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Sep 6, 2018

आज के दिन शुरू हुआ था भारत पाक युद्ध 1965

आज के दिन शुरू हुआ था भारत पाक युद्ध 1965
 आसफवाला शहीदी स्मारक
  देश प्रेम और धार्मिक आस्था का अनूठा संगम
यह न तो मंदिर है और न ही मस्जिद, गुरूद्वारा या चर्च, इसके बावजूद यहां आने वाला हर व्यक्ति श्रद्धा से शीश झुकाता है। यानि देश प्रेम और धार्मिक आस्था का प्रतीक। जी हां, हम बात कर रहे हैं फाजिल्का से सात किलोमीटर दूर पश्चिम की ओर भारत-पाक सरहद के निकट आसफवाला शहीदी स्मारक की,
जहां जहां 4 जाट बटालियन के 82 शहीदों की चिता स्थल बनाया गया है। इस स्मारक में ही फाजिल्का सेक्टर में शहीद 15 राजपूत, 3 आसाम बटालियन और 18 अश्वाराहेही सैनिक बटालियन के शहीद सैनिकों के स्मृति स्तम्भ भी सम्मिलित हैं। स्मारक देश ही एक मात्र ऐसी स्मारक है, जहां विभिन्न राज्यों के 206 शहीद जवानों की अस्थियों का समावेश किया है। यहां 1971 के शहीद जवानों की 90 फीट लंबी और 18 फीट चौड़ी चिता बनाकर संयुक्त दाह संस्कार किया गया है। इन शहीदों की बदौलत आज हम हैं और हमारा फाजिल्का है।

अब बात करते हैं 1965 के युद्ध की। 6 सितंबर की सांय राजस्थान के रास्ते से दुश्मनों की घुसपेठ रोकने के लिए भारतीय सेना ने मोर्चा संभाल रखा था। दुश्मन भारतीय इलाके में घुस आया और सेना के साथ सुलेमानकी मुख्यालय व सीमा चौकियों के अलावा काफी क्षेत्र पर भी कब्जा कर लिया।
दुश्मन ने गोलाबारी की और साबूना बांध पर हमला कर दिया। तब 14 पंजाब रेजीमेंट के जवानों ने दुश्मन को करारा जवाब दिया। जब दुश्मन गांव चाननवाला के रेलवे लाइन के साथ-साथ फाजिल्का की तरफ बढ़ा तो फिरोजपुर से आई 3/9 गोरखा राइफल की दो कंपनियों के जवानों ने दुश्मन को रोक लिया। दुश्मन ने उन पर तीन हमले किए, लेकिन सेना डटी रही और दुश्मन आगे नहीं बढ़ पाया। आखिर 23 सितंबर को युद्ध समाप्ति की घोषणा हो गई।
Lachhman Dost Fazilka 

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Sep 4, 2018

Mr. SAVIKAR GANDHI - honored with the state level award

देश का अनोखा गावं - 
तीन तरफ से पाकिस्तान और चौथी तरफ से सतलुज दरिया-
गावं मुहार जमशेर - पाक सिर्फ २०० मीटर दूर - दरिया में बाढ़ हो -
या भारत पाक में तनाव - अध्यापक स्वीकार गाँधी ने यह कभी कहा कि वो इस स्कूल में बच्चों को शिक्षा नहीं देंगे - तभी तो पंजाब सरकार उन्हें राज्य स्तरीय पुरस्कार से नवाज़ रही है -
हक़दार हो श्री स्वीकार गाँधी जी - बधाई हो -
The unique village of India - from three sides Pakistan and from Satluj River-
village Muhar Jamsher - Pak only on the fourth side - Pak is just 200 meters away -
floods in the rivers - or tension in India-Pak teacher -
Savikar Gandhi has ever said that he has children in this school In the meantime, the Punjab government has been honored with the state level award -Congrats Mr. Savikar Gandhi G (Lachhman Dost)
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Before the settlement of Fazilka

Fazilka Ek Mahagatha


-फाजिल्का बसने से पूर्व बहावलपुर और ममदोट के नवाबों ने यहां कुछ छोटे - छोटे किले बनवाए , मगर उन की सरहदें सही ढंग से नहीं थी जब वट्टु और बहक परगना का आगमन हुआ तो उन्होंने सरहदें निर्धारित कर ली,
- 1844 में ब्रिटिश अधिकारिओं ने बहावलपुर के नवाबों से जगह का आदान प्रदान कर लिया और इस के बदले नवाबों को सिंध प्रान्त से कुछ जगह दे दी
-नवंबर 1884 में जब सिरसा जिले के दो हिस्से हुए तब पच्छिम का आधा हिस्सा फाजिल्का तहसील का था और 40 गावं डबवाली तहसील के थे जो फिरोजपुर के साथ जोड़े गए.



Before the settlement of Fazilka, the Nawabs of Bahawalpur and Mammadot built some small fortresses here, but their frontiers were not right when Wattu and Behak Pargana arrived, they set boundaries,
- In 1844, British officials exchanged space with the Nawabs of Bahawalpur and in exchange for this, the Nawabs gave some place from Sindh province
In November 1884, when Sirsa district had two parts, half of the western part was of Fazilka tahsil and 40 villages were of Dabwali tehsil, which were connected with Ferozepur.
-Lachhman Dost Fazilka-
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Sep 3, 2018

