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Jul 31, 2018

मिसेज इंडिया ने की सवेरा फाउंडेशन की तारीफ 
पत्नी की हिम्मत और हौंसला है जवान की ताकत: मिसेज इंडिया
वातावरण की स्वच्छता के लिए पौधे रोपित करना जरूरी: कमांडैंट नरेश कुमार
सवेरा फाउंडेशन भविष्य में भी जारी रखेगी समाजसेवा के कार्य: अतुल नागपाल
फाजिल्का, 31 जुलाई:
                             
सीमा सुरक्षा बल का जवान दिन रात दुश्मन देश की हर हरकत पर पैनी निगाह रखता है। बुलंद हौंसले और फौलादी बाजूओं से दुश्मन से तपती गर्मी और भीषण सर्दी में दुश्मन से मुकाबला करता है। यह ताकत देने वाली जवान की पत्नी है। जो समर्पण और त्याग की प्रतिमा है। यह शब्द मिसेज इंडिया श्रीमती महक महाजन नंदा ने सीमा सुरक्षा बल के प्रहरियों के परिजनों की संस्था सीमा सुरक्षा बल वाईव्स वैलफेयर एसोसिएशन (बावा) की सदस्यों को संबोधित करते हुए कही।
मिसेज इंडिया सवेरा फाऊंडेशन फाजिल्का और सुर संगम फाजिल्का की ओर से फाजिल्का में सुरों के सरताल मोहम्मद रफी को श्रद्धांजति अर्पित करने के लिए आयोजित एक शाम रफी के नाम कार्यक्रम में बतौर मुख्यातिथि के रूप में शिरकत करने आई थी। सीमा सुरक्षा के हैड क्वार्टर रामपुरा में पौधा रोपण के बाद वहां बावा सदस्यों को संबोधित करते हुए मिसेज इंडिया श्रीमती महक महाजन नंदा ने कहा कि सीमा सुरक्षा बल के जवान की पत्नी जहां जवान को भरपूर सहयोग से एकता, परस्पर अत्मोत्सर्ग, त्याग और सेवा आदि से दाम्पत्य जीवन को सुखद बनाती हैं। वहीं उसके हिम्मत और हौंसले से जवान की ताकत बढ़ जाती है। इस दौरान उन्होंने सवेरा फाउंडेशन के संस्थापक चेयरमैन अतुल नागपाल की तारीफ करते हुए कहा कि उनके जरिए ऐतिहासिक शहर फाजिल्का में पहुंचकर बहुत खुशी मिली है। उन्होंने कहा कि उनकी भेंट उनसे हुई है, जिनके पति वतन के रखवाले हैं।
इस दौरान उन्होंने जीवन में पौधों के महत्व के बारे में भी बताया। वहीं सीमा सुरक्षा बल की 96वें बटालियन के कमांडैंट नरेश कुमार ने कहा कि पौधे हमारे जीवन का अहम हिस्सा हैं। उन्होंने कहा कि वातावरण को स्वच्छ रखने के लिए पौधे रोपित करना जरूरी हैं। सवेरा फाउंडेशन के संस्थापक चेयरमैन अतुल नागपाल ने सवेरा फाउंडेशन के कार्यों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि फाउंडेशन गरीब व जरूरतमंद लोगों के लिए जहां कई बार निशुल्क कैंप लगा चुकी हैं, वहीं बच्चों की शिक्षा की तरफ भी खास ध्यान दे रही है। उन्होंने कहा कि सवेरा फाउंडेशन द्वारा पानी बचाओ, बेटी बचाओ, पेड़ लगाओ आदि सहित अनेक प्रोजैक्ट शुरू किए गए हैं और भविष्य में ऐसी समाजसेवा जारी रहेगी। इस मौके पर रछपाल सिंह टू आई.सी., एच.सी. बैनीवाल डिप्टी कमांडैंट 96 बटालियन, शिवानी नागपाल, गीतांजली नागपाल, काव्यश्री नागपाल, निष्ठा मदान, ईशीता नागपाल, आरती भठेजा, पवन भठेजा, प्रदीप शर्मा, दयानंद शर्मा प्रिंसिपल, प्रवीण भारद्वाज प्रिंसिपल, अशोक चुचरा, नवदीप असीजा, लीलाधर शर्मा, राकेश नागपाल, शामसुंदर सोलंकी, बॉबी सेतिया, अजय नागपाल आदि मौजूद थे।
Mrs. India complimented the Savera Foundation
The courage and courage of the wife is the strength of the young: Mrs. India
Need to plant the plants for cleanliness of the environment: Commandant Naresh Kumar
Sawera Foundation will continue in the future: Social work of Atul Nagpal
Fazilka, July 31: The Border Security Force personnel keeps a watch on every movement of the enemy country every day. Heated heat and fierce sides compete with the enemy in heat and fierce winter. It is the wife of the force giving the wife. Which is the image of dedication and sacrifice. Addressing the members of the Border Security Force Wives Welfare Association (Bawa), the body of Mrs. India Mehak Mahajan Nanda, a member of the family of Border Security Force personnel, said this word. Misses India Savera Fazilka and Sur Sangam Fazilka came to attend the ceremony as a special guest in Rafi's name on an evening organized to pay homage to Mohammad Rafi. Addressing the members of the Bawa after heading the plant in the head quarter of Rampura, Rampura, Border Security said Mrs Mahak Mahajan Nanda said that the wife of the Border Security Force personnel, where the Jawan with great support from unity, mutual self-sacrifice, sacrifice and service etc. Companions make life enjoyable. At the same time, his strength and courage increases the strength of the young man. During this, he praised Atul Nagpal, the founder chairman of Savera Foundation, saying that through him he reached the historic city of Fazilka and was very happy. He said that his gift has come from him, whose husband is the custodian of the Vatan. During this, he also told about the importance of plants in life. Meanwhile, Naresh Kumar, Commandant, 96th Battalion of Border Security Force said that plants are an important part of our lives. He said that it is necessary to plant the plants to keep the environment clean. Atul Nagpal, founder chairman of Savera Foundation, informed about the work of the Savera Foundation, saying that the foundation has been providing free camps for poor and needy people many times, while special education is also being given towards children's education. He said that many projects have been started including Savera Foundation, save water, save daughter, plant trees etc. and in future such social services will continue. On this occasion, Rachhpal Singh to I.C., H.C. Beniwal's deputy commandant 96 battalion, Shivani Nagpal, Gitanjali Nagpal, Kavyashree Nagpal, Nistha Madaan, Ishita Nagpal, Aarti Bhateja, Pawan Bhateja, Pardeep Sharma, Dayanand Sharma Principal, Praveen Bhardwaj Principal, Ashok Chuchra, Navdeep Asija, Liladhar Sharma, Rakesh Nagpal, Shamsunder Solanki, Bobby Setia, Ajay Nagpal etc. were also present.
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गोल्डन ट्रेक: हुकमरानों की नजर-ए-इनायत का इन्तजार

