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Aug 31, 2018

Akbar Ali Pir became the first MLA in Fazilka

फाजिल्का में पहले विधायक बने अकबर अली पीर

2nd MLA in Fazilka Mia Bagh Ali sukhera special Envoy of the Viceroy of India visits sukhera family to Congratulate on the Glorious victory in the Elections(1945)...with A.C macleod commissioner of Jalandhar Divsion and Mia Bagh Ali Sukhera MLA in Fazilka and lives in sukhera Basti Abohar..(photo Courtesy :- Abohar Digital Museum History and memory)
भारत विभाजन से पूर्व फाजिल्का क्षेत्र में मुस्लिम अधिक संख्या में थे। 1941 की जनगणना के मुताबिक फाजिल्का तहसील में 75.12 प्रतिशत मुस्लिम थे। मुस्लिम बहुसंख्या में होने के कारण विभाजन से पूर्व यहां मुसलमान ही विधायक बने हैं।
Bagh Ali Sukhera with his faimly
पंजाब विधानसभा के चुनाव 1937 में हुए तो फाजिल्का मुहम्मदन रूरल सीट से अकबर अली पीर ने जीत हासिल की। उन्हें 38.11 प्रतिशत मत मिले। वह 5 अप्रैल 1937 से 19 मार्च 1945 तक पंजाब विधानसभा सदस्य रहे। दूसरे विधानसभा चुनाव 1946 में हुए तो मिया बाग अली सुखेरा विधायक बने। उन्हें 61.9 प्रतिशत मत मिले और वह 21 मार्च 1946 से 4 जुलाई 1947 तक विधायक रहे।
इसके बाद जब भारत विभाजन हुआ तो फाजिल्का के प्रथम विधायक चौधरी वधावा राम बने।
Ch. Wadhawa Ram

Akbar Ali Pir became the first MLA in Fazilka
Before partition of India, there were more Muslims in the area of Fazilka. According to the census of 1941, there were 75.12 percent Muslims in Tahsil of Fazilka. Due to the Muslim majority, Muslims have been the only legislators before partition. In the elections of Punjab assembly in 1937, Akbar Ali Pir won from Fazilka Muhammadan Rural seat. They got 38.11 percent of the votes. He was a Punjab Assembly member from 5th April 1937 to 19th March 1945. In the second assembly elections held in 1946, Mia Bagh Ali Sukhera became the MLA. He got 61.9 percent of the votes and he was a legislator from 21 March 1946 to 4 July 1947. After this, when India was partitioned, Fazilka's first legislator Chaudhary Wadhwa Ram,
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Aug 29, 2018

"Fazilka Heritage" Raghuwar Bhawan

फाजिलका की सबसे पुरानी इमारत                           
ब्रिटिश भवन निर्माण कला का अद्भुत नमूना रघुवर भवन

    फाजिल्का की ऐतिहासिक इमारत रघुवर भवन ब्रिटिश भवन निर्माण और वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। इसकी वास्तुशैली भारतीय, मुगलकालीन एवं ब्रिटिश वास्तुकला के घटकों का अनोखा संगम है। रघुवर भवन के उत्तर दिशा की और शहर की अंतिम छोर में स्थित मौहल्ला नईं आबादी इस्लामाबाद में स्थित है।
कारीगरों की हस्तकला की खूबसूरती को देखकर एक बारगी तो 21वीं सदी के भवन निर्माण कला माहिर भी दाद देते हैं। आलोकिक सुंदरता से भरपूर भवन की शोभा एक अचंभा है। बंगले के निर्माण के बाद निर्मित इस भवन की तर्ज पर आज की ग्रीन बिल्डिंगस तैयार की जा रही हैं। भवन के उत्तर दिशा की ओर मुख्यद्वार है।
आर्च कंट्रक्शन से सजे द्वार के ऊपर ओम रघुवर भवन लिखा गया है। इसके नीचे ठेकद्वार अंकित है। मुख्यद्वार के ऊपर हिन्दू देवता शिवजी का प्रतीक नाग अंकित किया गया है। जो हिन्दु वास्तुकला के घटकों का एकीकृत संयोजन है। यह हिन्दू मन्दिरों में भी पाया जाता है। मुख्यद्वार पर ही विजय और हर्ष का प्रतीक गुलाबी रंग के दो स्तंभ मुगलशैली की वास्तुकला को दिखाते हैं। सतम्भों पर बाहर से नजर आने वाली कलाकृति
मुगलकालीन भवन निर्माण कला और ब्रिटिश भवन निमार्ण कला के सुमेल को बड़े ही सुंदर रूप से दर्शाते हैं। इसके प्रवेशद्वार की एक मुख्य विशेषता यह है कि इसके स्तम्भों पर फूल और पत्तियां तराशी गई हैं। इसे तराशने वालों ने इतनी कुशलता से तराशा है कि मन प्रसन्न हो उठता है। भवन अपने आप में एक ऊंचे मंच पर बनाया गया है। इसकी नींव के प्रत्येक कोने से उठने वाली दीवारें भवन को पर्याप्त संतुलन देती हैं। गलियारे में दक्षिण की ओर शयन कक्ष है। शयन कक्ष के दाएं और बाएं के दो छोटे कमरे हैं। जिनके द्वार पूर्व और पश्चिम की तरफ खुलते है। भवन के केन्द्र में खुला हाल बनाया गया है। जहां सर्दी के मौसम से बचने के लिए चिमनी बनाई गई है। जहांं बैठकर आग का लुत्फ उठाया जाता है। चिमनी को इस ढ़ंग से बनाया गया है कि आग का धंूआ चिमनी के जरिए बाहर चला जाता है।
ब्रिटिश काल की तर्ज पर निर्मित इमारतों में ऐसी चिमनी मिल जाती है। उसके दोनो ओर दो कमरे हैं। जिनमें हाल से गेट द्वारा अंदर जाया जा सकता है। कमरे दिल्ली के लाल किले में निर्मित दीवाने-आम और दीवाने-खास की यादों को ताजा करते हैं। भवन के पीछे दक्षिण की तरफ  तीन कमरे हैं। जिनका दरवाजा दक्षिण की तरफ है। कमरों की खासियत यह है कि सभी कमरों को गेट के द्वारा मुख्य हाल से जोड़ा गया है। इनके बीचो-बीच घुमावदार 22 सीढीयां बनाई गई हैं।