-Guru Nanak Darbar New Abadi Islamabad Fazilka-

ਗੁਰੂਦੁਆਰਾ ਨਾਨਕ ਦਰਬਾਰ ਨਵੀਂ ਆਬਾਦੀ ਇਸਲਾਮਾਬਾਦ ਫਾਜ਼ਿਲਕਾ 

ਦਾਸਤਾਨ - ਭਾਰਤ ਵਿਭਾਜਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਇਸ ਜਗਾਹ ਤੇ ਮਸਜਿਦ ਸੀ, ਵਿਭਾਜਨ ਦੋਰਾਨ ਇਸਾਈ ਸਮੁਦਾਏ ਦੀ ਮਹਿਲਾ smt. ਮਰੀਅਮ (New Abadi Islamabad) ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਤੋਂ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਲੈ ਕੇ ਆਈ ਤੇ ਇਥੇ ਗੁਰੂਦੁਆਰਾ ਬਣਾ ਕੇ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕਰ ਦਿਤਾ, ਅੱਜ ਸਭ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਗ ਇਥੇ ਸ਼ਰਧਾ ਨਾਲ ਸਿਰ ਝੁਕਾਉਂਦੇ ਹਨ
-Guru Nanak Darbar New Abadi Fazilka 
Dastan- India Vibhajan se pehle yha Masjid thi. Vibhajan ke baad Isaee Samudaye ke Orat Smt. Mariam Pakistan se GURU GRANTH SAHIB le ker ayee or yaha GURU DUARA bna ker parkash kiya- ab log yha sradha se sir ukate hai. 
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Sep 2, 2018

Village Jandwala meera Sangla (Fazilka)

Village Jandwala meera Sangla (Fazilka)

ਬੜੀ ਮਜੇਦਾਰ ਕਹਾਣੀ ਹੈ ਪਿੰਡ ਜੰਡ ਵਾਲਾ ਮੀਰਾ ਸਾਂਗਲਾ ਦੀ 
-photo 1930- right side Hagi bahawal khan Kuria zaildar-thx mahmood alam kuria

ਹਾਜੀ ਵਾਗੂ ਖਾਨ ਕੁਰੀਆ ਨੇ ਤਹਿਸੀਲਦਾਰ ਤੋਂ ਅਲਾਟ ਕਰਵਾਇਆ ਸੀ ਪਿੰਡ 
ਉਸ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਮੀਆਂ ਬਹਾਵਲ ਖਾਨ ਕੁਰੀਆ ਜੈਲਦਾਰ ਸੀ ਤੇ ਦੂਜਾ ਮੀਆਂ ਮੁਹਮੰਦ ਖਾਨ ਕੁਰੀਆ ਸੀ - ਮੀਆਂ ਬਹਾਵਲ ਖਾਨ ਕੁਰੀਆ ਜੈਲਦਾਰ ਦੇ ਤਿਨ ਪੁੱਤਰ ਤੇ ਮੀਆਂ ਮੁਹਮੰਦ ਖਾਨ ਕੁਰੀਆ ਦੇ ਵੀ ਤਿਨ ਪੁੱਤਰ ਸਨ - ਇਹਨਾਂ ਵਿੱਚੋ ਇਕ ਮੀਆਂ ਅਲਾਹ ਬਕਸ਼ ਜੈਲਦਾਰ ਸੀ ਤੇ ਸਰਕਾਰ ਦਰਬਾਰੇ ਬਹੁਤ ਕੱਮ ਕਰਾਉਂਦਾ ਸੀ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਹੀ ਓਥੇ ਅਕਬਰ ਪੁੱਲ ਬਣਵਾਇਆ ਸੀ 
Gang Canal
Ik mazedaar kahani - Hagi Waggu khan kuria ne tehsildaar to alaot karwaya see pind - us de putter mian Bahawal khan kuria Jaildar see te dusra putter mian mohammad khan kuria - mian Bahawal khan kuria de three bete - te mian mohammad khan kuria de tin (Three) bete sn- ehna vichon ik mian Alah Baksh jaildaar seee te sarkare darbare bahut kamm karanunde sn- ohna ne hee othe Akbar pul banwaya see - 