भारत पाकिस्तान के बीच मधूर होते रिश्तों के चलते वाघा बॉर्डर से चली समझौता एक्सप्रेस ने दोनों देशों के बीच दोस्ती की महक फैलाई। मगर फाजिल्का का गोल्डन ट्रैक आज भी देश के हुकमरानों की नजर-ए-इनायत को तरस रहा है। गोल्डन टै्रक के नाम से 1898 में शुरू फाजिल्का कराची रेल मार्ग व्यापार की दृष्टिï से अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हुआ। इस गोल्डन टै्रक ने भारत विभाजन तक फाजिल्का को एक समृद्ध क्षेत्र की ताकत बख्शी। मगर विभाजन के दर्द ने दोनों देशों में ऐसी खटास भर दी कि गोल्डन टै्रक पर सन्नाटा छा गया। हालांकि फाजिल्का के बुद्धिजीवियों ने गोल्डन ट्रैक पर रेल गाड़ी पुन: दौड़ाने के लिये देश के हुक्मरानों के सामने आवाज बुलंद की, मगर हमेशा उनकी आवाज को नजरअंदाज किया गया। अगर गोल्डन टै्रक दोबारा शुरू किया जाता है तो फाजिल्का पुन: समृद्ध क्षेत्र के रूप में उभरकर सामने आने की क्षमता रखता है। 
        रेलगाड़ी लुधियाना से कराची तक वाया फिरोजपुर-फाजिल्का-अमरूका-मकलोडगंज रोड़-मिनचिंदाबाद-बहावलनगर-समासाटा-खानपुर-रहीमयार खान-रोहड़ी-नवाबशाह जाती थी। भारत का माल युरोप मिडल ईस्ट और खाड़ी के अन्य देशों में ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा भेजा जाता था जोकि एक सस्ता व बेहतर रास्ता साबित हुआ। मगर विभाजन के बाद गोल्डन Treck इतिहास में दफन हो गई।
अगर हुकमरान नजर-ए-इनायत करें तो आज भी गोल्डन टै्रक गोल्डन बैंक बनकर फाजिल्का की तकदीर बदल सकती है। इस पर अधिक खर्च भी नहीं होगा। भारत में लुधियाना से फाजिल्का तक और पाकिस्तान के अमरूका से समासाटा तक पहले ही ब्रॉडगेज लाइन बिछाई गई है। समासाटा से कराची तक डबल टै्रक सिर्फ व्यापारिक कार्यों के लिये प्रयोग किया जाता है। फाजिल्का से अमरूका तक सिर्फ 10 किलोमीटर रेल लाइन जल्दी बन सकती है।
जब भी भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान जाने वाले चर्चित रास्ते खोले जाने की कवायद शुरू हुई है तो फाजिल्का के लोगों ने गोल्डन टै्रक खोलने की मांग दोहराई है। हालांकि फाजिल्का के दौरे के दौरान 1977 में भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अंतर्राष्टï्रीय सीमा व्यापार के लिये खोलने का वादा किया था। बुद्धिजीवियों ने पत्रों के जरिये उन्हें वादा भी याद करवाया था।
सिर्फ यह ही नहीं फाजिल्का के डबवाली गांव के निवासी और पंजाब विधानसभा के स्पीकर स. चरणजीत सिंह अटवाल के समक्ष लोगों ने गोल्डन टै्रक खोलने के लिये आवाज उठाई।
मगर गोल्डन टै्रक सपना बनकर रह गया। आज भी सुनसान पड़ी गोल्डन ट्रैक भारत-पाक के हुकमरानों की नजर-ए-इनायत में पलकें बिछाए हुए है।( LACHHMAN DOST FAZILKA)
Golden Track: 

Due to the friendly relations between India and Pakistan, the Samjhauta Express, which runs from Wagah border, spreads the fragrance of friendship between the two countries. But the Golden track of Phazilka is still craving the eyes of the nation's eyebrows. Starting in 1898, under the name of Golden Trac, the Fazilka Karachi rail route proved to be extremely important with business vision. This Golden Tract lays the power of a prosperous region to Fazilka till the partition of India. But the splitting pain filled the saddle in both the countries that silence on the golden track was covered. Although the intellectuals of Phazilka raised their voices against the dictatorship of the country to re-run the train on the Golden track, their voice was always ignored. If Golden Tract is restarted then Fazilka has the ability to emerge as a re-enriched region.
        The train used to travel from Ludhiana to Karachi via Via Ferozepur-Fazilka-Amruka-MacLoadganj Road-Minchindaabad-Bahawalnagar-Samasata-Khanpur-Rahimar Khan-Rohdi-Nawabshah. India's goods were sent by the East India Company in Europe, the Middle East and other Gulf countries, which proved to be a cheap and better route. But after the split, Golden Trac was buried in history. Even if the Hukamaran look-alikes, golden trek can be transformed into a golden bank even today. There will be no more spending on this. The broad gauge line has already been set up in India from Ludhiana to Phazilka and from Pakistan to Amarka to Samastata. Double trak from Samastata to Karachi is used only for business purposes. From Fazilka to Amruka, only 10 kilometers of rail line can be made soon. Whenever the Government of India has started the exercise of opening the well-known pathways to Pakistan, the people of Phazilka have repeatedly demanded the opening of Golden Trek. Although during the visit of Fazilka in 1977, the then External Affairs Minister of India, Shri Atal Bihari Vajpayee, promised to open for the International Border Trade. The intellectuals had also reminded them through letters. Not only this, the resident of Dabwali village of Phazilka and speaker of Punjab assembly. In front of Charanjit Singh Atwal, people raised their voices for opening the Golden Tract. But the golden track became a dream. Even today, the golden track is wearing eye-cover in the eyes of Indo-Pak's Hukmarson-A-Inayat.

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Jul 30, 2018

नौजवान समाज सेवा संस्था के जिलाध्यक्ष बने शगन लाल 
फाजिल्का- 

 नगर की समाजसेवी नौजवान समाज सेवा संस्था की कोर कमेटी द्वारा संस्था का विस्तार करते हुए सर्वसम्मति से शगन लाल बसेटिया को जिलाध्यक्ष नियुक्त किया गया। संस्था के संस्थापक रवि कुमार लवली ने बताया कि शगन लाल गत लम्बे समय से सामाजसेवी कार्यों से जुड़े हुए हैं ओर इनकी सेवाओं को देखते हुए यह पद उन्हें सौंपा गया है। इस अवसर पर नवनियुक्त अध्यक्ष शगन लाल ने संस्था के संस्थापक व कोर कमेटी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि जो जिम्मेवारी उन्हें सौंपी गई है व उसे मेहनत व लगन से पूरा करेंगे। इस अवसर पर विनय प्रवाना, रामेश पेचरवाल, शंगर लाल, मुकेश रेवाडिय़ा, सुभाष चंद्र, सुरिन्द्र कुमार, नटवर सारवान, राज कुमार, बलराम बाधा, सागर इंसा, अभिषेक रवि कुमार, संजय कुमार, सुरिन्द्र कुमार, सन्नी, विजय कुमार, राजिन्द्र कुमार, करर्ण, अरूण कुमार, मनोज गांधी, सतीश शर्मा व अन्य मौजूद थे।

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पंचायत, ब्लाक समिति और जिला परिषद चुनावों की तैयारी में जुट जाएं वर्कर: विधायक घुबाया
कैप्टन सरकार द्वारा गांवों मं शुरू विकास का पहिया रूकने वाला नहीं है


फाजिल्का, 30 जुलाई: पंचायत, ब्लाक समिति और जिला परिषद चुनाव आने वाले हैं और इसकी तैयारी के लिए कांग्रेस के सभी वर्करों को अभी से ही कमर कस लेनी चाहिए। ताकि उक्त चुनावों में भी कांग्रेस का परचम लहराया जा सके। यह शब्द फाजिल्का के विधायक दविन्द्र ङ्क्षसह घुबाया ने गांव गुलाम रसूल में कांग्रेस के वर्करों की बैठक को संबोधित करते हुए कही।
इस मौके पर विधायक के मीडिया इंचार्ज बलकार सिंह सिद्धू, खुशहाल सिंह सरपंच गागनके, देसा सिंह सरपंच, बलदेव सिंह भट्टी, गुरजीत सिंह गिल, देस लाधूका, हरबंस सिंह कार्यालय इंचार्ज, बूटा सिंह, सोनू मौजम, गुरजंट सिंह, मक्खण सिंह पी.ए., परमपाल सिंह रामपुरा, किशोर साबूआणा, पम्मा चांदमारी, वैद्य मुख्तियार, बंटी बजाज, वेद ढाबां, मोहन लाल बोदवाला, हरदीप मैंबर आदि सहित भारी संख्या में कांगे्रस वर्कर मौजूद थे। इसके अलावा उन्होंने गांव गुलाम रसूल में आयोजित मेले में माथा टेका। इस बारे में जानकारी देते हुए विधायक स. दविन्द्र सिंह घुबाया के मीडिया इंचार्ज बलकार सिंह सिद्धू ने बताया कि पंचायत, ब्लाक समिति और जिला परिषद चुनावों को लेकर फाजिल्का क्षेत्र के सरहदी इलाके को विभिन्न जोनों में बांटा गया है।
उनमें गुलाम रसूल, झंगड़ भैणी में विधायक स. घुबाया ने वर्करों से बैठक की। जिनमें विधायक ने वर्करों को संबोधित करते हुए कहा कि चुनाव निकट हैं और इन चुनावों की तैयारी में अभी से जुट जाएं। उन्होंने वर्करों से कहा कि वह कैप्टन सरकार की नीतियों को घर घर तक पहुंचाएं और कल्याणकारी योजनाओं के बारे में बताएं। उन्होंंने कहा कि इन चुनावों में भी कांग्रेस उम्मीदवार ही विजयी होंगे। क्योंकि पूर्व सरकार ने गांवों में विकास कार्य को तजरीह नहीं दी।
जिस कारण गांव विकास की राह देख रहे हैं। मगर कैप्टन सरकार ने गांवों में विकास कार्य शुरू करवा दिए हैं और कैप्टन सरकार की ओर सेे शुरू यह विकास का पहिया अब रूकने वाला नहीं है।
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Jul 29, 2018

