡ ਵਿੱਚ ਰਹੇਗੀ ਅਤੇ ਘੱਟੋ ਘੱਟ 4 ਮਹੀਨੇ ਤੱਕ ਚੱਲੇਗੀ।ਇਹ ਕਲਾਸ 01 ਘੰਟਾ 30 ਮਿੰਟ ਦੀ ਰਹੇਗੀ ਅਤੇ ਹਫਤੇ ਦੇ 6 ਦਿਨ ਸੋਮਵਾਰ ਤੋਂ ਸ਼ਨੀਵਾਰ ਤੱਕ ਰਹੇਗੀ।

ਦੋਸਤੋਂ ਇਸ ਲਈ ਤੁਸੀਂ ਆਪਣੀ ਰਜਿਸਟ੍ਰੇਸ਼ਨ ਇੱਥੇ ਦਿੱਤੇ ਲਿੰਕ ਤੇ ਜਾ ਕੇ ਕਰਵਾ ਸਕਦੇ ਹੋ। ਇਹ ਲਿੰਕ ਅਸੀਂ https://www.eduzphere.com/freegovtexams ਦੇ ਰਹੇ ਹਾਂ। ਤਾਂ ਫਿਰ ਦੇਰ ਨਾ ਕਰੋ ਅਤੇ ਘਰ ਬੈਠੇ ਸਰਕਾਰ ਤੋਂ ਲਵੋ ਕੋਚਿੰਗ ਅਤੇ ਸੱਚ ਕਰੋ ਆਪਣੇ ਸੁਪਨਿਆਂ ਨੂੰ।


click link


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सियासी कुश्ती में कईयों को मात देने वाले चौ. बलराम जाखड़ Dr. Balram Kakhar



सियासी कुश्ती में कईयों को मात देने वाले चौ. बलराम जाखड़ सियासत में बल सियासत में बल भावुकता भरे भाषण के जरिए लोगों को प्रभावित करने की कला में माहिर चौ. बलराम जाखड़ ने देश की सियासी कुश्ती में कईयों को मात दी। वह एक ऐसे सियासतदान हैं जो लोकसभा में लगातार दो बार स्पीकर रहे। युवावस्था में ही मतदाताओं की खुराक को समझने वाले चौ. जाखड़ ने 70 के दशक में राजनैतिक जीवन का आगाज किया। योंकि अबोहर में जनसंघ को लगातार दो बार जीत मिल चुकी थी। इसलिए कांग्रेस ने डॉ. बलराम जाखड़ को अबोहर से 1972 में चुनावी दंगल में खेलने का दांव लगाया। उन्हें 28517 मत मिले। जबकि विरोधी चौ. सत्यदेव को 13628 वोट मिले। वह 1973-77 डिप्टी मनीस्टर, को- ऑपरेशन, इरीग्रेशन एंव पावर पंजाब रहे। दूसरी बार फिर 1977 में उन्हें अबोहर विधानसभा सीट से विजय हासिल हुई। उन्हें 28823 और जनता पार्टी के सत्यदेव को 20364 वोट मिले। इस दौरान चौ. जाखड़ विपक्ष के नेता चुने गए। इसके बाद उन्होंने अबोहर की सियासी कमान अपने युवा बेटे सज्जन कुमार जाखड़ को सौंपी और खुद फिरोजपुर लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ा। 18 जनवरी 1980 को हुए इन चुनावों में उन्हें 3,08,915 मत मिले। जबकि शिअद प्रत्याशी इकबाल सिंह 1,14,701 मत हासिल हुए। इस दौरान वह 22 जनवरी 1980 को लोकसभा के स्पीकर बने। आठवीं लोकसभा में भी उन्हें 16 जनवरी 1985 को पुन: स्पीकर चुना गया। 1980 से 89 तक लोकसभा अध्यक्ष रहे चौ. जाखड़ बिजरेस अडवाइजरी कमेटी, रूलस कमेटी, जनरल परपोज कमेटी, स्टैंडिंग कमेटी ऑफ दि कॉफ्रेंस ऑफ परेजाइडिंग अफिसर ऑफ लेगीस्लेटिव बॉडीज इन इंडिया के चेयरमैन रहे और इंडियन पार्लयमेंटरी ग्रुप, नेशनल ग्रुप ऑफ इंटर- पार्लयमेंटर यूनियन, इंडिया ब्रांच ऑफ दि कॉमनवेल्थ पार्लयमेंटरी एसोसिएशन के अध्यक्ष पद पर विराजमान रहे। 1990-92 तक ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के महासचिव रहे चौ. जाखड़ 1991- 96 10वीं लोकसभा में सांसद चुने गए और कृषि मंत्री बने। 1992 में उन्हें कांग्रेस वर्किंग कमेटी का सदस्य बनाया गया और वह 1998 में 12वीं में वह फिर सांसद बने। इस दौरान वह कमेटी ऑन पेट्रोलियम एंव कैमिकल्स के चेयरमैन बने। 1998-99 विशेषाधिकार कमेटी, जनरल पर्पज कमेटी, और और मनिस्टरी ऑफ एग्रीकल्चर की सलाहकार कमेटी का सदस्य बनाया गया। इसके अलावा वह 30 जून, 2022 से 30 मई, 2009 तक मध्य प्रदेश के राज्यपाल के रूप में भी एक सफल कार्यकाल पूरा कर चुके हैं।

जीवन परिचय जन्म स्थान

 गांव पंचकोसी जन्म: 23 अगस्त 1923 

 पिता: चौधरी राजा राम जाखड़  

माता: पतो देवी

शादी - फरवरी 1937 रमेश्वरी देवी से  

परिवार: तीन लडक़े दो लड़किया -बड़ा बेटा सज्जन जाखड़, पूर्व मंत्री पंजाब -सुनील जाखड़ पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रधान और पंजाब विधानसभा में पूर्व विरोधी दल के नेता है। 

-सुरिन्द्र जाखड़ की 17 जनवरी 2011 को मौत हो गई थी।

शिक्षा: बीए (Hons.),,फॉरमैन क्रिश्चियन कॉलेज, लाहौर से संस्कृत की डिग्री (1945) 

प्रभावकारी कदम

स्पीकर पद पर रहते हुए बलराम जाखड़ ने संसदीय कार्यों को कंप्यूटरीकृत और स्वचालित बनाने में विशेष योगदान दिया। उन्होंने संसदीय लाइब्रेरी, अध्ययन, संदर्भ आदि को प्रचारित करने जैसा प्रभावकारी कदम उठाया ताकि सांसदों के संसद संबंधी ज्ञानकोष को बढ़ावा दिया जा सके। इसके अलावा संसद अजायबघर की स्थापना भी बलराम जाखड़ का ही मु योगदान है। डॉ. जाखड़ एशियाई मूल के पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें राष्ट्रमंडल सांसद कार्यकारी फोरम के सभापति के रूप में चयनित किया गया। उपाधियां वर्ष 1975 में राष्ट्रपित द्वारा उद्यान पंडित की उपाधी हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने डॉटर ऑफ साइंस की उपाधी गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार द्वारा विद्या मार्तंड की पदवी।

                      Ch. Bal Ram Jakhar in Fazilka

कलम में दम

पेशे से कृषक और बागवानी करने के शौकीन चौ. बलराम जाखड़ पीपुल, पार्लियामेंट और एडमिनिस्ट्रेशन नामक एक किताब लिख चुके हैं।


 Lachhman Dost-99140-63937

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ਅਜੇ ਵੀ ਹੋਂਦ ਬਚਾਈ ਖੜੋ੍ਤੇ ਹਨ ਮੁਗਲ ਕਾਲ ਵਿਚ ਬਣੇ ਬੁਰਜ

ਤੁਸੀ ਵੀ ਕਦੇ ਸੁਣਿਅ ਹੋਣਾ -ਉਚਾ ਬੁਰਜ ਲਾਹੌਰ ਦਾ , ਬੇਸ਼ੱਕ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਬੁਰਜ ਬੁਹਤਿਆਂ ਨੇ ਨਹੀਂ ਦੇਖਿਆ ਹੋਣਾ ਪਰ ਇਹ ਬੁਰਜ ਅਜੇ ਵੀ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਆਪਣੀ ਹੋਂਦ ਬਚਾਈ ਖੜ੍ਹੇ ਹਨ।  ਤੇ ਇਹ ਕਹਾਣੀ ਹੈ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਖੜ੍ਹੇ ਬੁਰਜਾਂ ਦੀ 

