punjabfly

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Aug 20, 2018

Fazilka TV Tower

फाजिल्का टीवी टॉवर बनाम आइफ़िल टॉवर 


फाजिल्का के लीलाधर शर्मा, धर्म लूना और अन्यों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी से फाजिल्का में टॉवर बनाने की मांग की थी , इस प्रोजेक्ट पर 1986 में मोहर लगी- इसकी उचाई 302.2 मीटर है - Lachhman Dost Fazilka

Fazilka's TV Tower v/s Eiffel Tower
Mr. Lila Dhar Sharma, Mr. Dharam Loona and others of Fazilka had demanded to construct a tower in Fazilka from the then Prime Minister Mr. Rajiv Gandhi, on this project, in 1986, it was stamped - Its height is 302.2 meters
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Aug 19, 2018

झूमर के बादशाह बाबा पोखर सिंह

झूमर दक्षिण पंजाब का मशहूर लोक नाच है। भारत विभाजन हुआ तो सांदल बार के इलाके में रहने वाले अधिकांश लोग फाजिल्का और जलालाबाद के इलाके में आकर बस गए। जहां उन्होंने लोक नाच झूमर की शान को बरकरार रखा और देश विदेश में इसे प्रसिद्ध किया। दरअसल विभाजन से पूर्व झूमर में पोखर सिंह और जम्मू राम का नाम काबिले तारीफ रहा है। विभाजन के बाद जम्मू राम गांव नूरशाह में आकर बस गए, जबकि पोखर सिंह गांव झोटियां वाली में आकर रहने लगे। यहां उन्होंने चिराग ढ़ाणी बसाई। पोखर सिंह का जन्म 15 अगस्त 1914 को मिन्टगुमरी जिला के गांव तूतवाली जिला मिंटगुमरी (पाकिस्तान) में स. पंजाब सिंह के घर माता केसां बाई की कोख से हुआ। पोखर सिंह के छह भाई थे तो सबसे बड़ा लछमण सिंह पंजाब विधान सभा के सदस्य भी रहे। आप बचपन से कुश्ती और मुदगर उठाने के साथ-साथ आप झूमर के बहुत शौकीन थे। आपकी शादी संतो बाई से हुई और आपके घर चार बेटे व पांच बेटियों ने जन्म लिया। बाबा पोखर ङ्क्षसह की मौत के बाद उनके बेटे कुलवंत सिंह लोक नाच झूमर के जरिए इलाके की शान बनाए हुए हैं। 
Baba g di ik yaad apne ik seh-kalakar lakshmi chahuan and baba g di wife at shimla song and drama division
           फाजिल्का में आने के बाद भी उन्होंने झूमर लोक नाच को प्रसिद्ध किया। बात 1967-68 की है। तब गांव लालो वाली के बेदी परिवार की ओर से भारी मेला लगाया जाता था और इसकी धूम दूरदराज के क्षेत्र में भी थी। स. लाजिन्द्र सिंह बेदी ने मेले में झूमर का मुकाबला करवाया। अन्य टीमें तो मुकाबले के पहले दौर में ही बाहर हो गई। मगर पोखर सिंह और जम्मू राम की टीम में कड़ा मुकाबला हुआ। मगर बाबा पोखर सिंह की टीम ने मुकाबला जीत लिया और उन्हें पुरस्कारों से नवाजा गया। कहते हैं कि जब महारानी विकटोरिया गोल्डन जुबली मनाने के लिए भारत आई तो बाबा पोखर सिंह ने झूमर में बोलियां डालकर उसका विरोध किया। पोखर सिंह ने विकटोरिया को जुगनी कहकर संबोधित किया। 26 जनवरी 1961 में प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने बाबा पोखर सिंह को सोने के तगमें से नवाजा। इसके अलावा आपने देश विदेश में अनेकों पुरस्कार हासिल किए। अब बात करते हैं झूमर की। पुरुषों द्वारा किया जाने वाला पंजाब झूमर नृत्य अविभाजित भारत के दक्षिणी पंजाब के शहर फाजिल्का का एक विशेष लोकनाच है। इसका यह नामकण झूम से लिया गया। घूमर नृत्य हरियाणा की युवतियों का लोकप्रिय नृत्य है, जो होली, गनगौर अथवा तीज जैसे त्यौहारों पर किया जाता है। घूमर नृत्य में जहां युवतियां, गोलाकार में झूमते हुये तालियां बजाकर एवं गीत गाते हुये यह नृत्य करती हैं। वहीं झूमर लोकनाच करने वाले गोलाकार घेरे में ढ़ोल की थाप पर झूमकर ताली बजाकर लगात्मकता के साथ लोकनाच करते हैं। झूमर के अंतिम चरण स्थिति में नर्तक दो-दो के जोड़े में तेजी से घूमते हैं। नृत्य के समय गाये जाने वाले गीतों में समसामयिक विषयों पर हास्य और व्यंग्य शामिल होता है। 
           
फाजिल्का प्रसिद्ध झूम नृत्य के गीत लोकपारम्परिक काव्यों पर आधारित श्रृंगार भाव से परिपूर्ण होते हैं। नर्तकों की वेषभूषा साधारणत्या सफेद होती है। यह लोकनाच तीन पड़ावों में होता हैं, एक धीमी ताल, दूसरा तेज ताल और तीसरा बहुत तेज ताल। कई विद्वानों ने इसे झूमर की ताल, चीना झडऩा और धमाल भी कहा हैं। यह लोक नाच खुली जगह, घेरे का आकार, अपने-अपने लोक गीत के बोल द्वारा ढ़ोल पर किया जाता है। इसकी शुरूआत धीमी और अंतिम में तेज व जोशीली होती है। इस दौरान जो भी गीत बोले जाते हैं। उनमें पशुओं, वृक्ष और प्रेमी के मिलने की तड़प का जिक्र ज्यादा होता हैं। (Lachhman Dost Fazilka)
Jhumar Pitama - Baba Pokhar Singh 
Chhundar is a famous folk dance of South Punjab. When India was partitioned, most of the people living in Sandal Bar area settled in the area of ​​Phazilka and Jalalabad. Where he retained the fame of the Folk Dance chandelier and made it famous in the country abroad. In fact, before the partition, the names of Pokhar Singh and Jammu Ram have been praised in the Jhumar. After the partition Jammu Ram Village settled in Noorshah, while Pokhar Singh lived in the village Jotis. Here he built a chirag cabinet. Pokhar Singh was born on August 15, 1914, in Tintwali district, Mintgumari (Pakistan), in village Mintuguri district. The house of Punjab Singh came from the womb of Keshan Bai. Pokhar Singh had six brothers while Lakhman Singh, the eldest was also a member of the Punjab Legislative Assembly. Apart from lifting wrestling and mugger from your childhood, you were very fond of chandelier. You got married to Santo Bai and you have born four sons and five daughters. After the death of Baba Pokhara Singh, his son Kulwant Singh has made the pride of the area through the folk dance chandu.
           After coming to Fazilka, he also popularized the Jhumar Lok Dancing. The point is 1967-68. Then a massive fair was organized by the Bedi family of the village Lallo and its fog was also in remote areas. S Mr.Lajinder Singh Bedi fought the chandelier in the fair. Other teams were out in the first round of the match. But the team of Pokhar Singh and Jammu Ram got a tough fight. But Baba Pokhar Singh's team won the contest and they were awarded the prizes. It is said that when Queen Victoria came to India to celebrate Golden Jubilee, Baba Pokhar Singh opposed it by putting bids in the chandelier. Pokhar Singh addressed Viktoria as Jugni. On January 26, 1961, Prime Minister Pandit Jawaharlal Nehru received Baba Pokhar Singh from the gold medal. Apart from this, you have got many awards abroad. Let's talk now of the chandelier. The Punjab chandar dance by men is a special festival of undivided India, the city of Fazilka, southern Punjab. This name was taken from Jhoom. Ghoomar dance is the popular dance of the women of Haryana, which is done on festivals like Holi, Gangaur or Teej. In the Ghoomar dance, where the girls dance and dance while singing and singing in the sphere, they dance. On the other side of the chandeliers, the chandeliers are roaming on the thunderstorm and chanting them with rhythm. In the last phase of the chandelier, dancers roam fast in couple of pairs. Songs that are played at the dance include humor and satire on contemporary subjects.
           Fazilka's famous Jhoom dance songs are full of popular expressions based on traditional poetry. The dancers' dress is usually white. This locals are in three stages, a slow rhythm, another fast rhythm and the third very fast rhythm. Many scholars have also called it the rhythm of chandeliers, china flashes and dhamal. This folk dance is done on the open space, the shape of the circle, the voice of his folk song, on the wall. Its beginnings are slow and strong in the last and final. Whatever songs are said during this time. They are more concerned about meeting animals, trees and lovers 
All Photoes with Thanks 
https://www.facebook.com/Baba-Jhoomer-Pitama-Pokher-Singh-Welfare-Society-Dhani-chirag-Fazilka-656594847884962/
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Aug 14, 2018