             लारी की सवारी 
बंगला टू हवेली, बंगला टू मुल्तान

      बंगला और हवेली . . . . .नाम में कोई फर्क नही . . . . . देखनेे में भी एक जैसे, बंगला में वन्स एगन्यु की कचहरी लगती थी तो हवेली में लक्खा वट्टू का न्याय होता था। लारी भी चली तो बंगला से हवेली तक। मौजम रेलवे फाटक से जब लारी चलती तो लहलहराते खेतों का हरियाली का नजारा, सडक़ की उड़ती धूल का दृश्य् दिन में तीन-चार बार देखने को मिलता, लेकिन कहाँ गया वो नजारा? जबकि बंगला भी है और हवेली भी है। फर्क क्या है? सिर्फ यह है कि भारत-पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय सरहद पर लगी तारबंदी ने भारत को दो हिस्सों में बांट दिया। एक लकीर  . . . वो लकीर जो दोनों शहरों के बीच एक लंबी दूरी बन गई। एक देश था, एक जैसे शहर थे, लेकिन आज जमीन-आसमान का अंतर है। दो अलग-अलग देश, दो अलग-अलग शहर। अगर यहां बंगले की शान नहीं है तो हवेली में भी वो जान नहीं रही, जो विशाल भारत में थी। जबकि पहला बस स्टॉप सलेमशाह और दूसरा बस स्टॉप मौजम वहीं है, उधर लौकिया, शरींहवाला और शाहसवार भी है। मगर एक लकीर ने यह दूरियां बढ़ा दी। जिस कारण अब ये बस स्टैंड बंगला टू हवेली और बंगला टू मुलतान की बस की इंतजार कर रहे हैं। दूसरा बस स्टैंड था कॉलेज रोड़ पर। जहां से लारी मुल्तान तक जाती थी। वह भी इस लकीर की भेंट चढ़ गई। अबोहरी रोड के रास्ते से बस चला करती थी तो बीकानेर रियासत तक सैंकड़ो गांवों से होकर गुजरती थी। फिर कहां गई मेरे शहर की लारियां? अबोहरी बस अड्डा भी है, लेकिन वहां से सीधे अबोहर को लारियां नहीं चलती, लारियों की जगह अगर बस का नाम मिला तो बस स्टैंड का स्थान बदल गया। बसें कचहरी के सामने से चलने लगी। फिर यहां बन गया भीड़भाड़ वाला इलाका। थाना सिटी बनी तो माॢकट बन गई। यातायात प्रभावित होने लगा, तब बस स्टैंड का स्थान बदलना जरूरी हो गया। बस स्टैंड मौजूदा जगह यानि मलोट रोड़ पर चला गया। जहां से अब फिरोजपुर, मलोट, अबोहर और लंबी दूरी के अन्य शहरों तक बसें चलती हैं। विभाजन ने हवेली, मुलतान और बीकानेरी रोड के रास्ते से चलने वाली सारी लारियां निगल ली। आज यहां खुश्हाली का दौर है, बसें हैं, लेकिन नईं पीढ़ी के एक सवाल का जवाब नहीें। वह सवाल है - कहां गया बंगला टू हवेली-बंगला टू मुल्तान तक का सफर? जब हमारा जवाब होता है - विभाजन की एक लकीर ने निगल लिया। तब उनकी आंखों में एक सवाल और झलकता है। लकीर खींचने के हालातों का जिम्मेदार कौन है? उन्हें क्यों नहीं रोका गया? शायद इनका जवाब किसी के पास नहीं होगा। अब उन हलातों की बात उन्हें कैसे समझायें? उन्हें कैसे समझाएं कि दो भाईयों में बटवारा हो गया। हमें फूट डालो और राज करो की ट्रेन तले कुचल दिया गया। ब्रिटिश साम्राज्य ने दो भाईयों को धर्म के नाम पर बांटकर खूब फायदा उठाया। हम उनकी चंगुल में आकर दो हिस्सों में बंट गए। ब्रिटिश साम्राज्य का अंत हो गया। मगर दो भाईयों के बीच खींची गई लकीर बरसों बाद भी संग-संग चलने नहीं दे रही। लकीर ने न तो बंगला को हवेली से मिलने दिया और न ही मुल्तान से। लारी की यादें बाकी रह गई, जो आज भी बंगला टू हवेली और बंगला टू मुलतान की राह ताक रही हैं। मिलने की चाहत इधर भी है और उधर भी। Lachhman Dost Fazilka 

Lorry ride
                                BANGLA TO HAVELI
                               BANGLA TO MULTAN 
      Bangla and Haveli . . . No difference in the name. . . . . In the same way, in the bungalow, if there was a wan of forest anaguna, Lakkha Vatu was judged in the mansion. Lari also went from Bengal to mansion. When the lari runs from the majam railway gate, the sight of the greenery of the flowing fields, the sight of the flying dust of the road can be seen three to four times a day, but where is the sight? While there is also a bungalow and the mansion is also there. What's the difference It is only that the ceasefire on the Indo-Pak international border has divided India into two parts. A streak . . . The streak which became a long distance between the two cities. There was a country, there were similar cities, but today there is a difference in land and sea. Two different countries, two different cities If there is no glory of the bungalow here, then in the mansion it is not known who was in huge India. While the first bus stop Salemshah and the other bus stop is there, there are also Laukiya, Shreeinghwala and Shahswar. But a streak raised these distances. Because of this, they are now waiting for the bus stand Bangla to Haveli and Bangla to Multan. The second bus stand was on the college road. From where did Lari go to Multan? He also got the offer of this streak. From Abohar Road, bus used to run buses, then till Bikaner principality, hundreds of villages passed through the villages. Then where did my city's salaries? Abohir is also a bus station, but there is no work from Abohar directly, if the name of the bus is found in place of the lorries, then the location of the bus stand changed. Buses started running from the front of the court. Then there was a crowded area. Thana City turned into a mukta When the traffic started to get affected, it was necessary to change the location of the bus. The bus stand went to the existing place i.e. the Mallaut road. From where buses now run from Ferozepur, Malout, Abohar and other long distance cities. The division swallowed all the salaries that run through Haveli, Multan and Bikaneri Road. Today there is a Khushali period, there are buses, but no answer to a question of the new generation. That is the question - Where did the journey to Bangla to Haveli - Bungalow to Multan? When our answer is - a streak of division swallowed. Then there is a question in their eyes. Who is responsible for the conditions of streak pull? Why not stop them? Perhaps nobody will answer them. Now let them explain the talk of those halatas? How to explain to them that the two brothers got separated. We were crushed under the train and divided and ruled. The British Empire took advantage of two brothers by dividing them on the name of religion. We came into his clutches and split into two parts. The British Empire ended But the streak drawn between the two brothers is not allowed to go on for years. Likir neither let the Bengalis meet the mansion, neither from the Multan Lari's memories remained the same, which still stands for Bangla to Haveli and Bangla to Multan. There is a desire to meet here and there too.