ਤਾਂ ਪੜ੍ਹੋ ਫਿਰ 





ਚੀਕਣੀ ਮਿੱਟੀ, ਰੋੜਾਂ ਅਤੇ ਇੱਟਾਂ ਨਾਲ ਬਣੇ ਬੁਰਜ ਕਈ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਹਨ। ਜੇਕਰ ਗੱਲ ਕਰੀਏ ਤਾਂ ਇਹ ਬੁਰਜ ਮੁਗਲ ਕਾਲ ਵਿਚ ਹੋਂਦ ਵਿਚ ਆਏ ਦੱਸੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਦੱਸਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਬੁਰਜ ਮੁਗਲ ਕਾਲ ਵਿਚ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਆਵਾਜਾਈ ਦੀ ਸਹੂਲਤ ਲਈ ਬਣਾਏ ਗਏ ਸਨ। ਜਾਂ ਕਹਿ ਲਵੋ ਦੂਰ ਤੋਂ ਦਿੱਸਦੇ ਬੁਰਜ, ਬਰਾਨੀ ਜ਼ਮੀਨਾਂ ਵਿਚ ਰਾਹਾਂ ਲਈ ਵਰਤੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ। ਜਿੰਨਾਂ ਦੀ ਨਿਸ਼ਾਨੀ ਨਾਲ ਲੋਕ ਅੱਗੇ ਵੱਧਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ। ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕੁਝ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਇਹ ਬੁਰਜ ਅਜੇ ਵੀ ਆਪਣੀ ਹੋਂਦ ਬਚਾ ਕੇ ਖੜੇ ਹਨ। ਸਦੀਆਂ ਤੋਂ ਮੀਂਹ ਅਤੇ ਹਨੇਰੀਆਂ ਦੀ ਮਾਰ ਝੱਲਦੇ ਆ ਰਹੇ ਹਨ। ਮੰਡੀ ਅਰਨੀਵਾਲਾ ਨੇੜੇ ਝੋਟਿਆਂਵਾਲੀ ਅਤੇ ਬੰਨਾਂ ਵਾਲੀ ਵਿਚ ਇਕ ਬੁਰਜ ਖੜਾ ਹੈ। ਇਸ ਤਰਾਂ ਹੀ ਇਕ ਸ੍ਰੀ ਮੁਕਤਸਰ ਸਾਹਿਬ ਜ਼ਿਲੇ ਦੇ ਪਿੰਡ ਭਾਗਸਰ ਵਿਚ ਵੀ ਸਥਿਤ ਹੈ। ਇਕ ਪਿੰਡ ਖਾਰਾ ਵਿਚ । ਇਸ ਤਰਾਂ ਹੀ ਸ੍ਰੀ ਮੁਕਤਸਰ ਸਾਹਿਬ ਵਿਚ ਵੀ ਇਕ ਬੁਰਜ ਹੈ। ਕੁਝ ਲੋਕ ਦੱਸਦੇ ਹਨ ਕਿ ਸੁਨਾਮ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਵੀ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਬੁਰਜ ਹਨ। ਦੱਸਿਆ ਇਹ ਵੀ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਬੁਰਜ ਇਕੋ ਜਿੰਨੀ ਦੂਰੀ ਤੇ ਸਥਿਤ ਹਨ। ਜਿਹੜੇ ਸ਼ਾਇਦ ਰਾਹੀਆਂ ਲਈ ਰਾਹ ਦਸੇਰਿਆਂ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਸਨ। ਕੁਝ ਲੋਕ ਦੱਸਦੇ ਹਨ ਕਿ ਇਹ ਬੁਰਜ ਛੋਟੀਆਂ ਇੱਟਾਂ ਦੇ ਬਣੇ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਇਹ ਤਾਂ ਸਹੀ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਬੁਰਜ ਅੰਗਰੇਜੀ ਰਾਜ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਦੇ ਹਨ। ਭਾਂਵੇ ਲੋਕਾਂ ਵਿਚ ਇਹ ਗੱਲ ਆਮ ਹੀ ਪ੍ਰਚਲੱਤ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਬੁਰਜ ਰਾਹਾਂ ਦੇ ਕੰਮ ਲਈ ਹੀ ਵਰਤੋਂ ਵਿਚ ਆਉਂਦੇ ਸਨ। ਉਥੇ ਹੀ ਕੁਝ ਬਜੁਰਗ ਦੱਸਦੇ ਹਨ ਕਿ ਇੰਨਾਂ ਬੁਰਜਾਂ ਉਪਰ ਚੜ ਕੇ ਗੁਜਰੇ ਜਮਾਨੇ ਵਿਚ ਮੁਨਿਆਦੀ ਵੀ ਕਰਵਾਈ ਜਾਂਦੀ ਸੀ। ਗੀਤਾਂ ਵਿਚ ਭਾਂਵੇ ਉਚਾ ਬੁਰਜ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਵੀ ਆਉਂਦਾ ਹੈ। ਪਰ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਖੜੇ ਇਹ ਬੁਰਜ ਵੀ ਸ਼ਾਇਦ ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਬੁਰਜ ਵਾਂਗ ਹੀ ਹੋਣਗੇ. ਬਲਰਾਜ ਸਿੱਧੂ

You may have never heard of the high tower of Lahore, although many have not seen the tower of Lahore but these towers still survive in the villages of Punjab. And this is the story of the towers in the villages of Punjab
Then read again
Towers made of clay, rubble, and bricks are found in many villages. If we talk, these towers are said to have come into existence during the Mughal period. It is said that these towers were built during the Mughal period to facilitate the movement of people.Or
let's say the towers seen in the distance were used for roads in the Barani lands. With the sign of which people kept moving forward. In some villages of the Punjab, these towers still stand. Rain and wind have been blowing for centuries. There is a tower at Jhotianwali and Bannawali near Mandi Arniwala. Similarly, one is located in the village of Bhagsar in Sri Muktsar Sahib district. In a village called Khara. Similarly there is a tower in Sri Muktsar Sahib.Some people say that there are many towers in Sunam area too. It is also said that these towers are located at the same distance. Who were probably doing the work of others for the passers-by. Some people say that because these towers are made of small bricks, it is true that these towers predate the British rule. Although it is common knowledge that these towers were used for road work only. There are some elders who say that in the past, these towers were used to perform muniyadi.Even the tallest tower in Lahore is mentioned in the songs. But these towers in the villages will probably be the same as the towers in Lahore. Balraj Sidhu

                                                                                                                                                        -- ਬਲਰਾਜ ਸਿੱਧੂ 

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Aug 22, 2021

India ਦਾ ਪਾਣੀ ਤੇ ਤੈਰਨ ਵਾਲਾ 1st ਸੋਲਰ ਪਾਵਰ ਪ੍ਰਾਜੈਕਟ

ਭਾਰਤ ਨੇ ਹੁਣ ਸੂਰਜੀ ਊਰਜਾ ਤੋਂ ਬਿਜਲੀ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਵੱਲ ਕਦਮ ਪੁੱਟੇ ਹਨ ਜਿੱਥੇ ਪਾਣੀ ਵਿਚ ਤੈਰਨ ਵਾਲਾ ਵੱਡਾ ਪਾਵਰ ਪਲਾਂਟ ਪ੍ਰਾਜੈਕਟ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਕੀਤੀ ਹੇੈ। ਨੈਸ਼ਨਲ ਥਰਮਲ ਪਾਵਰ ਕਾਰਪੋਰੇਸ਼ਨ (NPTC) ਲਿਮਿਟੇਡ ਨੇ ਆਂਧਰ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਨੇ ਵਿਸ਼ਾਖਾਪਟਨਮ ਵਿੱਚ ਆਪਣੇ ਸਿਮ੍ਹਾਦ੍ਰੀ ਥਰਮਲ ਸਟੇਸ਼ਨ ਦੇ ਜਲ ਭੰਡਾਰ ‘ਤੇ 25 Megawat ਦੇ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੇ ਫਲੋਟਿੰਗ ਸੋਲਰ ਪੀਵੀ Project ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਕੀਤੀ ਹੈ। ਇਹ ਭਾਰਤ ਸਰਕਾਰ ਦੁਆਰਾ ਸਾਲ 2018 ਵਿੱਚ ਨੋਟੀਫਾਈਡ ਫਲੈਕਸਿਬਿਲਾਈਜ਼ੇਸ਼ਨ ਯੋਜਨਾ ਦੇ ਤਹਿਤ ਸਥਾਪਿਤ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲਾ ਪਹਿਲਾ ਸੋਲਰ ਪ੍ਰੋਜੈਕਟ ਵੀ ਹੈ।ਸੋਲਰ ਪੀਵੀ ਪ੍ਰੋਜੈਕਟ ਦਾ ਉਦਘਾਟਨ  ਐੱਨਟੀਪੀਸੀ ਦੇ ਆਰਈਡੀ (WR2 ਅਤੇ SR ) ਸ਼ ਸੰਜੈ ਮਦਾਨ ਦੇ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ।

ਜਲ ਭੰਡਾਰ ਵਿੱਚ ਸਥਾਪਿਤ ਕੀਤੇ ਗਏ ਇਸ ਤੈਰਦੇ ਹੋਏ ਸੋਲਰ ਇੰਸਟਾਲੇਸ਼ਨ ਨੂੰ ਵਿਲੱਖਣ ਐਂਕਰਿੰਗ ਡਿਜ਼ਾਈਨ ਵਿੱਚ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਇੱਕ ਆਰਡਬਲਿਊ ਜਲ ਭੰਡਾਰ ਵਿੱਚ ਕਰੀਬ 75 ਏਕੜ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਫੈਲਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਇਸ ਫਲੋਟਿੰਗ ਸੋਲਰ ਪ੍ਰੋਜੈਕਟ ਜ਼ਰੀਏ 1 ਲੱਖ ਤੋਂ ਵੱਧ ਸੋਲਰ ਪੀਵੀ ਮੌਡਿਊਲ ਨਾਲ ਬਿਜਲੀ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਦੀ ਸਮਰੱਥਾ ਹੈ। ਇਸ ਨਾਲ ਨਾ ਸਿਰਫ ਲਗਭਗ 7,000 ਘਰਾਂ ਨੂੰ ਰੋਸ਼ਨ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਸਹਾਇਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਵੇਗੀ, ਬਲਕਿ ਇਸ ਨਾਲ ਇਹ ਵੀ ਸੁਨਿਸ਼ਚਿਤ ਹੋਵੇਗਾ ਕਿ ਇਸ ਪ੍ਰੋਜੈਕਟ ਦੀ ਪੂਰੀ ਸਮਾਂ ਅਵਧੀ ਦੌਰਾਨ ਹਰ ਸਾਲ ਘੱਟ ਤੋਂ ਘੱਟ 46,000 ਟਨ ਕਾਰਬਨ ਡਾਈਆਕਸਾਈਡ ਨੂੰ ਘੱਟ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇ। ਇਸ ਪ੍ਰੋਜੈਕਟ ਨਾਲ ਹਰ ਸਾਲ 1,3640 ਲੱਖ ਲੀਟਰ ਪਾਣੀ ਦੀ ਬਚਤ ਹੋਣ ਦੀ ਵੀ ਉਮੀਦ ਹੈ। ਇੰਨਾ ਪਾਣੀ 6,700 ਘਰਾਂ ਦੀ ਸਲਾਨਾ ਜ਼ਰੂਰਤਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰਨ ਦੇ ਲਈ ਉਚਿਤ ਹੋਵੇਗਾ। 2000 ਮੈਗਾਵਾਟ ਦਾ ਕੋਲਾ ਅਧਾਰਿਤ ਸਿਮ੍ਹਾਦ੍ਰੀ ਸਟੇਸ਼ਨ ਪ੍ਰੋਜੈਕਟ ਬੰਗਾਲ ਦੀ ਖਾੜੀ ਤੋਂ ਸੀਡਬਲਿਊ ਸਿਸਟਮ ਦੇ ਲਈ ਸਮੁੰਦ੍ਰੀ ਜਲ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਪਹਿਲਾ ਬਿਜਲੀ ਪ੍ਰੋਜੈਕਟ ਹੈ, ਜੋ 20 ਵਰ੍ਹਿਆਂ ਤੋਂ ਵੀ ਵੱਧ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਕਾਰਜ ਕਰ ਰਹੀ ਹੈ।