Jashan E Aazadi

फ़ाज़िल्का के सादकी बॉर्डर पर - 
पाकिस्तान की आज़ादी पर पाक  के विंग कमांडर ने सीमा सुरक्षा बल को दी मिठाई 



SADQI BORDER
Pakistan's Wing Commander Delivers the Border Security Force on Pakistan's Independence

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Aug 12, 2018

Illuminated unique colors on trees in the joy of freedom

आजादी की खुशी में पेड़ों पर उकेरा अनोखा रंग
बॉर्डर की सुंदरता में हुआ इजाफा, स्वच्छ भारत, पर्यवरण का दिया संदेश

फाजिल्का, 12 अगस्त: भारत की आजादी की खुशी मे देश भर में देश भक्ति की गाथा गाई जाएगी, मगर भारत पाकिस्तान की सरहद पर स्थित सादकी बॉर्डर पर आजादी की खुशी में पेड़ों पर अनोखा रंग करके देश प्रेम की अलख जगाई है। इस अलख को जगाने वाले बताते हैं कि देश प्रेम की भावना को किसी भी तरह से उजागर किया जा सकता है।
पैदा होगा देश पे्रम का जज्बा
पंजाब के सरहदी जिला फाजिल्का के दो ऐसे ही परिवार हैं जो अपनी देश प्रेम की भावना के साथ साथ स्वच्छ भारत परिवार और वातावरण प्रेम को अपने अलग ही अंदाज में प्रदर्शित कर रहे हैं। इन्होंने भारत-पाक अंतर्राष्ट्रीय सरहद पर बने सादकी बॉर्डर के पेड़ पौधों को इस कदर देश प्रेम के रंग में उतारा है, जिनको देखने से देश प्रेम का जज्बा खुद-बा-खुद पैदा हो जाता है।
दर्शक होंगे आकर्षित
भारत पाकिस्तान की सरहद पर बसे फाजिल्का शहर में हर वर्ग और हर जाति के लोग एक साथ परिवार की तरह रहते हैं। जो आपसी भाईचारक सांझ, सदभावना का प्रतीक है। यहां के लोगों ने अपने इलाके को एक अलग पहचान दी है। इस पहचान में सरहद पर स्थित सादकी बॉर्डर की चौकी भी है। जहां भारत पाक के बीच रिट्रीट सैरेमनी होती है। जिन्हें देखने के लिए सैंकड़ों की तादाद में दर्शक पहुंचते हैं। गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर तो यह संख्या 60-65 हजार से भी अधिक पहुंच जाती है। पाकिस्तान की तरफ से पहुंचने वाली संख्य अलग है।
टीम बनाकर करते हैं काम
सादकी बॉर्डर को और चार चांद लगाने वाले परिवार फाजिल्का की हरफनमौला शख्सियत व इतिहासकार लक्षमण दोस्त व कृष्ण तनेजा का परिवार है। इन परिवारों की महिलायों सहित बच्चों ने भी इस कड़ी में परिश्रम करके सीमा सुरक्षा बल के सहयोग से सादकी बॉर्डर पर लगे सभी पेड़ों पर रंगों से की गई कलाकृति से उनको एक अलग पहचान दी है, सभी पेड़ पौधे देश प्रेम की भावना को उजागर कर रहे है। इन परिवारों की तरफ से पेड़ों पर देश भक्ति की लिखी इस इबादत को स्वतंत्रता दिवस पर आने वाले हजारों दर्शकों को अपनी तरफ आकर्षित करेंगे और उनके दिलो में देश प्रेम के जज्बे को पैदा करेगे। इतिहासकार लक्षमण दोस्त, उनकी धर्मपत्नी संतोष चौधरी, कृष्ण तनेजा व उनकी धर्म पत्नी विशु तनेजा बताते हैं उन्होंने सादकी बॉर्डर के पेड़ों पर देश भक्ति की गाथा लिखी है।
किसी पेड़ पर राष्ट्रीय ध्वज तो किसी पेड़ पर देश के रक्षक जवान का चित्र अंकिंत किया गया है। किसी पेड़े पर राष्ट्रीय पक्षी मोर तो किसी पेड़ पर अन्य पक्षी और फूल आदि बनाए गए हैं। इसक अलावा सामाजिक कुरीतियों से सबंधित स्लोगन व चित्र बनाए गए हैं। जो बॉर्डर की सुन्दरता को तो बढ़ाएंगे ही, साथ ही यहां आने वाले दर्शकों को देश प्रेम से जुड़ी बातों के अलावा स्वच्छ भारत अभियान, पर्यवरण बचाने के लिए प्रेरित करेंगे। उन्होंने बताया कि इस सारे कार्य को मुकम्मल करने के लिए उनकी तरफ से रंगला बंगला फाजिल्का टीम बनाई गई है। जो अब तक वह 300 से अधिक पेड़ों पर रंगों से कलाकृति दिखा चुके हैं। इस टीम में बच्चों जन्नत कंबोज, खुशी, तमन्ना, आयुश व विहान का भी सहयोग है।
Illuminated unique colors on trees in the joy of freedom
Border beauty enhances, clean India, message delivered by the people
Fazilka, August 12: India's freedom will be sung by the happiness of India's freedom, but the country has woken up to love by making unique colors on the trees in the happiness of freedom on the Sadqi border on the outskirts of Pakistan. Those who awaken this look say that the love of the country can be exposed in any way.
Will be born of country's love
There are two such families of Sirhadi district of Phazilka in Punjab who are displaying their country of love with a clean India family and atmosphere in their different style. They have brought the Sardis Border trees made on the Indo-Pak international border in the form of love of country, in this way, seeing the country's love is born by itself.
Spectators will attract
India resides on the outskirts of Pakistan, people of every caste and every caste live together in a family together in Fazilka city. Which is a sign of mutual brotherhood, goodwill. The people here have given their area a different identity. This identity is also the post of Sadaki Border located on the outskirts. Where there is a retreat saramedi between India and Pakistan. Viewers reach hundreds of people to see. On Republic Day and Independence Day, this number reaches more than 60-65 thousand. The number coming from Pakistan is different.
Team work
The family of Sadaqi Border and the other four families are the family of Fazilka's family and the family of historian Lachhman Dost and Krishna Taneja. The children, including the women of these families, also worked hard in this episode with the help of the Border Security Force, they have given them a distinct identity with the artwork of colors on all the trees on the Sardar Border, all the tree plants are highlighting the love of the country. is.
On behalf of these families, on this day, the country will draw thousands of visitors who come to the Independence Day on this tree, and will create the love of the country in their hearts. Historian Lachhman Dost, his wife Santosh Chaudhary, Krishna Taneja and his wife Vishu Taneja say they have written the saga of patriotism on the trees of Sardaki Border. National flag on a tree, the picture of the country's security officer has been digitized on any tree. National bird peacock on any tree, other birds and flowers etc. have been made on any tree. Apart from this, slogans and pictures related to social evils have been made. Which will enhance the beauty of the border,
as well as the visitors who come here to inspire the nation to love the Swachh Bharat Abhiyan, save the story. He said that to make all this work work, Rangla Bangla Fazilka team has been formed from them. So far, he has shown artwork in more than 300 trees with colors. The team also has the support of children Jannat Kamboj, Khushi, Tamanna, Ayush and Vihaan(LACHHMAN DOST - FAZILKA)

