श्री गुरु नानक देव जी के चरणों से पवित्र हुआ फाजिल्का
ग्रामीणों को दिलाया राक्षस के अत्याचार से छुटकारा
लोहे जैसा शरीर, बड़े-बड़े नाखून, हाथ, पैर और भयानक आंखों वाले राक्षस की दहशत से फाजिल्का तहसील (अब जिला) के दक्षिण की तरफ बसा गांव हरिपुरा के लोग सहमें हुए थे। राक्षस छह माह में कई बार गांव में आया और कई घरों को जलाकर राख कर गया। राक्षस के जुल्मों-सितम का शिकार ग्रामीण गांव छोडऩे को तैयार हो गए थे। मगर विश्व की महान शख्सियत श्री गुरू नानक देव जी राक्षस का उद्धार करने के लिए मथुरा, वृंदावन, गोकुल, रिवाड़ी, हिसार, सिरसा से होते हुए फाजिल्का तहसील के गांव हरिपुरा में पहुंच गए। (श्री गुरू नानक देव जी की प्रथम यात्रा 1497-1515 दौरान) बाला जी और मरदाना जी गुरू जी के साथ थे। गुरू जी गांव हरिपुरा में एक वृक्ष के नीचे बैठकर ईश्वर भक्ति में लीन हो गए। ग्रामीणों को गुरु जी के आगमन का पता चला तो उन्होंने गुरु जी के कदमों में शीश झुकाया और गुरू जी की सेवा में जुट गए।
ग्रामीणों की सेवा से गुरु जी प्रसन्न हो उठे और उन्होंने कहा, बोलो भाई, आपको कोई तकलीफ तो नहीं ? ग्रामीण राक्षस की दहशत से परेशान थे। उनके निवास जल चुके थे। ग्रामीणों ने विकराल शरीर वाले राक्षस के बारे में बताया, महाराज, एक राक्षक छह महीने से उनके घर जला जाता है। ग्रामीणों की दर्द भरी दास्तान सुनने के बाद गुरु जी ने फरमाया कि तुम परमपिता परमात्मा के सिक्ख बनो, सत्नाम वाहेगुरू का जाप जपो, इसके बाद तुम्हारे घर नहीं जलेंगे और राक्षस भी तुम्हें तंग नहीं करेगा।
ग्रामीण गुरू जी के चरणों में शीश झुकाकर बोले, महाराज, हम आपके सिक्ख बनेंगे, नाम जपेंगे। ग्रामीणों द्वारा ऐसे कहने की ही देरी थी कि विकराल रूप धारण किए राक्षस वहां आ धमका। राक्षसग्रामीणों पर बहुत क्रोधित हुआ। बड़े-बड़े दांत और हाथ में आग लिए ग्रामीणों को डराने-धमकाने लगा।
ग्रामीण राक्षस के खौफ से सहम गए। गुरु जी की दृष्टि राक्षस पर पड़ी तो राक्षसएकदम नीचे गिर गया और काफी देर तक बेहोश पड़ा रहा। जब राक्षस की बेहोशी टूटी तो हाथ जोडक़र गुरु जी के चरणों में गिर गया और क्षमा करने की अपील करने लगा। राक्षस ने गुरू जी से झुककर कहा, महाराज, आप मेरे अपराध क्षमा कर दो, अब मैं किसी के घर को नहीं जलाऊँगा। किसी को तंग नहीं करूंगा। गुरु जी ने राक्षस को वचन के बाद क्षमादान दिया। अब राक्षस अपना उद्धार चाहता था।
राक्षस ने फिर गुरू जी से निवेदन किया कि आप मुझे इस नश्वर जीवन से मुक्ति दें। गुरू जी ने फरमाया कि अगर तुम अपने हाथ से भक्तों को पानी पिलाने की सेवा करोगे तो तुम्हारे कष्ट कटेंगे और तुम्हारा कल्याण होगा। राक्षस ने बरसों तक वहां श्रद्धालुओं को पानी पिलाने की सेवा की और उसे राक्षस जीवन से मुक्ति मिल गई। भक्तजन गुरु जी के आगे हाथ जोडक़र खड़े हो गए। गुरु जी ने फरमाया कि भाई, यहां एक सुंदर धर्मशाला बनवाओ और यहां आने वाले प्रत्येक भक्त को लंगर छकाओ, सुबह-शाम सत्नाम वाहेगुरू का जाप करो, सच्ची किरत करो और वंड के छको। वाहेगुरू सब दुख-दर्द दूर करेगा। वरदान देने के बाद गुरु जी, बाला और मरदाना के साथ पाकपटन, दीपालपुर, चूनियां से होकर तलवंडी पहुंच गए।
उसके बाद ग्रामीणों ने गांव हरिपुरा में गुरुद्वारा बडतीर्थ बनवाया। आज गुरुद्वारा की मान्यता दूर-दूर तक है। यहां वार्षिक भंडारे के दिन हजारों की तादाद में श्रद्धालु पहुंचकर शीश झुकाते हैं। लोगों में धार्मिक व सामाजिक चेतना जाग उठी। गुरु जी के पूज्नीय चरणों से सुशोभित गुरुद्वारा में कीर्तन-भजन के स्वर दिग-दिगंत पराग बनकर सुवासित हो रहे हैं। गुरु जी के पवित्र चरणों ने इस क्षेत्र से पाप और संताप का अंधेरा दूर कर दिया है। यही कारण है कि आज फाजिल्का व आसपास के क्षेत्र में सुख-शांति और सद्भाव की ठंडी बयार बह रही है।
गांव हरिपुरा में गुरु जी ने संगतों को वरदान दिया कि जो माई-भाई यहां दीप जलायेगा, अग्रबत्ती करेगा, झाड़ू लगाएगा और पानी पिलाने व अन्य सेवाओं में हाथ बटाऐगा, उसे परमगति प्राप्त होगी। गुरु जी के इस उपदेश पर विकराल रूपी राक्षस ने भी अमल किया और वर्षों तक श्रद्धालुओं को पानी पिलाने की सेवा की।
Fazilka, holy by the feet of Shri Guru Nanak Dev ji
Get rid of the tyranny of monsters brought to the villagers