ਐੱਨਟੀਪੀਸੀ ਨੇ ਸਿਮ੍ਹਾਦ੍ਰੀ ਵਿੱਚ ਪਾਇਲਟ ਅਧਾਰ ‘ਤੇ ਹਾਈਡ੍ਰੋਜਨ ਅਧਾਰਿਤ ਮਾਈਕ੍ਰੋ-ਗ੍ਰਿਡ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨ ਦੀ ਵੀ ਯੋਜਨਾ ਬਣਾਈ ਹੈ।

66900  ਮੈਗਾਵਾਟ ਦੀ ਕੁੱਲ ਸਥਾਪਿਤ ਸਮਰੱਥਾ ਦੇ ਨਾਲ, ਐੱਨਟੀਪੀਸੀ ਦੇ ਨਾਲ, ਐੱਨਟੀਪੀਸੀ ਸਮੂਹ ਦੇ ਪਾਸ 29 ਨਵਿਆਉਣਯੋਗ ਪ੍ਰੋਜੈਕਟਾਂ ਸਹਿਤ 71 ਪਾਵਰ ਸਟੇਸ਼ਨ ਹਨ। ਐੱਨਟੀਪੀਸੀ ਨੇ ਸਾਲ 2032 ਤੱਕ 60 ਗੀਗਾਵਾਟ (ਜੀਡਬਲਿਊ) ਅਖੁੱਟ ਊਰਜਾ (ਆਰਈ) ਸਮਰੱਥਾ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨ ਦਾ ਟੀਚਾ ਰੱਖਿਆ ਹੈ। ਐੱਨਟੀਪੀਸੀ ਭਾਰਤ ਦੀ ਅਜਿਹੀ ਪਹਿਲੀ ਊਰਜਾ ਕੰਪਨੀ ਵੀ ਹੈ ਜਿਸ ਨੇ ਊਰਜਾ ‘ਤੇ ਸੰਯੁਕਤ ਰਾਸ਼ਟਰ ਉੱਚ ਪੱਧਰੀ ਵਾਰਤਾ (ਐੱਚਐੱਲਈਡੀ) ਦੇ ਹਿੱਸੇ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਆਪਣੀ ਊਰਜਾ ਸਮਝੌਤਾ ਟੀਚਿਆਂ ਨੂੰ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਹੈ।

ਐੱਨਟੀਪੀਸੀ ਸਮੂਹ ਦੇ ਪਾਸ 17 ਗੀਗਾਵਾਟ ਤੋਂ ਵੱਧ ਊਰਜਾ ਸਮਰੱਥਾ ਨਿਰਮਾਣ ਅਧੀਨ ਹੈ, ਜਿਸ ਵਿੱਚ 5 ਗੀਗਾਵਾਟ ਦੀ ਨਵਿਆਉਣਯੋਗ ਊਰਜਾ ਪ੍ਰੋਜੈਕਟ ਵੀ ਸ਼ਾਮਲ ਹਨ। ਵਾਤਾਵਰਣ ਦੇ ਅਨੁਕੂਲ ਊਰਜਾ ਪ੍ਰੋਜੈਕਟਾਂ ਦੇ ਮਾਧਿਅਮ ਨਾਲ ਸਸਤੀ ਕੀਮਤਾਂ ‘ਤੇ ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਨਿਰੰਤਰ ਸਪਲਾਈ ਐੱਨਟੀਪੀਸੀ ਦੀ ਪਹਿਚਾਣ ਰਹੀ ਹੈ।   



ਇਹ ਵੀ ਪੜ੍ਹੋ -ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਕੈਪਟਨ ਅਮਿਰੰਦਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਨਵਜੋਤ ਸਿੱਧੂ ਦੇ ਸਲਾਹਕਾਰਾਂ ਨੂੰ ਵਰਜਿਆ

                                  

India's 1st floating solar power project

India has now taken steps towards generating electricity from solar energy where it has launched a large floating power plant project. National Thermal Power Corporation (NPTC) Limited, Andhra Pradesh has launched the largest 25 MW Floating Solar PV Project at the reservoir of its Simhadri Thermal Station at Visakhapatnam. It is also the first solar project to be set up by the Government of India under the Notified Flexibility Scheme in the year 2018. The Solar PV project was inaugurated by NTPC's RED (WR2 and SR) Sh. Sanjay Madan.

This floating solar installation installed in the reservoir is built in a unique anchoring design and is spread over an area of about 75 acres in an RW reservoir. This floating solar project has the capacity to generate electricity with over 1 lakh solar PV modules. Not only will this help light up about 7,000 homes, but it will also ensure that at least 46,000 tons of carbon dioxide is reduced each year during the entire project period. The project is also expected to save 1,3640 lakh liters of water every year. This amount of water would be sufficient to meet the annual needs of 6,700 households. The 2000 MW coal-fired Simhadri station project is the first power project to obtain seawater for the CW system from the Bay of Bengal, which has been in operation for more than 20 years.

NTPC also plans to set up a hydrogen-based micro-grid system in Simhadri on a pilot basis.

With a total installed capacity of 66,900 MW, along with NTPC, the NTPC Group has 71 power stations with 29 renewable projects. NTPC has set a target of 60 gigawatts (GW) of renewable energy (RE) capacity by 2032. NTPC is also the first energy company in India to announce its energy agreement targets as part of the United Nations High Level Convention on Energy (HLED).

The NTPC Group has more than 17 gigawatts of power capacity under construction, including 5 gigawatts of renewable energy projects. NTPC has been recognizing uninterrupted supply of electricity at affordable rates through environmentally friendly energy projects.




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Aug 20, 2021

History of village Diwan Khera in Fazilka district - ਫਾਜ਼ਿਲਕਾ ਜਿਲੇ ਦਾ ਪਿੰਡ ਦੀਵਾਨ ਖੇੜਾ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸ


 

 ਦੀਵਾਨ ਖੇੜਾ

ਕਿੰਨੂ ਦੇ ਉਤਪਾਦਨ ਲਈ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਕੈਲੇਫ਼ੋਰਨੀਆਂ ਦੇ ਨਾਂਅ ਨਾਲ ਮਸ਼ਹੂਰ ਅਬੋਹਰ ਤੋਂ ਜੇ ਵਾਇਆ ਗੰਗਾਨਗਰ ਰੋਡ ਤੇ ਜਾਈਏ ਤਾਂ ਉੱਥੋਂ ਤਕਰੀਬਨ 5 ਕਿੱਲੋਮੀਟਰ ਦੂਰ ਅਤੇ ਰੇਲਵੇ ਸਟੇਸ਼ਨ ਬਕਾਇਨ ਵਾਲਾ ਤੋਂ ਵੀ ਤਕਰੀਬਨ ਇਤਨਾ ਹੀ ਦੂਰ ਇਕ ਇਹੋ ਜਿਹਾ ਪਿੰਡ ਹੈ ਜਿਸ ਦੀ ਗਾਥਾ ਬੜੀ ਸ਼ਾਨੋ-ਸ਼ੌਕਤ ਨਾਲ ਪਿੰਡਾਂ ਦੀਆਂ ਸੱਥਾਂ ਵਿਚ ਅੱਜ ਵੀ ਸੁਣਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ। ਇਹ ਖ਼ੂਬਸੂਰਤ ਪਿੰਡ ਹੈ ਦੀਵਾਨ ਖੇੜਾ।