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Aug 10, 2018

ब्रिटिश एक्ट की व्यापारियों ने की खिलाफत

व्यापारियों से पैसा वसूलने के लिए ब्रिटिश साम्राज्य में मार्किटिंग बिल एवं बिक्री टैक्स एक्ट शुरू शुरू किया। मगर व्यापारी वर्ग को यह मंजूर नहीं था। जिस कारण पंजाब में आंदोलन शुरू हो गया। इसके तहत फाजिल्का में भी आंदोलन हुआ। जिसमें हिन्दू, मुस्लिम, सिख जातियों के व्यापारी सम्मलित थे। इस आंदोलन की अगुवाई सेठ चानन लाल कर रहे थे। इस दौरान फाजिल्का बंद रखा गया। जो ऐतिहासिक रहा। मगर सेठ चानन लाल आहूजा ने बाद में प्रधान पद से इस्तीफा दे दिया। जो 5 जुलाई 1941 को फाजिल्का से प्रकाशित समाचार पत्र निशात में प्रकाशित किया गया था। 

British act traders protest against
In order to recover money from traders, the British Empire started the Marketing Bill and Sale Tax Act. But the business class was not approved. That is why the movement started in Punjab. Under this, there was a movement in Fazilka too. In which the traders of Hindu, Muslim, Sikh castes were involved. The movement was led by Seth Chanan Lal. During this time phazilka was closed. Which was historic. But Seth Chan Lal Ahuja later resigned from the post of Principal. Which was published on 5 July 1941 in Nishat, a newspaper published from Fazilka.

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Aug 9, 2018

ब्लड डोनेशन सोसायटी कल लगाएगी मेला रक्तदानियों का

फाजिल्का, 09 अगस्त: ब्लड डोनेशन सोसायटी की एक बैठक गांधी नगर स्थित कृष्ण तनेजा के निवास पर हुई। जिसमें 11 अगस्त को सिविल अस्पताल में लगाए जाने वाले रक्तदान कैंप मेला खूनदानियों का की तैयारियों को अंतिम रूप दिया गया। यह मेला स्वतंत्रता दिवस को समर्पित किया गया है। जानकारी देते हुए कृष्ण तनेजा ने बताया कि कैंप में 10 स्टेट अवार्डी ब्लड डोनरों को विशेष रूप से सम्मानित किया गया। इस कैंप में दुष्ट दमन धर्म रक्षणी सभा (रजि) का भी सहयोग लिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि कैंप दौरान सोसायटी सदस्यों को पहचान पत्र भी वितरित किए जाएंगे और रक्तदानियों को सराहनीय पत्र, मैडल व सम्मान चिन्ह देकर सम्मानित किया जाएगा। बैठक में मोहित दहूजा, संजय अनेजा, मंगल सिंह, पारस सिरोईया, अरूण वर्मा, मनमोहन कुमार, मिन्टू मिढ्ढा, कुन्दन, डॉ. जगदीश गहलोत, बंटी, स्वर्ण तनेजा, दया कृष्ण प्रतापत, दर्शन सिंह तनेजा, पंकज डोडा, अक्षय वर्मा आदि मौजूद रहे।

Blood donation society will organize fair blood donation tomorrow
Fazilka, 09 August: A meeting of the Blood Donation Society was held at the residence of Krishna Taneja located in Gandhi Nagar. The preparations for blood donation camp festivals, which were put in Civil Hospital on August 11, were finalized. This fair has been dedicated to Independence Day. Giving information, Krishna Taneja said that 10 State Award Blood Donors were specially awarded in the camp. In this camp, the help of the evil oppressive Dharma Rakshani Sabha (Reg) is also being taken. He informed that during the camp, identity cards will also be distributed to society members and blood donation will be honored with a commendable letter, medal and honor marks. In the meeting, Mohit Dahuza, Sanjay Aneja, Mangal Singh, Paras Siroiya, Arun Verma, Manmohan Kumar, Mintoo Minda, Kundan, Dr. Jagadish Gehlot, Bunty, Swarna Tanze, Daya Krishna Pratapat, Darshan Singh Taneja, Pankaj Doda, Akshay Verma etc. are.