जिससे कमरों की छत्त पर पहुंचा जा सकता है। कमरों की छत्त द्वारा मुख्य हाल की छत्त पर चढऩे के लिए फिर आठ सीढ़ीयां बनाई गई हैं। जिनसे मुख्य हाल की छत्त पर पहुंचा जा सकता है। मुख्य हाल के ऊपर चार गुम्बद सुशोभित हैं। इसका शिखर एक उलटे रखे कमल से अलंकृत है। यह गुम्बद के किनारों को शिखर पर सम्मिलन देता है। भवन के चारों ओर छोटे गुम्बदों की सख्या दस है। छोटे गुम्बद, मुख्य गुम्बद के आकार की प्रतिलिपियाँ ही हैं, केवल नाप का फर्क है। छत्त पर चढक़र चारों ओर नजर दौडाऩे से बाधा झील के हरे भरे वृक्ष, बंगला, गोल कोठी, ओलिवर गार्डन, रेलवे स्टेशन और शहर की अन्य इमारतों की शोभा को निहारा जाता है। कला के अद्भुत नमूने रघुवर भवन का भीतरी वातावरण हर मौसम में रहने के लायक बनाया गया है। उत्तर दिशा की तरफ मुख्यद्वार का निर्माण इस तरह किया गया है कि पूरा दिन भवन के हर हिस्से में रोशनी और हवा का तालमेल बना रहे। सर्दी के मौसम में भवन के गलियारे तक सूर्य की किरणें पहंचती हैं। भवन की मोटी दीवारों में 18 इंच और 36 इंच की ईंटों का प्रयोग किया गया है। दीवारों की चिनाई पक्की ईंटों, चूना और सूर्खी की गई है।
भवन निर्माण में बाखूबी दिखाने वाले कारीगरों ने भवन में ईंटों की चिनाई इंग्लिश और फलेमिश जोड़ से की है। भवन में गर्मी के मौसम दौरान ठंड और सर्दी के मौसम में गर्मी का अहसास होता हैे। भवन के कमरों में प्रकाश के लिए चारों दिशायों में रोशनदान लगाये गये हैं।
भारत-पाक विभाजन से पूर्व अंदाजन 20 एकड़ भूमि के विशाल आंगन में फैले इस भवन के चारों और बाग-बगीचा थे, जो भवन को आनंदमय बना देते थे। बाग के फूलों की महक, अनार, आम, अमरूद और मालटा की मिठास तथा हरियाली से वातावरण ही आन्नदमय होता था। रिमझिम बारिश के मौसम दौरान जब बागों में मोर नाचता तो मदमस्त मौसम का नजारा स्वर्ग बन जाता। कोयल की सुरीली आवाज और चिडिय़ों का चहचहाना कानों मेंं मीठे संगीत का अहसास दिलाते थे।
भवन के विशाल प्रांगण में फैले बाग के बीच दो कूएं थे। जिन्हें टिण्डा वाला कुआं के रूप में जाना जाता था। सेठ मुन्शी राम अग्रवाल का परिवार जब फाजिल्का में व्यापार के लिए

आया तो उन्होंने यहां भूमि खरीद की। जिसमें रघुवर भवन की इमारत बनी हुई थी। रघुवर भवन की इमारत सबसे पुरानी ऐतिहासिक इमारत है।
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इस इमारत को विरासती दर्ज़ा दिलाने के लिए आंदोलन किया तब इसे पंजाब सरकार की तरफ से इस इमारत को विरासती दर्जा दिया गया,
   लेकिन किसी ने इस की सुध नहीं ली. जिस कारण यह इमारत अब खँडहर का रूप धारण कर गई है - LACHHMAN DOST FAZILKA-
Fazilka's oldest building
Wonderful Sample of British Art Building Art Raghuvar Bhavan
    Fazilka's historic building Raghuvar Bhawan is an excellent example of British building construction and architecture. Its architecture is a unique combination of components of Indian, Mughal and British architecture. Located in the northern direction of Raghuvar Bhawan and located at the end of the city, Mohalla New Population is located in Islamabad. Seeing the beauty of craftsmanship of artisans, once the 21st century building art masters also appreciate The splendor of the magnificent building is a marvel of beauty. Today's Green Buildings is being prepared on the lines of this building built after the construction of the bungalow. On the north side of the building is the main gate. Om Raghuvar Bhawan has been written on top of the door with arch conventions. Below it is the contract door. On the main gate, the symbol of the Hindu God Shiva is mentioned. Which is an integrated combination of components of Hindu architecture. It is also found in Hindu temples. Two columns of pink color symbolizing Vijay and Harsh on the main gate show Mughal style architecture. The artwork seen from the outside of the columns is very beautiful in the context of Mughal-e-Ghumalikan building art and British building construction art. One of the main features of its entrance is that flowers and leaves have been sculpted on its pillars. Those who carve it, are so efficiently groomed that the mind is pleased. The building itself is built on a high platform. The walls rising from every corner of its foundation give enough balance to the building. There is a bedroom on the south side of the corridor. There are two small rooms in the left and right of the bedroom. Whose doors open towards East and West. An open hall has been built in the center of the building. Where the chimney has been built to escape the winter season. Where the fire is enjoyed and sitting. The chimney has been made in such a way that the fog of fire goes out through the fireplace. Such chimneys are found in buildings built on the lines of the British era. There are two rooms on both sides. Which can be easily entered by the gate. Rooms revive the memories of the junkies-mango and junk-specials built in Delhi's Red Fort. Behind the building there are three rooms on the south side. Whose door is south. The feature of the rooms is that all the rooms have been connected to the main hall by the gate. The 22 stairs have been made between them. The room can be reached on the roof. Then eight stairs have been made for the roof of the rooms to climb the main hall. Which can be reached on the main hall. Upon the main hall, four domes are decorated. Its peak is embellished with an inverted lotus. It gives insertion to the edges of the dome on the summit. The number of small domes around the building is ten. Small dome is the main dome-shaped copies, only the difference is the difference. Surrounding on the roof, overlooking the green trees of the lake, the bungalow, the round kothi, the Oliver Garden, the railway station and the other buildings of the city are hampered. The amazing atmosphere of art has been made to live in the atmosphere of Raghuvar Bhawan. The main gate is constructed on the north side in such a way that the lighting and air co-ordination in every part of the building is maintained throughout the day. In the winter season, the sun rays reach the corridor of the building. The 18-inch and 36-inch bricks have been used in the thick walls of the building. Masonry of the walls has been fixed bricks, lime and spell. Artisans showing the building in the building have made bricks of masonry in the building with English and Flemish Junk. During the summer season, there is a feeling of heat during the cold and winter seasons. Roses have been installed in the four directions for lighting in the rooms of the building. Spread over an estimated 20 acres of land before the Indo-Pak partition, there were four or more garden gardens of this building, which made the building joyous. The sweetness of the flowers of the garden, pomegranate, mango, guava and malta and greenery were the only environments. During the rainy season, when the peacocks danced in the gardens, the sight of a seasoned weather would become a paradise. Coil's melodious voice and birds of birds used to give a sense of sweet music to the ears. There were two wells between the garden spread over the vast courtyard of the building. Who was known as tinda wells. When the family of Seth Munshi Ram Agrawal came to business in Fazilka, he purchased land here. In which the building of Raghuvar Bhavan was built. The building of Raghuvar Bhawan is the oldest historical building.
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When the movement was organized to give a legacy to this building, then it was given a legacy status by the Punjab government, but no one has appreciated this. Because of which this building has now become the shape of Khandhar
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Aug 28, 2018