ਅੱਜ ਤੋਂ ਤਕਰੀਬਨ ਪੌਣੇ ਦੋ ਸੋ ਸਾਲ ਪਹਿਲਾਂ ਇਹ ਪਿੰਡ ਖਰਲ ਗੋਤ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਤੇ ਹਾਂਡਾ ਗੋਤ ਦੇ ਹਿੰਦੂਆਂ ਵਲੋਂ ਆਬਾਦ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ। ਪਿੰਡ ਆਬਾਦ ਹੋਣ ਦੀ ਦਾਸਤਾਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਇਹ ਦੱਸ ਦੇਈਏ ਕਿ ਖਰਲ ਮੁਸਲਮਾਨ ਤੇ ਹਾਂਡਾ ਗੋਤ ਦੇ ਹਿੰਦੂ ਕੋਣ ਸਨ? ਪਹਿਲਾਂ ਖਰਲ ਗੋਤ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੀ ਗੱਲ ਕਰਦੇ ਹਾਂ। ਬਹੁਤੇ ਖਰਲ ਖ਼ੁਦ ਨੂੰ ਰਾਜੇ ਜੱਗਦੇਉ ਪੰਵਾਰ ਦੀ ਪੀੜੀ ਵਿਚੋਂ ਮੰਨਦੇ ਹਨ। ਇਸ ਪੀੜੀ ਦਾ ਮੋਢੀ ਖਰਲ ਨਾਮ ਦਾ ਇਕ ਯੋਧਾ ਸੀ, ਇਹ ਪੰਵਾਰਾਂ ਦੀ ਭੁੱਟੋ ਸ਼ਾਖਾ ਵਿਚੋਂ ਹਨ। ਖਰਲ ਰਾਜਪੂਤ ਵੀ ਹਨ ਅਤੇ ਜੱਟ ਵੀ। ਬਹਾਵਲ ਪੁਰ ਦੇ ਖਰਲ ਰਾਜਪੂਤ ਖ਼ੁਦ ਨੂੰ ਭੱਟੀ ਰਾਜਪੂਤ ਮੰਨਦੇ ਹਨ। ਇਸ ਪੀੜੀ ਦੇ ਭੂਪੇ ਨੇ ਆਪਣਾ ਇਲਾਕਾ ਛੱਡ ਕੇ ਸੂਬਾ ਸਿੰਧ ਦੇ ਉੱਚ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਚ ਵਾਸਾ ਕਰ ਲਿਆ। ਜਿੱਥੇ ਉਹ ਤੇ ਉਸ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ਖਰਲ ਨੂੰ ਮਖ਼ਦੂਮ ਜਹਾਨੀਆਂ ਸ਼ਾਹ ਨੇ ਇਸਲਾਮ ਧਰਮ ਵਿਚ ਲੈ ਆਉਂਦਾ। ਫਿਰ ਉਹ ਲਾਇਲਪੁਰ ਤੇ ਮਿੰਟਗੁਮਰੀ ਵੱਲ ਆ ਗਏ। ਖਰਲ ਬੜੇ ਸੁਨੱਖੇ ਜਵਾਨ ਤੇ ਬਹਾਦਰ ਜੋਧੇ ਸਨ। ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਵਿਚ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਦਿਲਚਸਪੀ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਸੀ ਪਰ ਪਸ਼ੂ ਚਾਰਨ ਤੇ ਦੁੱਧ ਪੀਣ ਦੇ ਕਾਫ਼ੀ ਸ਼ੌਕੀਨ ਸਨ। ਮਾਰ-ਧਾੜ ਦੀਆਂ ਵਾਰਦਾਤਾਂ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਇਹ ਸੰਘਣੇ ਜੰਗਲਾਂ ਵੱਲ ਕੂਚ ਕਰ ਜਾਂਦੇ, ਜਿੱਥੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਪਿੱਛਾ ਕਰਨਾ ਬਹੁਤ ਔਖਾ ਤੇ ਖ਼ਤਰਨਾਕ ਹੁੰਦਾ ਸੀ। ਸੰਦਲ ਬਾਰ ਦਾ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਚੂੜਾ ਡਾਕੂ ਵੀ ਖਰਲਾਂ ਦੇ ਹੱਥੋਂ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ਸੀ। ਮਿਰਜ਼ਾ ਜੱਟ ਦਾ ਤਾਲੁਕ ਵੀ ਖਰਲ ਕਬੀਲੇ ਨਾਲ ਸੀ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਘਰ ਜਦੋਂ ਬੱਚਾ ਜੰਮਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਸ਼ਾਹ ਜਹਾਨੀਆਂ ਦੇ ਚੇਲੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਨਜ਼ਰਾਨਾ ਲੈਂਦੇ ਹਨ। ਸਾਂਝੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਖਰਲ ਜੱਟ 18819 ਤੇ ਖਰਲ ਰਾਜਪੂਤ 16284 ਸਨ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਭਾਈਚਾਰਾ ਵੀ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਤੇ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਹੈ। 