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Jul 28, 2018

जूती कसूरी, पैर न पूरी ............
फाजिल्का की पंजाबी जूती

जूती कसूरी, पैरी न पूरी, हाय रब्बा वे सानू तुरना पिया . . . . भारत विभाजन से पहले गायिका सूरिन्द्र कौर केलोकगीत की इन मशहूर पंक्तियों ने कसूर की जूती को अमर कर दिया है। यह गीत विभाजन से पूर्व संयुक्त भारत की याद दिलाता है और दशकों बाद भी यह लोकगीत कानों में गूंजता है। बेशक कसूर पकिस्तान के हिस्से आ गया, लेकिन फाजिल्का में भी कसूर की जूती उपलब्ध है। जूती का तला प्लेन था, मगर उत्तरी भारत में सीधे तले की बनी जूती को कसूरी जूती कहा जाता है।
कसूर में जूती के कारोबार से जुड़े कारीगर विभाजन के बाद यहां आकर बस गए और आज वे इस कलाकृति को संजीव रखे हुए हैं। उन्होंने हाथ से बनी जूती की कारीगरी को जिन्दा रखकर फाजिल्का को पंजाब का ऐसा क्षेत्र बनाया है, जहां की जूती सब से अधिक मशहूर है। माना जाता है कि रस्सी को बाटकर और घास फूस से पैर ढककर चलने से ही जूती की शुरूआत हुई है। साधु-संत उस समय चरण पादुकाएं पहनते थे। चमड़े की जूती बनाने की शुरूआत मुगलकाल से हुई। जूती की खासियत यह है कि जूती में पैर को आराम मिलता है और पैर का आकार भी कम बढ़ता है। चमड़े से बनी जूती पसीना सोख लेती है। फैशन के दौर में फाजिल्का की जूती ने एक अलग पहचान बनाई है।
जूती पंजाब के लोगों की शान है। आजादी से पहले जूतीयों के कारीगरों का केन्द्र बिन्दु रहे फाजिल्का की पंजाबी जूतीयां किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। देंश विदेश में इनकी धूम है। तिल्लेदार, मोतीयों, कढ़ाई वाली जूतीयां, लक्कमारवी, बेलबूटे वाली, जालबूटा, प्लेन, घोड़ी, खोसा, पुठ्ठी घोड़ी वाली, साठ बूटा, स्पॉट, स्पेशल स्पाट, दिल्ली फैशन, मैटरो जूती, लक्की जूती, कन्ने वाली जूती, फैंसी, तिल्लेदार, सिप्पीमोती, दबका वर्क, फुलकारी वर्क, धागा वर्क और जरी वाली कढ़ाई आदि जूती काफी मशहूर हैं। जूती कई कारीगरों के हाथों से निकलकर तैयार होती है। जालंधर व अन्य महानगरों से चमड़ा मगवाया जाता है। मदन शू सेंटर के संचालक जकसा राम ने बताया कि चमड़ा की धूलाई के बाद उसे जूती का माप दिया जाता है। उसके बाद जूती पर कढ़ाई के लिए भेजा जाता है।
कढ़ाई करने वाली युवती सोनिया, रजनी व पुष्पा रानी और राधे श्याम ने बताया कि फाजिल्का ऐसा क्षेत्र है जहां हाथ से बारीक कढ़ाई की जाती है। कढ़ाई करते समय उन्हें काफी परिश्रम करना पड़ता है, ध्यान से कढ़ाई करनी पड़ती है। जिस पर काफी समय व्यय होता है। इसके बावजूद उन्हें पूरी मेहनत नहीं मिलती, लेकिन परिवार का पेट भरने के लिए कड़ा परिश्रम करना पड़ता है। इसके बाद जूती अन्य हाथों में जाती है, जहां तली तैयार की जाती है। तली के बाद पन्ना और फिर सिलाई करने के बाद जूती तैयार हो जाती है। इसके बाद जूती शोरूम में पहँुचती है। फाजिल्का की जूती पंजाब में प्रसिद्ध है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, प्रताप सिंह कैरो, सरदार दरबारा सिंह, सरदार बेअंत सिह, मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल जब भी फाजिल्का आये हैं, वे जूती खरीदना नहीं भूले। बादल परिवार तो खासकर फाजिल्का की जूतियों पर नाज करता है।
फाजिल्का के करीब 2000 लोग इस काम से अपना पेट पाल रहे हैं। होटल बाजार मेंं जूतीयों की कई दुकानें हैं। दीपालपुरिया की हट्टी के संचालक रोशन लाल खत्री ने बताया कि जूती बनाने के साथ-साथ वह जूतीयां बनाने के लिए फे्रम भी खुद ही तैयार करते थे। नईं दिल्ली, पटियाला, अमृतसर, जालंधर, चण्डीगढ़, सिरसा और बठिंडा जैसे बड़े शहरों के व्यापारी यहां से जूतीयां बनवा कर ले जाते हैं और अमेरिका, कनाडा, जापान जैसे देशों में सप्लाई करते हैं।
            इन्दिरा मार्केट में स्थित न्यू फुलकारी जूती पैलेस के संचालक सुभाष चंद्र सांखला और संजय  साखला बताते हैं कि जूतीयों के बाजार ने एक लंबा दौर देखा है। फाजिल्का में आज हालात यह हैं कि जूतीयों के कारोबारी आर्थिक तंगी झेल रहे हैं। जूती बनाने के लिए चमड़े के दाम आसमान को छू रहे हैं। कई कारीगरों के हाथों से तैयार हुई जूती दूकान पर पहुंचती है तो ग्राहक पूराने दाम पर ही जूती मांगते हैं। जबकि जूती बनाने के पदार्थ महंगा होने के कारण उन्हें मुनाफा कम होता है। यही कारण है कि अब तक  कई परिवार इस काम को छोड़ चुके हैं, मगर यह कहना मुनासिब होगा कि फैशन के इस दौर में फाजिल्का की जूतीयां न सिर्फ नयां स्टाइल स्टेटमेंट गढ़ती है,बल्कि सैंकड़ों लोगों को रोजगार भी मुहैया करवा रही है। कभी लाखों रूपए का व्यापार करने वाले कारीगरों को सुविधाएं देने की काफी जरूरत है ताकि वह लोग इस उद्योग को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिला सकें। क्योंकि इस खूबसूरत जूती के कारण ही कहते हैं कि 
जुत्ती करे मुटियार दी चीकू-चीकू। 
जद तुरदी मडक़ दे नाल ओए जुत्ती चूँ-चूँ करदी आ।

Jutt kasuri pari na poori . .. . .. . . .
 . Prior to the partition of India, these famous rows of singer Surinder Kaur Kellokide have immortalized the shoe of the Kaunoor. This song reminiscent of United India before partition, and decades later, this folk song resonates in the ears. Of course, parts of Pakistan have come, but in Fazilka there is also a lumbering shoe. The shoe of the shoe was plain, but in northern India, straight shawls are called kasuri shui. The artisans associated with the business of the shoe settled here after partition, and today they are keeping this art alive. Having kept alive the handmade shoe workmanship, Fazilka has made Punjab an area where the shoe is more famous than the other. It is believed that the beginning of the shoe has begun only after covering the rope and covering the feet with grasshopper. Sage-saints used to wear stage padukas at that time. The formation of leather shoe started from the Mughal period. The specialty of the shoe is that the foot gets rest in the shoe and the size of the feet also increases. The leather-made shoe absorbs sweat. Fazilka's shoe has made a different identity in fashionable fashion. The shoe is the glory of the people of Punjab. Fajilka's Punjabi shorts are not an idiom for the identity of the artisans of the jute before Independence. Darnash has his smiles abroad. Tigers, pearls, embroidered shoes, Lakkmaravi, Belboute, Jalbuta, Plain, Marei, Khosa, Putthi mare, sixty boots, spots, special spots, Delhi fashion, matro shoe, lucky shoe, shoe shoe, fancy, Cipromi, Dabka Work, Phulkari Work, Thread Work, and Zari Zari Krahai etc. are very famous. The shoe is set out from the hands of many artisans. Leather is beaked from Jalandhar and other metro cities. Jakasa Ram, the director of Madan Shu Center, told that after shaving leather, she is given a measure of shoe. After that the shoe is sent for embroidery. The embroidered woman, Sonia, Rajni and Pushpa Rani and Radhe Shyam said that Fazilka is an area where fine-grained embroidery is done by hand. They have to do a lot of hard work while embroidering, they have to be carefully embroidered. Which has a lot of time spent. Despite this, they do not get enough work, but hard work has to be done to fill the family's stomach. After this the shoe goes in other hands, where the bottom is prepared. After the bottom of the pane and after sewing, the shoe is ready. After that the shoe comes in the showroom. Fazilka's shoe is famous in Punjab. Former Indian President Giani Zail Singh, Pratap Singh Kairo, Sardar Darbara Singh, Sardar Beant Singh, Chief Minister Parkash Singh Badal, Deputy Chief Minister Sukhbir Singh Badal, whenever they came to Fazilka, they did not forget to buy shoe. The cloud family, especially the Fazilka, shy away from the shoe. Nearly 2000 people of Fazilka are straining their lives with this work. There are many shops of the juveniles in the hotel market. Roshan Lal Khatri, director of Hatti of Deepalpuriya, told that with the making of shoe, he used to prepare frames for making shoe. Merchants from big cities like New Delhi, Patiala, Amritsar, Jalandhar, Chandigarh, Sirsa and Bathinda make shoes from here and supply them in countries like USA, Canada, Japan.