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सवेरा फाउंडेशन के संस्थापक चेयरमैन अतुल नागपाल के जन्मदिन पर पौधे रोपित


फाजिल्का, 9 अगस्त: सवेरा फाउंडेशन के संस्थापक चेयरमैन अतुल नागपाल का जन्मदिन
पर्यवरण दिवस के रूप में मनाया गया। इस दौरान सवेरा फाउंडेशन के सदस्यों की ओर से विभिन्न स्थानों पर पौधारोपण करते हुए छायादार, फलदार व फूलदार पौधे रोपित किए गए। इस मौके पर सुरेन्द्र कुमार, बूटा, अशोक, हरजीत, अमरजीत, भगवान, बलविन्द्र ओझांवाली, उपिन्द्र शर्मा, लाला, मुरारी, बंसी, विनोद, इन्द्रजीत, सतीश, बिट्टू, सोनू, गुलजार आदि ने बताया कि सवेरा फाउंडेशन के संस्थापक चेयरमैन अतुल नागपाल के जन्मदिन पर फाजिल्का की अन्नी दिल्ली मौहला, गांव ओझां वाली सहित कई अन्य स्थानों पर पौधे रोपित किए गए हैं।
उन्होंने बताया कि सवेरा फाउंडेशन की ओर से समाजसेवा के लिए समय समय पर मैडीकल कैंप, जरूरतमंदों की सहायता, बच्चों की शिक्षा आदि जैसे कई कार्य किए जाते हैं। वहीं अतुल नागपाल ने कहा कि उनके जन्मदिन पर पौधे रोपित करने वालों का वह आभार व्यक्त करते हैं। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति को अपने जन्मदिन व अन्य खुशी के मौके पर पौधे रोपित जरूर करने चाहिए ताकि वातावरण को स्वच्छ बनाया जा सके।
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Planted plants on the birthday of Atul Nagpal, founder chairman of Savera Foundation
Fazilka, August 9: Atul Nagpal, founder chairman of Savera Foundation, was celebrated as birthday party. During this time, shade, planted and flowery plants were planted on different places by members of the Savera Foundation. On this occasion, Surendra Kumar, Buta, Ashok, Harjeet, Amarjeet, Bhagwan, Balvindra Ojwanwali, Upinder Sharma, Lala, Murari, Bansi, Vinod, Indrajit, Satish, Bittu, Sonu, Guljar etc. told that Atul Nagpal, founder chairman of Savera Foundation Plants have been planted on several other places including the Delhi-Delhi Maula of Phazilka, Village Ojhn, on the birthday of the people. He informed that from time to time many works like medical camps, assistance of the needy, children's education etc. are done for the social service from Savara Foundation. On the other hand, Atul Nagpal said that he expresses gratitude to those who planted plants on their birthday. He said that every person should plant the plants on their birthday and other happy occasion so that the environment can be cleaned so that the environment can be cleaned.
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दास्तान-ए-वट्टू: हवेली से पहुंचा फाजिल्का वट्टू कबीला
درسٹن ای واٹھو:
Dastan-e-Wattu:
      ब्रिटिश साम्राज्य में भटियाणा (जिला सिरसा) के सहायक सुपरिटेडेंट जे. एच. ओलिवर को फाजिल्का शहर बसाने के लिए भूमि बेचने वाले मुसलमान नंबरदार मिया फज़ल खान वट्टू व अन्य वट्टू परिवार चंद्रवंशी राजपूत का एक कबीला था। मगर वट्टू सन् 1882 से 16 पीढ़ी पहले राजा खीवा के समय मुसलमान बन गए। खीवा हवेली (अब पाकिस्तान में) का राजा था। हवेली में लक्खा वट्टू नाम का एक मशहूर मुस्लमान रहता था। वट्टू वहां से सतलुज दरिया पार करके जिला मिंटगुमरी में आकर बस गया। उनका ही एक परिवार मिंटगुमरी से फाजिल्का के उत्तर की तरफ 16 मील दूर गांव बग्घेकी (जलालाबाद के निकट) आकर बस गया जो दक्षिण की तरफ फुलाही से 70 मील की दूरी पर था। बग्घेकी के उत्तर की तरफ डोगर जाति और दक्षिण की तरफ जोईऑस जाति के लोगों का कबीला बसता था। उधर वट्टू जाति के कई अन्य लोग हवेली के गांव राणा झंग के निकट भी बसे हुए थे। यह गांव राणा वट्टू के नाम पर बसा हुआ था। वट्टू वहां से चार पांच पीढ़ी पहले फज़ल खां वट्टू, राणा और दलेल के नेतृत्व में सतलुज दरिया के इस इलाके में आकर बस गए और यहां बोदला जाति के मुसलमानों के पड़ोसी बन गए। उस समय यह इलाका आबाद नहीं था। चारों ओर धूल ही धूल थी। पूर्व समय में वट्टू धार्मिक गुरू थे। उनका कद छोटा और पतला था। उनके नैन नक्ष तीखे थे। पतले होंठ व छोटे नाक वाले वट्टू जाति के मुसलमानों की भाषा मुस्लिम पंजाबी थी। जिस में नाक से बोले जाने वाले व्यंजन ज्यादा थे। मगर देखने में अपने पड़ोसी बोदला परिवारों से सुंदर थे। वह किफायती नहीं थे। जंगल किनारे बसे होने के कारण उनमें साहस की भावना की कमी नहीं थी। वे परिश्रमी थे और परिश्रम से उन्होंने रेतीले इलाके को आबाद कर लिया। उनके परिश्रम से यहां रेतीली धरती सोना उगलने लगी और वट्टू कृषि क्षेत्र से जुड गए। यहां बसने के बाद उनके बोदला जाति के मुसलमानों से संबध गहरे हो गए। वट्टू सतलुज दरिया के दोनों हिस्सों से जिला फिरोजपुर से जुड़े हुए थे। इनके आसपास चिश्ती, नाईपाल, भट्टी और गुज्जर भी बसे हुए थे। वट्टूओं की अधिकतर जाति आगे और शाखाओंं में बंटी हुई थी। वट्टू एक पूर्वज की ओर से थे। पूर्व समय में यहां उनकी 10-12 पीढिय़ां निवास करती थी। मगर कुछ समय बाद उनकी कुछ पीढ़ीयां वापस चली गई। यहां 1882 तक उनकी सिर्फ तीन-चार पीढ़ीयां ही रह गई। जो पीढिय़ां बाकी रह गई। उनमें ज्यादातर गांव लाधुका, मुहम्मदके और सैदोके में बसी हुई थी। इन गांवों को वट्टूओं ने अपना नाम दिया। ये गांव ही उनके हैड क्वार्टर बन गए। इसके अलावा सुक्खा के नाम पर गांव सुखेरा और कालो के नाम पर गांव कालोके बस गया। 1911 की जनगणना अनुसार जिला फिरोजपुर में इनकी संख्या 9732 थी।
Dastan-e-Wattu: Fazilka Wattu Kabila from Haveli
         In the British Empire J. Assistant Superintendent of Bhatiana (District Sirsa) Muslim naadder Mia Fazal Khan Wattu, who sells land to settle down Fazilka town, and a Wattu family, was a tribe of Chandravanshi Rajput. But Watttu became a Muslim during the King Killa, 16th generation before 1882. King of the Khiwa Haveli (now in Pakistan). A renowned Muslim named Lakkha Vattu lived in the mansion. Vattu crossed the Satluj river crossing and settled in the district of Mintingumari. One of his family migrated from Mintgumari, 16 miles away to the north of Fazilka, near the village Baggaikei (near Jalalabad), which was 70 miles away from Phulahi on the south side. Dogger caste on the north side of Baggeki and the tribe of the Zoose caste on the south used to be inhabited. On the other side, many other people of the Vatu caste were also living near the village of Rane Jhang of Haveli. This village was named after Rana Vatu. Vatu settled in this area of ​​Satluj Dariya under the leadership of Fazal Khan Vattu, Rana and Dellal, four to five generations before that and here he became a neighbor of the Muslims of Bodla caste. At that time the area was not populated. The dust around was dust itself. In earlier times, Vatu was a religious teacher. His stature was small and thin. Their nan naks were sharp. The language of Muslims of the Vatu caste with thin lips and small noses was Muslim Punjabi. In which nose-fed dishes were more. But in view of the neighboring Bodala families were beautiful. He was not economical Due to being settled on the banks of the forest, they lacked the sense of courage. They were hard-working and by diligence they settled the sandy terrain. From his hard work, the sandy land began to flutter and Wattu joined the agriculture sector. After settling down here, his relationship with the Bodolas of Muslims grew deeper. Vattu was connected to the district Firozpur from both parts of Satluj Dariya. Chishti, Naipal, Bhatti and Gujjar were also settled around them. Most of the castes of Vatu were divided further into branches. Vattu was from an ancestor. In earlier times, he used to live 10-12 generations. But after some time some generations of them went back. It remained only three or four generations until 1882. Generations left Most of them were settled in the villages of Ladkuka, Mohammedke and Sedoke. Vatu gave their names to these villages. These villages became their head quarters. Apart from this, village Keloke has been settled in the name of village Sukhera and Kalo in the name of Sukkha. According to the 1911 census, their number in the district Firozpur was 9732