"Fazilka Heritage" Gol Kothi

"Fazilka Heritage" 
ब्रिटिश साम्राज्य का मनोरंजन कक्ष
आर्च कंट्रक्शन की मनमोहक कला की पेशकश गोल कोठी


    फाजिल्का के उत्तर दिशा में बाधा झील के किनारे ब्रिटिश अधिकारी पैट्रिक वंस एगन्यू की ओर से निर्मित बंगला और ओलिवर की ओर से विकसित किए गए ओलिवर गार्डन के नजदीक शताब्दी पूर्व निर्मित किया गया रिक्रीऐशन कल्ब ब्रिटिश वास्तुशैली का उत्कृष्ट पेशकश है। कारीगरों की हस्तकला से सजी सवरी कल्ब की ऐतिहासिक इमारत अपनी श्रेष्ठता में सौन्दर्य के संयोजन का परिचय देती है। रिक्रीऐशन कल्ब ब्रिटिश साम्राज्य में 1913 ई. में अस्तित्व में आई थी। इसका वास्तविक नाम दि बोस्वर्थ समिथ रिक्रीएशन कल्ब है। ब्रिटिश अधिकारयिों ने बंगला में पहुंचने वाले प्रत्येक नेता और अधिकारी के मनोरंजन के लिए इस इमारत का निर्माण करवाया था। इमारत छहभुज नीव आधार पर बनाई गई है। जो खुद में एक एक ऊंचे मंच पर बनाई होने की झलक देती है। जिसकी नींव प्रत्येक कोने से उठने वाली आर्चद्वार और दीवारें इमारत को पर्याप्त संतूलन देती हैं। इस गोलाकार इमारत को मोटी दीवारों से बनाया गया है। जिन पर पक्की ईंटे लगाकर चूना व सुरखी से चिना गया है। कल्ब की इमारत महलनुमा और गोलाकार होने के कारण इसे गोल कोठी के रूप में अधिक जाना जाता है। इमारत के उत्तर से दक्षिण दिशाओं तक आर्च कन्ट्रक्शन शैली में प्रवेशद्वार बनाए गए हैं। जिनकी संख्या 18 है। विजय और हर्ष का प्रतीक स्तम्भों को गुलाबी रंग दिया गया है। प्रत्येक फलक में आर्च कंट्रक्शन से निर्मित द्वारों के आगे तीन सीढिय़ां बनाई गई हैं। जहां से कल्ब के गलियारे में प्रवेश होता है। मुख्यद्वार के साथ लगते द्वारों में समानता है। इनमें फर्क सिर्फ यह है कि बाकी द्वार मुख्यद्वार से छोटे हैं। किसी भी द्वार से इमारत के गलियारे में पहुंचा जा सकता है। गलियारे में पैदल पथ बनाया गया है। जहां से इमारत के उत्तर से दक्षिण तक घूमा जा सकता है। गलियारे की खास विशेषता यह है कि गलियारे में सर्दी के मौसम दौरान धूप और गर्मी के मौसम में ठंडी छांव का लुत्फ उठाया जाता है।
केन्द्र में छहभुज कक्ष का निर्माण किया गया है। जिसके उत्तर और पूर्व दिशा की ओर दो द्वार बनाए गए हैं। केन्द्र कक्ष में हवा और रोशनी का तालमेल बिठाने के लिए रोशनदान और जालीदार खिड़कियां सजित हैं। केन्द्र कक्ष में पश्चिम की ओर एक जालीदार द्वार है। जहां से साथ लगते दो छोटे कक्षों में प्रवेश होता है। एक छोटे कक्ष में प्रवेश करने के लिए गलियारे के उत्तर दिशा की ओर भी द्वार बनाया गया और दूसरे छोटे कक्ष के प्रवेश के लिए केन्द्र कक्ष का जालीदार द्वार और दक्षिण दिशा में द्वार हैं। इनका एक-एक द्वार पश्चिम की ओर भी खुलता है। इनके साथ 16 घुमावदार सीढिय़ां है। जिनके जरिए इमारत की छत्त पर पहुंचा जा सकता है। गलियारे की छत्त पर आठ गुम्बद सजित हैं और केन्द्र कक्ष की छत्त पर छह गुम्बद हैं। जिन्हें कमल के फूल में सजाया गया है। जो मुगलकालीन, हिन्दु और ब्रिटिशशैली के घटकों का एकीकृत संयोजन है। छत्त से पूर्व, उत्तर और पश्चिम की ओर हरियाली नजर आती है। हरियाली को चीरती हुई नजर बंगला पर पहुंचती है तो दक्षिण की ओर रेलवे स्टेशन की झलक पड़ती है। (Lachhman Dost Fazilka)
"Fazilka Heritage" 
Entertainment Room of the British Empire
    Recreation club, built before the Oliver Garden, developed by the British officer Patrick Vans Agnew, on the side of the badha lake, north of Fazilka, was developed by Bungalow and Oliver, which is an excellent offering of British architecture. The historic building of the Saviar Kalb, decorated with handicrafts of artisans, introduces the combination of beauty in its superiority. The Recreation Club came into existence in the British Empire in 1913 AD. Its real name is The Bosworth Samith Recreation Club. The British officers had constructed this building to entertain every leader and officer who arrived in Bangla. The building is built on the base of the six-footed foundation. Which gives itself a glimpse of one being built on a high platform. The foundation of which is that the archways and walls rising from each corner give sufficient amenability to the building. This spherical building is made of thick walls. Which have been crafted with lime and snake with fixed bricks. Due to being a palanquin and spherical building, it is known more as a round kothi. Gateways in the arch contraction style have been made from north to south direction of the building. Those numbers are 18. The symbols of Vijay and Harsh are given pink color. Three straps have been made in front of the doors made of arch concrete in each panel. From where the castle enters the corridor. There are similarities in the doors leading to the main gate. The only difference is that the rest of the doors are smaller than the gateway. Any door can be reached in the corridor of the building. A pedestrian path has been built in the corridor. From where the building can travel from north to south. The special feature of the corridor is that the cold shade is enjoyed in the corridor during the winter season during the sun and summer. The cuboid chamber has been built at the center. Two gates have been made towards north and east direction. To adjust the air and light in the center room, the skylight and reticular windows are decorated. In the center room there is a forged gate towards the west. From where the two small chambers are joined with. To enter a small chamber, the gate was also made towards the north side of the corridor and for the entrance of the second small chamber, the entrance to the central chamber and the gate in the south direction. Each one of them opens to the west side too. There are 16 curved stairs with them. Through which the roof of the building can be reached. There are eight domes on the roof of the corridor and six domes on the roof of the center room. Those who have been decorated in lotus flowers. Which is an integrated combination of components of Mughal period, Hindu and British style. Before Chhatta, there is greenery towards north and west. If the sight of the greening rider arrives at the bungalow, then there is a glimpse of the railway station towards the south.