            Subhash Chandra Sankhala and Sanjay Sankhala, the director of New Fulkari Juoti Palace located in the Indira Market, show that the markets of the markets have seen a long period. The situation in Fazilka is that the traders of the juveniles are facing financial hardships. To make shoes, leather prices are touching the sky. Many shirts reach the shoe shop made by hands, then the client asks for a shoe at the full price. While shoe making items are expensive, they have less profits. This is the reason that many families have left this job till now, but it would be reasonable to say that in this period of fashion, Fazilka shoe not only creates a new style statement, but also provides employment to hundreds of people. There is a great need to provide facilities to artisans who have traded lakhs of rupees so that they can recognize this industry internationally. Because of this beautiful shoe that says
Juti kare Mutiyaar dee cheeku cheeku
Jad Tudi Maddak da Nal Oye Jatti Chun-chun kardi aa (Lachhman Dost) Writter - Fazilka Ek Mahagatha 
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हर वर्ग के दिलों की धडक़न बन चुके सुखपाल सिंह खैहरा को पुन: विपक्षी दल का नेता बनाया जाए: अतुल नागपाल
विरोधी राजनीतिज्ञों को घेरने की प्रबल क्षमता रखते है सुखपाल खैहरा

फाजिल्का, 28 जुलाई: पंजाब में रेत खदानों का गौरख धंधा, नशा, गुंडागर्दी और बेरोजगारी आदि मुद्दों को पंजाब की कांगे्रस सरकार के समक्ष जोरदार ढंग से उठाकर युवाओं की दिलों की धडक़न बनी सुखपाल सिंह खैहरा को आम आदमी पार्टी के आलाधिकारियों द्वारा विपक्षी दल के नेता के पद से हटाने से पार्टी को काफी नुकसान होगा। इसलिए स. खैहरा को वापिस उसी पद पर नवाजा जाना चाहिए। यह बात आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता अतुल नागपाल ने प्रैस नोट के जरिए कही है। उन्होंने कहा कि स. खैहरा तेज तर्रार नेता हैं और उन्होंने ही पंजाब में रेत खदानों के चल रहे धंधे को जोरदार ढंग से उठाया। जिसके इस गौरख धंधे पर मुख्यमंत्री को खुद हवाई जहान के जरिए रेत खदानों का दौरा करना पड़ा। पंजाब में नशे पर लगाम कसने के लिए पंजाब सरकार को कड़े कदम उठाने के लिए मजबूर करने वाले सुखपाल सिंह खैहरा पंजाब में हर वर्ग के लोगों की चाहत बन चुके हैं। उन्होंने कहा कि पंजाब में सत्ताधारी पार्टी के सियासी नेताओं द्वारा किए जा रहे हर गलत कार्यों पर विरोधी राजनीतिज्ञों को आड़े हाथों लेने वाले स. खैहरा एक स्वच्छ छवि वाले नेता हैं। जिसके चलते उनकी सियासत के गलियारे में एक अलग पहचान है। उन्होंने कहा कि स. खैहरा ने पंजाब के हर वर्ग पर अपनी अमित छाप बनाई है। जिसके चलते विपक्षी पार्टियां रोजाना उनसे इस्तीफा मांग रही हैं। क्योंकि स. खैहरा की बढती लोकप्रियता नहीं रूक रही। श्री नागपाल ने पार्टी के आलाधिकारियेां से मांग की है कि स. खैहरा को विपक्षी दल के पद से हटाने से पार्टी को काफी नुकसान होगा। इसलिए उन्हें पुन: उसी पद पर बहाल किया जाना चाहिए। 
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Jul 27, 2018

बेटे के जन्मदिन पर लवली परनामी ने किया रक्तदान
फाजिल्का- 

ब्लड डोनेशन सोसायटी के सदस्य लवली परनामी ने अपने बेटे मधुर परनामी के जन्मदिन पर रक्तदान किया गया। इस बारे में जानकारी देेते हुए सोसायटी के वक्ता कृष्ण तनेजा ने बताया कि लवली परनाम की अेार से सिविल अस्पताल में रक्तदान किया गया है। रक्तदान के बाद लवली परनामी को कृष्ण तनेजा, सोनू वर्मा और मुकेश कुमार ने सम्मानित किया।

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जमीन के आबादकारों को बनाया जाए मालिक: विधायक घुबाया
मुख्यमंत्री से फाजिल्का क्षेत्र के विकास के लिए फंड की मांग भी की

फाजिल्का, 27 जुलाई: सरहदी ग्रामीणों ने कड़े परिश्रम के बाद भारत पाक सरहद के निकट हजारों एकड़ भूमि को आबाद किया। मगर उन आबादकारों को अभी तक मालिक नहीं बनाया गया। उन्हें मालिक बनाया जाना चाहिए। यह बात फाजिल्का के विधायक दविन्द्र सिंह घुबाया ने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह से की है। इस सबंध में उन्होंने मुख्यमंत्री को लिखित मांग पत्र भी दिया है। जिसमें फाजिल्का के विकास के लिए फंड की मांग भी की गई है। इस बारे में जानकारी देते हुए विधायक दविन्द्र सिंह घुबाया के मीडिया इंचार्ज बलकार सिंह सिद्धु ने बताया कि फाजिल्का क्षेत्र के विकास के लिए विधायक स. घुबाया द्वारा मुख्यमंत्री से फंड जारी करने की मांग की गई है ताकि रूके हुए विकास कार्य मुकम्मल हो सकें और जो विकास कार्य नए शुरू होने हैं, उन्हें शुरू करवाया जा सके। उन्होंने कहा कि किसान आर्थिक तौर पर कमजोर हैं। खासकर फाजिल्का और फिरोजपुर जिलों के अलावा अमृतसर, तरनतारन व गुरदासपुर जिले के किसान, जिन्होंने सरहदी भूमि को आबाद किया, लेकिन उन्हें उस भूमि का मालिक नहीं बनाया गया। जबकि वह लोग कभी दरिया की बाढ़ और कभी भारत पाक के बीच तनाव के चलते बर्बाद हुए हैं। बाद के कारण जहां उनकी फसलें बर्बाद होती हैं तो भारत पाक तनाव के कारण उन्हें घर बार छोडक़र अन्य स्थानों पर जाना पड़ता है। इसके अलावा भी उन्हें कई समस्याओं से जूंझना पड़ता है। विधायक ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि आबादकारों को भूमि का मालिक बनाया जाए। पंजाब के मख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने उन्हें विश्वास दिलाया है कि सरहदी क्षेत्र फाजिल्का की समस्याओं को दूर करने के लिए जल्दी ही फंड जारी किया जाएगा।


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मिसेज इंडिया महक महाजन नंदा सवेरा फाऊंडेशन और सुर संगम के प्रोग्राम में होंगी स्पैशल गैस्ट ऑफ ऑनर
-बी.एस.एफ. के कमांडैंट नरेश कुमार होंगे मुख्यातिथि, कार्ड किया रिलीज
-29 जुलाई को होगी एक शाम रफी के नाम

फाजिल्का, 27 जुलाई- सवेरा फाऊंडेशन फाजिल्का और सुर संगम फाजिल्का की ओर से सिटी ब्वाय म्यूजिकल ग्रुप जलालाबाद के सहयोग से फाजिल्का में 29 जुलाई को सुरों के सरताल मोहम्मद रफी को श्रद्धांजति अर्पित करने के लिए एक शाम रफी के नाम का आयोजन किया जाएगा। इस बारे में जानकारी देते हुए सवेरा फाऊंउेशन के सदस्य श्री अजय नागपाल ने बताया कि कार्यक्रम का आगाज 29 जुलाई रविवार को शाम 6 बजे आनंद पैलेस फाजिल्का में होगा। जिसमें मिसेज इंडिया श्रीमती महक महाजन नंदा बतौर स्पैशल गैस्ट ऑफ ऑनर शिरकत करेंगे।
जबकि कार्यक्रम में सीमा सुरक्षा बल की 96वीं बटालियन फाजिल्का के कमांडैंट श्री नरेश कुमार बतौर मुख्यातिथि पधारेंगे। इसके अलावा श्री केवल कृष्ण कामरा, श्री संजीव नागपाल, श्री अतुल नागपाल, स. परमजीत सिंह वैरड़, श्री नवदीप असीजा, श्री नरेश मित्तल, श्री राकेश नागपाल, डॉ. रमेश गुप्ता, डॉ. कविता सिंह एवं डॉ. एम.एम. सिंह, श्री मनीष शर्मा, श्री गुरचरन सिंह बाजेके, श्री मुकेश अंगी, श्री मनीष कटारिया, श्री बबलू आहूजा, श्री फतेह चंद बाघला, श्री अनिल झींझा, श्री अश्वनी बब्बर, श्री पवन भठेजा गैस्ट ऑफ ऑनर होंगे। उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम में प्रदूमण शर्मा, रोशन लाल वर्मा, श्याम सुंदर सोलंकी, अशीश जुनेजा, एडवोकेट राजेश कालड़ा, अशीश शर्मा, संदीप कुक्कड़, अनिल शर्मा, दीपिका नारंग, ऊर्वी सोलंकी, विपन जगा, संदीप कटारिया, दर्शन वर्मा, नील अरोड़ा, अनीरूध शर्मा, मन्नत ठकराल और कृषिव अपनी गले की आवाज का जादू बिखेरेंगे। वहीं बी.एस.एफ. के कमांडैंट श्री नरेश कुमार ने कार्यक्रम का कार्ड रिलीज किया।