   ਪਿੰਡ ਦੀਵਾਨ ਖੇੜਾ ਆਬਾਦ ਹੋਣ ਦੀ ਗੱਲ ਬੜੀ ਲਾਜਵਾਬ ਤੇ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਹੈ। ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਫ਼ਾਜ਼ਿਲਕਾ ਵਿਚ ਸ਼ਾਇਦ ਇਹ ਇਕ ਇਹੋ ਜਿਹਾ ਪਿੰਡ ਹੈ, ਜਿਸ ਨੂੰ ਹਿੰਦੂ ਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਸਾਂਝੇ ਤੌਰ ਤੇ ਆਬਾਦ ਕੀਤਾ ਸੀ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਇਕ ਖਰਲ ਗੋਤ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਰਾਏ ਸਾਦੋ ਖਾਂ ਸੀ ਤੇ ਦੂਜੇ ਹਾਂਡਾ ਗੋਤ ਦੇ ਹਿੰਦੂ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੋਵਾਂ ਪਰਿਵਾਰਾਂ ਨੇ ਪਾਕਪਟਨ ਤੋਂ ਆ ਕੇ ਪਿੰਡ ਨੂੰ ਸਾਂਝੇ ਤੌਰ ਤੇ ਆਬਾਦ ਕੀਤਾ। ਹਾਂਡੇ ਉਹ ਹਿੰਦੂ ਸਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪਾਕਪਟਨ ਦੀ ਮਸ਼ਹੂਰ ਬਾਬਾ ਫ਼ਰੀਦ ਦੀ ਯਾਦਗਾਰ ਤੇ ਹਰ ਸਾਲ ਲੱਗਦੇ ਮੇਲੇ ਸਮੇਂ ਭੰਡਾਰੇ ਦਾ ਜਿੰਦਰਾ ਖੋਲ੍ਹਣ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਸੀ। ਇਹ ਮੇਲੇ, ਉਸ ਸਮੇਂ ਭੰਡਾਰੇ ਨੂੰ ਚਾਲੂ ਕਰਨ ਦੀ ਰਸਮ ਅਦਾ ਕਰ ਕੇ ਹੁੰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਚੜ੍ਹਾਵਾ ਵੀ ਉਹੀ ਲੈਂਦੇ ਸਨ। ਇਸ ਪਿੰਡ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਇਲਾਕੇ ਦੇ ਲੋਕ ਭੰਡਾਰਿਆਂ ਦੇ ਨਾਂਅ ਨਾਲ ਸੱਦਦੇ ਸਨ। ਬਰਤਾਨੀਆ ਹਕੂਮਤ ਵਲੋਂ ਹਾਂਡਿਆਂ ਨੂੰ ਇਸ ਇਲਾਕੇ ਵਿਚ ਦੀਵਾਨ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ। ਦੋਵਾਂ ਕੌਮਾਂ ਨੇ ਸਾਂਝੇ ਤੌਰ ਤੇ ਪਿੰਡ ਦਾ ਨਾਂਅ ਰੱਖਣ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਲਿਆ। ਇਸ ਫ਼ੈਸਲੇ ਮੁਤਾਬਿਕ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਸਿਰਸਾ ਦੇ ਸਹਾਇਕ ਕਮਿਸ਼ਨਰ ਜੇ.ਐੱਚ. ਓਲੀਵਰ ਨੂੰ ਫ਼ਾਜ਼ਿਲਕਾ ਵਿਖੇ ਪੰਜ ਪੈਸੇ ਦੀ ਸਰਕਾਰੀ ਟਿਕਟ ਲਾ ਕੇ ਪਿੰਡ ਦਾ ਮੁੱਢ ਬਣਨ ਲਈ ਅਰਜ਼ੀ ਦਿੱਤੀ। ਇਹ ਵੀ ਕਾਬਲੇ ਜ਼ਿਕਰ ਹੈ ਕਿ ਉਸ ਸਮੇਂ ਫ਼ਾਜ਼ਿਲਕਾ ਤਹਿਸੀਲ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਸਿਰਸਾ ਦੇ ਅੰਡਰ ਸੀ। ਖਰਲ ਤੇ ਹਾਂਡਿਆਂ ਵਲੋਂ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਅਰਜ਼ੀ ਨੂੰ ਓਲੀਵਰ ਨੇ ਮਨਜ਼ੂਰ ਕਰਨ ਕਰਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਇਹ ਆਖ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਪਹਿਲਾਂ ਖੂਹ ਬਣਵਾਇਆ ਜਾਵੇ।
ਪੁਰਾਣੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਪੀਣ ਲਈ ਪਾਣੀ ਲਾਗਲੇ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਜਾਂ ਕੇ ਲਿਆਉਂਦੇ ਸਨ। ਉਦੋਂ ਪਾਣੀ ਦੀ ਬਹੁਤ ਘਾਟ ਸੀ, ਲੋਕ ਮੀਂਹ ਦੇ ਪਾਣੀ ਨੂੰ ਪੀਣ ਲਈ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕਰਦੇ ਸਨ। ਪਿੰਡ ਦੀਵਾਨ ਖੇੜਾ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਇਕ ਵੱਡਾ ਤਲਾਅ ਸੀ, ਜਿੱਥੇ ਮੀਂਹ ਦਾ ਪਾਣੀ ਇਕੱਠਾ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ। ਉਹ ਪਾਣੀ ਜਾਨਵਰਾਂ ਤੇ ਕੱਪੜੇ ਧੋਣ ਲਈ ਮੁੱਖ ਸੋਮਾ ਸੀ। ਜਦੋਂਕਿ ਪਿੰਡ ਦੇ ਲੋਕ ਆਪਣੇ ਪੀਣ ਦਾ ਪਾਣੀ ਪਿੰਡ ਸਰਵਰ ਖੂਈਆਂ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਆਉਂਦੇ ਸਨ। ਜੋ ਪਿੰਡ ਮੀਆਂ ਸਰਵਰ ਤੇ ਉਸ ਦੇ ਛੋਟੇ ਭਰਾ ਸਾਧੂ ਬੋਦਲਾ ਮੁਸਲਮਾਨ ਨੇ ਕਰੀਬ 200 ਸਾਲ ਪਹਿਲਾਂ ਆਬਾਦ ਕੀਤਾ ਸੀ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਇਕ ਖੂਹ ਖੁਦਵਾਇਆ। ਜਿਸ ਦਾ ਪਾਣੀ ਬਹੁਤ ਮਿੱਠਾ ਸੀ ਤੇ ਉਸ ਖੂਹ ਤੋਂ ਆਸੇ-ਪਾਸੇ ਦੇ 10 ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਪੀਣ ਲਈ ਪਾਣੀ ਉੱਠਾਂ ਤੇ ਲੈ ਕੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ। ਬਾਅਦ ਵਿਚ ਉਨ੍ਹਾਂ 3 ਹੋਰ ਖੂਹ ਲੁਆਏ, ਜੋ ਪੰਜ ਕੋਸੀ ਨੂੰ ਜਾਂਦੀ Çਲੰਕ ਸੜਕ ਕਿਨਾਰੇ ਸੀ। ਪਾਣੀ ਲਈ ਸਰਵਰ ਖੂਹੀਆਂ ਨਾ ਜਾਣ ਪਵੇ, ਇਸ ਲਈ ਖਰਲ ਤੇ ਹਾਂਡਾ ਬਿਰਾਦਰੀ ਨੇ ਮਿਲ ਕੇ ਪਿੰਡ ਦੇ ਉੱਤਰ ਵਾਲੇ ਪਾਸੇ ਇਕ ਖੂਹ ਬਣਵਾਇਆ, ਜਿਸ ਦਾ ਪਾਣੀ ਬਹੁਤ ਮਿੱਠਾ ਸੀ। ਜਦੋਂ ਬਰਤਾਨੀਆ ਅਧਿਕਾਰੀ ਜੇ.ਐੱਚ. ੳਲੀਵਰ ਪਿੰਡ ਤੋਂ ਤਕਰੀਬਨ ਇਕ ਕਿੱਲੋਮੀਟਰ ਦੂਰ ਨਹਿਰ ਕਿਨਾਰੇ ਬਰਤਾਨੀਆ ਹਕੂਮਤ ਵਲੋਂ ਬਣਾਏ ਗਏ ਬੰਗਲੇ ਵਿਚ ਆਇਆ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਪਿੰਡ ਦੇ ਖੂਹ ਦਾ ਨਿਰੀਖਣ ਕੀਤਾ। ਵਾਕਿਆਂ ਹੀ ਖੂਹ ਦਾ ਪਾਣੀ ਬਹੁਤ ਮਿੱਠਾ ਨਿਕਲਿਆ, ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਓਲੀਵਰ ਨੇ ਝੱਟ ਹੀ ਪਿੰਡ ਦਾ ਨਾਂਅ ਦੀਵਾਨ ਖੇੜਾ ਰੱਖਣ ਦੀ ਅਰਜ਼ੀ ਨੂੰ ਮਨਜ਼ੂਰੀ ਦੇ ਦਿੱਤੀ। ਇਸ ਵੇਲੇ ਖਰਲ ਖ਼ਾਨਦਾਨ ਦੇ ਮੈਂਬਰ ਮੀਆਂ ਫ਼ਤਿਹ ਦੀਨ ਭੰਡਾਰਾ, ਹਾਜੀ ਜਲਾਲ ਉਦ ਦੀਨ ਭੰਡਾਰਾ, ਮੀਆਂ ਦਿਲਾਵਰ ਖ਼ਾਨ ਭੰਡਾਰਾ, ਮੀਆਂ ਨਾਸਿਰ ਜਲਾਲ ਭੰਡਾਰਾ ਤੇ ਮੀਆਂ ਕਮਾਲ ਉਦ ਦੀਨ ਭੰਡਾਰਾ, ਮੀਆਂ ਲਾਲ ਖ਼ਾਨ ਅਤੇ ਮੀਆਂ ਅੱਲਾ ਯਾਰ ਭੰਡਾਰਾ, ਮੀਆਂ ਨੂਰ ਸਮੰਦ ਭੰਡਾਰਾ, ਮਹਿਰਮ ਖ਼ਾਨ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਹਾਂਡਾ ਖ਼ਾਨਦਾਨ ਦੇ ਲੋਕ ਵੀ ਹਾਜ਼ਰ ਸਨ। ਫਿਰ ਜਦੋਂ 1852-53 ਵਿਚ ਮਹਿਕਮਾ ਮਾਲ ਨੇ ਬੰਦੋਬਸਤ ਕੀਤਾ ਤਾਂ ਉਸ ਸਮੇਂ ਪਿੰਡ ਦਾ ਨਾਂਅ ਦੀਵਾਨ ਖੇੜਾ ਦਰਜ਼ ਕੀਤਾ ਗਿਆ।
    ਪਿੰਡ ਆਬਾਦ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਰਾਏ ਸਾਦੋ ਖਾਂ ਉਰਫ਼ ਰਾਏ ਸਾਧੂ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਸਾਰੰਗ ਤੇ ਦਾਦਾ ਸਿਲੋਟਰ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਾਫ਼ੀ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਤੇ ਦਲੇਰ ਸੀ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਦਲੇਰੀ ਤੇ ਧਾੜਵੀ ਹੋਣ ਦੀ ਮਿਸਾਲ ਇਸ ਤੋਂ ਮਿਲਦੀ ਹੈ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸੁਨੇਹੇ ਤੇ ਹੀ ਬਰਤਾਨੀਆ ਹਕੂਮਤ ਦੀ ਪੁਲਿਸ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪਿੰਡ ਦੇ ਬੰਦੇ ਨੂੰ ਛੱਡ ਦਿੰਦੀ ਸੀ। ਪਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਜ਼ਹਨ ਵਿਚ ਬਰਤਾਨੀਆ ਹਕੂਮਤ ਖ਼ਿਲਾਫ਼ ਕਾਫ਼ੀ ਨਫ਼ਰਤ ਸੀ। ਧਾੜਵੀ ਤੇ ਲੜਾਕੂ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਕੋਲ ਬੰਦੂਕਾਂ ਵੀ ਸਨ। ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਜਿੱਥੇ ਖ਼ੂੰਖ਼ਾਰ ਜੰਗਲੀ ਜਾਨਵਰਾਂ ਤੇ ਡਾਕੂਆਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ, ਉੱਥੇ ਹੀ ਦੁਸ਼ਮਣ ਦੇ ਮਨ ਵਿਚ ਦਹਿਸ਼ਤ ਵੀ ਭਰਦਾ ਸੀ। ਇਕ ਵਾਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਅਬੋਹਰ ਥਾਣੇ ਵਿਚ ਆਪਣੇ ਇਕ ਦੁਸ਼ਮਣ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਬੰਦੂਕ ਨਾਲ ਫਾਇਰ ਵੀ ਕੀਤਾ ਸੀ। ਭਾਵੇਂ ਉਸ ਥਾਣੇ ਦਾ ਥਾਣੇਦਾਰ ਰਾਏ ਸਾਦੋ ਖਾਂ ਦਾ ਦੋਸਤ ਸੀ, ਪਰ ਉਹ ਫ਼ਰੰਗੀਆਂ ਦੇ ਪਿੱਠੂ ਨਹੀਂ ਬਣੇ। 