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Aug 27, 2018

Mubark begam Singer

एक शाम शहीदों के नाम प्रोग्राम देने फाजिल्का आई थी सिंगर मुबारक बेगम 

कभी तनहाइयों में
हमारी याद आएगी
अंधेरे छा रहे होंगे
के बिजली कौंध जाएगी
कभी तनहाइयों में यूँ...
ये गीत 6० के दशक का मशहूर गीत है- जिसे गायका मुबारक बेगम ने आवाज़ दी थी - जो फाजिल्का में आई थी - उन्होंने फाजिल्का के घंटा घर पर प्रोग्राम पेश किया था  - बात 66 से  73 के बीच की है - Lachhman Dost Fazilka

kabhi tanhayion me
hamaari yaad aaye gee
ye geet 60 ke dashak kaa parsidh song hai- jo singer Mubark Begam ne gaya tha- yahi geet isi singer ne Fazilka ke Clock Tower per gayaa tha - 
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Aug 25, 2018

रक्षा बंधन - बहनों ने सजाई फौजी भाईओं की कलाई 
जिन की बदौलत हम चैन से सोते हैं, उन जवानों की कलाई पर आज बहनों ने राखी सजाई
भाई बहन के पवित्र रिश्ते को दर्शाता रक्षा बंधन का त्यौहार। इस त्यौहार में हर भाई को अपनी बहन का इंतजार रहता है और बहने भी भाईयों से मिलने उनके पास पहुंचती हैं। 

 मगर जो भाई सरहदों की रक्षा में दिन रात जुटे रहते हैं, उनकी कलाई खाली न रह जाए,
Lachhman Dost - Krishan Taneja
  इसलिए बहुत सी बहनों ने भारत पाक सरहद की सादकी पोस्ट पर पहुंचकर सीमा सुरक्षा बल के जवानों की कलाई सजाई।