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Sep 1, 2018

अजीब है चाननवाला रेलवे स्टेशन बनाने की दास्तान

        फाजिल्का से कराची तक रेल लाइन बिछा दी गई। 1898 में फाजिल्का का रेलवे स्टेशन बन गया। फाजिल्का से कराची तक जाने वाली रेलवे लाइन पर फाजिल्का के बाद चाननवाला रेलवे स्टेशन बनाया गया। जिसको बनाने की दास्तान बड़ी रोचक है। बस यूं समझ लें कि दो सम्पन्न परिवारों में अपने-अपने गांव में रेलवे स्टेशन बनवाने की होड़ थी।। वह परिवार थे चाननमल सावनसुक्खा और चौ. हजूर सिंह। दोनोंं को ही ऑनरेरी मजिस्ट्रेट की पावर प्राप्त थी। बात 1935 की है। जब गांव में अलग-अलग दो आनाज मंडिया बनवाई गई। जहां बहावलपुर तक का आनाज बिक्री के लिए मंडियों में आता था। बात थी रेलवे स्टेशन बनवाने की। दोनों परिवारों का कहना था कि उनकी मंडी के नजदीक और उनके नाम पर रेलवे स्टेशन बनाया जाए ताकि अन्य गांवों से आने वाले आनाज व अन्य सामग्री उनकी मंडी में पहुंचे। बात जिला फिरोजपुर के डीसी एम. आर. सचदेव तक पहुंची। उन्होंने मामले को सुना, समझा और फैसला सुनाया कि जो व्यक्ति अपनी मंडी सही व बढिय़ा ढंग से बनवाएगा। उसके गांव में रेलवे स्टेशन बनाने की मंजूरी दी जाएगी। देखो, देखी मंडी सुंदर बनाने का कार्य युद्ध स्तर पर शुरू हो गया। दिन-रात कार्य चला। मंडियों के चारों ओर सुंदर गेट बनाये गए। 13 फुट तक ऊंची चारदीवारी बना दी गई। रातो-रात गांव बस गए। दोनों मंडियों के आसपास रौंनके बढ़ गई। डी.सी. एम. आर. सचदेव ने मंडियों का दौरा रखा। मंडियों की एक-एक कलाकृति को चैक किया गया। आखिर डी.सी. ने फैैसला सुनाया कि जिला बोर्ड के सदस्य व सफेदपोश उपाधि से नवाजे जा चुके श्री चाननमल द्वारा बनाई गई मंडी बढिय़ा है और उनकी मंडी के निकट ही रेलवे स्टेशन बनाने की आज्ञा दे दी। देखते ही देखते चानणवाला मंडी प्रसिद्ध मंडी बन गई। जहां दूर-दूर से यहां अनाज पहुंचता। यहां से कच्चा माल अन्य शहरों में जाने लगा। यहां रेलवे का जंकशन बनाया गया। यहां से एक ट्रेन कराची तक चलती थी और दूसरी ट्रेन सुलेमानकी हैड तक चलती थी, जिसे के जरिए सामान भेजा जाता था। मंडी चाननवाला के मुख्य गेट व दीवार तो उखाड़ ली गई। उसके सबूत बाकी नहीं बचे, लेकिन मंडी हजूर सिंह की मंडी में बनाया गया गेट आज भी मौजूद है। उस गेट का नाम है सचदेव गेट। जो ऑनरेरी मजिस्ट्रेट व नगर कौंसिल फाजिल्का के उपाध्यक्ष स्व. हजूर सिंह की याद में श्री मोहरी राम चुघ व चौ. राज कुमार चुघ द्वारा बनवाया गया। इस गेट का उद्घाटन जिला फिरोजपुर के डिप्टी कमिश्नर श्री एम. आर. सचदेव ने 5 जून 1939 में किया गया। यहां उल्लेखनीय है कि डीसी एम. आर. सचदेव ने फाजिल्का के विकास में अहम योगदान दिया। इन्होंने ही एम. आर. कॉलेज का नींव पत्थर 4-7-1940 को रखा था।
The strange story of making Chananwala railway station
        A rail line was stretched from Fazilka to Karachi. In 1898, Fazilka became the railway station. Chananwala railway station was built after Fazilka on the railway line from Phazilka to Karachi. The story of making which is interesting is very interesting. Just understand that there was a competition for building two railway stations in their respective villages in two prosperous families. The family was Channamal Savansukha and Chau. Hazoor Singh Both of them received the power of the Honorary Magistrate. The point is 1935. When two Anaj Mandis were built in the village. Where to buy grains up to Bahawalpur, Mandi was in the market. It was a matter of constructing a railway station. Both families said that a railway station should be built near their mandis and in their names so that grains and other items coming from other villages reached their mandis. Talk of DC M.R. Ferozepur Reached Sachdev. They heard the case, understood and ruled that the person who made his own mandi right and better. The railway station will be approved in its village. Look, the beautification of the Mandi Mandi started at the war level. Working day and night. Beautiful gates were made around the mandis. Made up to 13 feet high walled. Roto-night village settled. Rumors have increased around the two markets. DC. M.R. Sachdev visited Mandi's tour. Each artwork of mandis was checked. After all, D.C. The decision was made that the Mandi made by Mr. Channamal, who was elected from the district board and the white collar degree, is better and ordered to build a railway station near his mandi. On seeing the Chananwala mandi became a famous mandi. Where the grain reaches farther away. From here the raw materials started going to other cities. Railway junction was built here. A train ran from here to Karachi and another train ran to the helmanki head, which was sent through the goods. The main gate and wall of Mandi Chanwala were overthrown. There is no evidence remaining, but the Gate built in Mandi Hajoor Singh Mandi is still present today. The name of that gate is Sachdev Gate. The Honorary Magistrate and Vice-President of Municipal Council Fazilka In the memory of Hazoor Singh, Mr. Mohi Ram Chugh and Chau Made by Raj Kumar Chugh This gate was inaugurated by Mr. M.R., Deputy Commissioner, Firozpur District. Sachdev performed on June 5, 1939. It is noteworthy that DC M. R. Sachdev made significant contribution in the development of Fazilka. He did the M.R. The foundation stone of the college was placed on 4-7-1940.-LACHHMAN DOST FAZILKA-

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Aug 31, 2018

Akbar Ali Pir became the first MLA in Fazilka

फाजिल्का में पहले विधायक बने अकबर अली पीर

2nd MLA in Fazilka Mia Bagh Ali sukhera special Envoy of the Viceroy of India visits sukhera family to Congratulate on the Glorious victory in the Elections(1945)...with A.C macleod commissioner of Jalandhar Divsion and Mia Bagh Ali Sukhera MLA in Fazilka and lives in sukhera Basti Abohar..(photo Courtesy :- Abohar Digital Museum History and memory)
भारत विभाजन से पूर्व फाजिल्का क्षेत्र में मुस्लिम अधिक संख्या में थे। 1941 की जनगणना के मुताबिक फाजिल्का तहसील में 75.12 प्रतिशत मुस्लिम थे। मुस्लिम बहुसंख्या में होने के कारण विभाजन से पूर्व यहां मुसलमान ही विधायक बने हैं।
Bagh Ali Sukhera with his faimly
पंजाब विधानसभा के चुनाव 1937 में हुए तो फाजिल्का मुहम्मदन रूरल सीट से अकबर अली पीर ने जीत हासिल की। उन्हें 38.11 प्रतिशत मत मिले। वह 5 अप्रैल 1937 से 19 मार्च 1945 तक पंजाब विधानसभा सदस्य रहे। दूसरे विधानसभा चुनाव 1946 में हुए तो मिया बाग अली सुखेरा विधायक बने। उन्हें 61.9 प्रतिशत मत मिले और वह 21 मार्च 1946 से 4 जुलाई 1947 तक विधायक रहे।
इसके बाद जब भारत विभाजन हुआ तो फाजिल्का के प्रथम विधायक चौधरी वधावा राम बने।
Ch. Wadhawa Ram