1857 ਵਿਚ ਜਦੋਂ ਫ਼ਰੰਗੀਆਂ ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਕੱਢਣ ਲਈ ਆਜ਼ਾਦੀ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ ਤਾਂ ਉਸ ਵਕਤ ਬਰਤਾਨੀਆ ਅਧਿਕਾਰੀ ਜੇ.ਐੱਚ. ਓਲੀਵਰ ਨੇ ਸੰਗੀਨਾਂ ਦੀ ਛਾਂ ਵਿਚੋਂ ਨਿਕਲੇ ਧੂੰਏਂ ਨੂੰ ਤਾਂ ਦਬਾ ਲਿਆ, ਪਰ ਰਾਏ ਸਾਦੋ ਖਾਂ ਵਲੋਂ ਕੀਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਖ਼ਿਲਾਫ਼ਤ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਦਬਾ ਸਕੇ। ਫ਼ਰੰਗੀਆਂ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪਕੜਨ ਦੀਆਂ ਕਈ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ਾਂ ਕੀਤੀਆਂ ਪਰ ਹੱਥ ਨਹੀਂ ਲੱਗੇ। ਤਕਰੀਬਨ 7-8 ਮਹੀਨੇ ਬਾਅਦ ਪੁਲਿਸ ਨੇ ਰਾਏ ਸਾਦੋ ਖਾਂ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਾਥੀਆਂ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਕੇ ਜੇਲ੍ਹ ਵਿਚ ਬੰਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ। ਜੇਲ੍ਹ ਵਿਚੋਂ ਬਾਹਰ ਆਉਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਵੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਫ਼ਰੰਗੀਆਂ ਦੀ ਗ਼ੁਲਾਮੀ ਨਹੀਂ ਕੀਤੀ ਤੇ ਖ਼ਿਲਾਫ਼ਤ ਜਾਰੀ ਰੱਖੀ। ਜਦੋਂ ਪਿੰਡ ਦੀਵਾਨ ਖੇੜਾ ਵਿਚ 6 ਜਮਾਤਾਂ ਦਾ ਲੋਅਰ ਮਿਡਲ ਸਕੂਲ ਬਣਾਉਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਗਈ ਤਾਂ ਰਾਏ ਸਾਦੋ ਨੇ ਸਕੂਲ ਬਣਾਉਣ ਵਿਚ ਆਪਣਾ ਵਿਰੋਧ ਦਰਜ਼ ਕਰਵਾਇਆ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਫ਼ਰੰਗੀ ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਤਾਲੀਮ ਦੇ ਕੇ ਇਕ ਇਹੋ ਜਿਹੀ ਜੁੰਡਲੀ ਤਿਆਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਜੋ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨੀਆਂ ਨੂੰ ਸਦਾ ਲਈ ਗ਼ੁਲਾਮ ਬਣਾ ਕੇ ਰੱਖੇ, ਪਰ ਹਕੂਮਤ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਖ਼ਿਲਾਫ਼ਤ ਨੂੰ ਦਰਕਿਨਾਰ ਕਰਦਿਆਂ ਲੋਅਰ ਮਿਡਲ ਸਕੂਲ ਬਣਾ ਲਿਆ। ਉਸ ਸਕੂਲ ਦੇ ਨੇੜੇ ਹੀ ਇਕ ਛੋਟਾ ਜਿਹਾ ਹਸਪਤਾਲ ਵੀ ਸੀ, ਜਿੱਥੇ ਇਕ ਸਰਦਾਰ ਡਾਕਟਰ ਦਵਾ ਦਾਰੂ ਕਰਦਾ ਸੀ। ਪਿੰਡ ਦੇ ਇਕ ਪਾਸੇ ਗ਼ਰੀਬ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਛੋਟੀ ਜਿਹੀ ਬਸਤੀ ਸੀ, ਜੋ ਪਿੰਡ ਦੀ ਸਫ਼ਾਈ ਤੇ ਖਰਲ ਸ਼ਹਿਬਜਾਦਿਆਂ ਦੀ ਆਓ-ਭਗਤ ਕਰਦੀ ਸੀ। ਇਸ ਤੋਂ ਅੱਗੇ ਕੱਪੜਿਆਂ ਲਈ ਉੱਨ ਕੱਤਣ ਵਾਲੇ ਕੁੱਝ ਲੋਕ ਆਬਾਦ ਸਨ। ਪਿੰਡ ਤੋਂ ਕੁੱਝ ਹੀ ਦੂਰੀ ਤੇ ਪੱਛਮ ਵੱਲ ਪਿੰਡ ਦਾ ਕਬਰਸਤਾਨ ਸੀ।
        ਪਿੰਡ ਦੇ ਮੁਖੀ ਵਲੋਂ ਬਣਾਈ ਹਵੇਲੀ ਦੀ ਗੱਲ ਕਰੀਏ ਤਾਂ ਹਵੇਲੀ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਕੱਚੇ ਕੋਠੇ ਬਣਾਏ ਹੋਏ ਸਨ, ਬਾਅਦ ਵਿਚ ਮੀਆਂ ਫ਼ਤਿਹ ਦੀਨ ਭੰਡਾਰਾ ਨੇ ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਹਵੇਲੀ ਬਣਵਾਈ ਸੀ। ਦੋ ਮੰਜ਼ਿਲਾਂ ਇਸ ਹਵੇਲੀ ਦੀ ਖ਼ਾਸੀਅਤ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਹਵੇਲੀ ਨੂੰ ਸਭ ਤੋਂ ਉੱਚੇ ਸਥਾਨ ਤੇ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ। ਜਿਸ ਵਿਚ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕੀਤੇ ਗਏ ਲੋਹੇ ਦੇ ਮੋਟੇ ਗਾਰਡਰ ਕਰਾਚੀ ਤੋਂ ਮੰਗਵਾਏ ਗਏ ਸਨ। ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਉਹ ਮੋਟੇ ਗਾਰਡਰ ਤੇ ਹੋਰ ਬਹੁਤ ਸਾਰਾ ਸਮਾਨ ਮਾਲ ਰੇਲ ਗੱਡੀ ਰਾਹੀਂ ਕਰਾਚੀ ਤੋਂ ਪੰਜ ਕੋਸੀ ਦੇ ਰੇਲਵੇ ਸਟੇਸ਼ਨ ਤੱਕ ਮੰਗਵਾਏ ਗਏ ਸਨ। ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹਵੇਲੀ ਦੀਆਂ ਛੱਤਾਂ ਵਿਚ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕੀਤਾ ਗਿਆ। ਹਾਲਾਂਕਿ ਭੰਡਾਰੇ ਖ਼ੁਦ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ, ਲੜਾਕੂ ਤੇ ਧਾੜਵੀ ਸਨ, ਫਿਰ ਵੀ ਉਹ ਚੋਰ ਡਾਕੂਆਂ ਤੇ ਨਜ਼ਰ ਰੱਖਣ ਲਈ ਹਵੇਲੀ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਮੰਜ਼ਲ ਤੇ ਇਕ ਬੰਦੂਕ ਧਾਰੀ ਬੰਦਾ ਜ਼ਰੂਰ ਤਾਇਨਾਤ ਰੱਖਦੇ ਸਨ। ਜਦੋਂ ਚੋਰ ਡਾਕੂ ਆਉਂਦੇ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਉਹ ਖ਼ੁਦ ਹੀ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਦੇ। ਕਿਉਂਕਿ ਉਸ ਸਮੇਂ ਪਿੰਡ ਤੋਂ ਇਕ ਕਿੱਲੋਮੀਟਰ ਦੂਰ ਬਣੇ ਬੰਗਲੇ ਤੋਂ ਅੱਗੇ ਘਣੇ ਰੁੱਖ ਤੇ ਝਾੜੀਆਂ ਸਨ। ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਗਿੱਦੜਾਂ ਦਾ ਜ਼ਿਆਦਾ ਵਾਸਾ ਸੀ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਆੜ ਵਿਚ ਚੋਰ ਡਾਕੂ ਵਾਰਦਾਤ ਨੂੰ ਅੰਜਾਮ ਦੇਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉਨ੍ਹਾਂ ਝਾੜੀਆਂ ਵਿਚ ਲੁੱਕ ਜਾਂਦੇ ਸਨ। ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਭੰਡਾਰੇ ਡਟ ਕੇ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਦੇ ਸਨ।
     ਹਵੇਲੀ ਨੇੜੇ ਹੀ ਅੱਲਾ ਦਾ ਸਜਦਾ ਕਰਨ ਲਈ ਮਸਜਿਦ ਬਣਾਈ ਗਈ, ਜੋ ਫਤਿਹਦੀਨ ਭੰਡਾਰਾ ਨੇ 1901-02 ਵਿਚ ਬਣਵਾਈ ਸੀ। ਬਹੁਤ ਹੀ ਖ਼ੂਬਸੂਰਤ, ਵੇਲ ਬੂਟੀਆਂ ਦੀ ਨੱਕਾਸ਼ੀ ਤੇ ਅੱਲਾ ਦੀ ਇਬਾਦਤ ਲਈ ਲਿਖੇ ਹਰਫ਼ਾਂ ਨਾਲ ਸਜੀ ਸਵਰੀ ਇਹ ਮਸਜਿਦ ਵੀ ਕਾਫ਼ੀ ਉੱਚੀ ਥਾਂ ਤੇ ਬਣਾਈ ਗਈ। ਜਿਸ ਦੀ ਕੰਧ ਤੇ ਫ਼ਾਰਸੀ ਹਰਫ਼ਾਂ ਵਿਚ ਮਾਲਕ ਫਤਿਹਦੀਨ ਦਾ ਨਾਂਅ ਖੋਦਿਆ ਗਿਆ। ਹਵੇਲੀ ਤੇ ਮਸਜਿਦ ਦੀਆਂ ਇੱਟਾਂ ਚੂਨਾ ਮਿੱਟੀ ਨਾਲ ਲਗਾਈਆਂ ਗਈਆਂ। ਚੂਨੇ ਦੇ ਕਾਰਖ਼ਾਨੇ ਪਿੰਡ ਤੋਂ ਕਾਫ਼ੀ ਦੂਰ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਖਰਲ ਪਰਿਵਾਰ ਨੇ ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਹੀ ਚੂਨੇ ਦਾ ਕਾਰਖ਼ਾਨਾ ਲਗਾ ਲਿਆ। ਇਹ ਕਾਰਖ਼ਾਨਾ ਹਵੇਲੀ ਤੇ ਮਸਜਿਦ ਦੇ ਨੇੜੇ ਸੀ। ਜਿਸ ਤੋਂ ਤਿਆਰ ਚੂਨੇ ਨੂੰ ਹਵੇਲੀ ਤੇ ਮਸਜਿਦ ਤਿਆਰ ਕਰਨ ਲਈ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕੀਤਾ ਗਿਆ। ਇਸ ਮਸਜਿਦ ਦੇ ਮੌਲਵੀ ਮੀਆਂ ਨੂਰਦੀਨ ਸਨ। ਖੁੱਲ੍ਹੀ ਥਾਂ ਤੇ ਬਣਾਈ ਗਈ ਇਸ ਮਸਜਿਦ ਵਿਚ ਮੁਸਲਿਮ ਪਰਿਵਾਰਾਂ ਦੇ ਤਕਰੀਬਨ 100 ਫ਼ਰਦ ਤਾਲੀਮ ਹਾਸਿਲ ਕਰਦੇ ਸਨ। ਦੇਸ਼ ਤਕਸੀਮ ਵੇਲੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਪਰਿਵਾਰ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਚਲੇ ਗਏ ਤੇ ਪਿੰਡ ਉਜਾੜ ਬਸਤੀ ਬਣ ਗਿਆ।
   ਪਿੰਡ ਨੂੰ ਫਿਰ ਹਰਾ-ਭਰਾ ਕਰਨ ਲਈ ਬਹਾਵਲਪੁਰ ਤੋਂ ਬਿਸ਼ਨੋਈ, ਮਿੰਟਗੁਮਰੀ ਤੋਂ ਕੰਬੋਜ, ਛਾਬੜਾ, ਵਧਵਾ, ਧਮੀਜਾ ਅਤੇ ਮਹਾਜਨ ਆ ਕੇ ਆਬਾਦ ਹੋ ਗਏ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਫਿਰ ਸੁੱਕੇ ਹੋਏ ਦਰਖ਼ਤ ਦੀਆਂ ਟਾਹਣੀਆਂ ਤੇ ਪੱਤੇ ਬਣ ਕੇ ਦੀਵਾਨ ਖੇੜਾ ਪਿੰਡ ਨੂੰ ਫਿਰ ਹਰਾ-ਭਰਾ ਕਰ ਲਿਆ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਸਭ ਦਾ ਮਾਲਕ ਏਕ ਹੈ ਦੇ ਹਰਫ਼ਾਂ ਨੂੰ ਬਰਕਰਾਰ ਰੱਖਦਿਆਂ ਮਸਜਿਦ ਦੀ ਇਮਾਰਤ ਨੂੰ ਹੋਰ ਖ਼ੂਬਸੂਰਤ ਬਣਾ ਕੇ ਇੱਥੇ ਸ਼੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕਰਵਾ ਕੇ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਵਿਚ ਮੁਨਕਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ। ਜਿੱਥੇ ਰੋਜ਼ ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਦਾ ਨਾਂਅ ਜਪਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਗੁਰੂ ਘਰ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਬਣੇ ਮੰਦਰ ਵੀ ਹਿੰਦੂ-ਸਿੱਖ ਭਾਈਚਾਰੇ ਦੀ ਮਿਸਾਲ ਬਣੇ ਹੋਏ ਹਨ।