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Aug 21, 2018

सिर्फ सादकी बॉर्डर पर ही है पेड़ों पर चित्रकारी

फाजिल्का, 21 अगस्त: भारत पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय सरहद के सादकी बॉर्डर पर रंगला बंगला फाजिल्का वैलफेयर सोसायटी की तरफ से पेड़ों पर कलाकारी करके देश प्रेम की अनूठी मिसाल पैदा की गई है। जो वास्तव में ही सराहनीय है। पेड़ों पर कलम के जादू से मनमोहक पेंटिंग करने वाले कलाकारों ने जहां अपनी कला के जरिए देश प्रेम की भावना को उजागर किया है, वहीं उनका वातावरण प्रेम भी अलग ही अंदाज प्रदर्शित किया गया है।
यह शब्द सीमा सुरक्षा बल के सैक्टर कमांडैंट रतन लाल बगडिय़ा ने सादकी बॉर्डर पर स्थित पेड़ों पर की गई आकर्षित कलाकारी को जनता के हवाले करते हुए कहे। उन्होंने सोसायटी के इस कार्य की भरपूर सराहना करते हुए कहा कि पेड़ों पर ऐसी सुंदर चित्रकारी पंजाब के किसी अन्य बॉर्डर के पेड़ों पर नहीं है। जिस कारण सादकी बॉर्डर दर्शकों को अधिक आकर्षित कर रही है। 
इस मौके पर सीमा सुरक्षा बल के द्वितीय कमान अधिकारी आर.एस. बोहरा, डिप्टी कमांडैंट सतीश दहिया, राहुल सिंह सहायक कमांडैंट, असिस्टैंट कमांडैंट राजेश रंजन ठाकुर, सब इंस्पैक्टर अशीश कुमावत, सब इंस्पैक्टर अभय सैणी और समाजसेवी लीलाधर शर्मा आदि मौजूद थे। इन पेड़ों पर लछमण दोस्त, उनकी धर्मपत्नी श्रीमती संतोष चौधरी, कृष्ण तनेजा व उनकी धर्मपत्नी श्रीमती विशु तनेजा, जन्नत, खुशी, तमन्ना और आयुष तनेजा आदि की तरफ से सुंदर चित्रकारी की गई थी।
इस कलाकारी को 70 हजार से अधिक लोग देख चुके हैं। इनमें पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली के पर्यटक भी शामिल हैं। इसके अलावा हजारों की तादाद में पाकिस्तानी लोग भी इस चित्रकारी को देख चुके हैं। इस बारे में जानकारी देते हुए सोसायटी की संतोष चौधरी व विशु तनेजा ने बताया कि पिछले साल भी सोसायटी की ओर से बॉर्डर के पेड़ों पर आकर्षित पेंटिंग की गई थी। इस साल भी पेड़ों पर रंगबिरंगी चित्रकारी करके उन्हें अधिक सुंदर रूप दिया गया है। उन्होंने बताया कि पेड़ों पर जहां पशु पक्षी के चित्र बनाए गए हैं। इसके अलावा देश भक्ति पर आधारित कई चित्र बनाए गए हैं। 
Only on Sadki Border is painting on trees
Fazilka, August 21: A unique example of country love has been created by artwork on trees from the Rangala Bungalow Fazilka Welfare Society on the Sardaki border of India-Pakistan international border. Which is truly commendable. Artists painting from the magic of pen on the trees have highlighted the feeling of love in the country through their art, while their atmosphere has also been shown different styles of love. This term, the Sector Commandant of the Border Security Force, Ratan Lal Bagriya said, while handing over the artwork on trees located on the Sardki border, to the public. He greatly appreciated the work of the society and said that such a beautiful painting on trees is not on any other border of Punjab. Because of which Saadki Border is attracting more to the audience.
On this occasion, the second Commanding officer of the Border Security Force, R.S. Bohra, Deputy Commandant Satish Dahiya, Rahul Singh Assistant Commandant, Assistant Commandant Rajesh Ranjan Thakur, Sub Inspector Aasish Kumawat, Sub Inspector Abhay Saini and Social Assistant Liladhar Sharma were also present. These trees were beautifully painted on behalf of Lachaman Dost, Mrs. Santosh Chaudhari, Krishna Taneja and Mrs Vishu Taneja, Jannat, khushi, Tamanna and Ayush Taneja etc. This artwork has seen more than 70 thousand people. These include tourists from Punjab, Haryana, Rajasthan and Delhi. Apart from this, the Pakistani people have also seen this painting in the thousands. Giving information about this, Santosh Chaudhary and Vishu Taneja of the Society said that even last year, painting painted on Border trees was done by society on behalf of society. This year also, they have been given a more beautiful look by colorful paintings on trees. He told that on the trees where pictures of animal bird have been made. Apart from this many paintings based on patriotism have been made.

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ਜਦੋਂ ਪਲੇਗ ਨੇ ਲੀਲ ਲਏ ਕਈ ਲੋਕ 

ਗੱਲ 1918 ਦੀ ਹੈ -ਜਦੋਂ ਫਾਜ਼ਿਲਕਾ ਵਿਚ ਪਲੇਗ ਦੀ ਬਿਮਾਰੀ ਫੈਲੀ ਸੀ - ਪਿੰਡ ਜੋੜ੍ਕੀ ਕੰਕਰਵਾਲੀ ਵਿਚ ਸਭ ਤੋਂ ਜਿਆਦਾ ਲੋਕ ਇਸ ਬਿਮਾਰੀ ਨਾਲ ਮਰੇ ਸੀ - ਪਿੰਡ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਜਿਵੇਂ ਓਹਨਾ ਦੇ ਬਜੁਰਗਾਂ ਨੇ ਦਸਿਆ -ਕਿ ਓਹ ਇਕ ਲਾਸ਼ ਨੂੰ ਜਲਾ ਕੇ ਆਉਂਦੇ ਸਨ ਤੇ ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਇਕ ਹੋਰ ਆਦਮੀ ਦੀ ਮੋਤ ਹੋ ਜਾਂਦੀ -ਪਤਾ ਨਹੀ ਕਿਨੀਆਂ ਲਾਸ਼ਾਂ ਜਲਾਈਆਂ- ਕਿਸੇ ਦੇ ਘਰ ਰੋਟੀ ਨਹੀ ਬਣੀ- ਲਾਸ਼ ਦੀ ਅੱਗ ਤੇ ਛੱਲੀਆਂ ਭੂਨ ਕੇ ਪੇਟ ਦੀ ਅੱਗ ਬੁਝਾਈ- ਫੇਰ ਓਹਨਾ ਪਿੰਡ ਛੱਡ ਦਿਤਾ ਤੇ ਪੁਰਾਣੇ ਪਿੰਡ ਤੋ ਦੂਰ ਇਕ ਇਕ ਨਵਾਂ ਪਿੰਡ ਵਸਾਇਆ -ਜਿਸਨੂੰ ਜੋੜ੍ਕੀ ਕੰਕਰ ਵਾਲੀ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ -Lachhman dost
Jadon PLEG dee bimaari ne leel laye kai lok
gal 1918 dee hai-Fazilka vich PLEG dee bimari fail gai-us vele pind JODKI KANKARWALI vich kai lok mar gaye see- kise gar roti nahi bani-lokan ne lash dee agg te chhaliyan bhun ke pet dee agg bujhai see- fer oh lokan ne nava pind vasaya jis noon purane pind daa naam dita JODKI KANKARWALI- bahut dard bhari dastan see-
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Aug 20, 2018