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Aug 8, 2018

गांव लाधुका की दास्तां
न्याय में धोखा नहीं खाती थी वली मुहम्मद खान की अंधी आँखे

    उसकी आँखों ने जिंदगी भर किसी का चेहरा नहीं देखा, लेकिन फिर भी आँखे न्याय को पहचाननें में कभी धोखा नहीं खा सकती थी। अंधा था, मगर न्याय करते समय अगर बेटे की बात भी झूठ साबित हो गई तो वह उसे भी सजा देने से नहीं घबराता। ऐसा न्यायप्रिय था, मुहम्मद लाधु खान का बेटा वली मुहम्मद खान। वली मुहम्मद खान तीन भाईयों में सबसे बड़ा था। उसका छोटा भाई कुत्तुबदीन ऑनरेरी मजिस्ट्रेट था और सबसे छोटा नजामदीन तो इज्जत का रखवाला के नाम से आसपास के इलाके में प्रसिद्ध था। वली मुहम्मद खान की आँखों की रोशनी बचपन से ही नहीं थी। मगर उसकी काबलियत का लोहा पूरा इलाका माानता था। जमींदार मुस्लमान लाधु खान के परिवार के न्याय के किस्से तो दूर तक के लोग मानते थे। जमींदार लाधु खान की मौत हुई तो गांव का नाम ही लाधुका पड़ गया। सतलुज दरिया से तीन किलोमीटर दूर बसा गांव लाधुका की गलियों जैसी साफ-सफाई तो निकट के किसी गांव में नहीं थी। खुली गलियां, गांव के बीच चौपाल, कुआं और बड़ी-बड़ी हवेलियां गांव की शान थी। मुहम्मद लाधु खान की भूमि का रक्बा बहुत बड़ा था। गांव किडिय़ांवाली तक उनकी सरहद थी। लाधु खान के भाई लक्खा खान की भूमि का रक्बा भी कम नहीं था। गांव लक्खा मुसाहिब, लक्खा कड़ाईयां, लक्खेके हिठाड, लक्खे के उत्ताड़, लक्खा असली मुहम्मद लक्खा खान के गांव थे। मगर इनका अधिकतर ध्यान अपनी भूमि की संभल की तरफ था और लाधु खान के बेटे मुहम्मद वली खान अपना ध्यान लोगों को न्याय दिलाने की तरफ जयादा देता था।
      बात 1850 के आसपास की है। वली मुहम्मद का बेटा सादिक पशुओं का व्यापार करता था। सादिक का एक व्यापारी साथी सतलुज दरिया के पार से पशु खरीदकर दरिया के इस ओर सरकंडे के साथ बांध देता था। सरकंडे की निशानी पर सादिक पहुंचता और पशु लेकर बेच देता। पशु बेचने के बाद सादिक दूसरे व्यापारी को उसका हिस्सा अदा कर देता। एक बार सादिक के साथी व्यापारी ने दरिया के इस ओर सटे किनारे तक भंैस भेज दी। भैंस के नैंन नक्श सुंदर थे। दूध तो इतना था कि देखने वाला भी दंग रह जाता। दूसरे दिन सादिक ने व्यापारी के पास संदेश भेजा कि वह रात को भैंस लेने गया था। मगर वहां भैंस नहीं मिली। व्यापारी हैरान हो गया कि जब वह भैंस ठिकाने पर खुद बांधकर आया है तो सादिक कैसे कह रहा है कि वहां भैंस नहीं है ? व्यापारी चोर की तलाश में दरिया के इस ओर आ गया। चोर की तलाश करते-करते तीन दिन बीत गए। मगर चोर का पता नहीं चला। बात वली मुहम्मद तक पहुंची। सादिक को चौपाल में बुलाया गया। मगर सादिक ने वहां से भैंस नहीं लेकर आने की बात कही। इस बारे में दोनों ने सौगंध उठाई। अब झूठ से पर्दा उठाकर हकीकत को सामने लेकर आने के लिए वली मुहम्मद ने एक योजना बनाई। योजना मुताबिक उस सरकंडे को गवाह बनाया गया, जहां भैंस बांधी गई थी। वली मुहम्मद ने दोनों को उस सरकंडे से एक टहनी तोडक़र लाने को कहा, जहां व्यापारी भैंस बाधता था। सादिक और व्यापारी सरकंडे की टहनी के लिए चल पड़े। सादिक तो टहनी लेकर आ गया, लेकिन व्यापारी देरी से पहुंचा। उसके बाद वली मुहम्मद की ओर से सादिक और व्यापारी के पीछे हकीकत जानने के लिए भेजे गए व्यक्ति भी आ गए। उन्होंने बताया कि सादिक ने तो गांव के बाहर खड़े सरकंडे से टहनी तोड़ी है। जबकि व्यापारी ने उस स्थान पर मौजूद सरकंडे की टहनी तोड़ी है, जहां भैंस के पैरों के निशान आज भी हैं। सच्चाई कुछ हद तक सामने आ चुकी थी। इस दौरान वह व्यक्ति भी आ पहुंचा, जिसने भैंस खरीदी थी। उसने बताया कि भैंस बेचने वाला सादिक था। अब हकीकत सामने आ गई। वली मुहम्मद ने अपने फैसला सुनाया कि सादिक सजा के तौर पर भैंस का मूल्य व्यापारी को तीन दिन में अदा करेगा। साथ ही लाधुका और आसपास के गांवों में एक माह के बीच जितनी भी लड़कियों की शादी होगी। उसका खर्च सादिक उठाएगा। ऐसे न्याय की दास्तां सुनते हुए गांव लाधुका में बरसों गुजारने के बाद फाजिल्का की मास्टर कालोनी में बसे बाऊ राम कहते हैं कि कुत्तुबदीन और नजामदीन भी नयाय करते समय धर्म और परिवार को एक तरफ रखकर ही फैसला सुनाते थे।(LACHHMAN DOST FAZILKA)
Tales of village Ladhuka
Wali Muhammad Khan's blind eyes did not cheat in justice             
      His eyes had not seen anyone's face throughout his life, but still the eye could never be deceived in recognizing justice. There was blindness, but in the course of judgment, even if the son's statement was proved false then he would not be afraid to punish him. It was so fair, the son of Muhammad Ladhu Khan, Wali Muhammad Khan. Wali Muhammad Khan was the eldest of three brothers. His younger brother was Kutubdin Honorary Magistrate, and the youngest Najamuddin was famous in the vicinity in the name of Ijtat's Rakwala. Wali Muhammad Khan's eyesight was not from his childhood. But the iron of its power was the whole area. The people of far and wide were considered by the far-reaching of the justice of the family of landlord Ladhu Khan. When landlord Ladhu Khan died, the name of the village fell into a lonely person. There was no cleanliness in the nearby villages like the streets of Ladka, three kilometers away from Satluj Dariya. The open streets, the village was the pride of the village, the Chowpal, the well and the huge Haveli. The land of Mohammad Ladhu Khan's land was very big The village was bound by Kiddianwali. The land of Ladkha Khan's brother Lakkha Khan was not even less. The village was Lakkha Mussahib, Lakha Kadaian, Lakhe ke Hithad, Lakhe ke Utad, Lakkha village of real Muhammad Lakhna Khan. But most of his attention was on the side of his land and the son of Ladhu Khan, Muhammad Wali Khan, gave his attention to people to give justice to the people.
      The thing is around 1850. Wali Muhammad's son Sadiq used to do cattle trading. A businessman from Sadiq used to buy cattle from across Sutlej Dariya and bind them with the movement on the other side of the river. Sadiq reaches Saddi on the mark of Sarkanda and sells him with cattle. After selling the animals, Sadiq paid the other trader part of it. Once, Sadiq's fellow businessman sent a bhajan to the adjoining side of the river. The nyan map of buffalo was beautiful. The milk was so much that the viewer would also be stunned. On the second day, Sadiq sent a message to the trader that he went to take a buffalo at night. But there was no buffalo there. The trader was surprised that when the buffalo himself came on the shelter, how did Sadiq say that there is no buffalo there? The trader came to the side of the river in search of a thief. Three days passed by searching for a thief But the thief was not detected. The talk reached Wali Muhammad. Sadiq was called in the Chaupal But Sadiq said that there was no buffaloes coming from there. Both of them took the oath. Now Wali Muhammad made a plan to bring the reality from the lie and bring the reality forward. According to the plan, that gang was made witness, where buffalo was built. Wali Muhammad asked both of them to bring a twig in the shackles, where the buffer was in charge of the buffalo. Sadiq and traders move for the twig. Sadiq came with a twig, but the dealer arrived late. After that, the person sent by Wali Muhammad to know the reality behind Sadiq and the businessman also came. He told that Sadiq had broken his sword standing outside the village. Whereas the trader has broken the sprig of the public at that place, where there are still traces of buffalo feet. The truth had come to some extent. During this time the person also came, who buys buffalo. She told that buffalo selling was Sadiq. Now the reality has come out. Wali Muhammad has ruled that Sadiq will pay the trader for three days as a punishment for buffaloes. At the same time, between Ladies and the surrounding villages, the number of girls in the middle of a month will be married. His cost will be simple. After listening to the tales of such justice, after passing the years in Ladkuka, Bau Ram, who settled in the Master Colony of Phazilka, says that Kutubdin and Najamuddin used to pronounce decisions only by keeping religion and family together.