     ਭੰਡਾਰਾ ਫੈਮਲੀ ਰਹਿਮ-ਦਿਲ ਤੇ ਚੰਗੇ ਕਰਮ ਕਰਨ ਵਾਲੀ ਵੀ ਸੀ। ਇਸ ਦੀ ਮਿਸਾਲ 1899-1900 ਦੌਰਾਨ ਮਿਲੀ, ਜਦੋਂ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਕਈ ਸੂਬਿਆਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਬੀਕਾਨੇਰ ਰਿਆਸਤ ਵਿਚ ਵੀ ਅਕਾਲ ਪੈ ਗਿਆ। ਭੁੱਖਮਰੀ ਦੇ ਬੋਝ ਹੇਠ ਦੱਬੇ ਲੋਕ ਬੀਕਾਨੇਰ ਰਿਆਸਤ ਤੋਂ ਨਿਕਲ ਕੇ ਪੰਜਾਬ ਸੂਬੇ ਵੱਲ ਆ ਗਏ। ਦੀਵਾਨ ਖੇੜਾ ਪਿੰਡ ਬੀਕਾਨੇਰ ਰਿਆਸਤ ਦੇ ਨੇੜੇ ਸੀ। ਜਿੱਥੋਂ ਭੁੱਖਮਰੀ ਦੇ ਸ਼ਿਕਾਰ ਲੋਕ ਤੜਫਦੇ ਹੋਏ ਪਿੰਡ ਦੀਵਾਨ ਖੇੜਾ ਤੇ ਹੋਰ ਲਾਗਲੇ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਆ ਗਏ। ਅੰਨ ਦੇ ਦਾਣੇ-ਦਾਣੇ ਦੇ ਮੁਹਤਾਜ ਲੋਕ ਇਨ੍ਹਾਂ ਪਿੰਡਾਂ ਦੀ ਅਵਾਮ ਦੇ ਰਹਿਮੋ ਕਰਮ ਤੇ ਟਿੱਕ ਗਏ। ਉਸ ਸਮੇਂ ਭੰਡਾਰਾ ਖ਼ਾਨਦਾਨ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹਜ਼ਾਰਾ ਮੂੰਹੀਂ ਕਣਕ ਵੰਡ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਮਦਦ ਕੀਤੀ। ਇਸ ਮਦਦ ਦੇ ਚੱਲਦਿਆਂ ਬਰਤਾਨੀਆ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਨੇ ਦਿਲਾਵਰ ਖਾਂ ਭੰਡਾਰਾ ਨੂੰ ਜ਼ੈਲਦਾਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰ ਦਿੱਤਾ। ਜਿਹੜੇ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ ਬੋਰਡ ਦੇ ਵਾਈਸ ਚੇਅਰਮੈਨ ਵੀ ਬਣੇ। ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਮੀਆਂ ਫਤਿਹਦੀਨ ਭੰਡਾਰਾ ਨੂੰ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ ਦਾ ਆਨਰੇਰੀ ਮੈਜਿਸਟਰੇਟ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ।
ਜਦੋਂ ਦੂਜੀ ਸੰਸਾਰ ਜੰਗ ਹੋਈ ਤਾਂ ਉਸ ਸਮੇਂ ਭੰਡਾਰਾ ਖ਼ਾਨਦਾਨ ਦੀ ਇਕ ਯਾਦਗਾਰ ਫ਼ੋਟੋ ਖਿੱਚੀ ਗਈ, ਜਿਸ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲਾਈਨ ਵਿਚ ਖੱਬੇ ਤੋਂ ਸੱਜੇ ਖੜੇ ਹਨ ਮੀਆਂ ਅੱਲਾ ਯਾਰ ਭੰਡਾਰਾ, ਮੀਆਂ ਨੂਰ ਸਮੰਦ ਭੰਡਾਰਾ, ਵਿਚਕਾਰਲੀ ਲਾਈਨ ਵਿਚ ਖੱਬੇ ਤੋਂ ਸੱਜੇ ਮੀਆਂ ਮਹਿਰਮ ਖ਼ਾਨ ਭੰਡਾਰਾ, ਮੀਆਂ ਦਿਲਾਵਰ ਖ਼ਾਨ ਭੰਡਾਰਾ, ਮੀਆਂ ਫਤਿਹਦੀਨ ਭੰਡਾਰਾ, ਹਾਜੀ ਜਲਾਲ ਉਦ ਦੀਨ ਭੰਡਾਰਾ ਤੇ ਮੀਆਂ ਨਾਸਿਰ ਜਲਾਲ ਭੰਡਾਰਾ, ਮੀਆਂ ਕਮਾਲ ਉਦ ਦੀਨ ਜਦੋਂ ਤੀਜੀ ਲਾਈਨ ਵਿਚ ਬੈਠੇ ਹਨ ਖੱਬੇ ਤੋਂ ਸੱਜੇ ਮੀਆਂ ਅਦਿਲ ਖ਼ਾਨ ਭੰਡਾਰਾ, ਹਾਜੀ ਇਕਬਾਲ ਭੰਡਾਰਾ ਤੇ ਮੀਆਂ ਵਲੀਦਾਦ ਭੰਡਾਰਾ।
       ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉਨ੍ਹਾਂ ਹੋਲੀ-ਹੋਲੀ ਸਿਆਸਤ ਵਿਚ ਵੀ ਕਦਮ ਰੱਖਣੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੇ, 1945 ਵਿਚ ਜਦੋਂ ਫ਼ਾਜ਼ਿਲਕਾ ਮੁਹੰਮਦਨ ਸੀਟ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬ ਵਿਧਾਨ ਸਭਾ ਦੀਆਂ ਚੋਣਾਂ ਹੋਈਆਂ ਤਾਂ ਸਿਆਸੀ ਪਾਰਟੀ ਮੁਸਲਿਮ ਲੀਗ ਨੇ ਫ਼ਤਿਹ ਮੁਹੰਮਦ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਉਮੀਦਵਾਰ ਬਣਾਇਆ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਅਬੋਹਰ ਦੀ ਸੁਖੇਰਾ ਬਸਤੀ ਦੇ ਵਾਸੀ ਮੀਆਂ ਬਾਘ ਅਲੀ ਸੁਖੇਰਾ ਨਾਲ ਸੀ। ਉਸ ਸਮੇਂ ਕੁੱਲ 13138 ਵੋਟਾਂ ਪੋਲ ਹੋਈਆਂ, ਜੋ ਕੁੱਲ ਵੋਟਾਂ ਦਾ 68.46 ਫ਼ੀਸਦੀ ਸਨ। ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਯੂਨੀਈਸਟ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਮੀਆਂ ਬਾਘ ਅਲੀ  ਸੁਖੇਰਾ ਨੂੰ 5549, ਮੀਆਂ ਫ਼ਤਿਹ ਮੁਹੰਮਦ ਨੂੰ 3441 ਤੇ ਆਜ਼ਾਦ ਉਮੀਦਵਾਰ ਚਿਰਾਗ਼ ਮੁਹੰਮਦ ਨੂੰ ਕੋਈ ਵੋਟ ਨਹੀਂ ਮਿਲੀ। ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਫ਼ਤਿਹ ਮੁਹੰਮਦ 2108 ਵੋਟਾਂ ਨਾਲ ਹਾਰ ਗਏ।
      ਖਰਲ ਖ਼ਾਨਦਾਨ ਦੇ ਕੁੱਝ ਫ਼ਰਦ ਤਾਲੀਮ ਹਾਸਿਲ ਕਰਨ ਲਈ ਫ਼ਾਜ਼ਿਲਕਾ ਸ਼ਹਿਰ ਦੇ ਮਲਕਾਨਾ ਮੁਹੱਲਾ ਵਿਚ ਆ ਗਏ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਇੱਥੇ ਇਕ ਹਵੇਲੀ ਤਿਆਰ ਕਰਵਾਈ। ਜੋ ਵਾਣ ਬਾਜ਼ਾਰ ਵਿਚ ਮਹਿਮਾਨ ਖ਼ਾਨਾ ਦੀ ਪਿੱਛੇ ਸੀ। ਇਸ ਦੇ ਨੇੜੇ ਰਾਮ ਪ੍ਰੈੱਸ ਸੀ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸ਼ਾਗਿਰਦ ਫ਼ਾਜ਼ਿਲਕਾ ਦੇ ਇਸਲਾਮੀਆ ਸਕੂਲ ਤੇ ਸਰਕਾਰੀ ਹਾਈ ਸਕੂਲ ਤੋਂ ਤਾਲੀਮ ਹਾਸਿਲ ਕਰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਵਾਲੀਬਾਲ ਖੇਡਣ ਦੇ ਕਾਫ਼ੀ ਸ਼ੌਕੀਨ ਸਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਅਕਸਰ ਹੀ ਲਾਧੂਕਾ ਪਿੰਡ ਦੇ ਵੱਟੂ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਨਾਲ ਵਾਲੀਬਾਲ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਵੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ। ਅੱਜ ਵੀ ਪਿੰਡ ਦੇ ਨੌਜਵਾਨ ਵਾਲੀਬਾਲ ਤੇ ਕ੍ਰਿਕੇਟ ਦੇ ਕਾਫ਼ੀ ਸ਼ੌਕੀਨ ਹਨ ਤੇ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਮੁਕਾਬਲਿਆਂ ਵਿਚ ਅਕਸਰ ਹੀ ਹਿੱਸਾ ਲੈ ਕੇ ਪਿੰਡ ਨੂੰ ਰੁਸ਼ਨਾ ਰਹੇ ਹਨ।
    ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਪਿੰਡ ਪੰਜ ਕੋਸੀ ਦੇ ਮੋਢੀ ਮਾਨਾ ਰਾਮ ਜਾਖੜ, ਜਿਹੜੇ ਦਹੀਅਤ ਹਰਿਆਣਾ ਤੋਂ ਆ ਕੇ ਆਬਾਦ ਹੋਏ ਸਨ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਭੰਡਾਰਾ ਪਰਿਵਾਰ ਦਾ ਬਹੁਤ ਭਾਈਚਾਰਾ ਸੀ, ਇਹ ਭਾਈਚਾਰਾ ਉਸ ਸਮੇਂ ਹੋਰ ਵੱਧ ਗਿਆ, ਜਦੋਂ ਮਾਨਾ ਰਾਮ ਜਾਖੜ ਨੇ ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਛੱਪੜ ਪੁਟਵਾਇਆ ਸੀ। ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਪਿੰਡ ਕਿਲਿਆਂ ਵਾਲੀ ਦੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਜਾਖੜ ਨਾਲ ਵੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਕਾਫ਼ੀ ਭਾਈਚਾਰਾ ਸੀ।  ਜੋ ਦੇਸ਼ ਤਕਸੀਮ ਤੱਕ ਮਜ਼ਬੂਤ ਰਿਹਾ। ਅੱਜ ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਹਰ ਕੌਮ ਨੇ ਆਪਣੇ ਭਾਈਚਾਰੇ ਨੂੰ ਕਾਇਮ ਰੱਖਿਆ ਹੋਇਆ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਭਾਈਚਾਰਕ ਸਾਂਝ ਦੇ ਚੱਲਦਿਆਂ ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਸ਼ਹੀਦ ਊਧਮ ਸਿੰਘ ਦੀ ਆਦਮਕੱਦ ਮੂਰਤੀ ਵੀ ਬਣਾਈ ਗਈ ਹੈ। ਪਿਆਰ ਮੁਹੱਬਤ ਨਾਲ ਵੱਸਦੇ ਦੀਵਾਨ ਖੇੜਾ ਦੇ ਬਾਸ਼ਿੰਦਿਆਂ ਨੇ ਪਿੰਡ ਨੂੰ ਕਾਫ਼ੀ ਸਾਫ਼ ਸੁਥਰਾ ਰੱਖਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਆਗਮਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਆਸੇ-ਪਾਸੇ ਹਰਿਆਲੀ, ਰਸਭਰੀਆਂ ਫ਼ਸਲਾਂ ਤੇ ਕਿੰਨੂ ਦੇ ਬਾਗ਼ ਦੀ ਖ਼ੁਸ਼ਬੋ ਦੂਰੋਂ ਹੀ ਪਿੰਡ ਦੀ ਖ਼ੂਬਸੂਰਤੀ ਦਾ ਬਖਾਨ ਕਰਨ ਲੱਗ ਪੈਂਦੀ ਹੈ।