Fazilka TV Tower

फाजिल्का टीवी टॉवर बनाम आइफ़िल टॉवर 


फाजिल्का के लीलाधर शर्मा, धर्म लूना और अन्यों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी से फाजिल्का में टॉवर बनाने की मांग की थी , इस प्रोजेक्ट पर 1986 में मोहर लगी- इसकी उचाई 302.2 मीटर है - Lachhman Dost Fazilka

Fazilka's TV Tower v/s Eiffel Tower
Mr. Lila Dhar Sharma, Mr. Dharam Loona and others of Fazilka had demanded to construct a tower in Fazilka from the then Prime Minister Mr. Rajiv Gandhi, on this project, in 1986, it was stamped - Its height is 302.2 meters
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Aug 19, 2018

झूमर के बादशाह बाबा पोखर सिंह

झूमर दक्षिण पंजाब का मशहूर लोक नाच है। भारत विभाजन हुआ तो सांदल बार के इलाके में रहने वाले अधिकांश लोग फाजिल्का और जलालाबाद के इलाके में आकर बस गए। जहां उन्होंने लोक नाच झूमर की शान को बरकरार रखा और देश विदेश में इसे प्रसिद्ध किया। दरअसल विभाजन से पूर्व झूमर में पोखर सिंह और जम्मू राम का नाम काबिले तारीफ रहा है। विभाजन के बाद जम्मू राम गांव नूरशाह में आकर बस गए, जबकि पोखर सिंह गांव झोटियां वाली में आकर रहने लगे। यहां उन्होंने चिराग ढ़ाणी बसाई। पोखर सिंह का जन्म 15 अगस्त 1914 को मिन्टगुमरी जिला के गांव तूतवाली जिला मिंटगुमरी (पाकिस्तान) में स. पंजाब सिंह के घर माता केसां बाई की कोख से हुआ। पोखर सिंह के छह भाई थे तो सबसे बड़ा लछमण सिंह पंजाब विधान सभा के सदस्य भी रहे। आप बचपन से कुश्ती और मुदगर उठाने के साथ-साथ आप झूमर के बहुत शौकीन थे। आपकी शादी संतो बाई से हुई और आपके घर चार बेटे व पांच बेटियों ने जन्म लिया। बाबा पोखर ङ्क्षसह की मौत के बाद उनके बेटे कुलवंत सिंह लोक नाच झूमर के जरिए इलाके की शान बनाए हुए हैं। 
Baba g di ik yaad apne ik seh-kalakar lakshmi chahuan and baba g di wife at shimla song and drama division
           फाजिल्का में आने के बाद भी उन्होंने झूमर लोक नाच को प्रसिद्ध किया। बात 1967-68 की है। तब गांव लालो वाली के बेदी परिवार की ओर से भारी मेला लगाया जाता था और इसकी धूम दूरदराज के क्षेत्र में भी थी। स. लाजिन्द्र सिंह बेदी ने मेले में झूमर का मुकाबला करवाया। अन्य टीमें तो मुकाबले के पहले दौर में ही बाहर हो गई। मगर पोखर सिंह और जम्मू राम की टीम में कड़ा मुकाबला हुआ। मगर बाबा पोखर सिंह की टीम ने मुकाबला जीत लिया और उन्हें पुरस्कारों से नवाजा गया। कहते हैं कि जब महारानी विकटोरिया गोल्डन जुबली मनाने के लिए भारत आई तो बाबा पोखर सिंह ने झूमर में बोलियां डालकर उसका विरोध किया। पोखर सिंह ने विकटोरिया को जुगनी कहकर संबोधित किया। 26 जनवरी 1961 में प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने बाबा पोखर सिंह को सोने के तगमें से नवाजा। इसके अलावा आपने देश विदेश में अनेकों पुरस्कार हासिल किए। अब बात करते हैं झूमर की। पुरुषों द्वारा किया जाने वाला पंजाब झूमर नृत्य अविभाजित भारत के दक्षिणी पंजाब के शहर फाजिल्का का एक विशेष लोकनाच है। इसका यह नामकण झूम से लिया गया। घूमर नृत्य हरियाणा की युवतियों का लोकप्रिय नृत्य है, जो होली, गनगौर अथवा तीज जैसे त्यौहारों पर किया जाता है। घूमर नृत्य में जहां युवतियां, गोलाकार में झूमते हुये तालियां बजाकर एवं गीत गाते हुये यह नृत्य करती हैं। वहीं झूमर लोकनाच करने वाले गोलाकार घेरे में ढ़ोल की थाप पर झूमकर ताली बजाकर लगात्मकता के साथ लोकनाच करते हैं। झूमर के अंतिम चरण स्थिति में नर्तक दो-दो के जोड़े में तेजी से घूमते हैं। नृत्य के समय गाये जाने वाले गीतों में समसामयिक विषयों पर हास्य और व्यंग्य शामिल होता है। 
           