The people of Haripura, who lived on the south side of Fazilka tahsil (now the district), with the iron-like body, large nails, hands, feet and horror-eyed monsters, were involved. The monster came to the village several times in six months and burned many houses to ashes. The victims of the monsters of Jumam-Sepam got ready to leave the village village. But the great man of the world, Shri Guru Nanak Dev Ji reached Mathura, Vrindavan, Gokul, Rewadi, Hisar, Sirsa and Haripura, village of Phazilka tehsil, to save the demon. (During the first visit of Shri Guru Nanak Dev Ji to 1497-1515) Balaji and Mardana Ji were with Guru Ji. In Guruji village Haripura sat under a tree and God was absorbed in devotion. When the villagers came to know of Guru ji's arrival, they bowed down in the steps of Guru ji and got involved in the service of Guru ji. Guru Ji was pleased with the service of the villagers and he said, "Brother, do not you have any problem?" The villagers were troubled by the monster's panic. His residences were burnt. The villagers said about the monster with a wild body, Maharaj, a guard has been burning his house for six months. After listening to the painful story of the villagers, Guru ji insisted that you become a Sikh of Parampita, Japa of Satnam Vaheguru, after that your house will not burn and the monster will not even bother you. She said, in the foot of rural Guru ji, she bowed and said, Maharaj, we will become your Sikhs, we will name you. The villagers had to say that there was a delay in saying that the monsters holding a wild look come in there. The demons became very angry at the villagers The villagers began to threaten the big teeth and fire in the hands. The villagers agreed with the horror of the monster. If the sight of Guru ji fell on the monster, the monster suddenly fell down and remained unconscious for a long time. When the unconsciousness of the monster was broken, the hand couple fell at the feet of Guru ji and started appealing to forgive. The monster bowed down to Guru ji and said, Maharaj, forgive me my crime, now I will not burn anyone's house. Do not trouble anyone. Guruji gave a monster apology after the word. Now the monster wanted his salvation. The monster again requested Guru ji to save me from this mortal life.
Guruji insisted that if you serve the devotees by watering your devotees, then they will suffer you and your welfare will be. The monster served the devotees for drinking water for many years and got rid of monster life. The devotees stood in front of Guru ji. Guruji said, brother, make a beautiful shrine here and chant an anchor to each devotee who comes here, chant the Satnam Vaheguru in the morning and evening; Wahaguru will remove all pain and suffering. After giving the boon, Guru Ji, along with Bala and Mardana, Pakpattan, Dipalpur, through Chunni reached Talwandi. After that the villagers constructed the Gurudwara Badtirtha in the village Haripura. Today the recognition of the gurdwara is far and wide. Hundreds of thousands of people reach the devotees on the day of the annual bhadra and bow their heads. Religious and social consciousness arose among the people. In the gurudwara, the tunes of kirtan-bhajan are beautified by the digestive and polluted pollinants of the Guru. Holy steps of Guru ji have removed the darkness of sin and anger from this region. This is the reason that the cold breeze of happiness and peace and goodwill is blowing in the district and surrounding areas.
In Haripura village, Guruji boasted the accompaniment that my brother will burn the lamp here, he will proceed, plant a broom and give water and other services, he will get the maximum speed. On this sermon of guru, the monstrous monster also followed and served for watering devotees for years.