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Aug 7, 2018

बच्चों को बताए सफाई के मायने
गुरू नानक सिख कन्या पाठशाला में पौधारोपण भी किया
फाजिल्का, 7 अगस्त: स्वच्छ भारत अभियान के तहत आज गुरू नानक सिख कन्या पाठशाला में एक सैमीनार का आयोजन किया गया।
जिसमें बच्चों को स्वच्छता सबंधी जानकारी देते हुए अपने आसपास की सफाई, निजी सफाई, खुले में शोच मुक्त करने सबंधी और पॉलीथीन का प्रयोग न करने के बारे में जागरूक किया गया। इस मौके पर इस दौरान पी.एम.आई.डी.सी. नगर कौंसिल द्वारा कम्यूनिटी फैसिलिटेटर श्रीमती हरप्रीत कौर, मोटीवेटर चन्न सिंह और मनीश कुमार ने बच्चों से कहा कि सफाई न होने के कारण कई प्रकार की बीमारियां फैलती हैं, जिस कारण हमें अपने इलाके की सफाई में अपना अहम योगदान देना चाहिए। इस मौके पर स्कूल में प्रिंसिपल बलजीत कौर, सरकारी कन्या सीनियर सैकेंडरी स्कूल की पूर्व प्रिंसिपल प्रीतम कौर, डॉ. मोहन सिंह आदि ने सैमीनार में बच्चों को सफाई रखने के लिए प्रेरित किया। इस मौके पर स्कूल में पौधा रोपण भी किया गया।

Explanation of the meaning of cleanliness to children
Planted plantation in Guru Nanak Sikh kanya pathshala
Fazilka, August 7: A seminar was organized at Guru Nanak Sikh kanya pathshala, under the Swachh Bharat Abhiyan today. In which the children were made aware about cleanliness related to their surroundings, cleanliness, personal cleanliness, open-skelty, and not using polyethylene. During this time PMIDC Community Convener Mrs. Harpreet Kaur, Motivator Chan Singh and Manish Kumar told the city council that due to non-cleansing, many diseases spread, due to which we should make an important contribution in the cleaning of our locality. On this occasion, Principal Baljeet Kaur, former Principal of Government Girls Senior Secondary School, Pritam Kaur, Dr. Mohan Singh etc. encouraged the children to keep clean in the seminar. The plant was planted on this occasion.
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Aug 6, 2018