फाजिल्का प्रसिद्ध झूम नृत्य के गीत लोकपारम्परिक काव्यों पर आधारित श्रृंगार भाव से परिपूर्ण होते हैं। नर्तकों की वेषभूषा साधारणत्या सफेद होती है। यह लोकनाच तीन पड़ावों में होता हैं, एक धीमी ताल, दूसरा तेज ताल और तीसरा बहुत तेज ताल। कई विद्वानों ने इसे झूमर की ताल, चीना झडऩा और धमाल भी कहा हैं। यह लोक नाच खुली जगह, घेरे का आकार, अपने-अपने लोक गीत के बोल द्वारा ढ़ोल पर किया जाता है। इसकी शुरूआत धीमी और अंतिम में तेज व जोशीली होती है। इस दौरान जो भी गीत बोले जाते हैं। उनमें पशुओं, वृक्ष और प्रेमी के मिलने की तड़प का जिक्र ज्यादा होता हैं। (Lachhman Dost Fazilka)
Jhumar Pitama - Baba Pokhar Singh 
Chhundar is a famous folk dance of South Punjab. When India was partitioned, most of the people living in Sandal Bar area settled in the area of ​​Phazilka and Jalalabad. Where he retained the fame of the Folk Dance chandelier and made it famous in the country abroad. In fact, before the partition, the names of Pokhar Singh and Jammu Ram have been praised in the Jhumar. After the partition Jammu Ram Village settled in Noorshah, while Pokhar Singh lived in the village Jotis. Here he built a chirag cabinet. Pokhar Singh was born on August 15, 1914, in Tintwali district, Mintgumari (Pakistan), in village Mintuguri district. The house of Punjab Singh came from the womb of Keshan Bai. Pokhar Singh had six brothers while Lakhman Singh, the eldest was also a member of the Punjab Legislative Assembly. Apart from lifting wrestling and mugger from your childhood, you were very fond of chandelier. You got married to Santo Bai and you have born four sons and five daughters. After the death of Baba Pokhara Singh, his son Kulwant Singh has made the pride of the area through the folk dance chandu.
           After coming to Fazilka, he also popularized the Jhumar Lok Dancing. The point is 1967-68. Then a massive fair was organized by the Bedi family of the village Lallo and its fog was also in remote areas. S Mr.Lajinder Singh Bedi fought the chandelier in the fair. Other teams were out in the first round of the match. But the team of Pokhar Singh and Jammu Ram got a tough fight. But Baba Pokhar Singh's team won the contest and they were awarded the prizes. It is said that when Queen Victoria came to India to celebrate Golden Jubilee, Baba Pokhar Singh opposed it by putting bids in the chandelier. Pokhar Singh addressed Viktoria as Jugni. On January 26, 1961, Prime Minister Pandit Jawaharlal Nehru received Baba Pokhar Singh from the gold medal. Apart from this, you have got many awards abroad. Let's talk now of the chandelier. The Punjab chandar dance by men is a special festival of undivided India, the city of Fazilka, southern Punjab. This name was taken from Jhoom. Ghoomar dance is the popular dance of the women of Haryana, which is done on festivals like Holi, Gangaur or Teej. In the Ghoomar dance, where the girls dance and dance while singing and singing in the sphere, they dance. On the other side of the chandeliers, the chandeliers are roaming on the thunderstorm and chanting them with rhythm. In the last phase of the chandelier, dancers roam fast in couple of pairs. Songs that are played at the dance include humor and satire on contemporary subjects.
           Fazilka's famous Jhoom dance songs are full of popular expressions based on traditional poetry. The dancers' dress is usually white. This locals are in three stages, a slow rhythm, another fast rhythm and the third very fast rhythm. Many scholars have also called it the rhythm of chandeliers, china flashes and dhamal. This folk dance is done on the open space, the shape of the circle, the voice of his folk song, on the wall. Its beginnings are slow and strong in the last and final. Whatever songs are said during this time. They are more concerned about meeting animals, trees and lovers 
All Photoes with Thanks 
https://www.facebook.com/Baba-Jhoomer-Pitama-Pokher-Singh-Welfare-Society-Dhani-chirag-Fazilka-656594847884962/
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Aug 14, 2018

Jashan E Aazadi

फ़ाज़िल्का के सादकी बॉर्डर पर - 
पाकिस्तान की आज़ादी पर पाक  के विंग कमांडर ने सीमा सुरक्षा बल को दी मिठाई 



SADQI BORDER
Pakistan's Wing Commander Delivers the Border Security Force on Pakistan's Independence

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Aug 12, 2018

Illuminated unique colors on trees in the joy of freedom

आजादी की खुशी में पेड़ों पर उकेरा अनोखा रंग
बॉर्डर की सुंदरता में हुआ इजाफा, स्वच्छ भारत, पर्यवरण का दिया संदेश