    ਹੁਣ ਗੱਲ ਕਰਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਪਿੰਡ ਦੇ ਹਾਂਡਾ ਹਿੰਦੂ ਲੋਕ ਗਏ ਕਿੱਥੇ। ਦਰਅਸਲ ਸਾਂਝੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਜਿਸ ਇਲਾਕੇ ਵਿਚ ਵੀ ਇਹ ਦੀਵਾਨ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹਰ ਸਾਲ ਬਾਬਾ ਫ਼ਰੀਦ ਦੇ ਯਾਦਗਾਰੀ ਮੇਲੇ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਿਲ ਹੋਣ ਲਈ ਜਾਣਾ ਪੈਂਦਾ ਸੀ। ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਪੈਸਾ ਤੇ ਸਮਾਂ ਬਰਬਾਦ ਹੁੰਦਾ ਸੀ। ਸਮਾਂ ਤੇ ਪੈਸਾ ਬਰਬਾਦ ਨਾ ਹੋਵੇ ਇਸ ਕਾਰਨ ਉਹ ਸਾਰਾ ਕਾਰੋਬਾਰ ਸਮੇਟ ਕੇ ਬਾਬਾ ਫ਼ਰੀਦ ਦੀ ਸੇਵਾ ਲਈ ਪਾਕਪਟਨ ਚਲੇ ਗਏ। ਪਿੰਡ ਦੀਵਾਨ ਖੇੜਾ ਦੇ ਖਰਲ ਜਾਤ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨਾਲ ਕਾਫ਼ੀ ਨੇੜਤਾ ਤੇ ਭਾਈਚਾਰਕ ਸਾਂਝ ਦੇ ਚੱਲਦਿਆਂ ਉਹ ਦੀਵਾਨ ਖੇੜਾ ਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦਾ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਵਾ ਗਏ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਪਿੰਡ ਨੂੰ ਕਾਫ਼ੀ ਖ਼ੁਸ਼ਹਾਲ ਬਣਾਇਆ, ਪਿੰਡ ਦਾ ਨਾਂਅ ਨੂੰ ਸਾਂਝੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਮਸ਼ਹੂਰ ਰੱਖਣ ਵਿਚ ਕੋਈ ਕਸਰ ਬਾਕੀ ਨਾ ਛੱਡੀ। ਪਰ ਜਦੋਂ ਬਰਤਾਨੀਆ ਹਕੂਮਤ ਨੇ ਦੇਸ਼ ਤਕਸੀਮ ਕਰਨ ਦਾ ਭਾਂਬੜ ਮਚਾਇਆ ਤਾਂ ਹੋਰਨਾਂ ਪਿੰਡਾਂ ਵਾਂਗਰ ਇਹ ਪਿੰਡ ਵੀ ਉਸ ਭਾਂਬੜ ਦੀ ਲਪੇਟ ਵਿਚ ਆ ਗਿਆ। ਤਕਸੀਮ ਦਾ ਸੇਕ ਜਦੋਂ ਪਿੰਡ ਦੇ ਆਲ਼ੇ ਦੁਆਲੇ ਪੁੱਜਿਆ ਤਾਂ ਕਈ ਹੋਰਨਾਂ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਵੀ ਇਸ ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਆ ਗਏ, ਇੱਥੇ ਕੁੱਝ ਦਿਨ ਤੱਕ ਤਕਸੀਮ ਦੇ ਸੇਕ ਵਿਚ ਸੜ ਰਹੇ ਅਵਾਮ ਦੇ ਦਰਖਤਾਂ ਦੇ ਪੱਤੇ ਜਦੋਂ ਡਿਗਣੇ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਏ ਤਾਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਕਾਫ਼ਲਾ ਵੀ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਵੱਲ ਚੱਲ ਪਿਆ ਇਕ ਨਵੇਂ ਆਸ਼ਿਆਨੇ ਦੀ ਭਾਲ ਵਿਚ --- LACHHMAN DOST---



 

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