1867 को आस्तित्व में आई नगर कौंसिल फाजिल्का

नगर कौंसिल फाजिल्का की स्थापना ब्रिटिश साम्राज्य की ओर से पंजाब सरकार के नोटिफिकेशन नंबर 1034 के तहत 7 अगस्त 1867 को की गई। जिसका एक्ट 1873 को लागू किया गया। 10 दिसम्बर 1885 को फाजिल्का तहसील को सिरसा जिला से काटकर जिला फिरोजपुर से जोडा़ गया तो पंजाब सरकार ने अधिसूचना संख्या 486 के तहत पिछली अधिसूचना में संशोधित करके कौंसिल की सीमा निर्धारित कर दी। शहरी अधिसूचना नंबर 541 के तहत एक नवंबर 1905 को कौंसिल के नियमानुसार इसमें पुन: बदलाव किया गया। 03 जुलाई 1916 को अधिसूचना संख्या 415 के तहत अधिसूचना में संशोधन करके कौंसिल की सीमा पुन: निर्धारित की गई। 31 फरवरी 1938 को अधिसूचना में एक बार फिर संशोधन हुआ और सरकार के अधिसूचना नंबर 421-सी-38-6308 के तहत कौंसिल की सीमा निर्धारित की गई।
नगर कौंसिल की 1879-80 में 16190 रूपये, 1880-81 में 16972 रूपये, 1881-82 में 16404 रूपये, 1882-83 में आय 19696 रूपये थी, जिसमें 484 रूपये व्यय किए गए थे। 1882-83 के अंत में 27129 रूपये नगर कौंसिल के पास थे। इस दौरान कौंसिल ने शहर में चौड़ी सडक़े (अधिक लंबी नहीं) बनवाई और मवेशियों के लिए चराई मैदान बनवाया गया। इसके अलावा शहर कुछ रास्ते पेड़ों के साथ बनाए गए। पंजाब नगर कौंसिल एक्ट 111-1911 अंडर सेक्शन 188 (एच) कानून के तहत फाजिल्का में घोड़े की लीद व अन्य हानिकारक भोजन पर मवेशियों पंजाब की धारा 148 नगर संहिता के तहत जुर्माना किया जाता था। तब पशुओं के लिए लाइसेंस बनाए जाते थे। जो हर साल 31 मार्च को समाप्त करके नया लाइसेंस बनाया जाता। अगर कोई व्यक्ति नियमों की अवहेलना करता तो उसका लाइसेंस रद्द कर दिया जाता। अगर कोई व्यक्ति पशु को गलियों में छोड़ देता तो उसे नगर कौंसिल में बंद (जिसे फाटक कहते थे) कर दिया जाता।
नगर कौंसिल के सदस्यों की घोषणा पहली बार 12 अगस्त 1893 को की गई। जिसमें देवी दित्ता मल को अध्यक्ष बनाया गया, जबकि हजूर सिंह को उपाध्यक्ष और हीरा लाल हैडमास्टर, लाला चौथ मल साहिब, लाला आईदान साहिब और लाला मलूक चंद साहिब को पार्षद बनाया गया। इसके बाद ब्रिटिश सरकार की ओर से नगर कौंसिल के चुनाव करवाने के लिए 3 दिसंबर 1895 को ब्रिटिश अधिकारी बेटसन हग एस.पी. राय को फाजिल्का के लिए चुनाव एसोसिएट का सदस्य मनोनित किया गया। नगर कौंसिल में 1903 में सेठ मदन गोपाल सीनीयर उपप्रधान बने और 1909 में राय साहेब तिलोक चंद नगर कौंसिल का प्रधान बनाया गया। नगर कौंसिल में 1919 में सरकार के नियमानुसार किशोर चंद पेड़ीवाल को उपाध्यक्ष बनाया गया। ब्रिटिश नियम मुताबिक एस.डी.एम. राय साहेब तिलोक चंद अध्यक्ष का कार्य भी संभालते थे। वर्ष 1925 अध्यक्ष एसडीएम एल.एस.बल्ल थे और वोटरों की ओर से चयनित राय साहिब बूल चंद आहूजा को कौंसिल का उपाध्यक्ष बनाया गया। सेठ श्योपत राय पेड़ीवाल 1928 से 1931 और 1931 से 1939 तक नगर कौंसिल के अध्यक्ष रहे। उस समय मुहम्मद अब्दुल करीम और लाला करम चंद उपप्रधान थे। जबकि सेठ जस राज, मुहम्मद करमदीन, लाला मुकंद लाल और लाला राम चंद पार्षद थे। 1939 में चयनित अध्यक्ष राय साहिब मुकंद लाल भारत विभाजन तक विराजमान रहे।    
भारत विभाजन के बाद फाजिल्का में 12 वार्ड बनाए गए। नगर कौंसिल चुनाव हुये तो अध्यक्ष पद के लिये सेठ मुंंशी राम गिल्होत्रा और सेठ लक्ष्मी नारायण पेडीवाल उम्मीदवार थे। पार्षदों की वोटिंग हुई तो दोनों उम्मीदवारो को 6-6 वोट मिले। फिर टॉस करके  सेठ मुंशी राम गिल्होत्रा को अध्यक्ष बनाया गया। वर्ष 1952 अध्यक्ष लाजपत राय मल्होत्रा को अध्यक्ष चुना गया और 1955 में अमर सिंह कल्याण कौंसिल अध्यक्ष बने तो शहर में स्ट्रीट लाईट आई। जिसकी आपूर्ति पंजाब राज्य बिजली बोर्ड की निजी फर्म हरभगवान नंदा एंड कंपनी द्वारा की गई। शहर में प्रकाश व्यवस्था के लिए सडक़ क्षेत्र के भीतर नगर कौंसिल ने 340 ट्यूब और 455 बल्ब स्थापित किए गए। इसके अलावा प्रताप बाग में लाइब्रेरी स्थापित की गई। 1960 में अध्यक्ष लक्ष्मी नारायण पेड़ीवाल को बनाया गया। फिर शहर में जल आपूर्ति की गई और जल सप्लाई 1965 में अध्यक्ष डॉ. हरबख्श लाल वधवा के नेतृत्व में शुरू हुई। दो ट्यूबवेलों के लिए कुओं के साथ एक जलाशय स्थापित किया गया और शहरवासियों को पीने का पानी उपल्ब्ध हुआ। उस समय ही सीवरेज व्यवस्था का भी प्रबंध किया गया। शहर की सफाई को सुचारू रूप से रखने के लिए 135 सफाई सेवक नियुक्त किये गए। इसके बाद वर्ष 1970 में अध्यक्ष अमरनाथ बांसल बने। वर्ष 1972 में कश्मीरी लाल कटारिया को अध्यक्ष बनाया गया। तब यहां दमकल विभाग को गाड़ी दी गई। वर्ष 1978 में अध्यक्ष किशोर चंद भठेजा, वर्ष 1985 में अध्यक्ष सेठ लक्ष्मी नारायण पेड़ीवाल, वर्ष 1992 में अध्यक्ष केवल कृष्ण कामरा को अध्यक्ष बनाया गया। जिन्होंने कब्जे वाली 450 एकड़ भूमि छुड़वाई। इसके बाद वर्ष 1998 में अध्यक्ष बजरंग लाल गुप्ता, वर्ष 2001 में अध्यक्ष महिन्द्र प्रताप धींगड़ा, वर्ष 2003 में अध्यक्ष हरी चंद कम्बोज और वर्ष 2008 में शहर के युवा पार्षद अनिल सेठी को अध्यक्ष बनाया गया। अब शहर विकास की बुलंदियों को छू रहा है। (Lachhman Dost Fazilka)
In 1867, the Municipal Council of Fazilka
 Municipal Council Fazilka was set up on 7 August 1867 by the British Empire under the Notification No. 1034 of the Punjab Government. Whose act was enacted in 1873. On December 10, 1885, Fazilka tahsil was cut from Sirsa district and connected to the district Firozpur, the Punjab Government fixed the limits of the council by amending the previous notification under Notification Number 486. According to the Council rules on November 1, 1905, under Urban Notification No. 541, it was changed again. The council's limit was revised by amending the notification under notification no. 415 on 03 July 1916. On February 31, 1938, the notification was amended once again and the council's limit was fixed under the notification No. 421-C-38-6308 of the Government.
16190 in Town Council of 1879-80, Rs 16972 in 1880-81, Rs 16404 in 1881-82, Rs 18,868 in 1882-83, in which Rs 484 was spent. At the end of 1882-83, the town council had Rs 27129. During this time, the council constructed a wide road (not long enough) in the city and grazing ground for cattle. Apart from this, the city was made some way along the trees. Under the Punjab Town Council Act 111-1911 under section 188 (h) of law, fines were imposed under section 148 Municipal Code of cattle on horseback and other harmful food. Then the licenses were made for animals. Which will be completed every year on March 31, the new license was made. If a person disregards the rules, then his license can be canceled. If a person leaves the animal in the streets, he would be locked in the city council (which was called the gate).
The announcement of members of the town council was first made on 12 August 1893. In which Goddess Ditta Mal was made president, while Hazoor Singh was made vice-president and Hira Lal Headmaster, Lala Chauth Mal Sahib, Lala eyedan Sahib and Lala Maluk Chand Sahib as councilor. After this, on December 3, 1895, the British official, Bethen Hug, S.P., to conduct the election of the city council on behalf of the British Government. Rai was nominated a member of the election associate for Fazilka. In 1903, Seth Madan Gopal became the Senior Deputy Prime Minister and in 1909 Rai Saheb became head of Tilok Chand Nagar Council. According to the rules of government in the city council in 1919, Kishor Chand Pediwal was made vice-president. According to British rules, SDM Rai Saheb Tilok Chand also used to handle the President's work. The year 1925 President SDM LS Ball was elected and elected by the voters, Rai Sahib Baul Chand Ahuja was made the Vice-President of the Council. Seth Shayopat Rai Pediwal was the president of the city council from 1928 to 1931 and from 1931 to 1939. At that time, Muhammad Abdul Karim and Lala Karam Chand were Vice Presidents. While Seth Jas Raj, Muhammad Karamdin, Lala Mukand Lal and Lala Ram Chand Parshad were. In 1939, elected president Rai Sahib remained in the Mukand Lal Bharat division.
After partition of India, 12 wards were made in Phazilka. When the municipal council elections were held, Seth Munshi Ram Gilhotra and Seth Laxmi Narayan Pediwal were the candidates for the post of the President. When the councilors voted, the two candidates got 6-6 votes. Then tossed Seth Munshi Ram Gilhotra as president. In the year 1952 president Lajpat Rai Malhotra was elected president and in 1955 Amar Singh became the president of the Kalyan council and in the city street light came. Which was supplied by Harbhavwan Nanda & Company, a private firm of Punjab State Electricity Board. Within the road area for city lighting, 340 tubes and 455 bulbs were set up by the city council. In addition, the library was established in Pratap Bagh. In 1960, Chairman Laxmi Narayan Petiwal was created. Water was supplied in the city and water supply started in 1965 under the leadership of Dr. Harbakhsh Lal Wadhwa. A reservoir was established with two wells for wells and drinking water was available to the residents. At that time the sewerage system was also arranged. To maintain the cleanliness of the city, 135 sanitary workers were appointed. After this, in the year 1970, Chairman Amarnath Bansal became. Kashmiri Lal Kataria was made the President in the year 1972. Then the fire department was parked there. In year 1978, Chairman Kishore Chand Bhateja, in 1985, Chairman Seth Laxmi Narayan Padiwal, Chairman, in year 1992, Krishna Kamra was appointed as President. Who rescued the occupied 450 acres of land. After this, Bajrang Lal Gupta, Chairman, in year 1998, Chairman, Mahindra Pratap Dhingra, in 2001, Chairman Hari Chand Kambos in 2003 and the year's young councilor Anil Sethi was appointed as the Chairman. Now the city is touching the developmental forces.