फाजिल्का, 12 अगस्त: भारत की आजादी की खुशी मे देश भर में देश भक्ति की गाथा गाई जाएगी, मगर भारत पाकिस्तान की सरहद पर स्थित सादकी बॉर्डर पर आजादी की खुशी में पेड़ों पर अनोखा रंग करके देश प्रेम की अलख जगाई है। इस अलख को जगाने वाले बताते हैं कि देश प्रेम की भावना को किसी भी तरह से उजागर किया जा सकता है।
पैदा होगा देश पे्रम का जज्बा
पंजाब के सरहदी जिला फाजिल्का के दो ऐसे ही परिवार हैं जो अपनी देश प्रेम की भावना के साथ साथ स्वच्छ भारत परिवार और वातावरण प्रेम को अपने अलग ही अंदाज में प्रदर्शित कर रहे हैं। इन्होंने भारत-पाक अंतर्राष्ट्रीय सरहद पर बने सादकी बॉर्डर के पेड़ पौधों को इस कदर देश प्रेम के रंग में उतारा है, जिनको देखने से देश प्रेम का जज्बा खुद-बा-खुद पैदा हो जाता है।
दर्शक होंगे आकर्षित
भारत पाकिस्तान की सरहद पर बसे फाजिल्का शहर में हर वर्ग और हर जाति के लोग एक साथ परिवार की तरह रहते हैं। जो आपसी भाईचारक सांझ, सदभावना का प्रतीक है। यहां के लोगों ने अपने इलाके को एक अलग पहचान दी है। इस पहचान में सरहद पर स्थित सादकी बॉर्डर की चौकी भी है। जहां भारत पाक के बीच रिट्रीट सैरेमनी होती है। जिन्हें देखने के लिए सैंकड़ों की तादाद में दर्शक पहुंचते हैं। गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर तो यह संख्या 60-65 हजार से भी अधिक पहुंच जाती है। पाकिस्तान की तरफ से पहुंचने वाली संख्य अलग है।
टीम बनाकर करते हैं काम
सादकी बॉर्डर को और चार चांद लगाने वाले परिवार फाजिल्का की हरफनमौला शख्सियत व इतिहासकार लक्षमण दोस्त व कृष्ण तनेजा का परिवार है। इन परिवारों की महिलायों सहित बच्चों ने भी इस कड़ी में परिश्रम करके सीमा सुरक्षा बल के सहयोग से सादकी बॉर्डर पर लगे सभी पेड़ों पर रंगों से की गई कलाकृति से उनको एक अलग पहचान दी है, सभी पेड़ पौधे देश प्रेम की भावना को उजागर कर रहे है। इन परिवारों की तरफ से पेड़ों पर देश भक्ति की लिखी इस इबादत को स्वतंत्रता दिवस पर आने वाले हजारों दर्शकों को अपनी तरफ आकर्षित करेंगे और उनके दिलो में देश प्रेम के जज्बे को पैदा करेगे। इतिहासकार लक्षमण दोस्त, उनकी धर्मपत्नी संतोष चौधरी, कृष्ण तनेजा व उनकी धर्म पत्नी विशु तनेजा बताते हैं उन्होंने सादकी बॉर्डर के पेड़ों पर देश भक्ति की गाथा लिखी है।
किसी पेड़ पर राष्ट्रीय ध्वज तो किसी पेड़ पर देश के रक्षक जवान का चित्र अंकिंत किया गया है। किसी पेड़े पर राष्ट्रीय पक्षी मोर तो किसी पेड़ पर अन्य पक्षी और फूल आदि बनाए गए हैं। इसक अलावा सामाजिक कुरीतियों से सबंधित स्लोगन व चित्र बनाए गए हैं। जो बॉर्डर की सुन्दरता को तो बढ़ाएंगे ही, साथ ही यहां आने वाले दर्शकों को देश प्रेम से जुड़ी बातों के अलावा स्वच्छ भारत अभियान, पर्यवरण बचाने के लिए प्रेरित करेंगे। उन्होंने बताया कि इस सारे कार्य को मुकम्मल करने के लिए उनकी तरफ से रंगला बंगला फाजिल्का टीम बनाई गई है। जो अब तक वह 300 से अधिक पेड़ों पर रंगों से कलाकृति दिखा चुके हैं। इस टीम में बच्चों जन्नत कंबोज, खुशी, तमन्ना, आयुश व विहान का भी सहयोग है।
Illuminated unique colors on trees in the joy of freedom
Border beauty enhances, clean India, message delivered by the people
Fazilka, August 12: India's freedom will be sung by the happiness of India's freedom, but the country has woken up to love by making unique colors on the trees in the happiness of freedom on the Sadqi border on the outskirts of Pakistan. Those who awaken this look say that the love of the country can be exposed in any way.
Will be born of country's love
There are two such families of Sirhadi district of Phazilka in Punjab who are displaying their country of love with a clean India family and atmosphere in their different style. They have brought the Sardis Border trees made on the Indo-Pak international border in the form of love of country, in this way, seeing the country's love is born by itself.
Spectators will attract
India resides on the outskirts of Pakistan, people of every caste and every caste live together in a family together in Fazilka city. Which is a sign of mutual brotherhood, goodwill. The people here have given their area a different identity. This identity is also the post of Sadaki Border located on the outskirts. Where there is a retreat saramedi between India and Pakistan. Viewers reach hundreds of people to see. On Republic Day and Independence Day, this number reaches more than 60-65 thousand. The number coming from Pakistan is different.
Team work
The family of Sadaqi Border and the other four families are the family of Fazilka's family and the family of historian Lachhman Dost and Krishna Taneja. The children, including the women of these families, also worked hard in this episode with the help of the Border Security Force, they have given them a distinct identity with the artwork of colors on all the trees on the Sardar Border, all the tree plants are highlighting the love of the country. is.
On behalf of these families, on this day, the country will draw thousands of visitors who come to the Independence Day on this tree, and will create the love of the country in their hearts. Historian Lachhman Dost, his wife Santosh Chaudhary, Krishna Taneja and his wife Vishu Taneja say they have written the saga of patriotism on the trees of Sardaki Border. National flag on a tree, the picture of the country's security officer has been digitized on any tree. National bird peacock on any tree, other birds and flowers etc. have been made on any tree. Apart from this, slogans and pictures related to social evils have been made. Which will enhance the beauty of the border,
as well as the visitors who come here to inspire the nation to love the Swachh Bharat Abhiyan, save the story. He said that to make all this work work, Rangla Bangla Fazilka team has been formed from them. So far, he has shown artwork in more than 300 trees with colors. The team also has the support of children Jannat Kamboj, Khushi, Tamanna, Ayush and Vihaan(LACHHMAN DOST - FAZILKA)

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Aug 10, 2018

ब्रिटिश एक्ट की व्यापारियों ने की खिलाफत

व्यापारियों से पैसा वसूलने के लिए ब्रिटिश साम्राज्य में मार्किटिंग बिल एवं बिक्री टैक्स एक्ट शुरू शुरू किया। मगर व्यापारी वर्ग को यह मंजूर नहीं था। जिस कारण पंजाब में आंदोलन शुरू हो गया। इसके तहत फाजिल्का में भी आंदोलन हुआ। जिसमें हिन्दू, मुस्लिम, सिख जातियों के व्यापारी सम्मलित थे। इस आंदोलन की अगुवाई सेठ चानन लाल कर रहे थे। इस दौरान फाजिल्का बंद रखा गया। जो ऐतिहासिक रहा। मगर सेठ चानन लाल आहूजा ने बाद में प्रधान पद से इस्तीफा दे दिया। जो 5 जुलाई 1941 को फाजिल्का से प्रकाशित समाचार पत्र निशात में प्रकाशित किया गया था। 

British act traders protest against
In order to recover money from traders, the British Empire started the Marketing Bill and Sale Tax Act. But the business class was not approved. That is why the movement started in Punjab. Under this, there was a movement in Fazilka too. In which the traders of Hindu, Muslim, Sikh castes were involved. The movement was led by Seth Chanan Lal. During this time phazilka was closed. Which was historic. But Seth Chan Lal Ahuja later resigned from the post of Principal. Which was published on 5 July 1941 in Nishat, a newspaper published from Fazilka.

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