Akbar Ali Pir became the first MLA in Fazilka
Before partition of India, there were more Muslims in the area of Fazilka. According to the census of 1941, there were 75.12 percent Muslims in Tahsil of Fazilka. Due to the Muslim majority, Muslims have been the only legislators before partition. In the elections of Punjab assembly in 1937, Akbar Ali Pir won from Fazilka Muhammadan Rural seat. They got 38.11 percent of the votes. He was a Punjab Assembly member from 5th April 1937 to 19th March 1945. In the second assembly elections held in 1946, Mia Bagh Ali Sukhera became the MLA. He got 61.9 percent of the votes and he was a legislator from 21 March 1946 to 4 July 1947. After this, when India was partitioned, Fazilka's first legislator Chaudhary Wadhwa Ram,
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Aug 29, 2018

"Fazilka Heritage" Raghuwar Bhawan

फाजिलका की सबसे पुरानी इमारत                           
ब्रिटिश भवन निर्माण कला का अद्भुत नमूना रघुवर भवन

    फाजिल्का की ऐतिहासिक इमारत रघुवर भवन ब्रिटिश भवन निर्माण और वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। इसकी वास्तुशैली भारतीय, मुगलकालीन एवं ब्रिटिश वास्तुकला के घटकों का अनोखा संगम है। रघुवर भवन के उत्तर दिशा की और शहर की अंतिम छोर में स्थित मौहल्ला नईं आबादी इस्लामाबाद में स्थित है।
कारीगरों की हस्तकला की खूबसूरती को देखकर एक बारगी तो 21वीं सदी के भवन निर्माण कला माहिर भी दाद देते हैं। आलोकिक सुंदरता से भरपूर भवन की शोभा एक अचंभा है। बंगले के निर्माण के बाद निर्मित इस भवन की तर्ज पर आज की ग्रीन बिल्डिंगस तैयार की जा रही हैं। भवन के उत्तर दिशा की ओर मुख्यद्वार है।
आर्च कंट्रक्शन से सजे द्वार के ऊपर ओम रघुवर भवन लिखा गया है। इसके नीचे ठेकद्वार अंकित है। मुख्यद्वार के ऊपर हिन्दू देवता शिवजी का प्रतीक नाग अंकित किया गया है। जो हिन्दु वास्तुकला के घटकों का एकीकृत संयोजन है। यह हिन्दू मन्दिरों में भी पाया जाता है। मुख्यद्वार पर ही विजय और हर्ष का प्रतीक गुलाबी रंग के दो स्तंभ मुगलशैली की वास्तुकला को दिखाते हैं। सतम्भों पर बाहर से नजर आने वाली कलाकृति
मुगलकालीन भवन निर्माण कला और ब्रिटिश भवन निमार्ण कला के सुमेल को बड़े ही सुंदर रूप से दर्शाते हैं। इसके प्रवेशद्वार की एक मुख्य विशेषता यह है कि इसके स्तम्भों पर फूल और पत्तियां तराशी गई हैं। इसे तराशने वालों ने इतनी कुशलता से तराशा है कि मन प्रसन्न हो उठता है। भवन अपने आप में एक ऊंचे मंच पर बनाया गया है। इसकी नींव के प्रत्येक कोने से उठने वाली दीवारें भवन को पर्याप्त संतुलन देती हैं। गलियारे में दक्षिण की ओर शयन कक्ष है। शयन कक्ष के दाएं और बाएं के दो छोटे कमरे हैं। जिनके द्वार पूर्व और पश्चिम की तरफ खुलते है। भवन के केन्द्र में खुला हाल बनाया गया है। जहां सर्दी के मौसम से बचने के लिए चिमनी बनाई गई है। जहांं बैठकर आग का लुत्फ उठाया जाता है। चिमनी को इस ढ़ंग से बनाया गया है कि आग का धंूआ चिमनी के जरिए बाहर चला जाता है।
ब्रिटिश काल की तर्ज पर निर्मित इमारतों में ऐसी चिमनी मिल जाती है। उसके दोनो ओर दो कमरे हैं। जिनमें हाल से गेट द्वारा अंदर जाया जा सकता है। कमरे दिल्ली के लाल किले में निर्मित दीवाने-आम और दीवाने-खास की यादों को ताजा करते हैं। भवन के पीछे दक्षिण की तरफ  तीन कमरे हैं। जिनका दरवाजा दक्षिण की तरफ है। कमरों की खासियत यह है कि सभी कमरों को गेट के द्वारा मुख्य हाल से जोड़ा गया है। इनके बीचो-बीच घुमावदार 22 सीढीयां बनाई गई हैं।