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Jul 25, 2018

श्री गुरु नानक देव जी के चरणों से पवित्र हुआ फाजिल्का
ग्रामीणों को दिलाया राक्षस के अत्याचार से छुटकारा

        लोहे जैसा शरीर, बड़े-बड़े नाखून, हाथ, पैर और भयानक आंखों वाले राक्षस की दहशत से फाजिल्का तहसील (अब जिला) के दक्षिण की तरफ बसा गांव हरिपुरा के लोग सहमें हुए थे। राक्षस छह माह में कई बार गांव में आया और कई घरों को जलाकर राख कर गया। राक्षस के जुल्मों-सितम का शिकार ग्रामीण गांव छोडऩे को तैयार हो गए थे। मगर विश्व की महान शख्सियत श्री गुरू नानक देव जी राक्षस का उद्धार करने के लिए मथुरा, वृंदावन, गोकुल, रिवाड़ी, हिसार, सिरसा से होते हुए फाजिल्का तहसील के गांव हरिपुरा में पहुंच गए। (श्री गुरू नानक देव जी की प्रथम यात्रा 1497-1515 दौरान) बाला जी और मरदाना जी गुरू जी के साथ थे। गुरू जी गांव हरिपुरा में एक वृक्ष के नीचे बैठकर ईश्वर भक्ति में लीन हो गए। ग्रामीणों को गुरु जी के आगमन का पता चला तो उन्होंने गुरु जी के कदमों में शीश झुकाया और गुरू जी की सेवा में जुट गए। 


ग्रामीणों की सेवा से गुरु जी प्रसन्न हो उठे और उन्होंने कहा, बोलो भाई, आपको कोई तकलीफ तो नहीं ? ग्रामीण राक्षस की दहशत से परेशान थे। उनके निवास जल चुके थे। ग्रामीणों ने विकराल शरीर वाले राक्षस के बारे में बताया, महाराज, एक राक्षक छह महीने से उनके घर जला जाता है। ग्रामीणों की दर्द भरी दास्तान सुनने के बाद गुरु जी ने फरमाया कि तुम परमपिता परमात्मा के सिक्ख बनो, सत्नाम वाहेगुरू का जाप जपो, इसके बाद तुम्हारे घर नहीं जलेंगे और राक्षस भी तुम्हें तंग नहीं करेगा। 
ग्रामीण गुरू जी के चरणों में शीश झुकाकर बोले, महाराज, हम आपके सिक्ख बनेंगे, नाम जपेंगे। ग्रामीणों द्वारा ऐसे कहने की ही देरी थी कि विकराल रूप धारण किए राक्षस वहां आ धमका। राक्षसग्रामीणों पर बहुत क्रोधित हुआ। बड़े-बड़े दांत और हाथ में आग लिए ग्रामीणों को डराने-धमकाने लगा।
 ग्रामीण राक्षस के खौफ से सहम गए। गुरु जी की दृष्टि राक्षस पर पड़ी तो राक्षसएकदम नीचे गिर गया और काफी देर तक बेहोश पड़ा रहा। जब राक्षस की बेहोशी टूटी तो हाथ जोडक़र गुरु जी के चरणों में गिर गया और क्षमा करने की अपील करने लगा। राक्षस ने गुरू जी से झुककर कहा, महाराज, आप मेरे अपराध क्षमा कर दो, अब मैं किसी के घर को नहीं जलाऊँगा। किसी को तंग नहीं करूंगा। गुरु जी ने राक्षस को वचन के बाद क्षमादान दिया। अब राक्षस अपना उद्धार चाहता था। 
राक्षस ने फिर गुरू जी से निवेदन किया कि आप मुझे इस नश्वर जीवन से मुक्ति दें। गुरू जी ने फरमाया कि अगर तुम अपने हाथ से भक्तों को पानी पिलाने की सेवा करोगे तो तुम्हारे कष्ट कटेंगे और तुम्हारा कल्याण होगा। राक्षस ने बरसों तक वहां श्रद्धालुओं को पानी पिलाने की सेवा की और उसे राक्षस जीवन से मुक्ति मिल गई। भक्तजन गुरु जी के आगे हाथ जोडक़र खड़े हो गए। गुरु जी ने फरमाया कि भाई, यहां एक सुंदर धर्मशाला बनवाओ और यहां आने वाले प्रत्येक भक्त को लंगर छकाओ, सुबह-शाम सत्नाम वाहेगुरू का जाप करो, सच्ची किरत करो और वंड के छको। वाहेगुरू सब दुख-दर्द दूर करेगा। वरदान देने के बाद गुरु जी, बाला और मरदाना के साथ पाकपटन, दीपालपुर, चूनियां से होकर तलवंडी पहुंच गए।
 उसके बाद ग्रामीणों ने गांव हरिपुरा में गुरुद्वारा बडतीर्थ बनवाया। आज गुरुद्वारा की मान्यता दूर-दूर तक है। यहां वार्षिक भंडारे के दिन हजारों की तादाद में श्रद्धालु पहुंचकर शीश झुकाते हैं। लोगों में धार्मिक व सामाजिक चेतना जाग उठी। गुरु जी के पूज्नीय चरणों से सुशोभित गुरुद्वारा में कीर्तन-भजन के स्वर दिग-दिगंत पराग बनकर सुवासित हो रहे हैं। गुरु जी के पवित्र चरणों ने इस क्षेत्र से पाप और संताप का अंधेरा दूर कर दिया है। यही कारण है कि आज फाजिल्का व आसपास के क्षेत्र में सुख-शांति और सद्भाव की ठंडी बयार बह रही है।
गांव हरिपुरा में गुरु जी ने संगतों को वरदान दिया कि जो माई-भाई यहां दीप जलायेगा, अग्रबत्ती करेगा, झाड़ू लगाएगा और पानी पिलाने व अन्य सेवाओं में हाथ बटाऐगा, उसे परमगति प्राप्त होगी। गुरु जी के इस उपदेश पर विकराल रूपी राक्षस ने भी अमल किया और वर्षों तक श्रद्धालुओं को पानी पिलाने की सेवा की।

Fazilka, holy by the feet of Shri Guru Nanak Dev ji
Get rid of the tyranny of monsters brought to the villagers


     The people of Haripura, who lived on the south side of Fazilka tahsil (now the district), with the iron-like body, large nails, hands, feet and horror-eyed monsters, were involved. The monster came to the village several times in six months and burned many houses to ashes. The victims of the monsters of Jumam-Sepam got ready to leave the village village. But the great man of the world, Shri Guru Nanak Dev Ji reached Mathura, Vrindavan, Gokul, Rewadi, Hisar, Sirsa and Haripura, village of Phazilka tehsil, to save the demon. (During the first visit of Shri Guru Nanak Dev Ji to 1497-1515) Balaji and Mardana Ji were with Guru Ji. In Guruji village Haripura sat under a tree and God was absorbed in devotion. When the villagers came to know of Guru ji's arrival, they bowed down in the steps of Guru ji and got involved in the service of Guru ji. Guru Ji was pleased with the service of the villagers and he said, "Brother, do not you have any problem?" The villagers were troubled by the monster's panic. His residences were burnt. The villagers said about the monster with a wild body, Maharaj, a guard has been burning his house for six months. After listening to the painful story of the villagers, Guru ji insisted that you become a Sikh of Parampita, Japa of Satnam Vaheguru, after that your house will not burn and the monster will not even bother you. She said, in the foot of rural Guru ji, she bowed and said, Maharaj, we will become your Sikhs, we will name you. The villagers had to say that there was a delay in saying that the monsters holding a wild look come in there. The demons became very angry at the villagers The villagers began to threaten the big teeth and fire in the hands. The villagers agreed with the horror of the monster. If the sight of Guru ji fell on the monster, the monster suddenly fell down and remained unconscious for a long time. When the unconsciousness of the monster was broken, the hand couple fell at the feet of Guru ji and started appealing to forgive. The monster bowed down to Guru ji and said, Maharaj, forgive me my crime, now I will not burn anyone's house. Do not trouble anyone. Guruji gave a monster apology after the word. Now the monster wanted his salvation. The monster again requested Guru ji to save me from this mortal life. 
                       