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Aug 5, 2018

Retreat Ceremony - Sadqi Border Fazilka

Retreat Ceremony - Sadqi Border Fazilka 
भारत पाकिस्तान के बीच एक रेखा -
इस के इंडिया की तरफ सादकी पोस्ट तो पाकिस्तान की तरफ सुलेमान की पोस्ट -
दोनों देशों के बीच रोज़ाना शाम के समय रिट्रीट सेरेमनी होती है - जिसे देखने के लिए भारी संख्या में दर्शक पहुँचते हैं - १४ और १५ अगस्त को तो एक अलग ही नज़ारा होता है

A line between India-Pakistan - Sadqi Post on India's side - Suleimankee post on Pakistan -
Retreat Ceremonies are held between the two countries in the evening - a large number of visitors reach - 14 and 15 August So have a different view.
(LACHHMAN DOST  FAZILKA)
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Aug 4, 2018

नौजवान समाजसेवा संस्था ने रोपित किए पौधे
फाजिल्का, 4 अगस्त:
नौजवान समाज सेवा संस्था की ओर से बादल कालोनी में पौधारोपन समारोह का आयोजन किया गया। जिसमें एस.डी.एम. सुभाष खटक बतौर मुख्यातिथि के रूप में पहुंचे। पौधा रोपित करके पौधारोपण अभियान की शुरूआत करते हुए एस.डी.एम. ने कहा कि वातावरण को स्वच्छ रखने के लिए पौधे रोपित करना हर व्यक्ति की जिम्मेदारी बन गई है। इसलिए हर व्यक्ति को कम से कम दो पौधे जरूर रोपित करने चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर अब वातावरण की संभाल नहीं की गई तो भविष्य में हमारे लिए खतरा बन जाएगा। उन्होंने कहा कि पौधा रोपित करने के बाद उसकी संभाल भी बहुत जरूरी है। संस्था के जिला सचिव रमेश पचेरवाल ने कहा कि संस्था द्वारा वहां पौधे रोपित किए जा रहे हैं, जहां उनकी संभाल हो सके। संस्था के संस्थापक लवली वाल्मीकि व जिलाध्यक्ष शगन बसेटिया ने मेहमानों का आभार जताया और उन्हें सम्मानित किया। इस मौके विकास परवाना, सुभाष, सुरेन्द्र गिल, नरेश कुमार, नटवर सारवान, नारायण महंत, शंकर, मुकेश रेवाडिय़ा, संजय कुमार, रंजन बागड़ी, सन्नी सरोवा, मंगू, अश्वनी खटीक, विकास खटीक, कर्ण खटीक, जसराज खटीक, अभिषेक, राकेश, मोनू बागड़ी, चेतन खटीक, राज कुमार खटीक, बंटी वाल्मीकि, साजन आहूजा, विजय शर्मा, मनोज गांधी और टार्जन आदि मौजूद थे।

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