जिससे कमरों की छत्त पर पहुंचा जा सकता है। कमरों की छत्त द्वारा मुख्य हाल की छत्त पर चढऩे के लिए फिर आठ सीढ़ीयां बनाई गई हैं। जिनसे मुख्य हाल की छत्त पर पहुंचा जा सकता है। मुख्य हाल के ऊपर चार गुम्बद सुशोभित हैं। इसका शिखर एक उलटे रखे कमल से अलंकृत है। यह गुम्बद के किनारों को शिखर पर सम्मिलन देता है। भवन के चारों ओर छोटे गुम्बदों की सख्या दस है। छोटे गुम्बद, मुख्य गुम्बद के आकार की प्रतिलिपियाँ ही हैं, केवल नाप का फर्क है। छत्त पर चढक़र चारों ओर नजर दौडाऩे से बाधा झील के हरे भरे वृक्ष, बंगला, गोल कोठी, ओलिवर गार्डन, रेलवे स्टेशन और शहर की अन्य इमारतों की शोभा को निहारा जाता है। कला के अद्भुत नमूने रघुवर भवन का भीतरी वातावरण हर मौसम में रहने के लायक बनाया गया है। उत्तर दिशा की तरफ मुख्यद्वार का निर्माण इस तरह किया गया है कि पूरा दिन भवन के हर हिस्से में रोशनी और हवा का तालमेल बना रहे। सर्दी के मौसम में भवन के गलियारे तक सूर्य की किरणें पहंचती हैं। भवन की मोटी दीवारों में 18 इंच और 36 इंच की ईंटों का प्रयोग किया गया है। दीवारों की चिनाई पक्की ईंटों, चूना और सूर्खी की गई है।
भवन निर्माण में बाखूबी दिखाने वाले कारीगरों ने भवन में ईंटों की चिनाई इंग्लिश और फलेमिश जोड़ से की है। भवन में गर्मी के मौसम दौरान ठंड और सर्दी के मौसम में गर्मी का अहसास होता हैे। भवन के कमरों में प्रकाश के लिए चारों दिशायों में रोशनदान लगाये गये हैं।
भारत-पाक विभाजन से पूर्व अंदाजन 20 एकड़ भूमि के विशाल आंगन में फैले इस भवन के चारों और बाग-बगीचा थे, जो भवन को आनंदमय बना देते थे। बाग के फूलों की महक, अनार, आम, अमरूद और मालटा की मिठास तथा हरियाली से वातावरण ही आन्नदमय होता था। रिमझिम बारिश के मौसम दौरान जब बागों में मोर नाचता तो मदमस्त मौसम का नजारा स्वर्ग बन जाता। कोयल की सुरीली आवाज और चिडिय़ों का चहचहाना कानों मेंं मीठे संगीत का अहसास दिलाते थे।
भवन के विशाल प्रांगण में फैले बाग के बीच दो कूएं थे। जिन्हें टिण्डा वाला कुआं के रूप में जाना जाता था। सेठ मुन्शी राम अग्रवाल का परिवार जब फाजिल्का में व्यापार के लिए

आया तो उन्होंने यहां भूमि खरीद की। जिसमें रघुवर भवन की इमारत बनी हुई थी। रघुवर भवन की इमारत सबसे पुरानी ऐतिहासिक इमारत है।
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इस इमारत को विरासती दर्ज़ा दिलाने के लिए आंदोलन किया तब इसे पंजाब सरकार की तरफ से इस इमारत को विरासती दर्जा दिया गया,
   लेकिन किसी ने इस की सुध नहीं ली. जिस कारण यह इमारत अब खँडहर का रूप धारण कर गई है - LACHHMAN DOST FAZILKA-
Fazilka's oldest building
Wonderful Sample of British Art Building Art Raghuvar Bhavan
    Fazilka's historic building Raghuvar Bhawan is an excellent example of British building construction and architecture. Its architecture is a unique combination of components of Indian, Mughal and British architecture. Located in the northern direction of Raghuvar Bhawan and located at the end of the city, Mohalla New Population is located in Islamabad. Seeing the beauty of craftsmanship of artisans, once the 21st century building art masters also appreciate The splendor of the magnificent building is a marvel of beauty. Today's Green Buildings is being prepared on the lines of this building built after the construction of the bungalow. On the north side of the building is the main gate. Om Raghuvar Bhawan has been written on top of the door with arch conventions. Below it is the contract door. On the main gate, the symbol of the Hindu God Shiva is mentioned. Which is an integrated combination of components of Hindu architecture. It is also found in Hindu temples. Two columns of pink color symbolizing Vijay and Harsh on the main gate show Mughal style architecture. The artwork seen from the outside of the columns is very beautiful in the context of Mughal-e-Ghumalikan building art and British building construction art. One of the main features of its entrance is that flowers and leaves have been sculpted on its pillars. Those who carve it, are so efficiently groomed that the mind is pleased. The building itself is built on a high platform. The walls rising from every corner of its foundation give enough balance to the building. There is a bedroom on the south side of the corridor. There are two small rooms in the left and right of the bedroom. Whose doors open towards East and West. An open hall has been built in the center of the building. Where the chimney has been built to escape the winter season. Where the fire is enjoyed and sitting. The chimney has been made in such a way that the fog of fire goes out through the fireplace. Such chimneys are found in buildings built on the lines of the British era. There are two rooms on both sides. Which can be easily entered by the gate. Rooms revive the memories of the junkies-mango and junk-specials built in Delhi's Red Fort. Behind the building there are three rooms on the south side. Whose door is south. The feature of the rooms is that all the rooms have been connected to the main hall by the gate. The 22 stairs have been made between them. The room can be reached on the roof. Then eight stairs have been made for the roof of the rooms to climb the main hall. Which can be reached on the main hall. Upon the main hall, four domes are decorated. Its peak is embellished with an inverted lotus. It gives insertion to the edges of the dome on the summit. The number of small domes around the building is ten. Small dome is the main dome-shaped copies, only the difference is the difference. Surrounding on the roof, overlooking the green trees of the lake, the bungalow, the round kothi, the Oliver Garden, the railway station and the other buildings of the city are hampered. The amazing atmosphere of art has been made to live in the atmosphere of Raghuvar Bhawan. The main gate is constructed on the north side in such a way that the lighting and air co-ordination in every part of the building is maintained throughout the day. In the winter season, the sun rays reach the corridor of the building. The 18-inch and 36-inch bricks have been used in the thick walls of the building. Masonry of the walls has been fixed bricks, lime and spell. Artisans showing the building in the building have made bricks of masonry in the building with English and Flemish Junk. During the summer season, there is a feeling of heat during the cold and winter seasons. Roses have been installed in the four directions for lighting in the rooms of the building. Spread over an estimated 20 acres of land before the Indo-Pak partition, there were four or more garden gardens of this building, which made the building joyous. The sweetness of the flowers of the garden, pomegranate, mango, guava and malta and greenery were the only environments. During the rainy season, when the peacocks danced in the gardens, the sight of a seasoned weather would become a paradise. Coil's melodious voice and birds of birds used to give a sense of sweet music to the ears. There were two wells between the garden spread over the vast courtyard of the building. Who was known as tinda wells. When the family of Seth Munshi Ram Agrawal came to business in Fazilka, he purchased land here. In which the building of Raghuvar Bhavan was built. The building of Raghuvar Bhawan is the oldest historical building.
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When the movement was organized to give a legacy to this building, then it was given a legacy status by the Punjab government, but no one has appreciated this. Because of which this building has now become the shape of Khandhar
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Aug 28, 2018