Guruji insisted that if you serve the devotees by watering your devotees, then they will suffer you and your welfare will be. The monster served the devotees for drinking water for many years and got rid of monster life. The devotees stood in front of Guru ji. Guruji said, brother, make a beautiful shrine here and chant an anchor to each devotee who comes here, chant the Satnam Vaheguru in the morning and evening; Wahaguru will remove all pain and suffering. After giving the boon, Guru Ji, along with Bala and Mardana, Pakpattan, Dipalpur, through Chunni reached Talwandi. After that the villagers constructed the Gurudwara Badtirtha in the village Haripura. Today the recognition of the gurdwara is far and wide. Hundreds of thousands of people reach the devotees on the day of the annual bhadra and bow their heads. Religious and social consciousness arose among the people. In the gurudwara, the tunes of kirtan-bhajan are beautified by the digestive and polluted pollinants of the Guru. Holy steps of Guru ji have removed the darkness of sin and anger from this region. This is the reason that the cold breeze of happiness and peace and goodwill is blowing in the district and surrounding areas.
In Haripura village, Guruji boasted the accompaniment that my brother will burn the lamp here, he will proceed, plant a broom and give water and other services, he will get the maximum speed. On this sermon of guru, the monstrous monster also followed and served for watering devotees for years.
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Jul 24, 2018

कहाँ गुम हो गई फाजिल्का की यह महान कलाकार 
पीपल या बोहड़ के नीचे गाती थी दुक्की

फाजिल्का के उत्तर की तरफ 16 मील दूर गांव बग्घेकी के उत्तर की तरफ डोगर जाति और दक्षिण की तरफ गांव प्रभात सिंह वाला उर्फ सुभाज के  में जोईऑस जाति के लोगों का कबीला बसता था। इसके साथ ही गांव है प्रभात सिंह वाला (सुभाजके)। जहां गरीब परिवार के घर 1922 में एक बेटी ने जन्म लिया। जिसका नाम निशा रखा गया। मगर जल्द ही उसके मां-बाप की मौत हो गई। अनाथ बच्ची घरों से रोटी मांग कर अपना गुजारा करने लगी। भगवान ने उसे सुरीली आवाज दी। उसकी शैली, नखरा और अंदाज के साथ-साथ सुंदर नैन-नक्श भी दिए। जब वह घरों से मांगने के लिए जाती तो साथ ही कुछ गुणगुनाने लग जाती। बड़ी हुई तो उसकी आवाज और सुरीली होती गई। लोगों ने उसे दुक्की का नाम दिया। वह इस कदर गायिका बनी कि लोग उसकी आवाज के जादू से कायल हो जाते। उसने आसपास के क्षेत्र में प्रसिद्धी हासिल की, लेकिन एक तो गरीब और दूसरा जंगल जैसे गांव में रहने वाली बिन मां-बाप की बेटी दूर तक नहीं जा पाई। वह नाच-गाकर गुजारा करती। मगर गांव वाले उसे बहुत प्यार करते थे। ग्रामीणों को अपना मां-बाप ही समझती थी। छोटा कद और सांवले रंग की दुक्की के बारे में ग्रामीणों का कहना है कि उसकी शादी उसके चाचा के लडक़े के साथ की गई। अभी शादी को कुछ ही महीने हुए थे कि उसके पति की भी मौत हो गई।

              पहले वह मां-बाप के दुख में गाया करती थी तो अब पति के वियोग ने उसे दर्द भरे गीत गाने को मजबूर कर दिया। जब उसने गीत गाना तो गीत के साथ उसके नाच को देखकर भी लोग हैरान रह जाते। लोग उसे दुक्की या निशा कंजरी के नाम से पुकारते थे। उसकी आवाज इस कदर तेज थी कि जब उसका अखाड़ा लगता तो दूर तक जा रहे राहगीर भी रूक जाते। बग्घेकी गांव के गुरदित्त सिंह बताते हैं कि वह अधिकतर पीपल या बोहड़ के नीचे गाती थी। उनके गांव की चौपाल में पीपल का पेड़ था, जहां वह अक्सर गाया करती थी। उस का कोई गुरू पीर नहीं था, बस भगवान को आंखों में बसाकर गाती थी। उसके गीतों की रिकार्डिंग होती थी। जो घर-घर सुने जाते थे और परिवार में मिल बैठकर सुनने के योग्य थे। विवाह-शादी पर गांवों में आज भी जब स्पीकर वाले बुक किए जाते हैं तो लोग कहते है कि दुक्की के रिकॉर्ड (तवे) हों तो ले आना, नहीं तो न आना। वह अपने साथ एक सारंगी वाला और तबले वाला रखती थी। कान पर हाथ रखकर जब आवाज बुलन्द करती थी तो लोग मस्त हो जाते। १९४५ के आसपास उसके 25 से 30 तक गीत रिकॉर्ड हुए थे। मगर अब तो रिकॉर्ड इतने खराब हो चुके हैं कि उसके गीतों की समझ भी नहीं आती, मगर ग्रामीण समझ लेते हैं। रोंदी दे नैन चो गए, यह उसका प्रथम रिकॉर्ड है। दुक्की के रिकॉर्ड दोबारा नए छोटे तवों में 1970 में पाकिस्तान ने आज़ाज किए। एक रिकॉर्ड में ही आठ गाने थे जिसका नम्बर है।

              गांव के बुजुर्ग सरदार काला सिंह का कहना है कि मेरा जन्म हुआ तो रीतों पर दुक्की को बुलाया गया था। उस समय दुक्की ने जो गीत सुनाया उसके बोल थे। रूता ने फिरीयां, कई वन्जाने ने घुम्मे, घूक  चरखडिय़ां तेरे सांवे ने मुन्ने। वह बताते हैं कि  जब गांव में किसी लडक़ी की शादी होती तो वह अखाड़े में मिला पैसा उसकी शादी पर खर्च करती थी। एक बार नवाब ने अखाड़ा लगवाया तो इनाम के तौर पर दुक्की ने नवाब से कहा कि वह बग्घेकी उताड़ से हिठाड़ तक सडक़ बनवा दें। तब वह सडक़ बनाई गई। ग्रामीण बताते हैं कि इस गांव से 15 किलोमीटर दूर गांव अटारी के साथ मंडी हीरा है। वहा नवाब ने दुक्की का अखाड़ा लगवाया। जब अखाड़ा खत्म हुआ तो नवाब दुक्की पर बेईमान हो गया और उसे कैद कर लिया। किसी तरह दुक्की ने गांव में संदेश भेजा। जिसमें लिखा था कि मेरे गांव के लोगों, मैं भी तुम्हारी बेटी-बहन हूं। मुझे ले जाओ। गांव में पचांयत हुई और दुक्की को वापस लाने का फैसला लिया गया। गुरदित्त सिंह वड़वाल और सरदार इशर सिंह ने सतलुज दरिया पार किया और जोगी का भेष बनाकर नवाब की हवेली में पहुंच गए। वहां जोगियों की भाषा में उन्होंने दुक्की को बताया कि वह रात के वक्त आएंगे और चौबारे में रस्सा फैंक देंगे। आप नीचे आ जाना। रात हुई और वह इसमें कामयाब हो गए। मगर नवाब को इसका पता चल गया। उसने पीछे बदमाश भेजे मगर तब तक वह दरिया पार करने में कामयाब हो गए। तब दुक्की ने गीत गाया कि जंगली चीज़ा छुट्टिया, फे र कदी नहीं हत्थी आईया, नवांबा तेरी जेल चो, घुड़ के मेरीयां ले चले ने बाहयां। फिर भारत विभाजन हो गया और दुक्की के कहने पर ग्रामीण उसे दरिया पार तक छोड़ आए। मगर विभाजन के बाद दुक्की का कुछ पता नहीं चला।
photo Rajdeep
Where is this great artist of Fazilka lost
Dukki 
On the north side of Fazilka, 16 miles away from the Dogar race on the north side of the village Baghakei and the south side of the village Prabhat Singh, aka Subhaj, was inhabited by the tribe of Jioes. With this, the village is Prabhat Singh Vaala (Subhajke). Where the poor family's house was born in 1922 by a daughter. Named Nisha. But soon after the death of her parents. The orphan girl started pleading for her bread from the houses and demanded bread. God gave her a melodious voice. His style, flirtation and style, along with beautiful nan-map also. When he went to the houses to ask for something, he started to sing some virtues. If he grew up, his voice and melodiousness had gone. People named him Dukki. She became a singer so much that people would be convinced by the magic of her voice. He achieved popularity in the surrounding area, but the daughter of the father and father of one poor and the other living in a forest like this was not able to go far. He would dance and sing. But the villagers loved him very much. The villagers only considered their parents. The villagers say that they were married with their uncle's girls, about the small stature and sanyal dunki. It was just a few months since the marriage that her husband also died.