"Fazilka Heritage" Gol Kothi

"Fazilka Heritage" 
ब्रिटिश साम्राज्य का मनोरंजन कक्ष
आर्च कंट्रक्शन की मनमोहक कला की पेशकश गोल कोठी


    फाजिल्का के उत्तर दिशा में बाधा झील के किनारे ब्रिटिश अधिकारी पैट्रिक वंस एगन्यू की ओर से निर्मित बंगला और ओलिवर की ओर से विकसित किए गए ओलिवर गार्डन के नजदीक शताब्दी पूर्व निर्मित किया गया रिक्रीऐशन कल्ब ब्रिटिश वास्तुशैली का उत्कृष्ट पेशकश है। कारीगरों की हस्तकला से सजी सवरी कल्ब की ऐतिहासिक इमारत अपनी श्रेष्ठता में सौन्दर्य के संयोजन का परिचय देती है। रिक्रीऐशन कल्ब ब्रिटिश साम्राज्य में 1913 ई. में अस्तित्व में आई थी। इसका वास्तविक नाम दि बोस्वर्थ समिथ रिक्रीएशन कल्ब है। ब्रिटिश अधिकारयिों ने बंगला में पहुंचने वाले प्रत्येक नेता और अधिकारी के मनोरंजन के लिए इस इमारत का निर्माण करवाया था। इमारत छहभुज नीव आधार पर बनाई गई है। जो खुद में एक एक ऊंचे मंच पर बनाई होने की झलक देती है। जिसकी नींव प्रत्येक कोने से उठने वाली आर्चद्वार और दीवारें इमारत को पर्याप्त संतूलन देती हैं। इस गोलाकार इमारत को मोटी दीवारों से बनाया गया है। जिन पर पक्की ईंटे लगाकर चूना व सुरखी से चिना गया है। कल्ब की इमारत महलनुमा और गोलाकार होने के कारण इसे गोल कोठी के रूप में अधिक जाना जाता है। इमारत के उत्तर से दक्षिण दिशाओं तक आर्च कन्ट्रक्शन शैली में प्रवेशद्वार बनाए गए हैं। जिनकी संख्या 18 है। विजय और हर्ष का प्रतीक स्तम्भों को गुलाबी रंग दिया गया है। प्रत्येक फलक में आर्च कंट्रक्शन से निर्मित द्वारों के आगे तीन सीढिय़ां बनाई गई हैं। जहां से कल्ब के गलियारे में प्रवेश होता है। मुख्यद्वार के साथ लगते द्वारों में समानता है। इनमें फर्क सिर्फ यह है कि बाकी द्वार मुख्यद्वार से छोटे हैं। किसी भी द्वार से इमारत के गलियारे में पहुंचा जा सकता है। गलियारे में पैदल पथ बनाया गया है। जहां से इमारत के उत्तर से दक्षिण तक घूमा जा सकता है। गलियारे की खास विशेषता यह है कि गलियारे में सर्दी के मौसम दौरान धूप और गर्मी के मौसम में ठंडी छांव का लुत्फ उठाया जाता है।
केन्द्र में छहभुज कक्ष का निर्माण किया गया है। जिसके उत्तर और पूर्व दिशा की ओर दो द्वार बनाए गए हैं। केन्द्र कक्ष में हवा और रोशनी का तालमेल बिठाने के लिए रोशनदान और जालीदार खिड़कियां सजित हैं। केन्द्र कक्ष में पश्चिम की ओर एक जालीदार द्वार है। जहां से साथ लगते दो छोटे कक्षों में प्रवेश होता है। एक छोटे कक्ष में प्रवेश करने के लिए गलियारे के उत्तर दिशा की ओर भी द्वार बनाया गया और दूसरे छोटे कक्ष के प्रवेश के लिए केन्द्र कक्ष का जालीदार द्वार और दक्षिण दिशा में द्वार हैं। इनका एक-एक द्वार पश्चिम की ओर भी खुलता है। इनके साथ 16 घुमावदार सीढिय़ां है। जिनके जरिए इमारत की छत्त पर पहुंचा जा सकता है। गलियारे की छत्त पर आठ गुम्बद सजित हैं और केन्द्र कक्ष की छत्त पर छह गुम्बद हैं। जिन्हें कमल के फूल में सजाया गया है। जो मुगलकालीन, हिन्दु और ब्रिटिशशैली के घटकों का एकीकृत संयोजन है। छत्त से पूर्व, उत्तर और पश्चिम की ओर हरियाली नजर आती है। हरियाली को चीरती हुई नजर बंगला पर पहुंचती है तो दक्षिण की ओर रेलवे स्टेशन की झलक पड़ती है। (Lachhman Dost Fazilka)
"Fazilka Heritage" 
Entertainment Room of the British Empire
    Recreation club, built before the Oliver Garden, developed by the British officer Patrick Vans Agnew, on the side of the badha lake, north of Fazilka, was developed by Bungalow and Oliver, which is an excellent offering of British architecture. The historic building of the Saviar Kalb, decorated with handicrafts of artisans, introduces the combination of beauty in its superiority. The Recreation Club came into existence in the British Empire in 1913 AD. Its real name is The Bosworth Samith Recreation Club. The British officers had constructed this building to entertain every leader and officer who arrived in Bangla. The building is built on the base of the six-footed foundation. Which gives itself a glimpse of one being built on a high platform. The foundation of which is that the archways and walls rising from each corner give sufficient amenability to the building. This spherical building is made of thick walls. Which have been crafted with lime and snake with fixed bricks. Due to being a palanquin and spherical building, it is known more as a round kothi. Gateways in the arch contraction style have been made from north to south direction of the building. Those numbers are 18. The symbols of Vijay and Harsh are given pink color. Three straps have been made in front of the doors made of arch concrete in each panel. From where the castle enters the corridor. There are similarities in the doors leading to the main gate. The only difference is that the rest of the doors are smaller than the gateway. Any door can be reached in the corridor of the building. A pedestrian path has been built in the corridor. From where the building can travel from north to south. The special feature of the corridor is that the cold shade is enjoyed in the corridor during the winter season during the sun and summer. The cuboid chamber has been built at the center. Two gates have been made towards north and east direction. To adjust the air and light in the center room, the skylight and reticular windows are decorated. In the center room there is a forged gate towards the west. From where the two small chambers are joined with. To enter a small chamber, the gate was also made towards the north side of the corridor and for the entrance of the second small chamber, the entrance to the central chamber and the gate in the south direction. Each one of them opens to the west side too. There are 16 curved stairs with them. Through which the roof of the building can be reached. There are eight domes on the roof of the corridor and six domes on the roof of the center room. Those who have been decorated in lotus flowers. Which is an integrated combination of components of Mughal period, Hindu and British style. Before Chhatta, there is greenery towards north and west. If the sight of the greening rider arrives at the bungalow, then there is a glimpse of the railway station towards the south.