              Earlier, he used to sang in the misery of the parents, now the husband's disconnection forced him to sing a painful song. When he singing songs, people would be surprised to see his dance with the song. People used to call him Dukki or Nisha Kanjari. His voice was so sharp that when his akhara was seen, the passers-by going too far would stop. Gurditt Singh of Baggaike village explains that he sang mostly under Peepal or Bohr. There was a peepal tree in his village's choupal, where he often used to sing. There was no Guru of that person, just singing God in the eyes. His songs were recording. Those who were heard at home and were able to meet and meet in the family. Even when the speakers are booked in the villages on marriage and marriage, people say that if there are records of dukki, then do not bring it, otherwise it will not come. He used to be a Sarangi and Tabla with him. When keeping the hands on the ears, the voice started shouting, people would have been happy. There were recorded 25 to 30 songs from around 1945. But now the record is so bad that there is no understanding of his songs, but the villagers understand. Ronadi de Nain Chau, this is his first record. Dukki's record was revised by Pakistan in 1970 in the new small screen. There were only eight songs in a record whose numbers are numbered.
              The village's elderly Sardar Kala Singh says that when I was born, Dukki was called on the rituals. At that time, the song that Deekki had said was. Rutha ferries, many windies swim, the wheezing wheels, your snout He explains that when a girl was married in the village, she used to spend money in the arena on her wedding. Once the Nawab used the amphitheater, as a reward, Dukki told the Nawab that he would make the road from the carnage to Hithar by making the road. Then he made the road. Rural explains that Mandi diamond is 15 kms away from this village with village attic. There, the Nawab has used the Dakki's arena. When the arena ended, Nawab became dishonest and captured him. Somehow Dukki sent a message in the village. It was written that people of my village, I am your daughter-sister too. Take me It was decided in the village and it was decided to bring Dukki back. Gurditt Singh Wadwal and Sardar Ishar Singh crossed the Sutlej daraya and made Jogi's trace and reached the Nawab's mansion. In the language of the jogis, he told Dukki that he will come at night and will hang the rope in the four corners. You come down The night got over and he managed it. But the Nawab came to know about it. He sent a bad man behind him, but till then he managed to cross the river. Then Dukki sang that the wild things were taken from the holidays, feet and no hitti Iya, Navambhoba, your gel cho, the horses of horses, took the arms out. Then India split, and on the sayings of Dukki, the villagers left it till the river crossing. But after the partition, there was no known deuce.

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Jul 22, 2018



सतनाम कौर ने अन्य बेटियों के लिए भी उम्मीद का दरवाजा खोला: घुबाया
विधायक ने गांव दोना नानका में जाकर डॉक्टरी में दाखिला लेने वाली किसान की बेटी को किया सम्मानित

फाजिल्का -  भारत पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय सरहद के निकट स्थित सतलुज दरिया के पार रहने वाले ग्रामीणों में से पहली बार किसी लडक़ी ने डॉक्टरी की पढ़ाई शुरू की है। इससे न सिर्फ जिला फाजिल्का का नाम रोशन हुआ है, बल्कि सरहद पर बसी बेटियों ने यह भी साबित कर दिया है कि सरहदी लड़कियां किसी से कम नहीं हैं। उक्त उदगार फाजिल्का के विधायक दविन्द्र सिंह घुबाया ने किया है। वह सरहदी गांव दोना नानका की रहने वाले किसान परिवार की बेटी सतनाम कौर को सम्मानित करने के लिए पहुंचे थे। इस मौके पर विधायक के मीडिया इंचार्ज बलकार सिंह सिद्धू, कार्यालय इंचार्ज हरबंस ङ्क्षसह, बलदेव सिंह भट्टी, देसा सिंह सरपंच, अध्यापक लवजीत सिंह, अध्यापक सुखदेव सिंह सहित भारी संख्या में कांग्रेस वर्कर और ग्रामीण मौजूद थे। छात्रा सतनाम कौर ने अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव के ही सरकारी प्राइमरी स्कूल से हासिल की थी। इस दौरान पांचवीं कक्षा में सतनाम कौर ने 450 में से 446 अंक हासिल करके पंजाब में प्रथम स्थान पाया था। इसके बाद उसने बारहवीं की शिक्षा अकाल एकेडमी बड़ू साहिब से हासिल की और इस दौरान सतनाम कौर ने बिना किसी टयूशन से 93 प्रतिशत अंक हासिल किए। सतनाम कौर उर्फ संतो बाई का इस साल सी.ई.टी. में सिलैक्शन के साथ नीट क्लीयर हो गया। उसने रिजर्व कैटेगिरी में 72वां रैंक हासिल किया और गुरू अंगद देव वैटरनरी एंड एनीमल साईंस यूनिवर्सिटी में रिजर्व कैटेगिरी में 12वां रैंक हासिल करके जहां उसने अपने गांव की शान बढ़ाई, वहीं सरकारी स्कूलों की काबलियत पर शक्क करने वालों के भी मुंह पर भी करारा तमाचा मारा। अब छात्रा सतनाम कौर का वैटरनरी डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए दाखिला हुआ है। स. घुबाया के मीडिया इंचार्ज बलकार सिंह सिद्धू ने बताया कि इस दौरान विधायक घुबाया ने अपने संबोधन में कहा कि सरहद पर स्थित सतलुज दरिया के पार पहली बार किसी लडक़ी ने डाक्टरी की पढ़ाई शुरू की। उन्होंने कहा कि दरिया में बाढ़ हो या भारत पाकिस्तान में तनाव, सरहदी ग्रामीणों ने हमेशा उनका डटकर मुकाबला किया है। उन्होंने कहा कि छात्रा सतनाम कौर ने खुद सफल होकर जिला फाजिल्का की अन्य बेटियों के लिए उम्मीद का दरवाजा खोला है। 
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Jul 20, 2018

न किसानों को फसलों के लिए पानी मिला, न नशा रूका: अतुल नागपाल
अपराधी दे रहे हैं अपराध की नईं लहर को जन्म
Atul Nagpal 
फाजिल्का, 20 जुलाई:  कहीं किसानों को फसलों के लिए प्रयाप्त मात्रा में पानी नहीं मिल रहा तो कहीं युवा वर्ग नशे की दलदल में धंसकर मौत के मुंह में जा रहा है। इसके बावजूद सरकार आराम से सो रही है। उक्त उदगार आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता व पंजाब विधान सभा में विपक्ष दल के नेता के ओ.एस.डी. अतुल नागपाल ने प्रैस ब्यान में किया। उन्होंने कहा कि किसानों को फसलों के लिए नहरीं पानी न मिलने के कारण उनकी फसलों का नुकसान हो रहा है और इसके चलते किसानों का भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है। 

जिस कारण किसान धरना लगाकर मरणव्रत पर बैठे हुए हैं। उन्होंने कहा कि सरकार की लापरवाही के कारण किसानों को अपनी भूमि बेचने के लिए फ्लैक्स तक लगाने पड़े।

वहीं राज्य भर में रोजाना नशे के कारण युवा मर रहे हैं। बीते दिन जिला फिरोजुपर में भी एक व्यक्ति की नशे के कारण मौत हो गई। इसके बावजूद सरकार खामोश है और न तो किसानों की सुनी जा रही है और न ही नशे को खत्म किया जा रहा है। जब कि पंजाब में कांग्रेस सरकार बनने से पहले कांग्रेस ने राज्य में नशा चार माह में खत्म करने का वायदा किया था। मगर अभी तक नशा खत्म करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। 
आप नेता श्री नागपाल ने कहा कि युवा पंजाब में हत्या, फिरौती के लिए अपहरण और बाकी कई तरह के गुनाहों में मुब्तिला हो रहे हैं। शोहरत और पैसे कमाने का ख्वाब देखने वाले युवाओं ने पंजाब में अपराध की नईं लहर को जन्म दिया है। अपराधी सरेआम अपनी पोस्ट और तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं। अपने हथियारों की ट्रॉफी की तरह नुमाइश करते हैं और अपराधों को उपलब्धि की तरह पेश करते हैं। श्री नागपाल ने कहा कि उनकी पोस्ट को हजारों लोग देखते हैं और पसंद भी करते हैं। मगर सरकार की नाक तले सब कुछ होने के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे। जिस कारण पंजाब काफी पीछे पहुंच गया है। 

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