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Aug 27, 2018

Mubark begam Singer

एक शाम शहीदों के नाम प्रोग्राम देने फाजिल्का आई थी सिंगर मुबारक बेगम 

कभी तनहाइयों में
हमारी याद आएगी
अंधेरे छा रहे होंगे
के बिजली कौंध जाएगी
कभी तनहाइयों में यूँ...
ये गीत 6० के दशक का मशहूर गीत है- जिसे गायका मुबारक बेगम ने आवाज़ दी थी - जो फाजिल्का में आई थी - उन्होंने फाजिल्का के घंटा घर पर प्रोग्राम पेश किया था  - बात 66 से  73 के बीच की है - Lachhman Dost Fazilka

kabhi tanhayion me
hamaari yaad aaye gee
ye geet 60 ke dashak kaa parsidh song hai- jo singer Mubark Begam ne gaya tha- yahi geet isi singer ne Fazilka ke Clock Tower per gayaa tha - 
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Aug 25, 2018

रक्षा बंधन - बहनों ने सजाई फौजी भाईओं की कलाई 
जिन की बदौलत हम चैन से सोते हैं, उन जवानों की कलाई पर आज बहनों ने राखी सजाई
भाई बहन के पवित्र रिश्ते को दर्शाता रक्षा बंधन का त्यौहार। इस त्यौहार में हर भाई को अपनी बहन का इंतजार रहता है और बहने भी भाईयों से मिलने उनके पास पहुंचती हैं। 

 मगर जो भाई सरहदों की रक्षा में दिन रात जुटे रहते हैं, उनकी कलाई खाली न रह जाए,
Lachhman Dost - Krishan Taneja
  इसलिए बहुत सी बहनों ने भारत पाक सरहद की सादकी पोस्ट पर पहुंचकर सीमा सुरक्षा बल के जवानों की कलाई सजाई।

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Aug 21, 2018

सिर्फ सादकी बॉर्डर पर ही है पेड़ों पर चित्रकारी

फाजिल्का, 21 अगस्त: भारत पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय सरहद के सादकी बॉर्डर पर रंगला बंगला फाजिल्का वैलफेयर सोसायटी की तरफ से पेड़ों पर कलाकारी करके देश प्रेम की अनूठी मिसाल पैदा की गई है। जो वास्तव में ही सराहनीय है। पेड़ों पर कलम के जादू से मनमोहक पेंटिंग करने वाले कलाकारों ने जहां अपनी कला के जरिए देश प्रेम की भावना को उजागर किया है, वहीं उनका वातावरण प्रेम भी अलग ही अंदाज प्रदर्शित किया गया है।
यह शब्द सीमा सुरक्षा बल के सैक्टर कमांडैंट रतन लाल बगडिय़ा ने सादकी बॉर्डर पर स्थित पेड़ों पर की गई आकर्षित कलाकारी को जनता के हवाले करते हुए कहे। उन्होंने सोसायटी के इस कार्य की भरपूर सराहना करते हुए कहा कि पेड़ों पर ऐसी सुंदर चित्रकारी पंजाब के किसी अन्य बॉर्डर के पेड़ों पर नहीं है। जिस कारण सादकी बॉर्डर दर्शकों को अधिक आकर्षित कर रही है। 
इस मौके पर सीमा सुरक्षा बल के द्वितीय कमान अधिकारी आर.एस. बोहरा, डिप्टी कमांडैंट सतीश दहिया, राहुल सिंह सहायक कमांडैंट, असिस्टैंट कमांडैंट राजेश रंजन ठाकुर, सब इंस्पैक्टर अशीश कुमावत, सब इंस्पैक्टर अभय सैणी और समाजसेवी लीलाधर शर्मा आदि मौजूद थे। इन पेड़ों पर लछमण दोस्त, उनकी धर्मपत्नी श्रीमती संतोष चौधरी, कृष्ण तनेजा व उनकी धर्मपत्नी श्रीमती विशु तनेजा, जन्नत, खुशी, तमन्ना और आयुष तनेजा आदि की तरफ से सुंदर चित्रकारी की गई थी।
इस कलाकारी को 70 हजार से अधिक लोग देख चुके हैं। इनमें पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली के पर्यटक भी शामिल हैं। इसके अलावा हजारों की तादाद में पाकिस्तानी लोग भी इस चित्रकारी को देख चुके हैं। इस बारे में जानकारी देते हुए सोसायटी की संतोष चौधरी व विशु तनेजा ने बताया कि पिछले साल भी सोसायटी की ओर से बॉर्डर के पेड़ों पर आकर्षित पेंटिंग की गई थी। इस साल भी पेड़ों पर रंगबिरंगी चित्रकारी करके उन्हें अधिक सुंदर रूप दिया गया है। उन्होंने बताया कि पेड़ों पर जहां पशु पक्षी के चित्र बनाए गए हैं। इसके अलावा देश भक्ति पर आधारित कई चित्र बनाए गए हैं। 
Only on Sadki Border is painting on trees
Fazilka, August 21: A unique example of country love has been created by artwork on trees from the Rangala Bungalow Fazilka Welfare Society on the Sardaki border of India-Pakistan international border. Which is truly commendable. Artists painting from the magic of pen on the trees have highlighted the feeling of love in the country through their art, while their atmosphere has also been shown different styles of love. This term, the Sector Commandant of the Border Security Force, Ratan Lal Bagriya said, while handing over the artwork on trees located on the Sardki border, to the public. He greatly appreciated the work of the society and said that such a beautiful painting on trees is not on any other border of Punjab. Because of which Saadki Border is attracting more to the audience.
On this occasion, the second Commanding officer of the Border Security Force, R.S. Bohra, Deputy Commandant Satish Dahiya, Rahul Singh Assistant Commandant, Assistant Commandant Rajesh Ranjan Thakur, Sub Inspector Aasish Kumawat, Sub Inspector Abhay Saini and Social Assistant Liladhar Sharma were also present. These trees were beautifully painted on behalf of Lachaman Dost, Mrs. Santosh Chaudhari, Krishna Taneja and Mrs Vishu Taneja, Jannat, khushi, Tamanna and Ayush Taneja etc. This artwork has seen more than 70 thousand people. These include tourists from Punjab, Haryana, Rajasthan and Delhi. Apart from this, the Pakistani people have also seen this painting in the thousands. Giving information about this, Santosh Chaudhary and Vishu Taneja of the Society said that even last year, painting painted on Border trees was done by society on behalf of society. This year also, they have been given a more beautiful look by colorful paintings on trees. He told that on the trees where pictures of animal bird have been made. Apart from this many paintings based on patriotism have been made.

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ਜਦੋਂ ਪਲੇਗ ਨੇ ਲੀਲ ਲਏ ਕਈ ਲੋਕ 

ਗੱਲ 1918 ਦੀ ਹੈ -ਜਦੋਂ ਫਾਜ਼ਿਲਕਾ ਵਿਚ ਪਲੇਗ ਦੀ ਬਿਮਾਰੀ ਫੈਲੀ ਸੀ - ਪਿੰਡ ਜੋੜ੍ਕੀ ਕੰਕਰਵਾਲੀ ਵਿਚ ਸਭ ਤੋਂ ਜਿਆਦਾ ਲੋਕ ਇਸ ਬਿਮਾਰੀ ਨਾਲ ਮਰੇ ਸੀ - ਪਿੰਡ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਜਿਵੇਂ ਓਹਨਾ ਦੇ ਬਜੁਰਗਾਂ ਨੇ ਦਸਿਆ -ਕਿ ਓਹ ਇਕ ਲਾਸ਼ ਨੂੰ ਜਲਾ ਕੇ ਆਉਂਦੇ ਸਨ ਤੇ ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਇਕ ਹੋਰ ਆਦਮੀ ਦੀ ਮੋਤ ਹੋ ਜਾਂਦੀ -ਪਤਾ ਨਹੀ ਕਿਨੀਆਂ ਲਾਸ਼ਾਂ ਜਲਾਈਆਂ- ਕਿਸੇ ਦੇ ਘਰ ਰੋਟੀ ਨਹੀ ਬਣੀ- ਲਾਸ਼ ਦੀ ਅੱਗ ਤੇ ਛੱਲੀਆਂ ਭੂਨ ਕੇ ਪੇਟ ਦੀ ਅੱਗ ਬੁਝਾਈ- ਫੇਰ ਓਹਨਾ ਪਿੰਡ ਛੱਡ ਦਿਤਾ ਤੇ ਪੁਰਾਣੇ ਪਿੰਡ ਤੋ ਦੂਰ ਇਕ ਇਕ ਨਵਾਂ ਪਿੰਡ ਵਸਾਇਆ -ਜਿਸਨੂੰ ਜੋੜ੍ਕੀ ਕੰਕਰ ਵਾਲੀ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ -Lachhman dost
Jadon PLEG dee bimaari ne leel laye kai lok
gal 1918 dee hai-Fazilka vich PLEG dee bimari fail gai-us vele pind JODKI KANKARWALI vich kai lok mar gaye see- kise gar roti nahi bani-lokan ne lash dee agg te chhaliyan bhun ke pet dee agg bujhai see- fer oh lokan ne nava pind vasaya jis noon purane pind daa naam dita JODKI KANKARWALI- bahut dard bhari dastan see-
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